न्यायालय द्वारा मजदूरों के बेरोज़गारी भत्ते के कानूनी अधिकार पर स्थगनादेश
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राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत उत्तर प्रदेश सरकार के ग्रामीण विकास विभाग का सीतापुर में मजदूरों को बेरोज़गारी भत्ता देने के साहसिक एवं प्रशंसनीय निर्णय को ब्लाक विकास अधिकारी (बी.डी.ओ) ने अलाहाबाद हाई कोर्ट बेंच में अपील की।
माननीय हाई कोर्ट ने पुन: आश्वासन दिया है और ग्रामीण विकास आयुक्त के अधिकारों को संग्रक्षित किया है और आयुक्तों को निर्देश दिया है कि अपीलकर्ताओं की सुनवाई हो और सही लोगों को भुगतान किया जाए।
मजदूरों के बेरोज़गारी भत्ता पाने के संवैधानिक अधिकारों की संग्रक्षा कर के ग्रामीण विकास विभाग ने यह नि:संदेह प्रशंसनीय एवं सराहनीय कदम उठाया है क्योंकि मजदूरों को यह अधिकार राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के शेड्यूल ३, पारा ७ में उल्लेखित है कि यदि एक अवधि तक मजदूर को काम न दिया गया हो तो उसको बेरोजगारी भत्ता मिलना चाहिए।
यह बेरोज़गारी भत्ता प्रदेश सरकार द्वारा दिया जाएगा और न कि उस धनराशि से जो केंद्रीय सरकार द्वारा मजदूरों को मजदूरी देने के लिए दी जाती है।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम के तहत किसी भी मजदूर को कहीं और कार्य करने से मनाही नहीं है, और यदि प्रदेश सरकार मजदूर को १०० दिन का कार्य नहीं दे पा रही है, तो यदि वोह मजदूर बेरोज़गारी भत्ता की मांग करे तो उसको बेरोज़गारी भत्ता मिलना चाहिए।
जिले के स्तर पर बेरोज़गारी भत्ते के मुद्दे पर विचार करने के लिए जिस समिति का गठन हुआ था उसके अध्यक्ष एक सब-डिविज़नल मजिस्ट्रेट अधिकारी थे, एवं इस समिति में दो अन्य सरकारी अधिकारी थे और उसको संस्था के प्रतिनिधि भी जिन्होंने यह मुद्दा उठाया था। इस समिति में इस मुद्दे को उठाने वाली संस्था के लोग इसलिए थे क्योंकि राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम में लोगों द्वारा ही जनता जांच करने का प्रावधान है और इस प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी इस अधिनियम की मूल रूप के अनुकूल है।
मैं यह बात कहना चाहूंगी कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम को २ फरवरी २००९ को अब ३ साल पूरे हो जायेंगे। परन्तु उत्तर प्रदेश में इस अधिनियम/ योजना को लागु करने में अधिकाँश करवाई पिछले एक साल में ही हुई है। वर्तमान प्रशासन ने इस अधिनियम को पूरी निष्ठां के साथ लागु करने का प्रयास किया है।
इसके बावजूद भी, उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम को लागु करने में कुछ खामियां भी हैं, जैसे कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना चाहिए, जरुरतमंदों को रोजगार मिलना चाहिए और भुगतान समय पर होना चाहिए आदि।
प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो हादसा हरदोई में हाल ही में हुआ है, ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ न हो। हरदोई के एक गाँव में जब मजदूर अपने रोजगार पाने के अधिकार की मांग कर रहे थे, तो एक प्रभावशाली प्रधान ने, उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री की शय में, मजदूरों को बर्बरता से मारा। प्रदेश सरकार के समक्ष यह एक चुनौती है कि वोह राजनितिक दबाव से ऊपर उठ कर मजदूरों के अधिकारों की संग्रक्षा करे।
अरुंधती धुरु
भूख के अधिकार केस में सुप्रीम कोर्ट कमिश्नर की सलाहाकार, फोन: ९४१५० २२७७२