यूरोपियन यूनियन और भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौता विकासशील देशों में सस्ती दवाओं की उपलब्धता को बाधित कर सकता है
नई दिल्ली में इस समझौते के विरुद्ध एच आई वी के साथ जीवित 2000 लोगों का सामूहिक प्रदर्शन
आज जब भारत और यूरोपियन यूनियन के बीच मुक्त व्यापार समझौते से संबन्धित विवादों को समाप्त करने हेतु नई दिल्ली में शिखर सम्मेलन आरंभ हुआ , तो 2000 से अधिक एच आई वी के साथ जीवित व्यक्तियों ने प्रदर्शन करके इस समझौते के हानिकारक प्रावधानों के बारे सावधान किया जिनके रहते गरीब देशों में रहने वाले लोगों को कम मूल्य की दवाएं मिलने में बाधा होगी॰
दिल्ली नेटवर्क औफ़ पोसिटिव पीपुल की मुन्द्रिका गहलोत ने कहा कि, “हमारी ज़िंदगी और मौत व्यापारी मध्यस्थों के हाथ में नहीं होनी चाहिए॰ हम यहाँ पर भारत और यूरोपियन यूनियन को यह संदेश देना चाहते हैं कि हमारे जीवन का कारोबार मत करो।"
भारत को विकासशील देशों की फार्मेसी माना जाता है क्योंकि यह उच्च कोटी परंतु कम दाम की प्रजातिगत दवाएं बना कर विश्व के लाखों लोगों को सस्ता इलाज सुलभ कराता है।
जेनेरिक दवाओं के भारतीय उत्पादकों के बीच की प्रतिस्पर्धा के कारण ही एच आई वी के प्रथम चरण की दवाओं के दाम सान 2000 में 10,000 डॉलर से घट कर आज 150 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष हो गए हैं। इस 99% मूल्य गिरावट के कारण ही आज एच आई वी का इलाज गरीबों को भी उपलब्ध हो पा रहा है। विकासशील देशों के 6.6 मिलियन लोगों के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली 80% से अधिक दवाएं भारत में ही बनती हैं। इसी प्रकार एच आई वी से पीड़ित बच्चों को दी जाने वाली 90% दवाएं भी भारतीय उत्पाद हैं॰ एम एस एफ एवं अन्य उपचार प्रबन्धक भी भारत निर्मित जेनेरिक दवाओं का उपयोग करते हैं।
वर्तमान व्यापार नियमों के अंतर्गत भी नई दवाओं के जेनेरिक प्रारूप बनाना कठिन होता जा रहा है। परंतु यूरोपियन यूनियन--भारत मुक्त व्यापार समझौता तो नए बौद्धिक संपत्ति व्यवधान पैदा करके स्थिति की गंभीरता को और बढ़ा रहा है।
लाएर्स कलेक्टिव की एच आई वी/एड्स शाखा के डाइरेक्टर श्री आनंद ग्रोवर के अनुसार, “ यह व्यापार समझौता तो विश्व व्यापार संगठन की हदों को भी पार कर रहा है। यूरोपियन यूनियन भारत से बौद्धिक संपत्ति के ऐसे माप दंडों की अपेक्षा रखता है जिनके चलते दूसरे देशों के मरीजों को भेजी जाने वाली दवाएं, भारतीय बन्दरगाहों पर रोकी जा सकती हैं, तथा उपचार प्रबन्धक के विरुद कोर्ट में मुकदमा भी चलाया जा सकता है। ये सभी प्रावधान बाज़ार में जेनेरिक दवाओं के प्रवेश को विलंबित करके भारत तथा सभी विकास शील देशों के रोगियों के स्वास्थ्य के अधिकार को प्रभावित करेंगे।
समझौता वार्ता में दोनों देश लेन-देन की सौदेबाज़ी की घोषणा करेंगे। जानकार सूत्रों के हवाले से पता चला है कि यूरोपियन यूनियन भारत पर इस बात का दबाव डाल रहा है कि वह अनेक ऐसे बौद्धिक संपत्ति उपायों के लिए स्वीकृति दे दे जिनके चलते कम मूल्य की जेनेरिक दवाओं के उत्पादन, रेजिस्ट्रेशन और वितरण में बाधा पड़ेगी।
एम एस एफ (जो 19 देशों में 170,000 लोगों को एच आई वी उपचार उपलब्ध कराता है) भारत की हेड ऑफ मिशन, पीएरो गंदीनी का मानना है कि, “यूरोपियन यूनियन का यह व्यापार समझौता कम दाम की उन जेनेरिक दवाओं के उत्पादन के लिए एक धीमे जहर का काम करेगा जिनकी मदद से आज लाखों लोग ज़िंदा हैं। यह समझौता हम जैसे उपचार प्रबन्धकों को भी निशाना बना सकता है, जो भारत से सस्ती दवाएं खरीद कर रोगियों को उपलब्ध कराते हैं। मेरे पेरु प्रवास के दौरान लेटिन अमेरिकन देशों ने यूएसए के साथ ऐसा ही मुक्त व्यापार समझौता किया था, जिसके कारण ये सभी लेटिन अमेरिकन देश अपने नागरिकों को सस्ती दवाएं, (विशेषकर एच आई वी की दवाएं) उपलब्ध कराने में अत्यंत कठिनाई का सामना कर रहे हैं।“
बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, गुजरात, नागालैंड, मिज़ोरम, और मणिपुर आदि विभिन्न प्रान्तों से आए हुये एच आई वी के साथ जीवित व्यक्तियों ने दिल्ली प्रदर्शन में भाग लिया और साफ शब्दों में चेतावनी दी कि ‘यूरोप, खबरदार! हमारी दवाओं से दूर ही रहो’।
शोभा शुक्ला - सी.एन.एस.