नीतू यादव, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
जब हमारे भारतीय समाज में मानव शरीर से जुड़ी प्राथमिक आवश्यकताओं की बात की जाती है तो प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ रोटी, कपड़ा, और मकान का जिक्र करता है किन्तु शरीर के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के विषय पर कोई भी चर्चा नहीं करना चाहता, क्योंकि हमारे समाज में प्रारंभ से ही किशोर-किशोरियों को यह समझाया जाता है कि इस विषय पर चर्चा करना भी पाप है। लैंगिक व प्रजनन स्वास्थ्य युवा पीढी से जुड़ा हुआ बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है. अच्छे स्वास्थ्य के अभाव में जीवन का आनंद कदापि नहीं उठाया जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हमारे समाज में इस विषय पर बात करना भी वर्जित है।
युवावस्था सौन्दर्य व स्वास्थ्य की चरम अवस्था है, इस सौन्दर्य व स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए लैंगिक व प्रजनन स्वास्थ्य जैसे विषय की उचित व सही जानकारी और इस विषय पर युवा पीढी के साथ विचार-विनिमय की आवश्यकता है.
हमारे समाज में प्रारंभ से ही किशोर-किशोरियों में ऐसी मानसिकता का विकास किया जाता है जिसका वे चाहकर भी खंडन नहीं कर पाते। परिणामस्वरूप कई छोटी-छोटी यौन-जनित बीमारियाँ इतना विकराल रूप ले-लेती हैं कि प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में जीवन प्रभावित होता है। आलमनगर की प्रीती मिश्रा का कहना है, "प्रारंभ से ही किशोर-किशोरियों को यौन-प्रजनन स्वास्थ्य के विषय से दूर रखा जाता है तथा इस विषय पर बात करना शिष्टाचार का हनन माना जाता है, किन्तु समाज की यह अवधारणा बिलकुल गलत है। जानकारी के अभाव में हमारी जैसी अनेक लड़कियों को मासिक-धर्म के दौरान अनेक प्रकार की समस्याएं होती हैं किन्तु परिवार में इन समस्याओं का जवाब कोई भी नहीं देना नहीं चाहता। हम अपनी ये समस्याएं किसी के समक्ष नहीं रख सकते क्योंकि इसे अशिष्टता से जोड़कर देखा जाता है।"
मीताश्री घोष, जो फैमिली प्लानिंग एसोसियेशन ऑफ़ इंडिया की लखनऊ शाखा में ट्रेनिंग एजुकेशन एडवोकेसी ऑफिसर हैं, का कहना है कि लोग यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के विषय पर इसलिए बात नहीं करना चाहते क्योंकि समाज में यह विषय वर्जित माना गया है जिसके तहत लैंगिक व प्रजनन स्वास्थ्य विषय पर बात करना सही नहीं माना जाता है। यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य को समाज में यौन सम्बन्ध से जोड़ा जाता है।
परिणामस्वरूप यौन एवं प्रजनन विषय को छुपे रूप में स्वीकार किया गया है। किशोर-किशोरियों को प्रारंभ से ही समझाया जाता है कि लैंगिक व प्रजनन विषय पर शादी से पूर्व चर्चा करना पाप है. परन्तु सच तो यह है कि अगर उन्हें शादी से पहले इस विषय पर जानकारी नहीं दी जायेगी तो इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि शादी के बाद वह अपना जीवन खुशहाल रूप से व्यतीत न कर पाए। इसलिए जरूरी है कि किशोरावस्था से ही इस विषय पर खुलकर चर्चा की जाय तभी सभी के मन से इस विषय के प्रति शर्म का अंत किया जा सकेगा।
स्कूल-कॉलेजों में यौन-प्रजनन स्वास्थ्य को एक विषय का रूप देना अत्यंत आवश्यक है ताकि सभी को सही एवं सामयिक जानकारी प्राप्त हो सके। हमें उम्मीद है कि समाज की यह अवधारणा जल्द ही बदलेगी कि लैंगिक-प्रजनन स्वास्थ्य छुपाने का विषय है। जिस बात से से हमारे आने वाले कल में अंधकार फ़ैल सकता है तो क्यों न हम सब उस बात को आज ही स्पष्ट रूप से समझ लें ताकि हमारा आने वाला कल स्वस्थ एवं खुशहाल हो सके।
नीतू यादव, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
४ जनवरी २०१६
जब हमारे भारतीय समाज में मानव शरीर से जुड़ी प्राथमिक आवश्यकताओं की बात की जाती है तो प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ रोटी, कपड़ा, और मकान का जिक्र करता है किन्तु शरीर के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के विषय पर कोई भी चर्चा नहीं करना चाहता, क्योंकि हमारे समाज में प्रारंभ से ही किशोर-किशोरियों को यह समझाया जाता है कि इस विषय पर चर्चा करना भी पाप है। लैंगिक व प्रजनन स्वास्थ्य युवा पीढी से जुड़ा हुआ बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है. अच्छे स्वास्थ्य के अभाव में जीवन का आनंद कदापि नहीं उठाया जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हमारे समाज में इस विषय पर बात करना भी वर्जित है।
युवावस्था सौन्दर्य व स्वास्थ्य की चरम अवस्था है, इस सौन्दर्य व स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए लैंगिक व प्रजनन स्वास्थ्य जैसे विषय की उचित व सही जानकारी और इस विषय पर युवा पीढी के साथ विचार-विनिमय की आवश्यकता है.
हमारे समाज में प्रारंभ से ही किशोर-किशोरियों में ऐसी मानसिकता का विकास किया जाता है जिसका वे चाहकर भी खंडन नहीं कर पाते। परिणामस्वरूप कई छोटी-छोटी यौन-जनित बीमारियाँ इतना विकराल रूप ले-लेती हैं कि प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में जीवन प्रभावित होता है। आलमनगर की प्रीती मिश्रा का कहना है, "प्रारंभ से ही किशोर-किशोरियों को यौन-प्रजनन स्वास्थ्य के विषय से दूर रखा जाता है तथा इस विषय पर बात करना शिष्टाचार का हनन माना जाता है, किन्तु समाज की यह अवधारणा बिलकुल गलत है। जानकारी के अभाव में हमारी जैसी अनेक लड़कियों को मासिक-धर्म के दौरान अनेक प्रकार की समस्याएं होती हैं किन्तु परिवार में इन समस्याओं का जवाब कोई भी नहीं देना नहीं चाहता। हम अपनी ये समस्याएं किसी के समक्ष नहीं रख सकते क्योंकि इसे अशिष्टता से जोड़कर देखा जाता है।"
मीताश्री घोष, जो फैमिली प्लानिंग एसोसियेशन ऑफ़ इंडिया की लखनऊ शाखा में ट्रेनिंग एजुकेशन एडवोकेसी ऑफिसर हैं, का कहना है कि लोग यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के विषय पर इसलिए बात नहीं करना चाहते क्योंकि समाज में यह विषय वर्जित माना गया है जिसके तहत लैंगिक व प्रजनन स्वास्थ्य विषय पर बात करना सही नहीं माना जाता है। यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य को समाज में यौन सम्बन्ध से जोड़ा जाता है।
परिणामस्वरूप यौन एवं प्रजनन विषय को छुपे रूप में स्वीकार किया गया है। किशोर-किशोरियों को प्रारंभ से ही समझाया जाता है कि लैंगिक व प्रजनन विषय पर शादी से पूर्व चर्चा करना पाप है. परन्तु सच तो यह है कि अगर उन्हें शादी से पहले इस विषय पर जानकारी नहीं दी जायेगी तो इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि शादी के बाद वह अपना जीवन खुशहाल रूप से व्यतीत न कर पाए। इसलिए जरूरी है कि किशोरावस्था से ही इस विषय पर खुलकर चर्चा की जाय तभी सभी के मन से इस विषय के प्रति शर्म का अंत किया जा सकेगा।
स्कूल-कॉलेजों में यौन-प्रजनन स्वास्थ्य को एक विषय का रूप देना अत्यंत आवश्यक है ताकि सभी को सही एवं सामयिक जानकारी प्राप्त हो सके। हमें उम्मीद है कि समाज की यह अवधारणा जल्द ही बदलेगी कि लैंगिक-प्रजनन स्वास्थ्य छुपाने का विषय है। जिस बात से से हमारे आने वाले कल में अंधकार फ़ैल सकता है तो क्यों न हम सब उस बात को आज ही स्पष्ट रूप से समझ लें ताकि हमारा आने वाला कल स्वस्थ एवं खुशहाल हो सके।
नीतू यादव, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
४ जनवरी २०१६