शोभा शुक्ला - सीएनएस
[English] अस्थमा या दमा एक आम गैर-संक्रामक रोग है जिससे 30 करोड़ से अधिक लोग विश्व में जूझ रहे हैं। भारत में 3 करोड़ लोग अस्थमा के साथ जीवित हैं। बच्चों में अस्थमा सबसे प्रचलित गैर-संक्रामक रोग है। अनेक देशों में अस्थमा दर दोगुना तक हो गया है। यदि अस्थमा का प्रबंधन और नियंत्रण पर्याप्त रूप से हो तो उसके साथ सामान्य ज़िंदगी बिताई जा सकती है और व्यावसायिक रूप से भी सफलता पायी जा सकती है। यही केन्द्रीय विचार था इन्दिरा नगर में आयोजित मीडिया संवाद का जिसको विश्व अस्थमा दिवस के उपलक्ष्य में स्वास्थ्य को वोट अभियान, सीएनएस, आशा परिवार और जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय ने आयोजित किया था।
अस्थमा की सही जांच न हो पाना, सही मानकों के अनुसार उपचार न हो पाना, सही प्रबंधन और नियंत्रण न हो पाना ही अधिकांश अस्थमा से संबन्धित मृत्यु का कारण है। यद्द्पि अस्थमा का पक्का इलाज मुमकिन नहीं है परंतु इसका सफल प्रबंधन और नियंत्रण मुमकिन है। सफल प्रबंधन से अस्थमा जनित अस्पताल आदि जाने की आवश्यकता भी लगभग शून्य हो सकती है और व्यक्ति सामान्य जीवन यापन कर सकती है। यदि अस्थमा का सही प्रबंधन न हो तो अनावश्यक कष्ट तो होता ही है, बल्कि परिवारों को भी आर्थिक व्यय झेलना पड़ता है और स्वास्थ्य व्यवस्था पर अनावश्यक दबाव बनता है।
केजीएमयू के पलमोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ सूर्य कान्त ने सीएनएस को बताया कि अस्थमा संबन्धित जागरूकता का अभी भी अभाव है। कई भ्रांतियाँ है जैसे कि अस्थमा के साथ सामान्य भरपूर ज़िंदगी नहीं जिया जा सकता। परंतु सत्य यह है कि यदि अस्थमा का उचित प्रबंधन हो तो सामान्य ज़िंदगी जी जा सकती है। अनेक प्रमुख खेलकूद या सिनेमा स्टार अस्थमा के साथ सफल ज़िंदगी व्यतीत कर रहे हैं। दूसरी मिथ्या यह है कि लोगों को ‘इन्हेलर’ लेने की लत पड़ जाएगी जबकि सत्य यह है कि नशे और आदत में अंतर है। ‘इन्हेलर’ की आदत पड़ सकती है पर नशा नहीं। ‘इन्हेलर’ का इस्तेमाल करना अन्य स्वस्थ आदतों जैसा है, जैसे कि रोजाना दाँत मंजन करना, नहाना, भोजन करना, आदि। अस्थमा के सफल प्रबंधन और नियंत्रण के लिए ‘इन्हेलर’ अतिआवश्यक है जिसके माध्यम से अत्यंत कम मात्रा में दवा फेफड़े के अंदर सीधी पहुँचती है। यदि किसी की श्वास नाली कमजोर हो तो उसे ‘इन्हेलर’ का इस्तेमाल करना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे कमजोर नज़र के लोग चश्मा पहनते हैं। ‘इन्हेलर’ के दीघ्राकालीन उपयोग से कोई नुकसान नहीं है”।
इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट टूबेर्कुलोसिस एंड लंग डीजीस (द यूनियन) के निदेशक डॉ चियांग चेन-युआन ने सीएनएस वेबिनर के जरिये बताया कि अस्थमा नियंत्रण का सबसे बड़ा बाधक यह है कि अस्थमा संबन्धित दवाएं कम कीमित पर व्यापक रूप से हर देश में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। अस्थमा ड्रग फैसिलिटी ने यह प्रमाणित कर दिया है कि अस्थमा संबन्धित गुणात्मक दवाएं कम कीमत पर देशों में उपलब्ध कराई जा सकती हैं”।
शोभा शुक्ला, सिटीज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
६ मई २०१४
[English] अस्थमा या दमा एक आम गैर-संक्रामक रोग है जिससे 30 करोड़ से अधिक लोग विश्व में जूझ रहे हैं। भारत में 3 करोड़ लोग अस्थमा के साथ जीवित हैं। बच्चों में अस्थमा सबसे प्रचलित गैर-संक्रामक रोग है। अनेक देशों में अस्थमा दर दोगुना तक हो गया है। यदि अस्थमा का प्रबंधन और नियंत्रण पर्याप्त रूप से हो तो उसके साथ सामान्य ज़िंदगी बिताई जा सकती है और व्यावसायिक रूप से भी सफलता पायी जा सकती है। यही केन्द्रीय विचार था इन्दिरा नगर में आयोजित मीडिया संवाद का जिसको विश्व अस्थमा दिवस के उपलक्ष्य में स्वास्थ्य को वोट अभियान, सीएनएस, आशा परिवार और जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय ने आयोजित किया था।
अस्थमा की सही जांच न हो पाना, सही मानकों के अनुसार उपचार न हो पाना, सही प्रबंधन और नियंत्रण न हो पाना ही अधिकांश अस्थमा से संबन्धित मृत्यु का कारण है। यद्द्पि अस्थमा का पक्का इलाज मुमकिन नहीं है परंतु इसका सफल प्रबंधन और नियंत्रण मुमकिन है। सफल प्रबंधन से अस्थमा जनित अस्पताल आदि जाने की आवश्यकता भी लगभग शून्य हो सकती है और व्यक्ति सामान्य जीवन यापन कर सकती है। यदि अस्थमा का सही प्रबंधन न हो तो अनावश्यक कष्ट तो होता ही है, बल्कि परिवारों को भी आर्थिक व्यय झेलना पड़ता है और स्वास्थ्य व्यवस्था पर अनावश्यक दबाव बनता है।
केजीएमयू के पलमोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ सूर्य कान्त ने सीएनएस को बताया कि अस्थमा संबन्धित जागरूकता का अभी भी अभाव है। कई भ्रांतियाँ है जैसे कि अस्थमा के साथ सामान्य भरपूर ज़िंदगी नहीं जिया जा सकता। परंतु सत्य यह है कि यदि अस्थमा का उचित प्रबंधन हो तो सामान्य ज़िंदगी जी जा सकती है। अनेक प्रमुख खेलकूद या सिनेमा स्टार अस्थमा के साथ सफल ज़िंदगी व्यतीत कर रहे हैं। दूसरी मिथ्या यह है कि लोगों को ‘इन्हेलर’ लेने की लत पड़ जाएगी जबकि सत्य यह है कि नशे और आदत में अंतर है। ‘इन्हेलर’ की आदत पड़ सकती है पर नशा नहीं। ‘इन्हेलर’ का इस्तेमाल करना अन्य स्वस्थ आदतों जैसा है, जैसे कि रोजाना दाँत मंजन करना, नहाना, भोजन करना, आदि। अस्थमा के सफल प्रबंधन और नियंत्रण के लिए ‘इन्हेलर’ अतिआवश्यक है जिसके माध्यम से अत्यंत कम मात्रा में दवा फेफड़े के अंदर सीधी पहुँचती है। यदि किसी की श्वास नाली कमजोर हो तो उसे ‘इन्हेलर’ का इस्तेमाल करना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे कमजोर नज़र के लोग चश्मा पहनते हैं। ‘इन्हेलर’ के दीघ्राकालीन उपयोग से कोई नुकसान नहीं है”।
इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट टूबेर्कुलोसिस एंड लंग डीजीस (द यूनियन) के निदेशक डॉ चियांग चेन-युआन ने सीएनएस वेबिनर के जरिये बताया कि अस्थमा नियंत्रण का सबसे बड़ा बाधक यह है कि अस्थमा संबन्धित दवाएं कम कीमित पर व्यापक रूप से हर देश में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। अस्थमा ड्रग फैसिलिटी ने यह प्रमाणित कर दिया है कि अस्थमा संबन्धित गुणात्मक दवाएं कम कीमत पर देशों में उपलब्ध कराई जा सकती हैं”।
शोभा शुक्ला, सिटीज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
६ मई २०१४