मासिक धर्म शर्मसार होने की घटना नहीं, बल्कि स्वस्थ होने का प्राकृतिक संकेत है

शोभा शुक्ला, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
फोटो साभार: सीएनएस
[English] यूपी स्वास्थ्य विभाग के अनुसार प्रदेश में २८ लाख किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल जाने में नागा करती हैं. मासिक धर्म सम्बन्धी अस्वच्छता से अनेक संक्रमण, सूजन, मासिक धर्म सम्बन्धी ऐठन, और योनिक रिसाव आदि स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ भी आती हैं. मासिक धर्म एक किशोरी या महिला के लिए प्राकृतिक स्वस्थ होने का संकेत है, न कि शर्मसार या डरने या घबड़ाने वाली कोई 'घटना'. सर्वे के अनुसार ८५% किशोरियां पुराने कपड़ों को ही मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल करती हैं.

आशा परिवार के स्वास्थ्य को वोट अभियान के राहुल द्विवेदी ने कहा कि मासिक धर्म सम्बन्धी सामाजिक बाधाएं भी हैं जैसे कि लगभग ५०% किशोरियों या महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान रसोई में जाने की मनाही होती है या अक्सर धार्मिक कृत में भाग लेने पर भी रोक होती है. मासिक धर्म पर कोई परिवार में चर्चा ही नहीं होती जिसके कारण एक सर्वे के अनुसार, ५ में से ४ किशोरियां मानसिक रूप से मासिक धर्म के लिए तैयार ही नहीं होती हैं और ५ में से ३ डरी हुई होती हैं. आवश्यक है कि हम मासिक धर्म सम्बन्धी विषयों पर चुप्पी तोड़ें और विश्वसनीय लोगों से इस पर खुल के बात हो जिससे कि किशोरियां और महिलाएं, मासिक धर्म (जो एक प्राकृतिक स्वस्थ संकेत है) से सम्बंधित मुद्दों पर, समय से सही जानकारी प्राप्त कर सकें.

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के स्त्री रोग विभाग की प्रोफेसर डॉ अमिता पाण्डेय ने बताया कि मसिक धर्म अस्वच्छता के कारण अनेक पेल्विक संक्रमण, बाँझपन, मासिक धर्म समस्याएँ, स्कूल न जा पाना, और सर्वाइकल कैंसर तक होने का खतरा हो सकता है जिसपर अभी शोध चल रहा है. डॉ पाण्डेय ने कहा कि सामान्य मासिक चक्र २१-३५ दिन तक का होता है, ५-७ दिन तक माहवारी आती है, ५०-८० मिली तक रिसाव हो सकता है, और पहले दिन हल्की सी परेशानी हो सकती है पर जमा खून नहीं आना चाहिए. यदि ऐसा नो हो रहा हो तो बिना विलम्ब चिकित्सकीय सलाह लीजिये.

२०१७ तक यूपी में १००% मासिक धर्म सम्बन्धी स्वच्छता का लक्ष्य पूरा करने के लिए, यूपी सरकार के साथ अरुणाचलम मुरुगानान्थम काम कर रहे हैं. अरुणाचलम ने बताया कि "सेनेटरी नैपकिन पैड को 'आराम' की वास्तु की तरह नहीं देखना चाहिए बल्कि एक आवश्यकता की तरह मानना चाहिए क्योंकि वो किशोरियों और महिलाओं को स्वास्थ्य और आत्म-सम्मान दे सकता है". यह अत्यंत चिंता का विषय है कि यूपी में सिर्फ ५% किशोरियों और महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन पैड मिल पा रहा है. अरुणाचलम यूपी में ब्लाक स्तर पर महिलाओं द्वारा प्रबंधित सेनेटरी नैपकिन बनाने का लघु कुटीर यूनिट लगाना चाहते हैं जिससे कि महिलाएं ही उसे गाँव गाँव और महिलाओं को प्रशिक्षण के बाद वितरित करें. उन्होंने कहा कि प्रसूति के दौरान इस्तेमाल होने वाला डिलीवरी पैड भी ये यूनिट स्थानीय अस्पतालों को प्रदान कर सकती हैं. "हम लोगों का कार्य सामाज में व्याप्त भ्रांतियों और भेद भाव को भी ध्वस्त करता है."

हम सब सरकार के २०१७ तक प्रदेश में १००% मासिक धर्म सम्बंधित स्वच्छता के लक्ष्य को हासिल करने के प्रयासों का समर्थन करते हैं और आशा करते हैं कि हर किशोरी और महिला जिसे सेनेटरी नैपकिन की आवश्यकता है उसे पर्याप्त मात्रा में नियमित रूप से नैपकिन पैड प्राप्त हो पायेगा. इससे न केवल मासिक धर्म स्वच्छता हासिल होगी बल्कि पेल्विक संक्रमण, सूजन, मस्सिक धर्म सम्बंधित ऐठन, योनिक रिसाव आदि के दर में भी गिरावट आएगी, और किशोरियां बिना नागे स्कूल जा पाएंगी.

शोभा शुक्ला, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
१२ अगस्त २०१५

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