किशोरी सुरक्षा योजना ‎के उचित अनुपालन से आएगा बदलाव

बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटीज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
प्रदेश में 10-19 वर्ष की किशोरियों की संख्या कुल जनंसख्या का लगभग 11 प्रतिशत है, ‎‎एन.एफ.एच.एस.-3 के सर्वे के अनुसार इन ‎में 40 प्रतिशत स्कूल जाने वाली किशोरियां सातवीं ‎के बाद माहवारी की वजह से स्कूल जाना छोड़ देती हैं। इसका एक कारण ‎किशोरियों में अपनी ‎माहवारी को लेकर एक विशेष तरह की  भ्रान्ति या भय का होना भी है। ‎जो किशोरियां स्कूल जाती भी हैं वे माहवारी के दौरान एक ही कपड़े को बार-बार ‎‎धोकर अपने इस्तेमाल में लाती हैं जिसके चलते  उन्हें ‎स्वास्थ्य समस्याओं के साथ प्रजनन तंत्र के संक्रमण ‎से भी जूझना पड़ता है। ऐसे में इन किशोरियों के परिवार के सदस्यों व ‎अध्यापकों द्वारा इन्हें ‎सही मार्गदर्शन व देखभाल न मिलने से इनका स्वास्थ्य का स्तर दिनों दिन गिरता जाता ‎है।

माहवारी के ‎दौरान किशोरियों में होने वाली समस्याओं के निदान की कोई जानकारी ‎इन्हें नहीं दी जाती है जिससे ये स्कूल जाने वाली ‎किशोरियां स्कूल जाने से डरती हैं । उत्तर प्रदेश सरकार ने किशोरियों की माहवारी स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए 6 से ‎‎12वीं तक के सरकारी व परिषदीय ‎विद्यालयों में किशोरी सुरक्षा योजना के तहत  निःशुल्क सेनेटरी ‎पैड के वितरण की व्यवस्था की है जिसका उद्देश्य किशोरियों में ‎माहवारी से जुडी ‎भ्रान्तियों को दूर करना, प्रजनन स्वास्थ सम्बन्धी बीमारियों एवं संक्रमण में कमी लाना एवं ‎किशोरियों में ‎आत्मविश्वास को बढावा देना है। ‎ यह योजना प्रदेश के समस्त जनपदों में लागू की जा ‎चुकी है। ‎

बस्ती जनपद में किशोरी सुरक्षा योजना के तहत शासन के दिशा-निर्देशों के अनुसार ‎सेनेट्री पैड क्रय करने की जिम्मेदारी ‎स्वास्थ विभाग को दी गयी है, जिसके अन्तर्गत ‎स्वास्थ विभाग सेनेटरी नैपकिन्स की खरीददारी कर शिक्षा विभाग को मुहैया करा ‎रहा है। ‎तीन माह पहले स्वास्थ विभाग द्वारा बडे जोर-शोर से परिषदीय विद्यालयों में पढने वाली ‎‎कक्षा 6-8 की छात्राओं को ‎सेनेटरी नैपकिन्स मुहैया कराने की शुरूआत की गयी । ब्लाक संसाधन केन्द्रों के माध्यम से सरकारी जूनियर ‎विद्यालयों  में चार ‎माह का सेनेटरी पैड का स्टाक स्कूलों पर भेज दिया गया और स्कूल की ‎महिला अध्यापिकाओं द्वारा माहवारी वाली छात्राओं में ‎इसका निःशुल्क वितरण शुरू किया ‎गया । लेकिन शासन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए इसका वितरण काफी नहीं है। ‎क्योंकि ‎इस योजना में शासन स्तर से यह निर्देश भी दिया गया है कि किशोरी सुरक्षा कार्यक्रम को लेकर ‎व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलायी जाय जिसके ‎लिए पर्याप्त धन जिलों को उपलब्ध ‎कराया गया है। इस धन से सभी स्कूलों, गाँवों एवं ब्लाकों के अस्पतालों में निःशुल्क ‎सेनेटरी ‎पैड वितरण के बारे में वाल पेन्टिंग करायी जानी है।‎ लेकिन इस आदेश का ‎क्रियान्वयन आज तक नहीं हो पाया है। ‎

वहीं दूसरी तरफ किशोरियों में माहवारी स्वच्छता के प्रति जागरूकता व स्कूलों में ‎फ्री सेनेटरी पैड के वितरण के बारे में जानकारी ‎के लिए गांव स्तर पर आयोजित होने वाले ‎ग्राम्य स्वास्थ पोषण दिवस में भी स्कूल जाने वाली लडकियों को आशा एवं ‎ए.एन.एम. के ‎माध्यम से जानकारी दिये जाने का निर्देश है, लेकिन यह आदेश फाइलों में ही कैद होकर धूल  फाक रहा है. इस ‎योजना के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए पंचायती राज विभाग की भी ‎जिम्मेदारी तय की गयी है, जिसमें ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता ‎एवं पोषण समिति के माध्यम से ‎गांव के विद्यालयों में शौचालयों की साफ सफाई की व्यवस्था सुनिश्चित करायी जानी है। ‎‎किशोरियों के इतने महत्वपूर्ण मुददे पर पंचायत विभाग भी आंखे मूँदकर बैठा हुआ है। ‎ स्कूल स्तर पर किशोरियों में बटने वाले सेनेटरी पैड के निस्तारण के लिए स्कूल में ‎ही ढके हुए कूडेदान की व्यवस्था किये जाने ‎का प्रावधान है लेकिन किसी भी स्कूल में इस ‎तरह के कूडेदान नहीं रखे गये हैं वहीं विद्यालयों में साफ-सुथरे शौचालय की ‎व्यवस्था के ‎साथ-साथ हाथ धोने के लिए पानी की व्यवस्था भी अनिवार्य की गयी है। इन ‎व्यवस्थाओं के अभाव में किशोरियों में ‎सेनेटरी नैपकीन उपयोग को बढावा देने के लक्ष्य को ‎पूरा किया जाना सम्भव नहीं है। ‎ उत्तर-प्रदेश सरकार प्रदेश में 2017 तक १००% माहवारी स्वच्छता के लक्ष्य को ‎प्राप्त करना चाहती है लेकिन सिर्फ सरकारी ‎परिषदीय विद्यालयों में, व कक्षा 6 से 12 तक के ‎सरकारी विद्यालयों में निःशुल्क सेनेटरी पैड का वितरण कर इस लक्ष्य को नहीं प्राप्त ‎किया ‎जा सकता है।

जिन सरकारी विद्यालयों में सेनेटरी पैड का वितरण किया जा रहा है वहां ‎‎एक बार सेनेटरी पैड उपलब्ध ‎कराने के बाद इसकी मानिटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं की ‎गयी है। इस सन्दर्भ में जब बस्ती जनपद के जिला बेसिक अधिकारी ‎संतोष कुमार सिंह से ‎ पूछा गया कि इसके वितरण की मानिटरिंग ‎के लिए कौन सा तरीका ‎अपनाया जा रहा है तो वह सही जवाब नहीं दे पाये और उन्होंने इसके लिए जिले के मुख्य ‎‎चिकित्साधिकारी से बात करने की सलाह दी। जब मुख्य चिकित्साधिकारी डा0 जे.पी. सिंह से बात की गयी तो ‎उन्होंने बताया कि स्वास्थ विभाग का काम ‎सिर्फ नोडल अधिकारी के माध्यम से सेनेटरी पैड ‎का क्रय करके उसे माध्यमिक शिक्षा विभाग व बेसिक शिक्षा विभाग को ‎उपलब्ध कराना है ‎न कि उसकी मानिटरिंग करना। ‎ इस येाजना से जुड़े इन दोनों विभागों के महत्वपूर्ण अधिकारियों का इस तरह का ‎बयान इस येाजना के प्रति उनकी ‎उदासीनता को प्रदर्शित करता है। जब विकास ‎‎खण्ड बस्ती सदर के पूर्व माध्यमिक विद्यालय परसा जागीर के ‎सहायक अध्यापक डा. सर्वेष्ठ ‎मिश्र से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि यह योजना निश्चित तौर पर किशोरियों के ‎स्वास्थ्य के ‎लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है। क्योंकि गाँवों में माहवारी को लेकर ‎भ्रान्तियों को दूर करने व किशोरियों में प्रजनन ‎स्वास्थ्य के संक्रमण को रोकने के लिए ‎सेनेटरी नेपकीन के उपयोग को बढ़ावा देना जरूरी है। ऐसे में गरीब लड़कियों में ‎निःशुल्क ‎सेनेटरी पैड की उपलब्धता से यह सम्भव हो पायेगा। वितरण के सवाल पर उन्होंने बताया ‎कि उनके विद्यालय की ‎महिला अध्यापक द्वारा इसका वितरण किया जा रहा है लेकिन ‎इसके लिए व्यापक स्तर पर जागरूकता की भी आवश्यकता है। ‎
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बस्ती सदर ब्लाक के पूर्व माध्यमिक विद्यालय डारीडीहा में सहायक अध्यापिका सुमन ने बताया कि बेसिक शिक्षा विभाग ‎द्वारा मात्र 1 माह का स्टाक ही उपलब्ध कराया गया था। जो मार्च माह में ही ख़त्म हो गया उसके बाद ब्लाक संसाधन केंद्र से ‎सेनेटरी पैड की मांग की गयी थी परन्तु आज तक न ही स्टाक उपलब्ध कराया गया और न ही किसी तरह की कोई रिपोर्ट ही ‎मांगी जाती है। ऐसे में स्कूल में आने वाली किशोरियों में सेनेटरी पैड के उपयोग की आदत डलवाना कठिन होगा। गौर ब्लाक के पूर्व माध्यमिक विद्यालय कवलसिया की प्रधानाध्यापिका श्रीमती संध्या ने बताया कि छात्राओ में निःशुल्क ‎सेनेटरी ‎पैड के वितरण के शुरुआती दौर में कुछ छात्राओं के अभिभावको द्वारा इस पर आपत्ति जतायी गयी कि ‎इससे उनकी ‎लडकियां बिगड़ जायेंगी। इसलिए इसे बढ़ावा न दिया जाये। लेकिन अभिवावकों को इस मुद्दे पर संवेदित किये जाने के बाद फिर ‎से इस तरह की समस्या नहीं आई। इससे  ज़ाहिर होता है कि आज भी माहवारी को लेकर गाँवों में शर्म और भ्रान्तियां ‎दूर नहीं हो पायी हैं । इसलिए स्कूलों में निःशुल्क सेनेटरी पैड के वितरण के साथ-साथ अभिभावको को ‎भी इस मुद्दे पर ‎जागरूक किया जाना जरूरी है। ‎प्रधानाध्यापिका श्रीमती संध्या ने बताया कि किशोरियों में निःशुल्क सेनेटरी वितरण का बहुत ‎सकरात्मक प्रभाव दिखाई पड़ रहा है। इस वर्ष जो लड़कियां 8वीं कक्षा पास कर स्कूल से बाहर निकल चुकी हैं वह स्कूल से ‎निकलने के बाद भी ग्रुप में सेनेटरी पैड लेने स्कूल आने लगी हैं। इस योजना के प्रभाव से किशोरियों में सेनेटरी पैड ‎की उपयोगिता को लेकर मांग बढ़ी है। ‎
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किशोरियों में निःशुल्क सेनेटरी पैड का वितरण परिषदीय विद्यालयों के साथ ‎माध्यमिक स्तर के 6 से 12वीं तक की ‎कक्षाओं में पढने वाली छात्राओं में किया जाना है ‎परन्तु बस्ती जिले में इस योजना में बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा ही इसकी  ‎शुरुआत की जा सकी है।  क्योंकि जब इस सन्दर्भ में माध्यमिक शिक्षा विभाग के जिला विद्यालय निरीक्षक ‎राजेश कुमार आर्या ‎से बात करने की कोशिश की गयी तो वह कन्नी काट गये। ‎इस ‎सन्दर्भ में जब सिद्धार्थनगर जिले के एक सरकारी इण्टर कालेज के अध्यापक स्वरुपम द्विवेदी से बात की तो ‎उन्होंने बताया ‎कि इस तरह की कोई भी योजना उनके  स्कूल में नहीं चल रही है और न ही किशोरियों को निःशुल्क सेनेटरी ‎पैड ‎उपलब्ध कराया जा रहा है। उन्हें तो इस योजना के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। संतकबीर नगर जिले में एक इन्टर कालेज में प्रिंसिपल अनुपमा शुक्ला का कहना है उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किशोरियों में ‎माहवारी स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गयी किशोरी सुरक्षा योजना बहुत सराहनीय कदम है । लेकिन नि:शुल्क सेनेटरी पैड ‎वितरण सिर्फ सरकारी स्कूलों तक ही सीमित है। लड़कियों के लिए सरकारी इन्टर कालेजों की संख्या नाम मात्र ‎ही है। क्योंकि ज्यादातर लड़कियां प्राइवेट स्कूलों में पढ़ती है। इस लिए सरकार को ‎चाहिए कि वह सरकारी स्कूलों के साथ ही प्राइवेट इन्टर कालेजों में भी नि:शुल्क सेनेटरी पैड वितरण सुनिक्षित करे। तभी सरकार 100 प्रतिशत ‎माहवारी स्वच्छता के लक्ष्य को पाने में सफल हो पाएगी ।
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अगर सरकार वर्ष 2017 तक माहवारी स्वच्छता के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहती है ‎तो किशोरी सुरक्षा योजना की व्यापक ‎स्तर पर मानिटरिंग करनी होगी। इसके लिए जो भी ‎नोडल अधिकारी नामित किये जाएँ वह स्कूलों में समय से सेनटरी ‎नैपकीन की उपलब्धता ‎व छात्राओं में इसके उपयोग को बढावा देना सुनिश्चित करें। इस योजना से जुड़े विद्यालयों ‎के नामित ‎नोडल अध्यापकों की समझ इस तरह से विकसित की जाय कि वे छात्राओं में ‎माहवारी के दौरान होने वाली समस्याओं व ‎मानसिक परेशानियों का निदान एवं परामर्श देने ‎में सक्षम हो पायें। इसके साथ ही प्रदेश के निजी व सरकारी स्तर के सभी ‎विद्यालयों में ‎सेनेटरी पैड का वितरण सुनिश्चित किया जाना चाहिए क्योंकि प्रदेश में सरकारी विद्यालयों की संख्या ‎बहुत कम है और ‎अधिकांश किशोरिया इस वजह से इस योजना के लाभ से वंचित हो जा रही ‎है, क्योंकि वे प्राइवेट विद्यालयों में पढने जाती हैं।

बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटीज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
४ मई, २०१६