मधुमेह के साथ जीवित बच्चों /युवाओं की देखभाल
वर्ष २००८ के विश्व मधुमेह दिवस का मुख्य विषय है 'बच्चों/ युवाओं में मधुमेह' । इसके अंतर्गत चलाये जा रहे विश्वजागरूकता अभियान का उद्देश्य है कि मधुमेह किसी भी बच्चे की मृत्यु का कारण न बने। साथ ही साथ अभिभावकों, परिचारकों, शिक्षकों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों, नेताओं एवं जनसाधारण में भी मधुमेह सम्बंधी जानकारी बढ़े।
अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह दिवस प्रति वर्ष १४ नवम्बर को मनाया जाता है। यह दिन डाक्टर फ्रेडरिक का जन्म दिवस भी है, जिन्होंने ८७ वर्ष पूर्व इंसुलिन का आविष्कार किया था। विश्व में मधुमेह के बढ़ते हुए प्रकोप को ध्यान में रखते हुए, इन्टरनेशनल डायबिटीज़ फेडेरेशन (आई.डी.ऍफ़.) और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने १९९१ में इस दिवस कीस्थापना की थी। सन २००७ में यू.एन.ओ. ने इसे राजकीय यू.एन. नेशन विश्व दिवस का दर्जा प्रदान किया। यू.एन का मानना है की मधुमेह एक महामारी के रूप में प्रत्येक आयु वर्ग में फैल रहा है।
मधुमेह से हर उम्र का बच्चा प्रभावित हो सकता है, यहाँ तक कि शिशु भी। यदि समय से इसका निदान व इलाज नहीं होता तो यह बच्चे की मृत्यु का कारण भी बन सकता है अथवा उसके मस्तिष्क को क्षतिग्रस्त कर सकता है। बच्चों में इसके लक्षणों को प्रायः नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। सच तो यह है की अज्ञानता या निर्धनतावश इसके लक्षणों की सही पहचान नहीं हो पाती। विशेषकर बालिकाओं में तो इसके लक्षणों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जाता।
पुणे स्थित किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल के मधुमेह विभाग के निदेशक, डाक्टर याज्ञनिक के अनुसार, ‘प्राय: ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों में या तो मधुमेह का समय रहते निदान नहीं हो पाता या फिर सही इलाज नहीं होता। इस कारण कई बच्चे अपने जीवन से ही हाथ धो बैठते हैं, जो हम सभी के लिए एक शर्मनाक बात है। सरकार का कर्तव्य है कि वो ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत करे ताकि बच्चों/किशोरों में मधुमेह का समय से निदान एवम् उचित उपचार और परिचार हो सके।’
प्रत्येक अभिभावक , शिक्षक, स्कूली नर्स, डाक्टर, एवं बच्चों की देखभाल करने वाले अन्य व्यक्तियों को मधुमेह के लक्षणों अथवा चेतावनी संकेतों की जानकारी होनी चाहिए। मधुमेह के प्रमुख लक्षण हैं :- बार बार पेशाब होना, अत्यधिक भूख और प्यास लगना, वज़न कम होना, थकान महसूस करना , एकाग्रता का अभाव होना, दृष्टि धूमिल हो जाना, उल्टी/पेट दर्द होना आदि। टाइप-२ डायबिटीज़ वाले बच्चों में ये लक्षण या तो कम होते हैं अथवा अनुपस्थित होते हैं।
टाइप-१ डायबिटीज़ में शरीर में इंसुलिन बनाने की क्षमता ही नहीं होती। इस प्रकार के मधुमेह को रोका नहीं जा सकता। अधिकतर बच्चों को टाइप-१ डायबिटीज़ ही होती है। विश्व स्तर पर, १५ वर्ष से कम आयु वाले ५००,०००बच्चों को इस प्रकार का मधुमेह है।
टाइप-१ डायबिटीज़ के चलते बच्चों को प्रतिदिन इंसुलिन के इंजेक्शन लेने पड़ते हैं तथा रक्त में शर्करा की मात्रा कोनियंत्रित करना पड़ता है। यदि इसे नियंत्रित नहीं किया जाता , तो रक्त में अम्ल की मात्रा बहुत बढ़ जाती है और यह स्थिति जानलेवा भी हो सकती है। ऐसी स्थिति को रोकने का एक ही उपाय है - समय से निदान और चिकित्सा।
विकासशील देशों में तो समस्या और भी गंभीर है। इन निम्न/मध्यम आय वर्ग के देशों के लगभग ७५,००० बच्चे टाइप-१ डायबिटीज़ के साथ बहुत ही निराशाजनक परिस्थितियों में जी रहे हैं। उनके लिए इंसुलिन एवं अन्य चिकित्सा सामग्री/ उपकरणों का नितांत अभाव है। उन्हें मधुमेह के बारे में उचित जानकारी भी नहीं है। इसलिए वे मधुमेह सम्बंधी अनेक विषमताओं के शिकार हो रहे हैं। मधुमेह का उचित उपचार और देखभाल प्रत्येक बच्चे का अधिकार होना चाहिए न कि सौभाग्य।
दिल्ली की डाक्टर सोनिया कक्कड़ के अनुसार, ‘आवश्यकता है एक व्यापक सोच और कार्यशैली की, जो मधुमेह केखतरों को संबोधित करे। सामाजिक धारणाएं मधुमेह के साथ जीवित किशोर युवक / युवतियों का जीवन प्रभावित करतीं हैं। इन मान्यताओं के चलते विशेषकर लड़कियों को अधिक दु:ख सहना पड़ता है.’
टाइप-२ डायबिटीज़ एक गंभीर वैश्विक जन स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभर रही है। विकसित एवं विकासशील ,दोनों ही प्रकार के देशों के बच्चे इससे प्रभावित हैं। यह आठ वर्ष से कम आयु के बच्चों में भी पाई जा रही है।
आई.डी.ऍफ़. के प्रेजिडेंट इलेक्ट, डाक्टर म्बान्या का कहना है कि, ‘सच तो यह है कि विकासशील देशों में कई बच्चे मधुमेह का निदान होने के कुछ समय बाद ही मर जाते हैं। इंसुलिन के आविष्कार के ८७ वर्ष बाद भी यह शोचनीय स्थिति है कि अनेक बच्चे/वयस्क केवल इसलिए अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं क्योंकि उन्हें अपने इलाज के लिए इंसुलिन उपलब्ध ही नहीं हो पाती। यह हम सबके लिए एक शर्मनाक बात है। आने वाली पीढियों के लिए हमें इसका समाधान ढूँढना ही होगा।’
आई.डी.ऍफ़. के अनुसार, एशिया और अफ्रीका के कुछ विकासशील देशों में मधुमेह के उपचार से सम्बंधित दवाएं और नियंत्रण उपकरण या तो उपलब्ध नहीं हैं ,अथवा महंगे होने के कारण जन साधारण की पहुँच से बाहर हैं। इस कारण बहुत से बच्चे या तो अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं, या फिर एक निम्न स्तरीय जीवन बिताते हुए, मधुमेह सम्बंधी जटिलताओं से ग्रसित होते हैं।’
मधुमेह की रोकथाम / उपचार के लिए अभी तक जो कदम उठाये गए हैं वो काफी नहीं हैं। हमारी सरकारी जनस्वास्थ्य सेवाएँ अधिकतर संक्रामक रोगों की रोकथाम एवं जच्चा/बच्चा स्वास्थ्य सेवा तक ही सीमित हैं। निजीक्षेत्र में रोकथाम के विपरीत इलाज पर ही अधिक ध्यान केंद्रित है। अत: आवश्यकता है एक ऐसी प्रबंध प्रणाली की जो मधुमेह की रोकथाम, उपचार,तथा देखभाल को ध्यान में रखते हुए कार्य करे।
आई.डी.ऍफ़. का सभी से निवेदन है कि वे मधुमेह के बारे में जागरूकता बढायें तथा इसके साथ जीवित व्यक्तियों के उपचार एवं परिचार के लिए प्रभावकारी कदम उठाएं।
शोभा शुक्ला
संपादिका, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस
मेरी खबर में प्रकाशित