आपदा से निबटने की तैयारी और महिला स्वास्थ्य सुरक्षा में है सीधा संबंध

पिछले एक दशक में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित और विस्थापित लोगों की संख्या दोगुनी हो गई है और निरंतर बढ़ रही है। आपदाओं के जोखिम व उनसे होने वाले नुकसान का एक मुख्य कारण है जलवायु संकट। साथ ही सशस्त्र संघर्षों की वजह से भी लोग सुरक्षित स्थानों की तलाश में अपने घर छोड़ कर विस्थापित होने को मजबूर हो रहे हैं। जलवायु संकट से होने वाली भीषण गर्मी और अनावृष्टि ने भी आपदा सम्बन्धी आर्थिक नुक़सान में बढ़ोतरी की है।

विस्थापित लोगों में संक्रामक रोगों के प्रकोप का खतरा भी बढ़ता जा रहा है, जो उनकी स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा के लिए बहुत हानिकारक होता है। इसके गंभीर कुप्रभाव विशेष रूप से महिलाओं, किशोरियों, विकलांगों और कमजोर वर्ग के लोगों को झेलने पड़ते हैं।

यह बदलता हुआ मानवीय परिदृश्य एशिया पैसिफिक देशों के लिए और भी अधिक प्रासंगिक है, क्योंकि एशिया पैसिफिक दुनिया का सबसे अधिक आपदा प्रवण क्षेत्र है। २०१८ में घटित ५०% वैश्विक आपदाओं की मार इसी क्षेत्र ने झेली। १० सबसे ज्यादा प्राणघातक आपदाओं में से ८ इसी क्षेत्र में थी |

बार-बार घटने वाली इन आपदाओं और संकटों का घातक प्रभाव सतत विकास के लिए एक बड़ा खतरा बन रहा है। इन समस्याओं से जूझने के लिए यह ज़रूरी है कि ऐसे दीर्घकालिक हस्तक्षेप विकसित किये जाएँ जो मानवीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखने के साथ-साथ विकास और शांति निर्माण की चुनौतियों का भी सामना कर सकें |

१०वीं एशिया पैसिफिक कॉन्फ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हैल्थ एंड राइट्स के नौवें वर्चुअल सत्र में, संयुक्त राष्ट्र के यूएनएफपीए एशिया पैसिफिक क्षेत्र की क्षेत्रीय मानवीय सलाहकार, डा. टोमोको कुरोकावा ने मानवता, विकास और शांति निर्माण के त्रिकोण वाले अंतर्संबंध पर चर्चा करते हुए आपदाओं से जूझने की तैयारी, जीवटता, जुझारूपन और क्षमता विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया।

मानवतावादी, विकास और शांति के त्रिकोण का तात्पर्य है मानवीय, विकास और शांति निर्माण के क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं के मध्य सहक्रियता और सहभागिता बनाये रखना ताकि वे मिलजुल कर आपदाओं से जूझने की दीर्घकालिक क्षमताओं को विकसित करते हुए शांतिप्रिय और सुदृण समुदायों को बढ़ावा दे सकें। 

सबसे महत्वपूर्ण है कि हर व्यक्ति, समुदाय अथवा राष्ट्र यह क्षमता और सामर्थ्य विकसित करे जिसके द्वारा वह किसी भी प्राकृतिक आपदा, हिंसा या संघर्ष का जीवटता से सामना करते हुए, उससे कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से उबर सके - आपदाओं की रोकथाम से लेकर उनके अनुकूलन तक। 

डॉ टोमोको कुरोकावा के अनुसार राष्ट्रीय और सामाजिक स्तर पर यह जीवटता उन सकारात्मक सामाजिक मानदंडों और रीति-रिवाजों के बारे में हो सकती है जो लैंगिक समानता का समर्थन करते हैं। यह प्रारंभिक चेतावनी और प्रारंभिक कार्रवाई प्रणालियों और मजबूत सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के होने पर ज़ोर देती है। संस्थागत स्तर पर इसका तात्पर्य है स्वास्थ्य और स्कूल के मजबूत बुनियादी ढाँचे, और चलती-फिरती स्वास्थ्य इकाइयों और कुशल स्वास्थ्य कर्मियों से युक्त चलती-फिरती स्वास्थ्य इकाइयां जो आपदा के आरम्भ होते ही जल्दी से एकजुट होकर राहत कार्य कर सकें। सामुदायिक स्तर पर इसका मतलब है महिलाओं और युवाओं में स्थानीय नेतृत्व में भागीदारी और निर्णय लेने की क्षमता होना। पारिवारिक और व्यक्तिगत स्तर पर इसका अर्थ है कि सभी परिवारजनों, विशेषकर महिलाओं को समान रूप से निर्णय लेने में सक्षम होना, तथा आजीविका और आर्थिक उन्नति के समान अवसर प्राप्य होना।

सामान्य परिस्थितियों में भी प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दे महिलाओं में मृत्यु, बीमारी और विकलांगता के प्रमुख कारण हैं। किसी आपदा के दौरान, महिलाओं और लड़कियों की आजीविका, सुरक्षा और यहां तक कि उनकी जान के नुकसान के जोखिम बहुत अधिक बढ़ जाते हैं, तथा उनमें अनपेक्षित गर्भधारण, लिंग आधारित हिंसा, यौन संचारित संक्रमण और मातृ मृत्यु की आशंका भी बढ़ जाती है।

वैश्विक स्तर पर, मानवीय संकट से जूझ रहे देशों में गर्भावस्था और प्रसव संबंधी जटिलताओं से हर दिन ५०० महिलाओं और लड़कियों की मृत्यु हो जाती है। इसका मुख्य कारण है यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता तथा प्रसव और आपातकालीन प्रसूति सेवाओं तक सीमित पहुँच होना।

आपदा काल में स्वैच्छिक परिवार नियोजन सेवाओं (जैसे कॉन्डोम और आपातकालीन गर्भनिरोधक) की अनुपलब्धता से अनपेक्षित गर्भधारण का खतरा बढ़ जाता है, और गर्भवती महिलाओं तथा असुरक्षित गर्भपात का सहारा लेने वालों के लिए स्वास्थ्य सम्बन्धी जोखिम भी बढ़ जाते हैं।

लिंग आधारित हिंसा, जो सामान्य परिस्थितियों के समय में भी काफी व्याप्त है, संघर्ष और आपदा के दौरान समुदायों की सुरक्षा प्रणालियां टूट जाने के कारण और भी बढ़ जाती हैं।

डॉ टोमोको कुरोकावा का मानना है कि आपात स्थिति के दौरान परिवार नियोजन तथा यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा उतनी ही आवश्यक है जितना कि रोटी और मकान। यहाँ तक कि कई बार महिलाओं और लड़कियों का जीवन- मरण इन सेवाओं तक उनकी पहुँच पर निर्भर हो जाता है।

कोविड-१९ महामारी ने सभी स्वास्थ्य प्रणालियों और आपदा-से-निबटने की सरकारी तैयारी और क्षमताओं को परख की कसौटी पर रख दिया है - सार्वजनिक स्वास्थ्य तत्परता को बढ़ाने और व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को कम करने के सन्दर्भ में।

इस महामारी ने गरीबी, असमानता, रोजगार, आर्थिक मंदी, मानवाधिकार संरक्षण, जैसे मुद्दों को अत्यधिक रूप से प्रभावित किया है। और इन आघातों का दीर्घकालिक असर आने वाले कई वर्षों तक पुर्नप्रगति, पुनर्वास और अंतर-विकास कार्यों की प्रक्रिया पर रहेगा। कई रिपोर्टों से इस बात की पुष्टि होती है कि लॉकडाउन के दौरान मातृ और नवजात मृत्यु दर, परिवार नियोजन की अतृप्त आवश्यकता तथा लिंग आधारित हिंसा में वृद्धि हुई है।

लेकिन एशिया पैसिफिक के कई देश कोविड महामारी में बंदी के दौरान यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की निरंतरता बनाये रखने के लिए अभिनव और रचनात्मक तरीके अपना रहे हैं। ऐसे ही कुछ उदाहरण डॉ टोमोको कुरोकावा ने अपने व्याख्यान में साझा किये। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान में लॉकडाउन के दौरान लैंगिक हिंसा की चुनौती का मुकाबला करने के लिए एक महिला सुरक्षा मोबाइल-ऐप को अभिनव समाधान के रूप में अपग्रेड किया गया। अफगानिस्तान में एक युवा स्वास्थ्य हेल्पलाइन के ज़रिये ५००० से अधिक युवाओं तक यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी सूचना और सेवाएं प्रदान की गयीं। मंगोलिया में फेसबुक पर चैटबॉट के माध्यम से युवाओं को जीवन और प्रेम के बारे में परामर्श दिया जा रहा है। फिलीपींस में 'कॉन्डोम हीरो प्रोग्राम्स' के तहत, लॉकडाउन में फँसे लोगों के लिए एक मुफ्त कंडोम वितरण सेवा चलायी जा रही है।

किसी व्यक्ति विशेष की आपदाओं से जूझने की जीवटता, जुझारूपन और क्षमता उनकी आर्थिक सम्पन्नता, शिक्षा, स्वास्थ्य और आयु जैसे अनेक विभिन्न कारकों पर निर्भर हो सकती है क्योंकि ये आपदा का मुकाबला करने और उसके साथ सामंजस्य बिठाने की क्षमता को परिभाषित करते हैं। आपदाओं के प्रभाव को कम करने और भविष्य के ऐसे संकटों को रोकने के लिए सरकारों और समुदायों की जीवटता की तैयारी और सशक्तिकरण महत्वपूर्ण है।

आपदाओं से जूझने की क्षमता में निवेश करना किसी भी संकट से उत्पन्न आर्थिक, पर्यावरणीय और मानवीय नुकसानों को रोकने और कम करने में सहायक होता है, जिसके चलते विकास अर्जित लाभों की रक्षा होती है और सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलती है।

कोविड-१९ ने भविष्य में जिस नए सामान्य (न्यू नार्मल) को अनिवार्य बना दिया है उसे प्राप्त करने के लिए स्फूर्ति, सक्रियता और रचनात्मकता से मानवीय विकास और शांति के बीच की खाई को पाटना होगा तथा प्रभावी मानवीय प्रक्रियाओं की स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु महिलाओं, लड़कियों और युवाओं को परिवर्तन के प्रतिनिधि के रूप में सशक्त बनाना होगा।

माया जोशी - सीएनएस

(संपादन: शोभा शुक्ला)

(भारत संचार निगम लिमिटेड - बीएसएनएल - से सेवानिवृत्त माया जोशी अब सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) के लिए स्वास्थ्य और विकास सम्बंधित मुद्दों पर निरंतर लिख रही हैं)

 21 अक्टूबर 2020 

दैनिक ग्रुप-5 समाचार, लखनऊ (सम्पादकीय पृष्ठ, 23 अक्टूबर 2020)


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