रितेश कुमार त्रिपाठी, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस – सीएनएस
यह देश के लिए बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि आज़ादी के लगभग ७ दशक बीत जाने के बाद भी हम माहवारी स्वच्छ्ता के मुद्दे पर खुल कर बात नहीं कर सकते, जिससे महिलाएं और किशोरियां विभिन्न प्रकार के संक्रमण का शिकार हो रही हैं. इसके बारे में जानना चाहिए और इस समस्या के समाधान में आ रही दिक्कतों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए. उत्तर प्रदेश में वर्त्तमान समय में लगभग २८ लाख किशोरियां केवल इस समस्या के कारण ही स्कूल छोड़ रही हैं. उत्तर प्रदेश जनसंख्या के लिहाज से बड़ा राज्य है। यहाँ पर मासिक स्राव से संबन्धित स्वच्छता के बारे में जागरूकता का नितांत अभाव है।
इसलिए इस क्षेत्र में प्रदेश सरकार ने कोयम्बटूर के श्री अरुणाचलम जी, जिन्होनें सेनेटरी पैड निर्माण हेतु एक सस्ती मशीन का निर्माण किया है, की सहायता लेने का निर्णय लिया है। अरुणाचलम मुरुगनाथन जी के अनुसार सेनेटरी पैड निर्माण के एक यूनिट की कीमत 75000 रूपये होगी जिससे प्रतिदिन 200-250 सेनेटरी पैड तक बनाये जा सकेगें।अरुणाचलम जी पूरे उत्तर प्रदेश में मासिक स्राव सुरक्षित हो, इसके लिए हर महिला तक सेनेटरी पैड पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जो भी लोग इस व्यवस्था में होंगे उन्हें सही तरीके का प्रशिक्षण दिया जाएगा जिससे वे सैनिटरी पैड के बारे में सही जानकारी लोगों तक पहुंचा सकें और इसकी अच्छाइयों को बता सकें। उन्होंने कहा कि देश की महिलाएं आज भी मासिक स्राव सुरक्षित और स्वच्छ तरीके से नहीं कर पा रही हैं। भारत में आज भी मेट्रो शहरों में १२% महिलाएं ही स्वच्छ मासिक स्राव हेतु सैनिटरी पैड को महत्व देती हैं और अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो यह संख्या केवल ५% ही है जो महिला स्वास्थ्य के सन्दर्भ में कतई उचित नहीं है, इसीलिए उन्होंने उत्तर प्रदेश को लक्षित किया। अरुणाचलम जी को इस बात से ऐतराज़ है कि कम्पनियाँ अपने सेनेटरी पैड्स के विज्ञापनों में आराम की बात करती है लेकिन यह केवल आराम का मामला नहीं वरन उससे भी बढ़कर स्वच्छता की बात है।
किंग जॉर्ज मेडीकल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डॉक्टर अमिता पाण्डेय जी ने बताया कि महिलाओं/किशोरियों में मासिक स्राव पूर्णतया सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन वर्तमान समय में भी कई बार केवल जानकारी के अभाव में, या सामाजिक रूढ़िवादिता की वजह से उन्हें बहुत बड़ी-बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. डा. अमिता पाण्डेय ने कहा कि अगर माहवारी के दिनों में किशोरियां सही तरीके से साफ़ सफाई का ध्यान नहीं रखेंगी तो उन्हें जानलेवा संक्रमण हो सकते है ।
डा. पाण्डेय ने कई केसों की चर्चा भी की जिनमें केवल जानकारी के अभाव के कारण अनेक मातृत्व से संबन्धित समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। कई केस तो डा. साहब ने ऐसे बताये जिसमें मासिक स्वच्छ्ता न बरतने के कारण महिलाएं आगे चलकर मातृत्व सुख पाने से वंचित रह गयीं। इस प्रक्रिया के बारे में सही जानकारी के अभाव में उन्हें कई समस्याओं से जूझना पड़ता है, जो कभी कभी जानलेवा भी हो सकती हैं।
डा. साहब ने कहा कि जब किशोरियों/महिलाओं में मासिक चक्र की प्रक्रिया होने की आयु और समय निश्चित है और प्रत्येक स्त्री के स्त्रीत्व का निर्धारण करती है तो हम इस पर बात करने से कतराते क्यों हैं ? समाज में इसके बारे में चर्चा क्यों नहीं की जाती। इस विषय पर चर्चा होनी चाहिए। और किशोरियों में यह प्रक्रिया प्रारम्भ होने से पहले उनको सही परामर्श देना चाहिए जिससे वे इस प्रक्रिया का अपने जीवन में सही रूप से संतुलन बना सकें जो बेहद जरूरी है। डा. पाण्डेय के अनुसार स्कूल में सेक्स से संबन्धित उचित शिक्षा पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। किशोरावस्था में बहुत से हार्मोनल परिवर्तन शरीर में होते हैं, शिक्षा के माध्यम से किशोर/किशोरी यदि इन्हें जान पाएंगे तो अनेक यौन सम्बन्धी समस्याओं का हल पा सकेंगें। 28 मई को हर वर्ष मासिक स्राव दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा 2014 मई से की गई है।
महिलाओं में मासिक स्राव से संबन्धित स्वच्छ्ता, सम्पूर्ण भारत और विशेषकर उत्तर प्रदेश में बहुत बड़ी समस्या है। इस प्रक्रिया के बारे में जागरूकता की कमी और सामाजिक रूढ़िवादिता प्रमुख कारण हैं। जब कोई किशोरी इस प्रक्रिया से पहली बार गुजरती है तो अधिकांशतः उसे इसके बारे में कोई भी जानकारी नहीं दी जाती है न ही उसके परिवार जन उसे इसके लिए मानसिक रूप से तैयार करते हैं. और यह किशोरी के ऊपर एक तरीके से थोप दिया जाता है। जानकारी न होने की वजह से वे माहवारी के दौरान स्वच्छता पर ध्यान दिये बगैर गंदे कपड़े या अन्य विभिन्न चीजों का प्रयोग करती हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है--जैसे घास या राख की पोटली, कागज़ आदि, जबकि डॉक्टर तथा अन्य विशेषज्ञों का मत है कि इस दौरान किशोरी या महिला को नैपकिन पैड का या स्वच्छ कपड़े का प्रयोग करना चाहिए, तथा अपनी साफ़ सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। मासिक स्राव के समय स्वच्छता का ध्यान न देना महिलाओं में अनेक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देता है जिससे उनका शरीर अनेक प्रकार के संक्रमण का शिकार हो जाता है और उन्हें विभिन्न प्रकार की समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है।
युवा वर्ग के एक प्रतिनिधि, विकास द्विवेदी का मानना है कि उत्तर प्रदेश में २०१७ तक १००% मासिक धर्म सम्बन्धी स्वच्छता हासिल करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी. केवल मुफ्त में सेनेटरी पैड्स बाँटने से काम नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि, "इस अभियान को पूरा करने के लिए जब किशोरियां १० वर्ष की हो रही हों तो उन्हें इस प्रक्रिया के बारे में संवेदन पूर्ण ढंग से समुचित जानकारी देनी चाहिए. क्योंकि किशोरियों को इसके बारे में कुछ पता नहीं होता और उनके जीवन में यह एक नयी घटना होती है. उनको स्कूल में पैड बाँटें जाएँ और महिला शिक्षकों द्वारा उनको परामर्श दिया जाए; किशोरियों को पैड के लाभ, और मासिक धर्म सम्बन्धी बातों को बताएं और यह भी बताएं कि पैड को इस्तेमाल कैसे करना है. यह सरकारी और गैर सरकारी दोनों स्कूलों में किया जाए. जो किशोरियां स्कूल नहीं जा रही हैं वहां पर ग्राम पंचायत और नगर पालिका की भूमिका को प्रभावी किया जाना चाहिए. ग्राम पंचायतों में नियुक्त आशा बहुओं को इसका व्यवस्थित प्रशिक्षण दिया जाए जिससे वो जाकर लोगों को सही तरीके से बता सकें. जब गाँव की महिलाएं इसके लाभ को जानेंगी तो वे इसका सही तरीके से इस्तेमाल कर पाएंगी तथा विभिन्न प्रकार से संक्रमण से भी बच पाएंगी".
उत्तर प्रदेश सरकार के माहवारी स्वच्छता अभियान के अंतर्गत, अरुणाचलम जी की सहायता से, २०१७ तक हर महिला या किशोरी को आसानी से पैड उपलब्ध कराने के लिए जो प्रयास किये जा रहे हैं वह मासिक चक्र के समय आ रही किशोरी और महिलाओं की समस्याओं के समाधान करने की दिशा में एक सराहनीय कदम है. परन्तु इसके अलावा भी बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनको ध्यान में रखना होगा. सरकारी/ गैर-सरकारी शिक्षण संस्थाओं में शौचालय का निर्माण एवं उनकी स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरुरत है. सार्वजनिक शौचालयों का भी निर्माण करवाया जाना चाहिए और उनकी भी स्वच्छता पर ध्यान देना चाहिए, जिससे महिलाएं अपनी निजी स्वच्छ्ता को बेहतर तरीके से बनाये रख सकें.
रितेश, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस – सीएनएस
१५ अगस्त, २०१५
Photo credit: CNS: citizen-news.org |
इसलिए इस क्षेत्र में प्रदेश सरकार ने कोयम्बटूर के श्री अरुणाचलम जी, जिन्होनें सेनेटरी पैड निर्माण हेतु एक सस्ती मशीन का निर्माण किया है, की सहायता लेने का निर्णय लिया है। अरुणाचलम मुरुगनाथन जी के अनुसार सेनेटरी पैड निर्माण के एक यूनिट की कीमत 75000 रूपये होगी जिससे प्रतिदिन 200-250 सेनेटरी पैड तक बनाये जा सकेगें।अरुणाचलम जी पूरे उत्तर प्रदेश में मासिक स्राव सुरक्षित हो, इसके लिए हर महिला तक सेनेटरी पैड पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जो भी लोग इस व्यवस्था में होंगे उन्हें सही तरीके का प्रशिक्षण दिया जाएगा जिससे वे सैनिटरी पैड के बारे में सही जानकारी लोगों तक पहुंचा सकें और इसकी अच्छाइयों को बता सकें। उन्होंने कहा कि देश की महिलाएं आज भी मासिक स्राव सुरक्षित और स्वच्छ तरीके से नहीं कर पा रही हैं। भारत में आज भी मेट्रो शहरों में १२% महिलाएं ही स्वच्छ मासिक स्राव हेतु सैनिटरी पैड को महत्व देती हैं और अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो यह संख्या केवल ५% ही है जो महिला स्वास्थ्य के सन्दर्भ में कतई उचित नहीं है, इसीलिए उन्होंने उत्तर प्रदेश को लक्षित किया। अरुणाचलम जी को इस बात से ऐतराज़ है कि कम्पनियाँ अपने सेनेटरी पैड्स के विज्ञापनों में आराम की बात करती है लेकिन यह केवल आराम का मामला नहीं वरन उससे भी बढ़कर स्वच्छता की बात है।
किंग जॉर्ज मेडीकल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डॉक्टर अमिता पाण्डेय जी ने बताया कि महिलाओं/किशोरियों में मासिक स्राव पूर्णतया सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन वर्तमान समय में भी कई बार केवल जानकारी के अभाव में, या सामाजिक रूढ़िवादिता की वजह से उन्हें बहुत बड़ी-बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. डा. अमिता पाण्डेय ने कहा कि अगर माहवारी के दिनों में किशोरियां सही तरीके से साफ़ सफाई का ध्यान नहीं रखेंगी तो उन्हें जानलेवा संक्रमण हो सकते है ।
डा. पाण्डेय ने कई केसों की चर्चा भी की जिनमें केवल जानकारी के अभाव के कारण अनेक मातृत्व से संबन्धित समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। कई केस तो डा. साहब ने ऐसे बताये जिसमें मासिक स्वच्छ्ता न बरतने के कारण महिलाएं आगे चलकर मातृत्व सुख पाने से वंचित रह गयीं। इस प्रक्रिया के बारे में सही जानकारी के अभाव में उन्हें कई समस्याओं से जूझना पड़ता है, जो कभी कभी जानलेवा भी हो सकती हैं।
डा. साहब ने कहा कि जब किशोरियों/महिलाओं में मासिक चक्र की प्रक्रिया होने की आयु और समय निश्चित है और प्रत्येक स्त्री के स्त्रीत्व का निर्धारण करती है तो हम इस पर बात करने से कतराते क्यों हैं ? समाज में इसके बारे में चर्चा क्यों नहीं की जाती। इस विषय पर चर्चा होनी चाहिए। और किशोरियों में यह प्रक्रिया प्रारम्भ होने से पहले उनको सही परामर्श देना चाहिए जिससे वे इस प्रक्रिया का अपने जीवन में सही रूप से संतुलन बना सकें जो बेहद जरूरी है। डा. पाण्डेय के अनुसार स्कूल में सेक्स से संबन्धित उचित शिक्षा पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। किशोरावस्था में बहुत से हार्मोनल परिवर्तन शरीर में होते हैं, शिक्षा के माध्यम से किशोर/किशोरी यदि इन्हें जान पाएंगे तो अनेक यौन सम्बन्धी समस्याओं का हल पा सकेंगें। 28 मई को हर वर्ष मासिक स्राव दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा 2014 मई से की गई है।
महिलाओं में मासिक स्राव से संबन्धित स्वच्छ्ता, सम्पूर्ण भारत और विशेषकर उत्तर प्रदेश में बहुत बड़ी समस्या है। इस प्रक्रिया के बारे में जागरूकता की कमी और सामाजिक रूढ़िवादिता प्रमुख कारण हैं। जब कोई किशोरी इस प्रक्रिया से पहली बार गुजरती है तो अधिकांशतः उसे इसके बारे में कोई भी जानकारी नहीं दी जाती है न ही उसके परिवार जन उसे इसके लिए मानसिक रूप से तैयार करते हैं. और यह किशोरी के ऊपर एक तरीके से थोप दिया जाता है। जानकारी न होने की वजह से वे माहवारी के दौरान स्वच्छता पर ध्यान दिये बगैर गंदे कपड़े या अन्य विभिन्न चीजों का प्रयोग करती हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है--जैसे घास या राख की पोटली, कागज़ आदि, जबकि डॉक्टर तथा अन्य विशेषज्ञों का मत है कि इस दौरान किशोरी या महिला को नैपकिन पैड का या स्वच्छ कपड़े का प्रयोग करना चाहिए, तथा अपनी साफ़ सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। मासिक स्राव के समय स्वच्छता का ध्यान न देना महिलाओं में अनेक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देता है जिससे उनका शरीर अनेक प्रकार के संक्रमण का शिकार हो जाता है और उन्हें विभिन्न प्रकार की समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है।
युवा वर्ग के एक प्रतिनिधि, विकास द्विवेदी का मानना है कि उत्तर प्रदेश में २०१७ तक १००% मासिक धर्म सम्बन्धी स्वच्छता हासिल करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी. केवल मुफ्त में सेनेटरी पैड्स बाँटने से काम नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि, "इस अभियान को पूरा करने के लिए जब किशोरियां १० वर्ष की हो रही हों तो उन्हें इस प्रक्रिया के बारे में संवेदन पूर्ण ढंग से समुचित जानकारी देनी चाहिए. क्योंकि किशोरियों को इसके बारे में कुछ पता नहीं होता और उनके जीवन में यह एक नयी घटना होती है. उनको स्कूल में पैड बाँटें जाएँ और महिला शिक्षकों द्वारा उनको परामर्श दिया जाए; किशोरियों को पैड के लाभ, और मासिक धर्म सम्बन्धी बातों को बताएं और यह भी बताएं कि पैड को इस्तेमाल कैसे करना है. यह सरकारी और गैर सरकारी दोनों स्कूलों में किया जाए. जो किशोरियां स्कूल नहीं जा रही हैं वहां पर ग्राम पंचायत और नगर पालिका की भूमिका को प्रभावी किया जाना चाहिए. ग्राम पंचायतों में नियुक्त आशा बहुओं को इसका व्यवस्थित प्रशिक्षण दिया जाए जिससे वो जाकर लोगों को सही तरीके से बता सकें. जब गाँव की महिलाएं इसके लाभ को जानेंगी तो वे इसका सही तरीके से इस्तेमाल कर पाएंगी तथा विभिन्न प्रकार से संक्रमण से भी बच पाएंगी".
उत्तर प्रदेश सरकार के माहवारी स्वच्छता अभियान के अंतर्गत, अरुणाचलम जी की सहायता से, २०१७ तक हर महिला या किशोरी को आसानी से पैड उपलब्ध कराने के लिए जो प्रयास किये जा रहे हैं वह मासिक चक्र के समय आ रही किशोरी और महिलाओं की समस्याओं के समाधान करने की दिशा में एक सराहनीय कदम है. परन्तु इसके अलावा भी बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनको ध्यान में रखना होगा. सरकारी/ गैर-सरकारी शिक्षण संस्थाओं में शौचालय का निर्माण एवं उनकी स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरुरत है. सार्वजनिक शौचालयों का भी निर्माण करवाया जाना चाहिए और उनकी भी स्वच्छता पर ध्यान देना चाहिए, जिससे महिलाएं अपनी निजी स्वच्छ्ता को बेहतर तरीके से बनाये रख सकें.
रितेश, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस – सीएनएस
१५ अगस्त, २०१५