स्वास्थ्य नीतियों को कमजोर करने के लिए भारत सरकार पर तम्बाकू उद्योग का 'जोर'
केंद्रीय सूचना आयोग में भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कहा कि तम्बाकू उद्योग उस पर जोर डालता है कि तम्बाकू नियंत्रण की नीतियों को कमजोर किया जाए (पढ़ें, The Hindu, १४ नवम्बर २००८).
स्वास्थ्य नीतियों में उद्योगों के हस्तछेप से न केवल स्वास्थ्य नीतियाँ कमजोर होती हैं, बल्कि उनको लागु करने में अवांछित विलंब होता है. उदाहरण के तौर पर तम्बाकू उद्योग और अन्य सम्बंधित उद्योगों, जिनमें इंडियन होटल असोसिएशन भी शामिल है, ने तम्बाकू नियंत्रण नीतियों के विरोध में ७० से अधिक कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की थीं. इन्हीं उद्योगों की वजह से तम्बाकू उत्पादनों पर प्रभावकारी फोटो वाली चेतावनी को लागु करने को कम-से-कम ६ बार टाला गया है. इन्हीं उद्योगों के प्रतिनिधियों और समर्थकों ने 'मंत्रियों के समूह' पर, जो तम्बाकू उत्पादनों पर फोटो वाली चेतावनियों का मूल्यांकन कर रहा था, जोर डाल कर फोटो वाली चेतावनियों को कमजोर करा दिया है.
जब तक तम्बाकू नियंत्रण कानूनों में उद्योग के हस्तछेप पर रोक नही लगेगी, तब तक उद्योग अपने मुनाफे और बाज़ार को बचाने और बढ़ाने के लिए, स्वास्थ्य नीतियों को कमजोर करते रहेंगे.
दक्षिण अफ्रीका के डुर्बन शहर में १६० देशों के सरकारी प्रतिनिधि अंतर्राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण संधि के गाइड-लाइन पर विचार-विमर्श कर रहे हैं, जिनमें article ५.३ शामिल है जो स्वास्थ्य नीतियों में तम्बाकू उद्योग के हस्तछेप पर रोक लगाने का प्रस्ताव रखता है. इस अंतर्राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण संधि को फ्रेमवर्क कन्वेंशन ओन टोबाको कंट्रोल कहते हैं.
इस संधि में प्रस्तावित आर्टिकल ५.३ के मुताबिक, तम्बाकू उद्योग का जन-स्वास्थ्य के साथ सैधांतिक मतभेद है.
यह भी समझना आवश्यक है कि यदि जन-स्वास्थ्य नीतियों में तम्बाकू उद्योग का हस्तछेप जारी रहेगा तो इसका कु-प्रभाव अन्य तम्बाकू नियंत्रण कार्यक्रमों पर भी पड़ेगा जिनको लागु करना में न केवल अवान्छिय विलम्ब होगा बल्कि इन नीतियों के कमजोर होने की भी सम्भावना तीव्र हो जायेगी.
"अंतर्राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण संधि को लागु करने में तम्बाकू उद्योग का हस्तछेप सबसे प्रमुख व्यवधान है" कहना है कैथी मुल्वे का, जो कारपोरेट अच्कोउन्ताबिलिटी इंटरनेशनल की अंतर्राष्ट्रीय नीति निदेशक हैं.
(मेरी ख़बर में प्रकाशित)