मधुमेह के साथ जीवित व्यक्तियों की त्रासदी
शोभा शुक्ला
‘ मेरी बेटी से कौन ब्याह करेगा? उसे मधुमेह है।’ यह करुण पुकार है बहराइच जिले के गंगाजमुनी गाँव के निवासी राम अनुज की। उनकी १४ वर्षीय बेटी मुन्नी (नाम बदल दिया है) को टाइप १ डायबिटीज़ है जिसके कारण उसे प्रतिदिन इंसुलिन के इंजेक्शन लेने की आवश्यकता पड़ती है। मुन्नी का स्कूल जाना बंद कर दिया गया है क्योंकी स्कूल के बच्चे उसके इंसुलिन लेने पर उसका मज़ाक उडाते हैं।
मधुमेह से पीड़ित होने के कारण मुन्नी एक अभिशप्त जीवन जी रही है। अपनी बीमारी और आर्थिक तंगी केकारण वह अपने परिवार पर एक बोझ है। उसकी उचित चिकित्सा एवं देखभाल के लिए उनके पास पर्याप्त धन नहीं है।
यह व्यथा मुन्नी जैसे असंख्य बच्चों की है, विशेषकर लड़कियों की। कोढ़, टी.बी., कैंसर, शारीरिक विकलांगता , आदि रोग व्यक्ति के जीवन पर एक कलंक के समान माने जाते हैं। परन्तु मधुमेह का अभिशाप तो और भी बुरा है क्योंकि यह एक लंबे समय तक चलने वाली जीवन अवरोधक बीमारी है। इसका सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रभाव रोगी के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। उचित जानकारी के अभाव में मधुमेह के अभिशाप को झेलना बच्चों/ वयस्कों के लिए दारुड दु:ख के समान है। इस बीमारी के चलते वे अपने मित्रों/ परिजनों की हँसी के पात्र हो सकते हैं तथा अपने परिवार पर आर्थिक बोझ होने के ताने सुनते सुनते मानसिक तनाव से ग्रस्त हो सकते हैं। इस बीमारी से उत्पन्न भय, लज्जा, सामाजिक बहिष्कार के कारण उनकी कोमल बाल भावनाओं को ठेस पहुँच सकती है। इन सबके चलते उनमें मानसिक एवं व्यवहारिक परिवर्तन होना कोई अचरज की बात नहीं है।
अत: उन्हें एवं उनके परिवार वालों को उचित मनोवैज्ञानिक परामर्श मिलना अत्यन्त आवश्यक है। अस्पतालों एवं मधुमेह उपचार केन्द्रों पर ऐसे सलाहकारों का होना आवश्यक है जो इन बच्चों/ वयस्कों को इस रोग के रहते एक स्वस्थ एवं सामान्य जीवन जीने की प्रेरणा दें। अपनी जीवन शैली एवं भोजन प्रणाली में कुछ साधारण परिवर्तन करके वे एक संयत जीवन जी सकते हैं। नई दिल्ली स्थित 'मधुमेह अनुसंधान, शिक्षा व प्रबंधन' ट्रस्ट के संचालक डाक्टर पेंडसे के अनुसार, ‘हम सबको यह समझना आवश्यक है कि मधुमेह कोई रोग नहीं वरन शरीर की एक असामान्य स्थिति है जिसमें शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बन पाता है।’ इस ट्रस्ट के द्बारा मधुमेह के साथ जी रहे निर्धन बच्चों को सम्पूर्ण चिकित्सा व्यवस्था नि:शुल्क प्रदान की जाती है। इस केन्द्र का एक शिक्षा प्रभाग भी है जो रोगी और उनके परिवार जनों को चिकित्सा संबंधी उचित जानकारी व परामर्श देकर उनका मार्गदर्शन करता है। इस परामर्श के चलते मधुमेह से जुडी हुई भ्रांतियों में आशातीत सुधार हुआ है।
परन्तु अधिकाँश मधुमेह उपचार केन्द्रों में इस प्रकार के सलाहकारों, भोजन विशेषज्ञों, पाँव की देखभाल करने वाले विशेषज्ञों एवं स्वास्थ्य शिक्षकों का नितांत अभाव है। इस कारण से न केवल मधुमेह से सम्बंधित अभिशाप पनप रहा है वरन मधुमेह के साथ जीवित व्यक्तियों की उचित देखभाल भी नहीं हो पा रही है। एक चिकित्सक को ही इन सब कार्यों को करना पड़ता है जो कठिन ही नहीं असंभव भी है। तिस पर इन अतिरिक्त सेवाओं का आर्थिक भार भी रोगी वहन करने के इच्छुक नहीं होते।
इन्टरनेशनल डायबिटीस फेडेरेशन (आई. डी. ऍफ़.) के अनुसार, विश्व भर में लगभग २५ करोड़ व्यक्ति मधुमेह के साथ जी रहे हैं। इसके अलावा प्रतिदिन २०० नए बच्चों में टाइप १ मधुमेह का निदान किया जाता है। १५ वर्ष सेकम आयु वाले लगभग ५००,००० बच्चे मधुमेह के साथ जीवित हैं। अत: यह आवश्यक है कि उनकी समुचित उपचार/ परिचार व्यवस्था एवं अन्य सहायक सुविधाएं सार्वजनिक अस्पतालों में ही उपलब्ध करायीं जाएँ।
विकासशील देशों में, जहाँ संक्रामक रोगों ( जैसे दस्त ) की दवा एवं अन्य चिकित्सा सुविधा के अभाव में असंख्य बच्चे मर रहे हैं, वहाँ मधुमेह के साथ जीवित बच्चों/ वयस्कों पर धन व्यय करना फिजूलखर्ची माना जाता है। अत: आवश्यक है कि मधुमेह से जुड़े हुए अभिशाप को दूर किया जाए। इस वर्ष मधुमेह दिवस ( जो १४ नवम्बर को मनाया जाना है) के सन्दर्भ में सभी देशों को कृत संकल्प होना चाहिए कि वे इस दिशा में उचित व सार्थक कदम उठायेंगें। उन्हें अपने संसाधनों का उपयोग करके न केवल मधुमेहियों को उचित स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करानी होगी वरन उनके परिजनों को समुचित परामर्श भी देना होगा। तभी वे एक सामान्य एवं स्वस्थ जीवन जी सकेंगे तथा परिवार/समाज पर बोझ नही समझे जायेंगे।
हम सबके लिए यह जानना आवश्यक है कि अपनी जीवन शैली में उचित परिवर्तन लाकर अधिकाँश टाइप १ व टाइप २ डायबिटीज़ की रोकथाम की जा सकती है । हमारे लिए यह जानकारी भी आवश्यक है कि जिनको टाइप १ व २ डायबिटीज़ है उनके लिए उचित उपचार एवं चिकित्सा व्यवस्था और सहायता कार्यक्रम उपलब्ध हैं जो उनकी आर्थिक/ सामाजिक पहुँच के भीतर हैं।
शोभा शुक्ला
(लेखिका, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (www.citizen-news.org) की संपादिका हैं)
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