हर जरूरतमंद को जब तक दमा (अस्थमा) इलाज नहीं मिलेगा, तब तक कैसे पूरे होंगे राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के लक्ष्य?

[वर्ल्ड अस्थमा डे वेबिनार रिकॉर्डिंग] [सुने और डाउनलोड करें पॉडकास्ट] [English] भारत सरकार एवं अन्य 194 देशों की सरकारों ने 2030 तक, गैर-संक्रामक रोगों (जैसे कि दमा/ अस्थमा) से होने वाली असामयिक मृत्यु को एक-तिहाई कम करने का वादा किया है (सतत विकास लक्ष्य/ SDGs). भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 (National Health Policy 2017) का भी एक लक्ष्य यह है कि भारत में दीर्घकालिक श्वास रोगों (जैसे कि दमा/ अस्थमा) से होने वाली असामयिक मृत्यु 2025 तक, 25% कम हों. पर बिना पक्की चिकित्सकीय जांच और सर्वगत प्रभावकारी इलाज के यह लक्ष्य कैसे पूरे होंगे?

यदि अस्थमा से असामयिक मृत्यु रोकनी है तो जाहिर है, कि पक्की चिकित्सकीय जांच सबको मिलनी चाहिए और पक्की जांच के उपरांत, चिकित्सकीय मानकों के अनुसार, प्रभावकारी इलाज, प्रबंधन और नियंत्रण के लिए जरुरी सहायता भी प्राप्त होनी चाहिए. बिना इनके, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के यह लक्ष्य कैसे पूरे होंगे?

अस्थमा की चिकित्सकीय पक्की जांच ऐसी होनी चाहिए जो शहरी-ग्रामीण स्वास्थ्य प्रणाली में सरलता के साथ पक्की रिपोर्ट दे. इसके शोध को तेज़ करने की जरुरत है जिससे कि दमा/ अस्थमा के साथ लोगों को बिना-विलम्ब चिन्हित किया जा सके और तुरंत सहायता प्रदान की जा सके जिससे कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के लक्ष्य पूरे हों.

भारत में 3 करोड़ से अधिक लोग दमा/ अस्थमा से जूझ रहे हैं. विश्व में 30 करोड़ लोग अस्थमा/ दमा के साथ जीवित हैं. हर साल, विश्व में लगभग 3 करोड़ लोग अस्थमा/ दमा से मृत होते हैं. अस्थमा या दमा का पक्का इलाज तो नहीं है पर इसका सफल प्रबंधन और नियंत्रण किया जा सकता है जिससे कि व्यक्ति सामान्य रूप से जीवनयापन कर सके.

लिवरपूल स्कूल ऑफ़ ट्रॉपिकल मेडिसिन के डॉ केविन मोर्तिमेर ने सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस) से कहा कि दमा/ अस्थमा की पक्की जांच की अत्यंत जरुरत है.

जब अस्थमा के लक्षण अन्य श्वास रोगों से मेल खा सकते हैं, तो यह कैसे संभव है कि शहर-गाँव में हर चिकित्सक सही रूप से सिर्फ लक्षण आदि देख कर अस्थमा का अनुमान लगाये? इसीलिए शोध को तेज़ करने की जरुरत है जिससे कि पक्की चिकित्सकीय जांच दमा के सभी लोगों को मिल सके.

हर सांस की घरघराहट दमा नहीं होती  

किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के फेफड़े स्वास्थ्य विशेषज्ञ और इंडियन चेस्ट सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ) सूर्य कान्त ने कहा कि हर सांस की घरघराहट दमा नहीं होती क्योंकि कुछ ऐसी विशेष श्वास सम्बन्धी रोग हैं जिनके लक्षण भी इससे मिलते हैं. इसिलए अस्थमा या दमा की पक्की जांच पर शोध कार्य में गतिवृद्धि होनी चाहिए.

प्रो0 सूर्य कान्त ने कहा कि असफल दमा प्रबंधन और असंतोषजनक नियंत्रण के कारण अनेक दमा रोगी, अस्पताल की आकास्मक स्वास्थ्य सेवा में भर्ती होते हैं. भारत सरकार की राष्ट्रीय अतिआवश्यक दवाओं की सूची (NLEM) में इनहेलर दवा शामिल है पर इनकी उपलब्धता हर जगह पर्याप्त नहीं है. एक शोध के अनुसार, सरकारी अस्पतालों में इनहेलर की उपलब्धता असंतोषजनक थी. अक्सर दमा के साथ जीवित व्यक्ति के लिए इनहेलर खरीदना मुमकिन नहीं होता. ग्लोबल अस्थमा इनसाइट एंड रियलिटी सर्वे के अनुसार, सिर्फ 20% दमा के साथ जीवित लोग ही कोर्टिको-स्टेरॉयड इनहेलर का उपयोग कर रहे थे. कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली, और दमा नियंत्रण और प्रबंधन के लिए मार्गदर्शिकाओं के अनुसार इलाज न करना, प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी की कमी आदि भी चुनौती उत्पन्न कर रहे हैं.

डॉ केविन मोर्तिमेर जो मलावी स्कूल ऑफ़ मेडिसिन में भी विशेषज्ञ हैं, ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की अतिआवश्यक दवा सूची में भी इनहेलर दवाएं शामिल हैं पर अनेक देशों में दमा से जूझ रहे लोगों को यह नहीं मिल पाती हैं. दमा प्रबंधन और नियंत्रण से दमा से होने वाली असामयिक मृत्यु दर को संभवत: कम किया जा सकता है.
राहुल द्विवेदी, निदेशक, स्वास्थ्य को वोट अभियान

स्वास्थ्य को वोट अभियान के निदेशक राहुल द्विवेदी ने कहा कि जब तक हर दमा के साथ जीवित व्यक्ति को सही और पक्की जांच न मिले और उसको सभी दवाएं उपलब्ध करवायीं जाएँ जिससे सफल दमा प्रबंधन मुमकिन हो सके, तब तक सरकारें दमा मृत्यु दर को कैसे 2025 तक 25% कम करेंगी?

इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट टूबेर्कुलोसिस अँड लाँग डीसीज़ (द यूनियन) की ‘ग्लोबल अस्थमा रिपोर्ट’ के अनुसार बच्चों की दीर्घकालिक बीमारियों में से सबसे अधिक अनुपात अस्थमा/ दमा का है। लोरेटो कान्वेंट से सेवा-निवृत वरिष्ठ शिक्षिका और आशा परिवार के स्वास्थ्य को वोट अभियान से जुड़ी शोभा शुक्ला ने कहा कि “अस्थमा नियंत्रण न करने के कारण जो संसाधन व्यर्थ जाते हैं और जितनी पीड़ा लोगों को झेलनी पड़ती है उसकी कीमत प्रभावकारी अस्थमा नियंत्रण में निवेश करने से कहीं ज्यादा है”।

अधिकांश अस्थमा के रोगी आकस्मक चिकित्सा सेवा में ही आते हैं जब तीव्र अस्थमा अटैक पड़ता है।

अस्थमा के सबसे समान लक्षण ख़ासी, सांस फूलना है जो एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों से अधिक भीषण होता है। आनुवांशिक कारणों के अलावा अनेक बाहरी ऐसे तत्व हैं जो ऐलर्जी पैदा करने से अस्थमा को तीव्र करते हैं जैसे कि फूल का पोलन, धूल, तंबाकू धुआँ, लकड़ी के चूल्हे का धुआँ, ट्रेफिक धुआँ, और अन्य कारण जैसे कि मानसिक तनाव, विशेष भोजन सामग्री, ऐसिडिटी, मोटापा, मौसम बदलाव, आदि।

प्रो0 डॉ0 सूर्य कान्त के अनुसार “इन्हेलर चश्मे की तरह हैं, जैसे कि जिस व्यक्ति की आँख कमजोर हो वो चश्मा लगता है उसी तरह जिस व्यक्ति की ‘ब्रोंकीयल नली’ कमजोर है वो ‘इन्हेलर’ का उपयोग करता है। जिस तरह हम लोग रोजाना दंत मंजन करते हैं उसी तरह अस्थमा रोगी को सुबह और शाम ‘इन्हेलर’ से दवा लेनी चाहिए। इससे अस्थमा नियंत्रण प्रभावकारी ढंग से हो पाएगा। अस्थमा रोगी को अन्य ऐसे कारण जिनसे अस्थमा तीव्र हो सकता है जैसे कि तंबाकू धुआँ, मानसिक तनाव, आदि से भी बचना चाहिए".

बाबी रमाकांत, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
30 अप्रैल 2017
(बाबी रमाकांत, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) महानिदेशक द्वारा  2008 में पुरुस्कृत , सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस) के स्वास्थ्य संपादक और नीति निदेशक हैं . ट्विटर @bobbyramakant)

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