प्रभजोत कौर, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस – सीएनएस
डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मियों को तो भगवान का स्वरुप माना जाता है परन्तु जब ये भगवान के स्वरूप एच आई वी मरीज़ों को हीनभावना से देखते हैं तो मनुष्यता पर से विश्वास ही उठने लगता है यह तो हम सभी जानते हैं कि एच आई वी से ग्रसित होने पर भी दवाओं की मदद से एक सामान्य ज़िन्दगी जी जा सकती है परन्तु समाज एवं डॉक्टर की प्रताड़ना को झेलना बहुत ही कठिन है. यह बात मैं अपने निजी जीवन के अनुभवों के आधार पर कह रही हूँ।
ऐसा लगता है कि आज भी स्वास्थ्य कर्मियों को शायद इस बीमारी के बारे में उचित जानकारी नहीं है. तभी तो वे अक्सर एच आई वी मरीज़ से एक अछूत की तरह का बर्ताव करते हैं। एच आई वी दूषित रक्त के माध्यम से ही संक्रमित होता है--यह किसी एच आई वी पॉजिटिव व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन सम्बन्ध करने, अथवा किसी व्यक्ति को दूषित रक्त चढ़ाने, अथवा संक्रमित सुई के प्रयोग से ही फैलता है। संक्रमित व्यक्ति को छूने से, या उसके साथ खाना खाने से नहीं होता। फिर भी अक्सर अस्पतालों में एच आई वी मरीज़ के बिस्तर के पास एक एच आई वी की तख्ती लटका देना और सबके सामने उसकी एच आई वी अवस्था का ऐलान करना क्या उचित है ? जब स्वास्थ्य कर्मी ही अमानवीय बर्ताव करेंगें तो अन्य साधारण जनता से क्या उम्मीद की जा सकती है?
मेरी एक परिचित को २००४ में एच आई वी संक्रमण हुआ। वे एक पैथोलॉजी लैब में काम करती थीं और वही संक्रमित रक्त के संपर्क में आने से इस रोग से ग्रसित हो गयी. कुछ वर्षों तक वो ए आर टी दवाओं के सहारे चलती रहीं पर बाद में उन्हें कैंसर हो जाने पर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. वहां पर स्वास्थ्य कर्मियों ने उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया. उनके बीएड के पास बड़े बड़े अक्षरों में एच आई वी पॉजिटिव की तख्ती टाँग दी गयी और उन्हें कोई जल्दी लगाता था पर मैंने भी हार नहीं मानी। जब मैंने सीनियर डॉक्टर से बात करी तो उन्होंने बहुत मदद करी. उस तख्ती को हटवाया और अपने मातहतों को उनकी देखभाल के लिए निर्देश भी दिए।
अब तो स्वास्थ्य कर्मियों को इस विषय पर ट्रेनिंग भी दी जाती है परन्तु फिर भी भेदभाव की घटनाएँ होती रहती हैं. कई बार उन्हें लगता है कि ऐसे मरीज़ को छूने भर से वे संक्रमित हो जायेंगे। मेरे निजी अनुभव में सीनियर डॉक्टर ऐसे मरीज़ों के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं पर जूनियर डॉक्टर व नर्सों और वार्ड बॉय आदि का व्यवहार अक्सर बहुत अपमानजनक होता है. कई बार जब एच आई वी पॉजिटिव व्यक्ति को किसी अन्य बीमारी के लिए बाजार से दवा खरीदनी होती है तो अस्पताल के कर्मचारी उसके पर्चे पर एक रिबन का निशान बनाने के बजाय बड़े अक्षरों में एच आई वी पॉजिटिव लिख देते हैं जिससे उस व्यक्ति की गोपनियता नहीं बनी रह पाती है.
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डॉ अमिता पाण्डेय ने भी इस बात की पुष्टि करी कि यदि कोई भी स्वास्थ्य कर्मी किसी एच आई वी पॉजिटिव व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार करे तो इसकी सूचना तुरंत सीनियर डॉक्टर को देनी चाहिए. एक और महत्वपूर्ण बात उन्होंने बताई कि अधिकांश युवा वर्ग में यौन रोगों और यौन संबंधों के बारे में उचित जानकारी का अभाव है जिसके चलते वे अक्सर ऐसे गलत कदम उठा लेते हैं जिनके परिणाम घातक भी हो सकते हैं. सेक्स को लेकर हमारे समाज में जो चुप्पी है उसे तोडना बहुत ज़रूरी है ताकि युवा वर्ग इससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर कर सके तथा स्वयं को स्वस्थ और यौन रोगमुक्त रख सके.
यू पी नेटवर्क ऑफ़ पॉजिटिव पीपुल्स के श्रीकांत जी ने कहा कि वे एच आई वी पॉजिटिव होने पर भी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ एक सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं. पर श्रीकांत जी इस बात से इंकार नहीं करते कि एच आई वी पॉजिटिव व्यक्ति (खासतौर पर यदि वो महिला है) को लेकर लोगों में अनेक प्रकार की गलत धारणाएं हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि कॉन्डोम का प्रयोग इसलिए भी ज़रूरी होता है क्यूंकि अक्सर यह पहले से पता नहीं होता कि दूसरा पार्टनर पॉजिटिव है या नहीं. तो स्वयं की सुरक्षा के लिए तथा अपने पार्टनर की सुरक्षा के लिए पुरुष वर्ग को कॉन्डोम का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे अनेकों रोग हैं जिनसे हम न चाह कर भी ग्रसित हो सकते हैं. चाहे हम कितनी भी सावधानी क्यों न बरतें, डायबिटीज, कैंसर, तथा अन्य नॉन कम्युनिकेबल रोग (असंचारी रोग) हमें अपना शिकार बना सकते हैं, पर अगर समुचित सावधानी बरती जाय तो एच आई वी से १००% बचा जा सकता है. एच आई वी को जड़ से ख़त्म कर देने की तो कोई दवा अभी तक नहीं है पर ए आर टी की दवाएं नियमित रूप से खाने से तथा डॉक्टर के निर्देश पर चलने से इस मर्ज़ के रहते एक सामान्य जीवन व्यतीत किया जा सकता है. एच आई वी पॉजिटिव व्यक्ति भी हमारे आप जैसे ही हैं. उन्हें भी प्यार और सदभावना की ज़रुरत है, नफरत की नहीं.
प्रभजोत कौर, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस – सीएनएस
१४ अगस्त, २०१५
Photo credit: CNS: citizen-news.org |
ऐसा लगता है कि आज भी स्वास्थ्य कर्मियों को शायद इस बीमारी के बारे में उचित जानकारी नहीं है. तभी तो वे अक्सर एच आई वी मरीज़ से एक अछूत की तरह का बर्ताव करते हैं। एच आई वी दूषित रक्त के माध्यम से ही संक्रमित होता है--यह किसी एच आई वी पॉजिटिव व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन सम्बन्ध करने, अथवा किसी व्यक्ति को दूषित रक्त चढ़ाने, अथवा संक्रमित सुई के प्रयोग से ही फैलता है। संक्रमित व्यक्ति को छूने से, या उसके साथ खाना खाने से नहीं होता। फिर भी अक्सर अस्पतालों में एच आई वी मरीज़ के बिस्तर के पास एक एच आई वी की तख्ती लटका देना और सबके सामने उसकी एच आई वी अवस्था का ऐलान करना क्या उचित है ? जब स्वास्थ्य कर्मी ही अमानवीय बर्ताव करेंगें तो अन्य साधारण जनता से क्या उम्मीद की जा सकती है?
मेरी एक परिचित को २००४ में एच आई वी संक्रमण हुआ। वे एक पैथोलॉजी लैब में काम करती थीं और वही संक्रमित रक्त के संपर्क में आने से इस रोग से ग्रसित हो गयी. कुछ वर्षों तक वो ए आर टी दवाओं के सहारे चलती रहीं पर बाद में उन्हें कैंसर हो जाने पर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. वहां पर स्वास्थ्य कर्मियों ने उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया. उनके बीएड के पास बड़े बड़े अक्षरों में एच आई वी पॉजिटिव की तख्ती टाँग दी गयी और उन्हें कोई जल्दी लगाता था पर मैंने भी हार नहीं मानी। जब मैंने सीनियर डॉक्टर से बात करी तो उन्होंने बहुत मदद करी. उस तख्ती को हटवाया और अपने मातहतों को उनकी देखभाल के लिए निर्देश भी दिए।
अब तो स्वास्थ्य कर्मियों को इस विषय पर ट्रेनिंग भी दी जाती है परन्तु फिर भी भेदभाव की घटनाएँ होती रहती हैं. कई बार उन्हें लगता है कि ऐसे मरीज़ को छूने भर से वे संक्रमित हो जायेंगे। मेरे निजी अनुभव में सीनियर डॉक्टर ऐसे मरीज़ों के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं पर जूनियर डॉक्टर व नर्सों और वार्ड बॉय आदि का व्यवहार अक्सर बहुत अपमानजनक होता है. कई बार जब एच आई वी पॉजिटिव व्यक्ति को किसी अन्य बीमारी के लिए बाजार से दवा खरीदनी होती है तो अस्पताल के कर्मचारी उसके पर्चे पर एक रिबन का निशान बनाने के बजाय बड़े अक्षरों में एच आई वी पॉजिटिव लिख देते हैं जिससे उस व्यक्ति की गोपनियता नहीं बनी रह पाती है.
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डॉ अमिता पाण्डेय ने भी इस बात की पुष्टि करी कि यदि कोई भी स्वास्थ्य कर्मी किसी एच आई वी पॉजिटिव व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार करे तो इसकी सूचना तुरंत सीनियर डॉक्टर को देनी चाहिए. एक और महत्वपूर्ण बात उन्होंने बताई कि अधिकांश युवा वर्ग में यौन रोगों और यौन संबंधों के बारे में उचित जानकारी का अभाव है जिसके चलते वे अक्सर ऐसे गलत कदम उठा लेते हैं जिनके परिणाम घातक भी हो सकते हैं. सेक्स को लेकर हमारे समाज में जो चुप्पी है उसे तोडना बहुत ज़रूरी है ताकि युवा वर्ग इससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर कर सके तथा स्वयं को स्वस्थ और यौन रोगमुक्त रख सके.
यू पी नेटवर्क ऑफ़ पॉजिटिव पीपुल्स के श्रीकांत जी ने कहा कि वे एच आई वी पॉजिटिव होने पर भी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ एक सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं. पर श्रीकांत जी इस बात से इंकार नहीं करते कि एच आई वी पॉजिटिव व्यक्ति (खासतौर पर यदि वो महिला है) को लेकर लोगों में अनेक प्रकार की गलत धारणाएं हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि कॉन्डोम का प्रयोग इसलिए भी ज़रूरी होता है क्यूंकि अक्सर यह पहले से पता नहीं होता कि दूसरा पार्टनर पॉजिटिव है या नहीं. तो स्वयं की सुरक्षा के लिए तथा अपने पार्टनर की सुरक्षा के लिए पुरुष वर्ग को कॉन्डोम का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे अनेकों रोग हैं जिनसे हम न चाह कर भी ग्रसित हो सकते हैं. चाहे हम कितनी भी सावधानी क्यों न बरतें, डायबिटीज, कैंसर, तथा अन्य नॉन कम्युनिकेबल रोग (असंचारी रोग) हमें अपना शिकार बना सकते हैं, पर अगर समुचित सावधानी बरती जाय तो एच आई वी से १००% बचा जा सकता है. एच आई वी को जड़ से ख़त्म कर देने की तो कोई दवा अभी तक नहीं है पर ए आर टी की दवाएं नियमित रूप से खाने से तथा डॉक्टर के निर्देश पर चलने से इस मर्ज़ के रहते एक सामान्य जीवन व्यतीत किया जा सकता है. एच आई वी पॉजिटिव व्यक्ति भी हमारे आप जैसे ही हैं. उन्हें भी प्यार और सदभावना की ज़रुरत है, नफरत की नहीं.
प्रभजोत कौर, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस – सीएनएस
१४ अगस्त, २०१५