सुभाषिनी चौरसिया, सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
किशोरावस्था बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच की अवस्था है| इस अवस्था के दौरान किशोरों और किशोरियों (10-19) में बहुत से शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं| जिसके बाद वे प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करते हैं| खासकर किशोरियों में इस अवस्था के दौरान मासिक धर्म की शुरुआत हो जाती है| लेकिन समाज में इस विषय से जुड़ी गलत अवधारणाओं और मिथकों के कारण किशोरियों को इस विषय में सही जानकारी नहीं दी जाती है| जिससे उन्हें बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और कभी-कभी तो किशोरियां गलत साधनों से इस विषय में जानकारी प्राप्त कर लेती हैं जो उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और उनमें प्रजनन सम्बन्धी बीमारियाँ एवं संक्रमण हो सकता है |
शिक्षा के बढ़ते दौर में किशोरियों में गतिशीलता भी बढ़ रही हैं जिसके कारण उन्हें माहवारी स्वस्छता के विषय में जानकारी होना अति आवश्यक है जिससे उनकी दिनचर्या में इसका कोई प्रभाव न पड़े और न ही उन्हें किसी प्रकार की शर्मिंदगी का सामना करना पड़े| लेकिन “एन0एफ0एच0एस0-3 सर्वे के अनुसार लगभग 40% किशोरियां कक्षा-7 के बाद स्कूल जाना छोड़ देती हैं|” माहवारी के दौरान स्कूलों में किशोरियों की उपस्थिति में भी कमी आ जाती है| जिससे उनकी पढ़ाई का नुकसान होता है| आज समाज में इस विषय पर लोगों को जागरूक किया जा रहा है और अब महिलाएं सभी क्षेत्रों में अपना योगदान भी दे रही हैं| लेकिन इस विषय में व्याप्त भ्रान्तियों और संकीर्ण मानसिकता के कारण किशोरियों और महिलाओं को कम आँका जाता है| यह मानसिकता उन्हें आगे बढ़ने से रोकती है| जिससे उनके सम्मान और आत्मविश्वास में कमी दिखाई देती है| यह मुद्दा किशोरियों की छोटी उम्र में विवाह से भी जुड़ा है| स्कूल छूट जाने के बाद उनका छोटी उम्र में ही विवाह करा दिया जाता है| जबकि इस उम्र में किशोरियां विवाह के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार नहीं होती हैं|
इन समस्याओं का समाधान शिक्षा के माध्यम से ही किया जा सकता है| किशोरियों में माहवारी की सही जानकारी उपलब्ध करने तथा उनके स्वास्थ्य एवं सम्मान के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाली किशोरियों के लिए “किशोरी सुरक्षा योजना” की शुरुआत की है| जिसके अन्तर्गत कक्षा-6 से 12 में पढ़ रही किशोरियों को निःशुल्क सेनेटरी नैपकिन्स के पैकेट वितरित किये जाएँगे तथा सेनेटरी नैपकिन्स के प्रयोग व निस्तारण और अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी भी प्रदान की जाएगी| इस योजना का उद्देश्य किशोरियों में माहवारी प्रचलित भ्रान्तियों को दूर कर उन्हें सही जानकारी उपलब्ध कराना, स्कूलों में किशोरियों की उपस्थिति को बढाना, सेनेटरी नैपकिन्स अथवा साफ सुथरे कपड़े के प्रयोग की आदत को बढ़ावा देना, किशोरियों में आत्मविश्वास को बढ़ाना, किशोरियों में प्रजनन सम्बन्धी बीमारियों एवं संक्रमण में कमी लाना तथा इससे होने वाले बाँझपन में कमी लाना है|
एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली कुछ किशोरियों से इस योजना पर बात हुई-
कक्षा-12 की एक छात्रा कहती है कि, “मुझे इस योजना के बारे में कुछ नहीं पता है पर जब मैं कक्षा-7 में पढ़ती थी तब मुझे सेनेटरी नैपकिन्स का पैकेट उपलब्ध कराया गया था लेकिन वो किस योजना के तहत उपलब्ध कराये गये थे ये मुझे नहीं पता है और अगर बताया भी गया होगा तो मुझे याद नहीं है| स्कूल में तो ऐसी बहुत सी योजनायें आती रहती हैं पर हर योजना के बारे में बहुत विस्तार रूप से बच्चों को नहीं बताया जाता हैं सिर्फ जितना जरुरी होता हैं उतना ही बताती हैं| और अभी भी हमारे स्कूल में कक्षा-6 और 7की बच्चियों को सेनेटरी नैपकिन्स के पैकेट उपलब्ध कराये जाते हैं| इससे छोटी बच्चियों को माहवारी से जुड़ी जानकारी प्राप्त हो जाती है और इससे उन्हें किसी प्रकार की शर्मिंदगी का सामना नहीं करना पड़ता है|”
कक्षा-10 की एक छात्रा कहती है कि, “मैंने कक्षा-8 में राजकीय बालिका विद्यालय में प्रवेश लिया था तो जो लड़कियाँ अब मेरे साथ पढती हैं मुझे उनसे पता चला कि स्कूल में सिर्फ कक्षा-6,7 में पढ़ रही बच्चियों के लिए सेनेटरी नैपकिन्स हर साल आते हैं ये नियम है और जब वो उस कक्षा में थी तो उन्हें भी उपलब्ध कराये गये थे पर योजना का नाम मुझे नहीं पता है| लेकिन सेनेटरी नैपकिन्स के वितरण का कोई दिन निर्धारित नहीं और न ही इसका कोई रिकोर्ड रखा जाता हैं| ये पैकेट्स बाहर से कोई लेकर आता है जिस दिन वो आते हैं उसी दिन बच्चियों को ये वितरित कर दिए जाते हैं और जिन्हें नहीं पता होता है कि इसका क्या करना है मैडम उन्हें समझा देती हैं कि इसको कैसे इस्तेमाल करना है और जो पैकेट्स बच जाते हैं मैडम उन्हें स्कूल में ही रखवा देती है जैसे कभी अचानक से किसी बच्चे को जरुरत पड़ गई तो मैडम उसे दे देती हैं|”
कक्षा-9 की एक छात्रा कहती है कि, “मैं तो इस समय स्कूल जा रही हूँ पर हमारे स्कूल में इस योजना के बारे में नहीं बताया गया है जब कोई योजना हमारे स्कूल में आती है तो उसके बारे में बताया जाता है| पर जब मै कक्षा-6 में थी तब मुझे सेनेटरी नैपकिन्स का पैकेट मिला था और उसके साथ एक बुक भी मिली थी जिसमें माहवारी के बारे में लिखा हुआ था| इससे हमें काफी फायदा हुआ था| सेनेटरी नैपकिन्स को इस्तेमाल करने से जिंदगी के दिन –प्रतिदिन के कार्यकलाप बाधित नहीं होते और ये कपड़े से जायदा सुरक्षित होती हैं|”
इन छात्राओं के विचारों से यह निष्कर्ष निकलता हैं कि राजकीय बालिका विद्यालय में किसी और योजना के तहत सिर्फ छोटी बच्चियों को ही सेनेटरी नैपकिन्स के पैकेट उपलब्ध कराए जा रहे हैं पर बड़ी लडकियों को माहवारी के विषय में कोई जानकारी नहीं दी जा रही है|
सुभाषिनी चौरसिया, सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
१६ जुलाई, २०१६
किशोरावस्था बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच की अवस्था है| इस अवस्था के दौरान किशोरों और किशोरियों (10-19) में बहुत से शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं| जिसके बाद वे प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करते हैं| खासकर किशोरियों में इस अवस्था के दौरान मासिक धर्म की शुरुआत हो जाती है| लेकिन समाज में इस विषय से जुड़ी गलत अवधारणाओं और मिथकों के कारण किशोरियों को इस विषय में सही जानकारी नहीं दी जाती है| जिससे उन्हें बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और कभी-कभी तो किशोरियां गलत साधनों से इस विषय में जानकारी प्राप्त कर लेती हैं जो उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और उनमें प्रजनन सम्बन्धी बीमारियाँ एवं संक्रमण हो सकता है |
शिक्षा के बढ़ते दौर में किशोरियों में गतिशीलता भी बढ़ रही हैं जिसके कारण उन्हें माहवारी स्वस्छता के विषय में जानकारी होना अति आवश्यक है जिससे उनकी दिनचर्या में इसका कोई प्रभाव न पड़े और न ही उन्हें किसी प्रकार की शर्मिंदगी का सामना करना पड़े| लेकिन “एन0एफ0एच0एस0-3 सर्वे के अनुसार लगभग 40% किशोरियां कक्षा-7 के बाद स्कूल जाना छोड़ देती हैं|” माहवारी के दौरान स्कूलों में किशोरियों की उपस्थिति में भी कमी आ जाती है| जिससे उनकी पढ़ाई का नुकसान होता है| आज समाज में इस विषय पर लोगों को जागरूक किया जा रहा है और अब महिलाएं सभी क्षेत्रों में अपना योगदान भी दे रही हैं| लेकिन इस विषय में व्याप्त भ्रान्तियों और संकीर्ण मानसिकता के कारण किशोरियों और महिलाओं को कम आँका जाता है| यह मानसिकता उन्हें आगे बढ़ने से रोकती है| जिससे उनके सम्मान और आत्मविश्वास में कमी दिखाई देती है| यह मुद्दा किशोरियों की छोटी उम्र में विवाह से भी जुड़ा है| स्कूल छूट जाने के बाद उनका छोटी उम्र में ही विवाह करा दिया जाता है| जबकि इस उम्र में किशोरियां विवाह के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार नहीं होती हैं|
इन समस्याओं का समाधान शिक्षा के माध्यम से ही किया जा सकता है| किशोरियों में माहवारी की सही जानकारी उपलब्ध करने तथा उनके स्वास्थ्य एवं सम्मान के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाली किशोरियों के लिए “किशोरी सुरक्षा योजना” की शुरुआत की है| जिसके अन्तर्गत कक्षा-6 से 12 में पढ़ रही किशोरियों को निःशुल्क सेनेटरी नैपकिन्स के पैकेट वितरित किये जाएँगे तथा सेनेटरी नैपकिन्स के प्रयोग व निस्तारण और अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी भी प्रदान की जाएगी| इस योजना का उद्देश्य किशोरियों में माहवारी प्रचलित भ्रान्तियों को दूर कर उन्हें सही जानकारी उपलब्ध कराना, स्कूलों में किशोरियों की उपस्थिति को बढाना, सेनेटरी नैपकिन्स अथवा साफ सुथरे कपड़े के प्रयोग की आदत को बढ़ावा देना, किशोरियों में आत्मविश्वास को बढ़ाना, किशोरियों में प्रजनन सम्बन्धी बीमारियों एवं संक्रमण में कमी लाना तथा इससे होने वाले बाँझपन में कमी लाना है|
एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली कुछ किशोरियों से इस योजना पर बात हुई-
कक्षा-12 की एक छात्रा कहती है कि, “मुझे इस योजना के बारे में कुछ नहीं पता है पर जब मैं कक्षा-7 में पढ़ती थी तब मुझे सेनेटरी नैपकिन्स का पैकेट उपलब्ध कराया गया था लेकिन वो किस योजना के तहत उपलब्ध कराये गये थे ये मुझे नहीं पता है और अगर बताया भी गया होगा तो मुझे याद नहीं है| स्कूल में तो ऐसी बहुत सी योजनायें आती रहती हैं पर हर योजना के बारे में बहुत विस्तार रूप से बच्चों को नहीं बताया जाता हैं सिर्फ जितना जरुरी होता हैं उतना ही बताती हैं| और अभी भी हमारे स्कूल में कक्षा-6 और 7की बच्चियों को सेनेटरी नैपकिन्स के पैकेट उपलब्ध कराये जाते हैं| इससे छोटी बच्चियों को माहवारी से जुड़ी जानकारी प्राप्त हो जाती है और इससे उन्हें किसी प्रकार की शर्मिंदगी का सामना नहीं करना पड़ता है|”
कक्षा-10 की एक छात्रा कहती है कि, “मैंने कक्षा-8 में राजकीय बालिका विद्यालय में प्रवेश लिया था तो जो लड़कियाँ अब मेरे साथ पढती हैं मुझे उनसे पता चला कि स्कूल में सिर्फ कक्षा-6,7 में पढ़ रही बच्चियों के लिए सेनेटरी नैपकिन्स हर साल आते हैं ये नियम है और जब वो उस कक्षा में थी तो उन्हें भी उपलब्ध कराये गये थे पर योजना का नाम मुझे नहीं पता है| लेकिन सेनेटरी नैपकिन्स के वितरण का कोई दिन निर्धारित नहीं और न ही इसका कोई रिकोर्ड रखा जाता हैं| ये पैकेट्स बाहर से कोई लेकर आता है जिस दिन वो आते हैं उसी दिन बच्चियों को ये वितरित कर दिए जाते हैं और जिन्हें नहीं पता होता है कि इसका क्या करना है मैडम उन्हें समझा देती हैं कि इसको कैसे इस्तेमाल करना है और जो पैकेट्स बच जाते हैं मैडम उन्हें स्कूल में ही रखवा देती है जैसे कभी अचानक से किसी बच्चे को जरुरत पड़ गई तो मैडम उसे दे देती हैं|”
कक्षा-9 की एक छात्रा कहती है कि, “मैं तो इस समय स्कूल जा रही हूँ पर हमारे स्कूल में इस योजना के बारे में नहीं बताया गया है जब कोई योजना हमारे स्कूल में आती है तो उसके बारे में बताया जाता है| पर जब मै कक्षा-6 में थी तब मुझे सेनेटरी नैपकिन्स का पैकेट मिला था और उसके साथ एक बुक भी मिली थी जिसमें माहवारी के बारे में लिखा हुआ था| इससे हमें काफी फायदा हुआ था| सेनेटरी नैपकिन्स को इस्तेमाल करने से जिंदगी के दिन –प्रतिदिन के कार्यकलाप बाधित नहीं होते और ये कपड़े से जायदा सुरक्षित होती हैं|”
इन छात्राओं के विचारों से यह निष्कर्ष निकलता हैं कि राजकीय बालिका विद्यालय में किसी और योजना के तहत सिर्फ छोटी बच्चियों को ही सेनेटरी नैपकिन्स के पैकेट उपलब्ध कराए जा रहे हैं पर बड़ी लडकियों को माहवारी के विषय में कोई जानकारी नहीं दी जा रही है|
सुभाषिनी चौरसिया, सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
१६ जुलाई, २०१६