परमाणु-मुक्त,वीसा-मुक्त,साफ़ ऊर्जा नीतियाँ 'सार्क' देशों में लागू हों: लखनऊ घोषणापत्र २०११

[English] 10 जुलाई 2011 को ‘शांति एवं लोकतंत्र के लिये पाकिस्तान-भारत लोकमंच’ के दूसरे उत्तर प्रदेश अधिवेशन में लखनऊ घोषणापत्र २०११ पारित किया गया. यह इस प्रकार है:

"शांति एवं लोकतंत्र के लिये पाकिस्तान-भारत लोकमंच" के दूसरे उत्तर प्रदेश प्रादेशिक अधिवेशन के हम प्रतिभागियों का मानना है कि दक्षिण एशिया के नागरिकों को और सरकारों को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:

१. दक्षिण एशिया के देशों के बीच दोस्ती और सहयोग में सुधार हो और मेल बढ़े. इसके लिये इन देशों को वीसा-मुक्त होना चाहिए जिससे कि इस क्षेत्र के लोग पूरी स्वतंत्रता के साथ एक दूसरे से मिल सकें, और इस क्षेत्र की मिलीजुली सांस्कृतिक धरोहर की जड़ें मजबूत हों, और व्यापर बढ़े. हमारा मानना है कि 'सार्क' आर्थिक यूनियन बने. उपरोक्त तथ्यों को नज़र में रखते हुए बच्चों, बुजुर्गों, जन-संगठनों, छात्रों, शिक्षकों, आदि को वीसा मिलने में प्राथमिकता मिले.

२. इन देशों में लोकतान्त्रिक एवं मानवीय मूल्यों को सशक्त किया जाए और समाज के हाशिये पर रह रहे वर्गों के लिये सामाजिक एवं कानूनी सुरक्षा प्रदान की जाए, जिनमें महिलाएं, दलित, और अन्य धार्मिक और प्रजातीय अल्प-संख्यक वर्ग शामिल हैं. हमारा मानना है कि सक्रियता से इन वर्गों का शोषण करने वाले कानूनों और सामाजिक प्रथाओं को ख़त्म किया जाये.

३. भारत और पाकिस्तान को एक निश्चित समय-काल में अपने परमाणु अस्त्र-शास्त्र को ख़त्म करना आरंभ करना चाहिए जिससे कि दोनों देश मिल कर परमाणु मुक्त दक्षिण एशिया क्षेत्र स्थापित करने में पहल ले सकें.

४. जापान में घटित परमाणु आपदा के बाद तो यह और भी स्पष्ट हो गया है कि परमाणु शक्ति का सैन्य या ऊर्जा दोनों में ही इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. जो देश परमाणु ऊर्जा बनाने में सबसे आगे थे, जैसे कि जापान और जर्मनी, दोनों देशों ने परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल को बंद करने की भूमिका ली है और वायु, सूर्य ऊर्जा आदि के उपयोग को बढाने का फैसला किया है. जर्मनी ने २०२२ तक सभी परमाणु ऊर्जा घरों को बंद करने की घोषणा की है. जर्मनी में एक आधा बना हुआ परमाणु ऊर्जा घर अब मनोरंजन पार्क बना दिया गया है. हमारा मानना है कि उत्तर प्रदेश में लगे परमाणु ऊर्जा घर, भारत के अन्य राज्यों में लगे हुए परमाणु ऊर्जा घर और पाकिस्तान में लगे परमाणु ऊर्जा घरों को भी जल्द-से-जल्द निश्चित समय-अवधि के भीतर बंद करना चाहिए.

५. हमारा मानना है कि भारत-अमरीका परमाणु समझौता असल में ऊर्जा-सुरक्षा प्रदान नहीं करता है. सही मायनों में किसी भी देश के लिए ऊर्जा सुरक्षा के मायने यह हैं कि वर्तमान और भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति इस तरीके से हो कि सभी लोग ऊर्जा से लाभान्वित हो सकें, पर्यावरण पर कोई कु-प्रभाव न पड़े, और यह तरीका स्थायी हो, न कि लघुकालीन. इस तरह की ऊर्जा नीति अनेकों वैकल्पिक ऊर्जा का मिश्रण हो सकती है जैसे कि, सूर्य ऊर्जा, पवन ऊर्जा, छोटे पानी के बाँध आदि, गोबर गैस इत्यादि. परमाणु दुर्घटनाओं की त्रासदी संभवत: कई पीढ़ियों को झेलनी पड़ती है जैसे कि भोपाल गैस काण्ड और हिरोशिमा नागासाकी की त्रासदी को लोगों ने इतने बरस तक झेला. हमारी मांग है कि भारत बिना विलम्ब, शांति के प्रति सच्ची आस्था का परिचय देते हुए भारत-अमरीका परमाणु समझौते को रद्द करे, और सभी परमाणु कार्यक्रमों को बंद करे. भारत को अमरीका का साथी बनने के बजाय अपनी पहले वाली गुट निरपेक्ष आन्दोलन वाली भूमिका लेनी चाहिए. अमरीका का साथी बनने का अंजाम पाकिस्तान भुगत चुका है. भारत और पाकिस्तान दोनों को आपसी संबंधों को प्रगाढ़ और मधुरमय करने के लिये प्रयास बद्ध होना चाहिए और कश्मीर एवं अफ-पाक क्षेत्रों  में शांति कायम करनी चाहिए. दोनों देशों में आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिये भारत और पाकिस्तान को मिलजुल कर कार्य करना चाहिए. ऐसा संभव करने के लिये यह आवश्यक है कि सांप्रदायिक सद्भावना, समानता, न्याय, लोकतान्त्रिक सोच, धर्म-निरपेक्षता जैसे मूल्यों को प्राथमिकता दी जाए और धार्मिक कट्टरपंथी वर्गों पर अंकुश लगे.

६. लोकतान्त्रिक मूल्य और शासन प्रणाली सम्पूर्ण दक्षिण एशिया क्षेत्र  में कायम होनी चाहिए.

७. दक्षिण एशिया क्षेत्र की सभी सरकारों द्वारा बिना-विलम्ब सैन्यकरण को रोकने के लिये कदम उठाये जाने चाहिए और सैन्य बजट को पारदर्शी तरीकों से जन-हितैषी कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिए जैसे कि शिक्षा एवं स्वास्थ्य.

८. चूँकि इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर मिलीजुली है, सक्रियता के साथ हमें शांति और आपसी सौहार्द बढ़ाने के लिये सांप्रदायिक ताकतों पर अंकुश लगाना चाहिए.

९. हमारा मानना है कि इस क्षेत्र की सभी सरकारों को कदम उठाने चाहिए कि प्राकृतिक संसाधन जैसे कि जल, जंगल और जमीन, पर स्थानीय लोगों का ही अधिकार कायम रहे, और गैर-कानूनी और विध्वंसकारी तरीकों से जल,जंगल और जमीन को वैश्वीकरण ताकतों से बचाना चाहिए क्योंकि यह जन-हितैषी नहीं है. हम अपना समर्थन फिर से दोहराते हैं कि हमसब जन-हितैषी आंदोलनों में सक्रियता से सहयोग प्रदान करते रहेंगे जिससे कि वैश्वीकरण ताकतों पर रोक लगे जो WTO, विश्व बैंक, IMF, ADB जैसी संस्थाओं के इशारों पर चलती हैं.

सी.एन.एस.