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सतत विकास लक्ष्य 3.6
थाईलैंड सरकार समेत दुनिया के अन्य 192 देशों की सरकारों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा 2015 में सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals या SDGs) को 2030 तक पूरा करने का वादा किया है. इन सतत विकास लक्ष्यों में से एक है (SDG 3.6) कि 2020 तक, सड़क दुर्घटनाओं और मृत्युदर को आधा करना. पर आंकड़ों को देखें तो ये चिंता की बात है कि सड़क दुर्घटनाओं और मृत्युदर में गिरावट नहीं बढ़ोतरी हो रही है.
ब्रासिलिया डिक्लेरेशन
ब्रासिलिया डिक्लेरेशन में सरकारों ने यह भी वादा किया कि वे साइकिल, पैदल और सार्वजनिक यातायात साधन का उपयोग करने वाले लोगों के लिए सुरक्षित और बेहतर सुविधाएँ बढ़ाएंगी. पर सरकारें तो लम्बे चौड़े सुपर एक्सप्रेसवे को ही विकास का मापक मान रही हैं और चंद साइकिल ट्रैक के अलावा (जो प्रशंसनीय प्रारंभिक कदम है) इस दिशा में कोई विशेष उपलब्धि नहीं हुई है.
सुरक्षित, सुविधाजनक सार्वजनिक यातायात, साइकिल और पैदल चलने वाली व्यवस्था
गंभीरता से यह सोचें कि सतत विकास कैसा हो सकता है? चाहे जितनी चौड़ी बड़ी सड़कें हम बना लें यह संभव ही नहीं है कि हर व्यक्ति एक कार पर चले.जनसँख्या की एक छोटी आबादी ही कार पर चल रही है और सड़कों का बुरा हाल है. अधिकाँश लोग आज भी सार्वजनिक यातायात साधन, साइकिल, पैदल या मोटर-रहित गाड़ियों से चल रहे हैं.
सतत विकास का स्वरुप ऐसा क्यों नहीं हो सकता जिसमें सार्वजनिक यातायात सुरक्षित और सुविधाजनक हो? क्या सिंगापुर, जापान, लन्दन, न्यू यॉर्क, बोस्टन, आदि में अमीर-गरीब लोग सार्वजनिक यातायात का उपयोग नहीं करते हैं? ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं बन सकती जिसमें साइकिल, पैदल और मोटर-रहित गाड़ियों पर चलने वाले लोग सुरक्षित और सुविधाजनक रूप से आवागमन कर सकें?
आधी सड़क हो मोटर-रहित वाहन और पैदल चलने वालों के लिए: डॉ संदीप पाण्डेय
मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ संदीप पाण्डेय ने सिटीजन न्यूज़ सर्विस (सीएनएस) से कहा कि सरकार को आधी सड़क सिर्फ बिना-मोटर के वाहन (साइकिल, साइकिल रिक्शा, ठेला आदि) और पैदल चलने वालों के लिए सुरक्षित रखना चाहिए और बाकि बची आधी सड़क पर एक कतार में सीमित गति से बिना-हॉर्न बजाये मोटर वाहन चलें.
सड़क पर सबका बराबर का अधिकार
सतत विकास लक्ष्य सभी लोगों के विकास की व्यापक बात करता है. इसीलिए ये जरुरी है कि हमारी नीतियाँ भी इस बात को संशय में लें कि सड़क पर सबका बराबर का अधिकार है - न कि, सिर्फ बड़ी बड़ी गाड़ियों का. सबसे बड़ी प्राथमिकता ये होनी चाहिए कि समाज में सभी के लिए पैदल चलने और साइकिल चलाने तथा जन-परिवहन का सुरक्षित, आरामदायक और पर्याप्त इंतज़ाम है. यदि सभी के लिए जन-परिवहन का सुरक्षित, आरामदायक और पर्याप्त इंतज़ाम होगा तो फिर किसी को निजी दो-चार पहिया गाड़ी से चलने की आवश्यकता ही क्या है?
सड़क को सबके साथ साझा करें
सड़क हम सबकी है और उसको जिम्मेदारी से सबके साथ साझा करना अतिआवश्यक है. सड़क अधिकार पहले उसका है जो पैदल चल रहा हो (इनमें भी बच्चों, गर्भवती महिलाओं, महिलाओं - बच्चों, बुजुर्गों, विकलांग लोगों आदि को प्राथमिकता मिलनी चाहिए) या गैर-मोटर वाहन चला रहा हो. इसके बाद ही मोटर वाले दो पहिया और चार पहिया वाहनों को सड़क अधिकार मिलना चाहिए. सिर्फ आकास्मक स्थितियों में, जैसे कि, एम्बुलेंस आदि को सबसे पहले प्राथमिकता मिले.
दो-पहिया वाहन पर सवार सभी लोगों को हेलमेट पहनना चाहिए, इसमें पीछे बैठे लोग और बच्चे भी शामिल हैं. हम सबको वाहन चलाने की गति सीमा का कड़ाई से अनुपालन करना चाहिए, एक कतार में ही चलना चाहिए और हॉर्न आदि सिर्फ आकास्मक स्थिति में ही बजाना चाहिए.
अधिकांश सड़क दुर्घटनाएं शराब पीने की वजह से होती है. इसलिए यह और भी जरुरी है कि शराब पी कर गाड़ी चलाने पर प्रतिबन्ध को सख्ती से लागू किया जाए.
डॉ संदीप पाण्डेय जो मेगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित कार्यकर्ता हैं, उन्होंने कहा कि सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) का मानना है कि सार्वजनिक यातायात साधन, नि:शुल्क एम्बुलेंस, स्कूल बस, आकास्मक सेवा वाहन, जिन सरकारी विभाग के लिए सरकारी वाहन जरुरी है वो ही इस्तेमाल करें (जैसे कि पुलिस, नगर निगम आदि), अधिक संख्या में महिला चालक सार्वजनिक यातायात साधन चलायें, महिलाओं को भी वरिष्ठ नागरिकों की तरह यातायात में छूट मिले, लाल-नीली बत्ती के इस्तमाल पूरी तरह से बंद हो, और हर सड़क कर एक कतार सिर्फ साइकिल और पैदल चलने वालों के लिए आरक्षित हो.
बाबी रमाकांत, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
14 अप्रैल 2017