विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के अनुसार दुनिया में सबसे अधिक टीबी भारत में है और दवा प्रतिरोधक टीबी का दर भी सर्वाधिक है। हालाँकि पिछले सालों में निरंतर टीबी दर में 1% से अधिक गिरावट आ रही थी पर 2015 में भारत में न केवल टीबी दर बढ़ गया बल्कि टीबी मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी हो गयी. एक जरुरी सवाल यह भी है कि क्या टीबी का इलाज असरकारी दवाओं से हो रहा है?
टीबी दवाओं के दुरुपयोग के कारण दवा प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाती है और दवाएँ कारगर नहीं रहती. क्योंकि दशकों से दवाओं का अनुचित उपयोग हो रहा है इसलिए हम लोगों में से अनेक लोग दवा प्रतिरोधकता से ज़ूझ रहे हैं.
ऐसी स्थिति में बेहद ज़रूरी है कि जब किसी व्यक्ति की टीबी की पक्की जाँच हो तो यह भी जाँच हो कि किन दवाओं से उस व्यक्ति को दवा प्रतिरोधकता है और कौन सी दवाएँ उसपर असर करेंगी। यह जाने बिना कि कौन सी दवाएँ कारगर होंगी, इलाज आरम्भ करना 'अंधेरे में तीर चलाने के समान' है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक टीबी कार्यक्रम के निदेशक डॉक्टर मारीओ रविगलीयोने ने सिटीज़न न्यूज़ सर्विस (सीएनएस) को बताया कि बिना यह जाँच किए कि रोगी पर कौन सी दवाएँ कारगर रहेंगी (और कौन सी दवा प्रतिरोधकता के कारण काम नहीं करेगी), टीबी का इलाज आरम्भ करना चिकित्सकीय रूप से अनुचित कार्य है (medical malpractice).
यदि बिना दवा प्रतिरोधकता की जाँच किए इलाज शुरू हुआ तो सम्भव है कि दवा कारगर हो या ना हो. यदि दवा कारगर नहीं हुई तो रोगी न केवल महीनों अनावश्यक कष्ट और पीड़ा में रहेगा, बल्कि उससे अन्य लोगों को संक्रमण भी फैलने का ख़तरा रहेगा। यह भी सम्भव है कि वो अन्य दवाओं के प्रति भी प्रतिरोधक हो जाए और उसका इलाज अधिक जटिल हो जाए. गौर करें कि दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज के नतीजे असंतोषजनक हैं क्योंकि अधिकाँश केन्द्रों में औसतन 50% लोग ही सफलतापूर्वक ठीक हो पाते हैं. दवा प्रतिरोधक टीबी का इलाज न केवल अत्यधिक लम्बा (२ साल या अधिक अवधि) और महंगा है (पर सरकारी केन्द्रों में नि:शुल्क उपलब्ध है).
शोभा शुक्ला जो सिटीज़न न्यूज़ सर्विस (सीएनएस) की निदेशक हैं, ने बताया कि भारत सरकार ने 2016 विश्व टीबी दिवस पर देश के लगभग हर जिले में कम-से-कम एक अति-आधुनिक मलेक्युलर जाँच विधि (जीन एक्स्पर्ट) लगवा दी थी. यह जन स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है यदि इन जीन एक्स्पर्ट मशीनों का पूरा उपयोग हो.
जीन एक्स्पर्ट मशीन से 2 घंटे के भीतर टीबी की पक्की जाँच और दवा प्रतिरोधक टीबी की भी जानकारी प्राप्त होती है जिससे कि बिना विलम्ब असरकारी इलाज आरम्भ किया जा सके.
पर भारत सरकार के पुनरीक्षित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत टीबी की प्रारम्भिक पक्की जाँच माइक्रोस्कोपी से होती है. इससे दवा प्रतिरोधकता की जानकारी नहीं मिलती और औसतन 30-40% टीबी पकड़ में भी नहीं आती. मौजूदा कार्यक्रम में दवा प्रतिरोधकता की जाँच तब होती है जब महीनों इलाज के बाद भी रोगी ठीक नहीं होता. हर जिले में जीन एक्स्पर्ट मशीन होने के बावजूद यदि हम उसका इस्तेमाल प्रारम्भिक टीबी जाँच और प्रतिरोधकता की जानकारी लेने में न करें तो यह कितनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है.
भारत में ही 2015 में हुए जीन एक्स्पर्ट सम्बंधी सबसे बड़े शोध से यह ज्ञात हुआ कि यदि जीन एक्स्पर्ट का इस्तेमाल प्रारम्भ में ही टीबी की पक्की जाँच करने में हो तो 39% अधिक टीबी पकड़ में आती है और 5 गुना अधिक दवा प्रतिरोधकता का पता लगता है. इस शोध को हुए लगभग 2 साल होने को आए और हर जिले में जीन एक्स्पर्ट मशीन लगे 1 साल हुआ पर अभी तक हम लोग वैज्ञानिक उपलब्धि को जन स्वास्थ्य लाभ में नहीं परिवर्तित कर पाए हैं.
भारत सरकार समेत 190 से अधिक देशों की सरकारों ने 2030 तक सतत विकास लक्ष्य हासिल करने का वादा किया है जिसमें टीबी उन्मूलन भी शामिल है. इस दायित्व से बचा नहीं जा सकता है कि जो वैज्ञानिक शोध से ठोस जानकारी हमें हासिल हो रही है, उसे हम कार्यक्रम में बिना विलम्ब शामिल कर के टीबी कार्यक्रम को अधिक ज़ोरदार बनाएँ.
बाबी रमाकांत, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
12 मार्च 2017
Published In
सिटिज़न न्यूज सर्विस , India
वेब वार्ता
Legend News
टीबी दवाओं के दुरुपयोग के कारण दवा प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाती है और दवाएँ कारगर नहीं रहती. क्योंकि दशकों से दवाओं का अनुचित उपयोग हो रहा है इसलिए हम लोगों में से अनेक लोग दवा प्रतिरोधकता से ज़ूझ रहे हैं.
ऐसी स्थिति में बेहद ज़रूरी है कि जब किसी व्यक्ति की टीबी की पक्की जाँच हो तो यह भी जाँच हो कि किन दवाओं से उस व्यक्ति को दवा प्रतिरोधकता है और कौन सी दवाएँ उसपर असर करेंगी। यह जाने बिना कि कौन सी दवाएँ कारगर होंगी, इलाज आरम्भ करना 'अंधेरे में तीर चलाने के समान' है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक टीबी कार्यक्रम के निदेशक डॉक्टर मारीओ रविगलीयोने ने सिटीज़न न्यूज़ सर्विस (सीएनएस) को बताया कि बिना यह जाँच किए कि रोगी पर कौन सी दवाएँ कारगर रहेंगी (और कौन सी दवा प्रतिरोधकता के कारण काम नहीं करेगी), टीबी का इलाज आरम्भ करना चिकित्सकीय रूप से अनुचित कार्य है (medical malpractice).
यदि बिना दवा प्रतिरोधकता की जाँच किए इलाज शुरू हुआ तो सम्भव है कि दवा कारगर हो या ना हो. यदि दवा कारगर नहीं हुई तो रोगी न केवल महीनों अनावश्यक कष्ट और पीड़ा में रहेगा, बल्कि उससे अन्य लोगों को संक्रमण भी फैलने का ख़तरा रहेगा। यह भी सम्भव है कि वो अन्य दवाओं के प्रति भी प्रतिरोधक हो जाए और उसका इलाज अधिक जटिल हो जाए. गौर करें कि दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज के नतीजे असंतोषजनक हैं क्योंकि अधिकाँश केन्द्रों में औसतन 50% लोग ही सफलतापूर्वक ठीक हो पाते हैं. दवा प्रतिरोधक टीबी का इलाज न केवल अत्यधिक लम्बा (२ साल या अधिक अवधि) और महंगा है (पर सरकारी केन्द्रों में नि:शुल्क उपलब्ध है).
शोभा शुक्ला जो सिटीज़न न्यूज़ सर्विस (सीएनएस) की निदेशक हैं, ने बताया कि भारत सरकार ने 2016 विश्व टीबी दिवस पर देश के लगभग हर जिले में कम-से-कम एक अति-आधुनिक मलेक्युलर जाँच विधि (जीन एक्स्पर्ट) लगवा दी थी. यह जन स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है यदि इन जीन एक्स्पर्ट मशीनों का पूरा उपयोग हो.
जीन एक्स्पर्ट मशीन से 2 घंटे के भीतर टीबी की पक्की जाँच और दवा प्रतिरोधक टीबी की भी जानकारी प्राप्त होती है जिससे कि बिना विलम्ब असरकारी इलाज आरम्भ किया जा सके.
पर भारत सरकार के पुनरीक्षित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत टीबी की प्रारम्भिक पक्की जाँच माइक्रोस्कोपी से होती है. इससे दवा प्रतिरोधकता की जानकारी नहीं मिलती और औसतन 30-40% टीबी पकड़ में भी नहीं आती. मौजूदा कार्यक्रम में दवा प्रतिरोधकता की जाँच तब होती है जब महीनों इलाज के बाद भी रोगी ठीक नहीं होता. हर जिले में जीन एक्स्पर्ट मशीन होने के बावजूद यदि हम उसका इस्तेमाल प्रारम्भिक टीबी जाँच और प्रतिरोधकता की जानकारी लेने में न करें तो यह कितनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है.
भारत में ही 2015 में हुए जीन एक्स्पर्ट सम्बंधी सबसे बड़े शोध से यह ज्ञात हुआ कि यदि जीन एक्स्पर्ट का इस्तेमाल प्रारम्भ में ही टीबी की पक्की जाँच करने में हो तो 39% अधिक टीबी पकड़ में आती है और 5 गुना अधिक दवा प्रतिरोधकता का पता लगता है. इस शोध को हुए लगभग 2 साल होने को आए और हर जिले में जीन एक्स्पर्ट मशीन लगे 1 साल हुआ पर अभी तक हम लोग वैज्ञानिक उपलब्धि को जन स्वास्थ्य लाभ में नहीं परिवर्तित कर पाए हैं.
भारत सरकार समेत 190 से अधिक देशों की सरकारों ने 2030 तक सतत विकास लक्ष्य हासिल करने का वादा किया है जिसमें टीबी उन्मूलन भी शामिल है. इस दायित्व से बचा नहीं जा सकता है कि जो वैज्ञानिक शोध से ठोस जानकारी हमें हासिल हो रही है, उसे हम कार्यक्रम में बिना विलम्ब शामिल कर के टीबी कार्यक्रम को अधिक ज़ोरदार बनाएँ.
बाबी रमाकांत, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
12 मार्च 2017
Published In
सिटिज़न न्यूज सर्विस , India
वेब वार्ता
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