हिंदुस्तान टाइम्स, 12 मार्च 2017 |
39% लोगों ने वोट दिया ही नहीं. ऐसा मुमकिन है कि इन 39% वोट न देने वाले लोगों को सभी उम्मीदवार असंतोषजनक लगे हों. यदि यह 39% लोग 'नोटा' वोट देते और इसका सीधा असर चुनाव नतीजे पर पड़ता, तो सोचे चुनाव की तस्वीर क्या होती? भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का वोट प्रतिशत इस चुनाव में 39% है जो सभी राजनैतिक दलों की तुलना में सबसे ज्यादा है. पर 'नोटा' वोट और वोट-न-देने-वालों की संख्या 39% से अधिक है (40%).
लोकतांत्रिक प्रणाली को मज़बूत करने के लिए यह जरुरी है कि 'नोटा' वोट का सीधा और निर्णायक असर चुनाव नतीजे पर पड़ना चाहिए.
यदि किसी चुनाव क्षेत्र की अधिकाँश जनता किसी भी उम्मीदवार से संतुष्ट नहीं है तो उसके पास यह विकल्प होना चाहिए कि वो 'नोटा' का इस्तेमाल करके सभी उम्मीदवारों को ख़ारिज करे और चुनाव साफ-सुथरे उम्मीदवारों के साथ पुन: हो. वर्त्तमान में यदि आपको कोई भी उम्मीदवार वोट देने लायक नहीं लगता है तो आपके पास कोई ठोस विकल्प नहीं है: या तो आप वोट न दें और या 'नोटा' बटन दबाएँ, जो मैंने दबाया, पर जिसका कोई भी असर चुनाव नतीजे पर नहीं पड़ेगा.
लोकतंत्र में जनता के पास यह अधिकार होना चाहिए कि यदि वो किसी भी प्रतियाशी से संतुष्ट नहीं है तो वो "नोटा" बटन दबा के चुनाव नतीजे को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सके. यदि "नोटा" वोट की संख्या जीतने वाले प्रतियाशी के वोट की संख्या से अधिक हो तो चुनाव रद्द हो और सभी ख़ारिज प्रतियाशियों को आगामी कुछ सालों तक इस क्षेत्र से चुनाव लड़ने नहीं दिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब 'नोटा' का बटन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर होता है. एक तरफ चुनाव आयोग का कार्य प्रशंसनीय है कि चुनाव प्रणाली पिछले सालों में निरंतर दुरुस्त हो रही है, अलबत्ता धीरे धीरे. दूसरी ओर लोकतंत्र में 'नोटा' अभी भी मात्र 'कागज़ी शेर' जैसा ही है जो चिंताजनक है.
आशा परिवार से जुड़े मुदित शुक्ला ने कहा कि "हम चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के आभारी हैं कि 'नोटा' का बटन ईवीएम मशीन पर उपलब्ध है. पहले 'नोटा' के उपयोग में बहुत समस्या होती थी. 'नोटा' बटन को ईवीएम मशीन पर लगाने के लिए शुक्रिया. पर इतना पर्याप्त नहीं है. लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है कि 'नोटा' वोटों का चुनाव नतीजे पर सीधा प्रभाव पड़े."
"नोटा" वोट अधिकतम हों तो चुनाव रद्द हो: डॉ संदीप पाण्डेय
मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय ने बताया कि "हम लोगों का सुझाव है कि: यदि 'नोटा' वोटों की संख्या जीतने वाले प्रतियाशी के वोटों की संख्या से अधिक हो तो चुनाव को रद्द किया जाए, और सभी उम्मीदवारों पर इस चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ने पर आगामी कुछ सालों तक प्रतिबंधित लगे."
डॉ संदीप पाण्डेय जो अनेक आईआईटी में पढ़ा चुके हैं और जन-आंदोलनों का नेत्रित्व दशकों से करते रहे हैं, उनकी मांग लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जायज़ है. यदि 'नोटा' वोटों का सीधा निर्णायक प्रभाव चुनाव नतीजे पर पड़ेगा तो चुनाव प्रणाली बेहतर होगी और लोकतान्त्रिक व्यवस्था मजबूत होगी.
बाबी रमाकांत, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
12 मार्च 2017