भारत के हर धार्मिक समुदाय के मेहनतकश स्त्री, पुरूषों को अच्छी जिन्दगी जीना समाजवाद लाने से ही सम्भव होगा। दुनिया भर में बदलाव की हवा जोर से चल रही है।
भाई बैद्य (अध्यक्ष), केषव राव जाधव तथा संदीप पाण्डेय (उपाध्यक्ष), प्रेम सिंह, नुरूल अमीन तथा ओंकार सिंह (प्रमुख सचिव), जयन्ती पांचाल (कोशाध्यक्ष), पन्नालाल सुराणा अध्यक्ष, एवं जया विदियाला सचिव (केन्द्रीय संसदीय बोर्ड), गिरीष पाण्डेय अध्यक्ष, सोशलिस्ट पार्टी राज्य शाखा उत्तर प्रदेश
- दक्षिण अमेरिका के कई देशों के लोगों ने अमरीकी पूंजीपतियों के वर्चस्व को उखाड़ फेंक दिया है।
- समाजवाद के प्रति प्रतिबद्ध है ऐसे नेता एवं पार्टियों को सत्ता में बैठाया है-मतदान के जरिये।
- ब्राजील में जिन्होंने जमीन काश्त की थी, उन्हें उस जमीन का कानूनी पट्टा मिल गया है।
- क्यूबा की सरकार एवं जनता ने अमेरिका के कई हमलें नाकाम कर दिये, वहाँ के डॉक्टर एवं नर्सो ने प्राकृतिक विपदा से ग्रस्त हुये अमेरीकी नागरिकों को स्वस्थ्य सेवा बहाल की।
- ह्वेनाजुएला जैसे देशों ने भूमिगत तेल पर का विदेषी पूंजीपतियों का अधिकार हटा दिया तथा उन पर जनता का अधिकार कायम किया।
- कई देशों में प्राकृतिक साधनों का इस्तेमाल आम जनता का जीवन स्तर ऊँचा उठाने के लिये किया जा रहा है।
- अफ्रीका एवं पश्चिम एशिया के कई अरब या मुस्लिम देशों ने तानाशाह सत्ता देशों के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किये जिसके चलते कई सत्ताधिशों के सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
- इजिप्ट, ट्यूनेशिया आदि देशों ने जनतात्रिक ढंग से नये सत्ताधीश चुने गये। वहाँ के राजनैतिक एवं सामाजिक आन्दोलन पर उदारवादी इस्लाम का प्रभाव बढ़ रहा है। बहुतांश देशों में परिवर्तन का परचम उठाने में महिलायें आगे है।
- पूंजीवाद के पूराने गढ़ अमेरिका (यू0एस0ए0) तथा पष्चिम यूरोप के इग्लैण्ड फ्रांस आदि देशों में ‘‘बाल्स्ट्रीट पर कब्जा करों’’ जैसे जन आन्दोलन तेजी से बढ़ रहे हैः- ‘‘1 प्रतिशत के लिये, एक प्रतिशत द्वारा, एक प्रतिशत की हुकूमत’’ इसके खिलाफ लोग बगावत कर उठे है।
- ‘‘जनता के लिये, जनता द्वारा, जनता के राज्य’’ चलाने के लिये कई जन आन्दोलन चल रहे है। वित्तीय संस्थायें, बैंक आदि पर वहाँ के केन्द्रीय बैंकों में जबरदस्त नियंत्रण बैठाये है। ये सब संस्थायें जनता की प्रतिनिधित्व संस्थाओं को जवाब देह बनाई जा रही है। क्या भारत पीछे रहेगा ? नहीं।
19 वीं सदी के क्रान्तिदर्शी समाज सुधारक एवं 20वीं सदी के राजनीतिक नेताओं ने प्रजातांत्रिक संविधान का ढांचा बनाया जिसे डॉ0 बाबा साहब अम्बेडकर ने शब्दबद्ध किया।
- सत्ताधीशों को मतदान द्वारा बदलने का कौशल भारत की जनता ने प्राप्त कर लिया है।
- शिक्षा का बड़े पैमानें पर फैलाव हुआ है लेकिन व्यवसायीकरण को समाप्त कर समान शिक्षा की आवश्यकता है। सदियों से शोषित तथा पीड़ित रखें हुये तबकों के स्त्री, पुरूष पढ़ाई के द्वारा आत्मभान प्राप्त कर चुके है। वे अपने अधिकार मांग रहे है। परिवर्तन की शक्तिया तेजी से उभर रही है।
- दुर्भाग्य से बाहुबली लोग एवं धन्ना सेठ चुनाव प्रक्रिया पर प्रभाव डालकर राजनीतिक सत्ता हथिया रहे है क्या कांग्रेस, क्या भाजपा- वे सब खुले बाजार पर आधारित भूमण्डलीयकरण का गुणगान कर रहे है। भारत की अर्थव्यवस्था के दरवाजे उन्होंने धनी देशों के कम्पनियों के लियें खोल दिये है। पिछले 20-22 साल में देश में बेरोजगारी बढ़ी, गरीब तथा अमीर के बीच वैसे ही औद्योगिक शहर बनाम ग्रामीण या झोपड़पट्टी इलाको के दरम्यान खाई बढ़ गयी है। विषमता बहुत बढ़ गयी है। जीवनावश्यक चीजों के दाम इतने बढ़ गये कि आम जनता की जिन्दगी हराम हो गयी है।
- ‘‘विकास के लिये औद्योगीकरण होना जरूरी है’’ ऐसा कहते कहते कम्युनिष्ट पार्टिया भी देशी तथा विदेशी पूंजीपतियों के आगत स्वागत में जूट गयी है। इन सभी प्रतिष्ठित पार्टियों के सोच में बड़ी खोट है। जिन देशों में केवल दो या 10 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर है, ऐसे देशों के विकास का नमूना वे भारत के लिये भी अनुकरणीय मानते है। उन देशों अफ्रीका, एशिया एवं लैटिन अमेरिका के लोगों पर साम्राज्यवादी हुकूमत चलाकर वहाँ की जनता का 200 साल तक जबरदस्त शोषण किया। उसी से उनके विकास के लिये पूंजी का संचय हुआ। वह तरीका अन्यायपूर्ण था तथा आज अब विकासशील देशों को वह उपलब्ध नहीं है। इन्हें अपना विकास अपने बलबूते पर ही करना होगा। उधार खाते पर वर्ल्ड बैंक व अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के बलबूते पर नहीं- वह अमेरिकी गुलामी है।
सोशलिस्ट पार्टी मानती है कि खेती, पशुपालन, मंछीमारी, वन विकास तथा न्यायोचित खनन इन्हीं क्षेत्रों को बढ़ावा दिया जाये ताकि समाज की अन्नसुरक्षा, बरकरार रहे। छोटे मशीन द्वारा ग्रामीण इलाके में उद्योग चलाये जाये, जिनका संचलन सहकारी संस्था करें। इसी रास्ते से जाने पर हर बालिग स्त्री, पुरूष को अर्थपूर्ण रोजगार मिलेगा। किसी का शोषण नहीं होगा।
वित्तीय पूंजीवाद सबसे खतरनाक है। इण्डोनेशिया, थाईलैण्ड, फिलीपीन्स आदि देशों की अर्थव्यवस्थायें उन्हीं के चलते ध्वस्त हो गयी थी। भारत जैसे देश में भी शेयर बाजार के उतार चढ़ाव लोगों को बिना कारण भयभीत करते है। बैंकों में गरीब तथा मध्यवर्ग के लोगों का पैसा जमा रहता है। उसे सुरक्षित रखने के लिये उन पर रिजर्व बैंक शख्त नियंत्रण रखे, ऐसा सोशलिस्ट पार्टी का कहना है और शेयर बाजार की सट्टाबाजी (जुआड़खाना) बन्द कर दिया जाये तभी महंगाई पर काबू हो सकेगा।
खेती उपज को किफायती दाम मिले तथा उससे डेढ़ गुना दाम में साधारण ग्राहक को गेंहू, चावल, दाल आदि मिले। इस तरह पूरी व्यवस्था सहकारी संस्था की सहायता से सरकार को चलानी चाहियें। ऐसा सोशलिस्ट पार्टी का कहना है और मूल्य संतुलन स्थापित हो पायेगा।
गत् कुछ सालों में किसानों की अच्छी जमीनें सरकार ने कम दाम देकर जबरदस्ती अधिग्रहण (सम्पादित) करके पूँजीपतियों को सौपी है। उसके लिये जिसका इस्तेमाल किया, वह कानून अंग्रेजों ने बनाया था। सन् 1894 का भूमि अधिग्रहण कानून रद हो जाना चाहियें। नये कानून का जो विधेयक भारत सरकार ने पेश किया है, उसके उद्देश्य में साफ लिखा है कि कारखानदारी एवं शहरीकरण को मदद करने के लिये नया भूमि अधिग्रहण कानून बनाया जायेगा। क्या जमीन पर इन पूँजीपतियों का ही अधिकार है ? इस देश में ऐसे घुमन्तु कबीले या कुन्बे है, जिनका न कोई गांव है और न कोई घर। वे हर जगह निर्वासित ही माने जाते है। न उनको राशन कार्ड मिलता है न मतदाता कार्ड। क्या घर बाँटने के लिये जमीन का छोटा सा टुकड़ा उन्हें मिले, यह उनका अधिकार नहीं है ? उन्हें तथा वनवासियों को वहीं बसाया जाये और उन्हें खेती के लिये प्रथमतः जमीनें व कुठीर उद्योग स्थापित करने के बाद ही शेष भूमि पर पावर लूम तब बड़े उद्योग स्थापित किये जाये।
सोशलिस्ट पार्टी ने सुझाव रखा है कि जमीन के इस्तेमाल सम्बन्धी राष्ट्रीय नीति निर्धारित की जाये जिसमें पहला अधिकार बेघर लोगों को घर बसाने का होगा। खेती, मंछीमारी को दूसरा स्थान हो। कारखानों को तीसरा स्थान हो। सड़क, नहर, रेल आदि सार्वजनिक योजनाओं के लिये जमीन का अधिग्रहण ग्राम सभा से करवाया जाये ऐसी सोशलिस्ट पार्टी की पक्की राय है।
सोशलिस्ट पार्टी ‘‘पिछड़ें पावे 100 में 60’’ इस डॉ. लोहिया के नारे पर अभी भी विश्वास करती है। शिक्षा, खेती, उद्योग, नौकरी एवं सत्ता-सभी में उनको न्यायोचित हिस्सा मिलना चाहियें। सोशलिस्ट पार्टी का आग्रह है कि देश के सभी बालक-बालिका को मुफ्त अनिवार्य, समान एवं गुणात्मक शिक्षा मिले ऐसी व्यवस्था चलाना सरकार का फर्ज है और शिक्षा के बाजारीकरण को सख्त कानून बनाकर समाप्त कर दिया जाये। आम आदमी को स्वास्थ्य सेवा, सुलभता से उपलब्ध करा देने की जिम्मेदारी भी सरकार को उठानी चाहिये ऐसा सोशलिस्ट पार्टी का कहना है। बाहुबल एवं धनबल का चुनाव पर प्रभाव न हो, इस हेतु चुनाव प्रणाली में सुधार करना सोशलिस्ट पार्टी आवश्यक मानती है।
आज राजनीति में मौका परस्ती, स्वार्थ, भाई-भतीजावाद बहुत बढ़ गया है। साधारण आदमी को अच्छी जिन्दगी जीने का अवसर मिले, इसलिये पूरे ढांचे में परिवर्तन लाने का प्रण किये हुये आदर्शवादी, जूझारू एवं कार्य कुशल कार्यकर्ताओं की सेना खड़ी करना यह सोशलिस्ट पार्टी का उद्देश्य है। इसलिये दलित, आदिवासी, महिला, युवा खेत मजदूर, किसान, असंगठित श्रमिक आदि सब लोग सोशलिस्ट पार्टी के झण्डें तले अपना संगठन मजबूत बनाये, ऐसा पार्टी का आहवान है। सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवारों को भारी बहुमत से जिताये ऐसा भी हमारा आहवान है।
भाई बैद्य (अध्यक्ष), केषव राव जाधव तथा संदीप पाण्डेय (उपाध्यक्ष), प्रेम सिंह, नुरूल अमीन तथा ओंकार सिंह (प्रमुख सचिव), जयन्ती पांचाल (कोशाध्यक्ष), पन्नालाल सुराणा अध्यक्ष, एवं जया विदियाला सचिव (केन्द्रीय संसदीय बोर्ड), गिरीष पाण्डेय अध्यक्ष, सोशलिस्ट पार्टी राज्य शाखा उत्तर प्रदेश