विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस २०१६: मासिक धर्म पर चप्पी तोड़ो !

वर्ष २०१४ से २८ मई को विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य समाज में फली मासिक धर्म सम्बन्धी गलत अवधारना को दूर करना और महिलाओं तथा किशोरियों को महावारी प्रबंधन सम्बन्धी सही जानकारी देना है।  यूपी स्वास्थ्य विभाग के अनुसार प्रदेश में २८ लाख किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल जाने में नागा करती हैं। मासिक धर्म सम्बन्धी अस्वच्छता से अनेक संक्रमण, सूजन, मासिक धर्म सम्बन्धी ऐठन, और योनिक रिसाव आदि स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ भी आती हैं। मासिक धर्म, एक किशोरी या महिला के लिए प्राकृतिक रूप से स्वस्थ होने का संकेत है, न कि शर्मसार या डरने या घबड़ाने वाली कोई घटना। एक सर्वे के अनुसार ८५% किशोरियां पुराने कपड़ों को ही मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल करती हैं।

आशा परिवार के स्वास्थ्य को वोट अभियान के निदेशक राहुल द्विवेदी ने बताया कि “पिछले वर्ष प्रदेश सरकार ने २०१७ तक यूपी में १००% मासिक धर्म सम्बन्धी स्वच्छता के लक्ष्य को पूरा करने की घोषणा की थी।  किशोरियों में मासिक धर्म सम्बन्धी स्वच्छता, जानकारी और ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने ‘किशोरी सुरक्षा योजना’ की शुरुवात भी की, जिसके तहत सरकारी विध्यालयों में पढ़ने वाली कक्षा ६ से १२ तक की किशोरियों को मुफ्त में सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध करना है। यह एक सरहनीय पहल है, जो कि किशोरियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और शशक्तिकरण में क्रन्तिकारी परिवर्तन ला सकता है लेकिन धरातल पर इस योजना का प्रभाव बहुत कम सा प्रतीत होता दिख रहा है क्योंकि प्रदेश के कुछ ही सरकरी विध्यालयों में नैपकिन का वितरण सम्भव हो पाया है" .
राहुल द्विवेदी ने कहा कि मासिक धर्म सम्बन्धी सामाजिक बाधाएं भी हैं जैसे कि लगभग ५०% किशोरियों या महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान रसोई में जाने की मनाही होती है या अक्सर धार्मिक कार्यों  में भाग लेने पर भी रोक होती है।  मासिक धर्म पर परिवार में कोई चर्चा ही नहीं होती है. एक सर्वे के अनुसार, ५ में से ४ किशोरियां मानसिक रूप से मासिक धर्म के लिए तैयार ही नहीं होती हैं और ५ में से ३ डरी हुई होती हैं। अतः यह आवश्यक है कि हम मासिक धर्म सम्बन्धी विषयों पर चुप्पी तोड़ें और विश्वसनीय लोगों से इस पर खुल कर बात करें जिससे कि किशोरियों और महिलाओं को मासिक धर्म से सम्बंधित मुद्दों पर सही  समय से जानकारी प्राप्त हो सके।

लखनऊ के सरोजनी नगर ब्लॉक में एक सेनेटरी नैपकिन उत्पादन यूनिट का संचालन कर रहे पंचायत राज विभाग में उद्योग निरीक्षक ओमप्रकाश पांडे का कहना है कि हम महावारी स्वच्छता कार्यक्रम के अंतर्गत सैनिटरि नैपकिन बनाने का काम कर रहे हैं, जिसका माननीय डिम्पल यादव जी ने उदघाटन किया था। यहाँ पर 2 यूनिट है जिसमे लगभग 20 महिलाएं काम करती हैं और एक दिन में हम लगभग 2000 नैपकिन रोज बना लेते हैं। नैपकिन को बनाने के लिए कच्चा माल हमको यहाँ नहीं मिलता है। हमने राज्य सरकार से आवेदन कर रखा है की सरोजनी नगर में कच्चे माल का एक डिपो बनाया जाए। कच्चा माल न होने की वजह से 2 महीने से हमारी मशीनें बंद पड़ी हैं।

ओम प्रकाश जी ने बताया हम कोई यूनिट या कारख़ाना लगाते हैं तो फायदे के लिए लगाते हैं लेकिन ये हमारा राष्ट्रीय कार्यक्रम है। प्रदेश की 80% महिलायें बीमार रहती हैं। बीमारियों की वजह से देश का कितना पैसा बीमारियों के इलाज में खर्च होता है। अगर महिलायें स्वच्छता से रह पाएँगी उन्हें बीमारियाँ नहीं होंगी तो पूरे समाज को इससे लाभ पहुंचेगा।  

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के स्त्री रोग विभाग की प्रोफेसर डॉ अमिता पाण्डेय ने बताया कि मसिक धर्म अस्वच्छता के कारण अनेक पेल्विक संक्रमण, बाँझपन, मासिक धर्म समस्याएँ, स्कूल न जा पाना, और सर्वाइकल कैंसर तक होने का खतरा हो सकता है जिसपर अभी शोध चल रहा है. डॉ पाण्डेय ने कहा कि सामान्य मासिक चक्र २१-३५ दिन तक का होता है, ५-७ दिन तक माहवारी आती है, ५०-८० मिली तक रिसाव हो सकता है, और पहले दिन हल्की सी परेशानी हो सकती है पर जमा खून नहीं आना चाहिए. यदि ऐसा नो हो रहा हो तो बिना विलम्ब चिकित्सकीय सलाह लीजिये।

हम सब सरकार के २०१७ तक प्रदेश में १००% मासिक धर्म सम्बंधित स्वच्छता के लक्ष्य को हासिल करने के प्रयासों का समर्थन करते हैं और आशा करते हैं कि हर किशोरी और महिला जिसे सेनेटरी नैपकिन की आवश्यकता है उसे पर्याप्त मात्रा में नियमित रूप से नैपकिन पैड प्राप्त हो पायेगा। इससे न केवल मासिक धर्म स्वच्छता हासिल होगी बल्कि पेल्विक संक्रमण, सूजन, मस्सिक धर्म सम्बंधित ऐठन, योनिक रिसाव आदि के दर में भी गिरावट आएगी, और किशोरियां बिना नागे स्कूल जा पाएंगी।

सिटीज़न न्यूज़ सर्विस-सीएनएस