मासिक धर्म के प्रति समाज का नजरिया

सुभाषिनी  चौरसिया, सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
मासिक धर्म की प्रक्रिया हमारे भारतीय समाज का एक ऐसा संवेदनशील मुद्दा है जिसके साथ  बहुत सी गलत धारणाएं जुड़ी हुई हैं. मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को अशुद्ध माना जाता है.  उनका स्नान करना, मंदिर जाना और किसी भी धार्मिक कार्य में भाग लेना वर्जित हो जाता है. इन सब कारणों से मासिक धर्म के दिनों में उनकी साधारण दिनचर्या भी बाधित हो जाती है.  इसके चलते लडकियों की पढाई में भी विघ्न पड़ता है. कक्षा में उनकी उपस्थिति कम हो जाती है|

इस प्राकृतिक प्रक्रिया के बारे में उचित जानकारी के अभाव में, लोगों में आज भी पीढियों से चली आ रही संकीर्ण मानसिकता बनी हुई है, जबकि यह महिलाओ के शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ मुद्दा है. मासिक धर्म होना उनके अच्छे स्वास्थ्य  की  निशानी है| अस्वच्छ माहवारी आदतों से किशोरियों के जननांगो में संक्रमण हो सकता है जिसके कारण आगे चलकर उन्हें  प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ता है| समाज में जागरूकता की कमी के कारण लडकियां इस बारे में बात करने में शर्म महसूस करती हैं और स्कूलों में भी इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं दी जाती है. शायद इसलिए युवतियां  आज भी उन्हीं गलत बातो को अपना रही हैं |

कुछ युवतियों से इस मुद्दे पर बात हुई

नौबस्ता में रहने वाली एक युवती ने बताया कि, "जब मुझे पहली बार मासिक धर्म हुआ तो मुझे बहुत अजीब सा महसूस हुआ था. मुझे लगा कि मेरे साथ कुछ गलत हुआ है, ऐसा नहीं होना चाहिए था| मुझे पहले से इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी. फिर मैंने जब अपनी माँ को बताया तब उन्होंने ने समझाया कि 13-14 वर्ष की उम्र में लडकियों को यह होने लगता है और फिर हर महीने होता है. इससे शरीर के अन्दर का गन्दा खून बाहर निकल जाता है. मैंने सोचा कि अगर हर महीने होगा तब तो  मैं गई काम से, अब मैं स्कूल कैसे जाऊँगी| फिर उन्होंने बताया यह तो सभी लड़कियों के साथ होता है तुम स्कूल जा सकती हो. तो मुझे लगा चलो ठीक है. लेकिन अगर मुझे इसके बारे में पहले से पता होता तो शायद इतना बुरा और अजीब न लगता और मै इसके लिए पहले से तैयार रहती| बाद में उन्होंने बताया अब 4-5 दिनों तक मंदिर में भी मत जाना। मैंने उनकी बात मन ली पर उनसे कभी पूछा नहीं कि क्यों मना कर दिया मुझे मंदिर जाने से| फिर धीरे-धीरे मुझे सही लगने लगा कि जैसे हम लोग  बिना नहाये मंदिर नही जा सकते वैसे ही इन दिनों हम अशुद्ध होने के कारण मंदिर नहीं जा सकते। अब जब मैंने बी.एस.सी. की पढ़ाई पूरी कर ली है तो मुझे पता चला है कि यह प्रक्रिया हमारे लिए कितनी आवश्यक है| लेकिन जो कल्पित बातें सदियों से चली आ रही हैं उनको लेकर हमारी मानसिकता वैसी ही बन गई है और इसलिए हम उन्हें आज भी मान रहे हैं"|

अमराई गाँव की एक युवती का कहना है कि, "यह मुद्दा हमारे स्वास्थ्य से जरूर जुड़ा हुआ है फिर भी मुझे लगता है कि मासिक धर्म लडकियों के लिए एक बड़ी समस्या है | मुझे इस बारे में मेरी दोस्त ने बताया था. उसे  मासिक धर्म मुझसे पहले शुरू हुआ था. फिर बाद में जब मुझे पहली बार हुआ तो मुझे लगा कि यही पहली और आखिरी बार हो और फिर कभी न हो| फिर मेरी दीदी ने मुझे बताया कि इस दौरान मंदिर में और रसोई में मत जाना। मैंने पूछा तो नहीं कि क्यों नहीं जाना है पर मैंने एक मैगज़ीन में पढ़ा था कि मासिक धर्म के दौरान लड़की बुरी मानी जाती है| पहले दिन वो चंडाल का रूप होती है, दूसरे दिन धोबन का और इसी तरह फिर चौथे या पाचवें दिन वह शुद्ध होती है और पूजा पाठ में भाग ले सकती है. मुझे यह सब गलत नहीं लगता है. समाज ने जो नियम बनाये हैं वो कुछ अच्छे के लिए ही बनाये होंगे और मेरे अन्दर इन बातों को लेकर कोई हीन भावना नही है, और मुझे इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती. न ही मुझे इस बात को लेकर कोई शर्मिंदगी है पर मुझे लड़कों से जलन होती है, सारी समस्याए लडकियों के साथ ही क्यों होती हैं, लड़कों के साथ क्यों नहीं? मेरे परिवार मे सिर्फ मेरी बहन ही खुल कर बात कर सकती है इस बारे में मम्मी से. बस ज़रुरत भर की बात ही होती है क्योकि परिवार में हम हमेशा अकेले तो होते नहीं हैं. पापा व भाई सभी होते हैं और उनके सामने ये बातें नहीं हो सकती हैं. हाँ, मेरा मानना है कि  लड़को को भी इसकी जानकारी होनी चाहिए ताकि हमें शर्मिंदा ना होने पड़े खासकर जब टीवी पर प्रचार आये| मुझे लगता है हमें शौच के लिए जाने में कोई शर्मिंदगी नहीं होती क्योकि वो तो पुरुष और महिला सभी जाते हैं. लेकिन मासिक धर्म  सिर्फ महिलाओं को होता है इसलिए हमें इसे छिपाना पड़ता है|"

इसी गाँव की एक दूसरी युवती ने कहा कि, "मुझे इस बारे में मेरी अम्मी ने बताया था| इस दौरान हमारे यहाँ कुरान शरीफ़ और  नमाज़ पढ़ना मना है| मुझे इसे लेकर कोई शर्मिंदगी नहीं है. यह तो हर लड़की को होता है. और शर्मिंदगी कैसी; यह तो ऊपर वाले की देन है. जैसे आँख नाक कान दिया है वैसे ही यह भी दिया है.  मैंने एक बार पूछा था अम्मी से कि इन दिनों में क्यों नमाज़ ना पढ़े. भाई को तो नमाज़ पढ़ने की कभी भी मनाही नहीं है. अम्मी ने कहा कि इस समय लडकिया नापाक होती हैं|  हम चाहे जितना चिल्ला लें कि लड़के और लड़कियां बराबर हैं  पर मैं नहीं मानती कि लड़के और लडकिया बराबर हैं क्योंकि  समाज उन्हें बराबर होने नहीं देता और मासिक धर्म भी उसका एक कारण है.  कहीं न कहीं शायद  हमारे दिमाग में भी यह बैठ गया है कि इन दिनों हम लड़कियां नापाक हो जाती हैं. पहले से तो  ये सब चला ही आ रहा है. अगर हमारी पीढ़ी में यह बात  साफ हो जाये कि मासिक धर्म के दौरान हम नापाक नहीं होते और नमाज़ पढ़ सकते हैं तब तो ठीक है, वरना तो हम भी आगे यही सब बताएँगे| मुझे लगता है कि लड़कों को भी इस बात की जानकारी होनी चाहिए|"

पच्चीस वर्षीय एक अन्य युवती ने बताया कि, "जब मैं 14 साल कि थी तब स्कूल से घर आते वक्त माहवारी शुरु हो गई थी. तब मुझे लगा कि मुझे कोई बहुत भयानक बीमारी हो गई है फिर मैंने माँ को बताया तो उन्होंने कहा कि यह तो सभी लड़कियों के साथ होता है. उन्होंने यह भी कहा कि इसके बारे में ज़्यादा किसी को नहीं बताना। उन्होंने यह भी कहा कि 5 दिन तक पूजा मत करना, और मंदिर भी मत जाना। क्यों मना किया यह तो मुझे नहीं पता. पर ये सब बातें पहले से चली आ रही हैं. माँ को उनकी माँ और दादी ने बताया होगा। और ये भ्रांतियां रीति की तरह सदियों से चली आ रही हैं| और अब मुझे खुद भी यह सही लगता है कि इन दिनों मंदिर में नही जाना चाहिए क्योकि खुद को अन्दर से गन्दा महसूस करती हूँ. मुझे लगता है कि यह तो सभी महिलाओं और लड़कियों के साथ होता है. तो इसमें शर्मिंदगी की कोई  बात नही है. हाँ थोड़ा कष्ट तो होता ही है लडकियों को| अब मेरे  घर में बहनों और मम्मी से बात होती है पर पापा और भाई से तो इस बारे में बात नही कर पाएंगे| अगर लड़को को इस बारे में पता होगा तो वो हीन नजरो से नहीं देखेंगे। जैसे जब टी वी पर स्टेफ्री आदि सेनेटरी नैपकिन का प्रचार आता है और हम अपने भाइयों के साथ देख रहे हैं तो अगर उनको जानकारी नही होगी तो उस जगह पर हमें शर्मिंदगी महसूस होगी|"

इन सभी युवतियों के विचारों से यही निष्कर्ष निकलता है कि रुढ़िवाद को बिना सोचे समझे अपनाना हमारी मानसिकता बन गई है और अब यह  सभी को सही भी लगता है| जब तक हमारा समाज इस मुद्दे को लेकर जागरूक नही होगा तब तक महिलाओं को इन बाधाओ का सामना करना पड़ेगा| और वे रूढिवादी जंजीरों में जकड़ी रह कर अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करती रहेंगी. जबकि यह उनके स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा है- कोई शर्मिंदगी की बात नहीं है | आज तो समाज में एच.आई वी एड्स को लेकर भी कितनी जागरूकता दी जा रही है और स्कूलों में भी इसकी पूरी जानकरी दी जाती है पर मासिक धर्म आज भी शर्मिंदगी का मुद्दा बना हुआ है. और इसका मुख्य कारण जागरूकता की कमी है| इसकी जानकारी होना महिलाओ और किशोरियों के लिए जितना आवश्यक है उतना ही पुरुषों के लिए भी आवश्यक है, तभी तो वे महिलायों को सम्मान दे सकेंगे| इसकी गलत जानकारी से युवतियों में संक्रामक रोग हो सकते है, खून कि कमी हो सकती है, उनकी दिनचर्या ख़राब हो सकती है. अगर युवतियों को इसकी सही जानकारी होगी तो उलझनों का सामना नही करना पड़ेगा और संक्रामक रोगों से भी बचा जा सकेगा। उनके अन्दर आत्मविश्वास भी बढेगा और वे खुद को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करेंगी|

सरकार ने इसके लिए “किशोरी सुरक्षा योजना” शुरू की है जिसके अंतर्गत सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाली किशोरियों को मुफ्त सेनेटरी नैपकिन दी जाएँगी| एक सर्वे के मुताबिक मासिक धर्म के कारण उत्तर प्रदेश में  25 लाख किशोरियां हर वर्ष अपना स्कूल छोड़ती है और 19 लाख किशोरिया इसी कारण से अपनी पढ़ाई छोड़ देती है| इस योजना का मकसद इन आंकड़ो को कम करना है|

सुभाषिनी  चौरसिया, सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
२० अप्रैल, २०१६