भारतीय कश्मीरियों पर हिंसा का मनोवैज्ञानिक प्रभाव

भारतीय कश्मीरियों पर हिंसा का मनोवैज्ञानिक प्रभाव

भारतीय सेना और कश्मीरी उग्रवादियों के बीच पिछले २० साल से चल रही हिंसात्मक घटनाओं के कारण लगभग२०,००० लोग मारे गए हैं तथा ४००० लोग विस्थापित हुए हैंये तो सरकारी आंकड़े हैं, पर इस लड़ाई का जो मानसिक कुप्रभाव कश्मीर की जनता पर पड़ा है, उसे आंकडों में नहीं मापा जा सकता

हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण के दौरान कुछ चौंका देने वाले तथ्य सामने आए हैंयह सर्वेक्षण कनाडा और हॉलैंड के विश्वविद्यालयों एवंमेडिसिन्स साँस फ़्रन्तिअरनामक स्वयंसेवी संस्था के मिले जुले तत्वाधान में २००५ में किया गया थाइस अध्ययन के अंतर्गत ५१० कश्मीरियों से बातचीत की गयी जो भारतीय कश्मीर में रह रहे हैंइनमें २७० पुरूष थे और २४० महिलायें थीं३३% प्रतिवादियों में (विशेषकर महिलाओं में), असुरक्षा की भावना के कारण, मानसिक दबाव के लक्षण पाये गए

इस वैज्ञानिक अध्ययन के लेखकों का कहना था कि कश्मीर में लगातार हो रही हिंसा और मानवीय अधिकारों के उल्लंघन के चलते, ३३% प्रतिवादियों के मन में कभी कभी आत्महत्या का विचार आया थापुरुषों ने स्वयं भोगा था अनाचार और अत्याचार का वातावरणपुलिस हिरासत में उन्हें यातनाएं दी गयी थीऔर महिलायें यह सब अपनी आंखों के आगे घटते हुए देख कर मानसिक रूप से आहत हुई थीं

पुरुषों का मानसिक तनाव तीन गुना बढ़ जाने के मुख्य कारण थे----मर्यादा का उल्लंघन, बलपूर्वक किया गया विस्थापन एवं स्वयं अक्षम होने की भावनामहिलाओं ने अपने आसपास लोगों को मृत्यु और अत्याचार का शिकार होते हुए देखा था एवं स्वयं को असुरक्षित पाया थाइन सब कारणों से उनका मानसिक तनाव दो गुना बढ़ गया

इस अध्ययन के परिणामयुद्ध एवं स्वास्थ्यनामक पत्रिका में छपे हैंइसके अनुसार ६३% प्रतिवादियों ने घायलों को देखा था; ४०% ने लोगों को मरते हुए देखा था;६७% ने शारीरिक अत्याचार होते हुए देखे थे; १३%बलात्कार के दृष्टा थे; ४४% ने दुर्व्यवहार का अनुभव किया था और ११% का कहना था कि उनकी मर्यादा का उल्लंघन किया गया

यह माना जाता है कि पिछले वर्ष लगभग ६०,००० कश्मीरियों ने आत्महत्या कीअनेक लोगों ने आत्मकेंद्रित होकर, स्वयं को समाज की मुख्य धारा से अलग कर लियाकुछ लोगों का व्यवहार हिंसात्मक हो गया तथा कुछ धर्म में शान्ति की तलाश करने लगेइतना अधिक मानसिक तनाव भारत के अन्य किसी भी क्षेत्र में नहीं पाया गया हैकश्मीर में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी होने पर भी ६०% प्रतिवादियों ने स्वास्थ्य केन्द्रों पर जा कर इस प्रकार की सहायता ली, विशेष कर महिलाओं ने

हिंसा, खतरे और अनिश्चिनता के इस वातावरण से भारतीय सेना का भी मनोबल गिरा है, जिसके कारण कश्मीर में तैनात भारतीय सैनिकों में आत्महत्या की घटनाएं बढ़ी हैंइसलिए सेना को वहाँ ४०० मनोविशेषज्ञों की सेवाएँ लेनी पड़ी हैं

सरकार को चाहिए कि कश्मीर की जनता एवं भारतीय सेना का मनोबल बनाए रखने के लिए उचित कदम उठायेजो लोग कश्मीर के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं उन्हें यह सोचना होगा कि ज़मीन के लिए लड़ी जा रही इस लड़ाई से उस ज़मीन पर रहने वालों के जीवन पर कितना बुरा प्रभाव पड़ रहा है
क्या यह किसी के लिए भी उचित है?

शोभा शुक्ला