[फोटो] [English] रेउसा ब्लॉक सीतापुर जिला के सैंकड़ों लोगों ने 25-26 फरवरी 2013 को जल सत्याग्रह में भाग लिया। यह लोग शारदा नदी के पानी में इसलिए उतरे क्योंकि हर साल शारदा नदी के 7 किमी तक रास्ता बदलने पर और बढ़ते पानी से अनेक गाँव डूब आए। हजारों की संख्या में लोगों के घर पानी में पूर्णत: समाप्त हो गए। कटान रोको संघर्ष मोर्चा का नेतृत्व कर रहीं ऋचा सिंह ने कहा कि लगभग 800 परिवार तो सड़क पर दोनों ओर अस्थायी तरीके से किसी तरह से जीवित हैं। परंतु सीतापुर जिला प्रशासन और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों ने अभी तक शारदा नदी से इन लोगों को बचाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है।
आंध्र प्रदेश के टीबी नियंत्रण में सुधार की मांग
अनेक संगठनों ने आज आंध्र प्रदेश में टीबी नियंत्रण से संबन्धित समस्याओं को चिन्हित किया और अधिकारियों को ज्ञापन दिया गया जिससे कि प्रदेश में टीबी नियंत्रण में व्यापक सुधार हो सकें। पार्टनर्शिप फॉर टीबी केअर एंड कंट्रोल इन इंडिया, लेपरा सोसाइटी, कैथॉलिक हेल्थ असोसियशन ऑफ इंडिया, सीबीसीआई-सीएआरडी, डैमियन फ़ाउंडेशन, डेविड एंड लोइस रीस अस्पताल, शिवानंद पुनर्वास केंद्र, टीबी अलर्ट इंडिया, वासव्य महिला मंडली, वर्ल्ड विज़न इंडिया, सीएएमपी, और रायलसीमा ग्रामीण विकास सोसाइटी आदि संस्थाओं ने अधिकारियों को ज्ञापन दिया।
टीबी वैक्सीन शोध असफल: हमारे लिए क्या मायने हैं?
आखिर क्या वजह है कि टूबेर्कुलोसिस (टीबी) नियंत्रण एक बड़ी चुनौती बना हुआ है? टीबी से बचाव के लिए जो एकमात्र टीका उपलब्ध है उसे बीसीजी कहते हैं। बीसीजी लगभग 100 साल पुराना टीका है, और आज भी विशेषकर कि बच्चों को वीभत्स प्रकार की टीबी से बचाता है। बेहतर और अधिक प्रभावकारी टीबी टीके के शोध अनेक साल से चल रहे हैं और 4 फरवरी 2013 को ऐसे ही एक टीबी वैक्सीन शोध जिसे 'एमवीए85ए' कहते हैं, के नतीजे 'द लैनसेट' में प्रकाशित हुए हैं।
एक-तिहाई कैंसर से बचाव मुमकिन है: प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) के अनुसार कम-से-कम एक-तिहाई कैंसर से बचाव मुमकिन है। डबल्यूएचओ अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार से सम्मानित और कैरिएर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस के प्रिन्सिपल प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि “कैंसर से बचाव और कैंसर के खतरे को कम करने वाली जीवनशैली को बढ़ावा देने से ही कैंसर नियंत्रण में सार्थक कदम उठ सकते हैं”। प्रो0 डॉ0 रमा कान्त, जो किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जरी के पूर्व प्रमुख और पूर्व मुख्य चिकित्सा अधीक्षक भी रहे हैं, विश्व कैंसर दिवस पर स्वास्थ्य को वोट अभियान, आशा परिवार, सीएनएस, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय द्वारा आयोजित मीडिया संवाद को संबोधित कर रहे थे।
राष्ट्रपति महिला हिंसा ऑर्डिनेन्स पर हस्ताक्षर न करें: महिला आंदोलन
अनेक महिला अधिकारों के लिए समर्पित सामाजिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने यौन हिंसा से संबन्धित मामलों में क्रिमिनल विधि संशोधन के लिए ‘सरकार द्वारा ऑर्डिनेन्स’ लाने के निर्णय का पुरजोर विरोध किया। लखनऊ में प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति धुरु ने कहा कि माननीय राष्ट्रपति से हमारी अपील है कि वें इस ‘ऑर्डिनेन्स’ पर हस्ताक्षर न करें। अरुंधति धुरु, जो भोजन अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त आयुक्त की प्रदेश सलाहकार हैं, ने कहा कि मीडिया द्वारा सार्वजनिक हुई जानकारी से यह पता चलता है कि यौन हिंसा कानून में संशोधनों से संबन्धित ऑर्डिनेन्स को कैबिनेट ने कल (1 फरवरी 2013) पारित किया है – अगले संसद सत्र आरंभ होने से 20 दिन पहले। सरकार द्वारा इस ऑर्डिनेन्स को बिना किसी पारदर्शिता के आकस्मिक रूप से पारित करने पर हम सभी अचंभित हैं। इस प्रकार की जल्दबाज़ी से ऑर्डिनेन्स को पारित करने की क्या आवश्यकता और उद्देश्य है जब कि अगला संसद सत्र 20 दिन बाद ही आरंभ होने को है और यह प्रस्तावित ऑर्डिनेन्स दिल्ली समूहिक बलात्कार के मामले मे लागू नहीं होगा।
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