कीटनाशक से युक्त मच्छरदानी, साफ़-सफ़ाई और मच्छर निवारक छिड़काव, सभी के लिए मलेरिया रोग की बिना विलम्ब जाँच और सही इलाज आदि, ऐसे ज़रूरी प्रभावकारी कदम हैं जो इस मलेरिया टीके के साथ सभी जगह लागू होने चाहिए।
पर असलियत बहुत गम्भीर है क्योंकि मलेरिया अनेक लोगों को रोग ग्रस्त कर रहा है और कमजोर स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा के चलते अनेक लोगों के लिए प्राणघातक रोग बना हुआ है। मलेरिया रोकथाम के लिए आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ जरूरतमंद लोगों तक समय से नहीं पहुँच रही हैं इसीलिए वैश्विक स्तर पर, मलेरिया से एक साल में 22.90 करोड़ लोग रोग ग्रस्त हुए और 4.09 लाख मृत। मलेरिया से मृत होने वालों में से दो-तिहाई बच्चे थे। 5 साल से कम उम्र के बच्चों में ही मलेरिया से सम्बंधित प्राण-घातक रोग होने का ख़तरा सर्वाधिक होता है।
उत्तर प्रदेश में इस साल बारिश में फिर से, जल भराव के साथ-साथ डेंगू, मलेरिया और बुख़ार का प्रकोप जनता ने झेला जबकि इन रोगों से बचाव और रोकधाम, समय से जाँच-इलाज सब मुमकिन है। यदि यह पहली मलेरिया वैक्सीन सभी आवश्यक मलेरिया नियंत्रण सेवाओं के साथ, जरूरतमंद लोगों - विशेषकर बच्चों तक, नहीं पहुँचीं (चाहे वह बच्ची अमीर हो या गरीब, अमीर देश में हो या गरीब देश में) तो कैसे होगा २०३० तक मलेरिया उन्मूलन? सिर्फ़ ११० महीने रह गए हैं और मलेरिया आज भी भारत में एक जन स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है जबकि पड़ोसी देश जैसे कि, श्री लंका, मॉल्डीव्ज़, आदि ने, मलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य हासिल कर लिया है।ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाएँ यदि हर जरूरतमंद इंसान तक नहीं पहुँचेंगी तो विश्व में सभी सरकारों का वादा कि 2030 तक मलेरिया उन्मूलन हो जाएगा, कैसे पूरा होगा?
इस मलेरिया वैक्सीन का शोध शुरू हुए 30 साल से भी अधिक समय हो चुका है। इसके शोध के दौरान, जिन बच्चों को वैक्सीन लगी थी उनमें से बहुत ही कम बच्चों पर अत्यंत गम्भीर दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका थी - पर यह स्थापित नहीं था कि यह दुष्प्रभाव वैक्सीन के कारण हुए या किसी अन्य कारण से। यह भी एक कारण था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2015 में वैक्सीन शोधकर्ताओं से एक पाइलट शोध करने को कहा जो 2019 में 3 अफ्रीकी देशों में शुरू हुआ - अप्रैल 2019 में यह मलावी में शुरू हुआ, मई 2019 में घाना में और सितम्बर 2019 में कीन्या में शुरू हुआ। इस शोध में 8 लाख से अधिक बच्चों को यह वैक्सीन लगी - पहली 3 खुराक 5-9 महीने की उम्र में लगी और 4वीं खुराक 2 साल की उम्र में लगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, चौथी खुराक लगे या नहीं इसका प्रमाण अभी पुख़्ता नहीं है इसीलिए शोध जारी है कि 4वीं खुराक का लाभ है या नहीं। 2019 से हुए पाइलट शोध में जिसमें 8 लाख से अधिक बच्चों का टीकाकरण हुआ, यह सिद्ध हुआ कि इस टीके के कोई गम्भीर दुष्प्रभाव नहीं हैं। बल्कि इस टीके से मलेरिया से बच्चों का बचाव हुआ है।
जिन बच्चों को टीका नहीं लगा उनकी तुलना में टीकाकरण करवाए हुए बच्चों में मलेरिया से बचाव होता है
- हर 10 मलेरिया ग्रस्त होने वाले बच्चों में से 4 को टीके के कारण मलेरिया नहीं हुआ
- हर 10 मलेरिया से मृत होने वाले बच्चों में से 3 की जान टीके के कारण बची
- हर 10 गम्भीर मलेरिया "अनीमिया" झेलने वाले बच्चों में से 6 का बचाव टीके ने किया। यह इस लिए भी महत्वपूर्ण बात है क्योंकि मलेरिया से मृत होने वाले बच्चों में से अधिकांश मलेरिया "अनीमिया" के कारण मृत होते हैं
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया टीके को जारी करते हुए कहा कि दुनिया के सभी बाइओ-टेक उद्योग से अनुरोध किया गया था कि वह जीएसके (जिस कम्पनी का यह टीका है) के साथ मिल कर इसको निर्मित और वितरण के लिए अर्ज़ी दें। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक और अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि विश्व में सिर्फ़ भारत की बाइओ-टेक कम्पनी ही चयनित हुई है जो जीएसके के साथ इस टीके को बनाएगी और दुनिया में वितरित करेगी।
दैनिक ग्रूप ५ समाचार, लखनऊ (सम्पादकीय पृष्ठ, १३ ऑक्टोबर २०२१) |
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- दैनिक ग्रूप ५ समाचार, लखनऊ (सम्पादकीय पृष्ठ, १३ ऑक्टोबर २०२१)
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