मधुमिता वर्मा, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
यदि हम उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो कुपोषण, साफ़-सफाई का न होना, अस्वच्छता, वायु एवं धुएं का प्रदूषण, खुले में शौच, अज्ञानता, उचित स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव, आदि अनेक ऐसे कारण हैं जिनके चलते ग्रामीण वासियों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को अनेक प्रकार की बीमारियों को झेलना पड़ता है।
स्वयं को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए लोगों में जहाँ अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और उचित जानकारी का होना आवश्यक है वहीँ आशा, आँगनवाड़ी कार्यकर्ता तथा डॉक्टरों का सहयोग भी ज़रूरी है। नीलम मौर्या, आई.आई.एस.डी संस्था के साथ जुड़कर किशोरियों के साथ काम करती हैं। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि, “महिलाओं और बच्चों का स्वास्थ्य अच्छा रखने के लिए सबसे पहले महिलाओं का शिक्षित होना आवश्यक है। पुरुषों की भागीदारी होना भी आवश्यक है क्योंकि तभी वे अपनी पत्नी और बच्चों का ध्यान रख सकते हैं। जब पुरुष और महिला शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्वों के बारे में जानकारी रखेंगे तभी उचित खाद्य पदार्थ को अपने परिवार के भोजन में शामिल करेंगे।
अच्छे स्वास्थ्य के लिए साफ़ सफाई का भी महत्वपूर्ण योगदान है। यदि महिलाओं को जानकारी होगी तो वो जागरूक होंगी और जागरूक होंगी तो अपना और अपने परिवार के स्वास्थ्य का पूर्णतया ध्यान रख पाएंगी।" सरिता देवी, जो एक अनुभवी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं, ने बताया कि महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति सचेत किये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि, "कुछ ग्रामीण महिलाओं में यह गलत धारणा होती है कि गर्भावस्था के दौरान ज्यादा पौष्टिक खाना खाने से गर्भस्त शिशु ज्यादा तंदुरुस्त हो जाता है जिसके कारण प्रसव में परेशानी हो सकती है. यह नितांत गलत है।
गर्भवती होने की स्थिति में उन्हें अपने खान-पान व साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए अन्यथा माँ के साथ-साथ बच्चे को भी अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। गर्भवती महिला को आयरनयुक्त चीजें व हरी सब्जियाँ, फल, दूध आदि अपने भोजन में शामिल करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को समय-समय पर निर्धारित स्वास्थ्य टीके भी लगाने चाहिए।
बच्चे के पैदा होने के बाद भी टीके लगाना आवश्यक है क्योंकि ये टीके बीमारियों से लड़ने की क्षमता रखते हैं जिससे बच्चा हमेशा स्वस्थ रह सकता है। आंगनवाड़ी केंद्र पर प्रत्येक गर्भवती महिला का वजन किया जाता है जिससे उनके साथ-साथ बच्चे के वजन का भी अनुमान हो जाता है। यदि महिला कमजोर है तो उसे तुरंत खान-पान से सम्बंधित जानकारी देना चाहिए।"
बाराबंकी जिले के देवा ब्लॉक की पूर्व माध्यमिक विद्यालय की एक सहायक अध्यापिका कनकजी का भी मानना है कि गाँव की महिलाओं में अशिक्षा के कारण उचित जानकारी का अभाव है, जिसके चलते उन्हें यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक बीमारियों को झेलना पड़ता है। गाँव के परिवेश में गन्दगी भी बहुत होती है। उन्हें सेनेटरी पैड के प्रयोग की सही जानकारी नहीं है। उन्हें माहवारी के समय अस्वच्छता रखने के कारण होने वाले दुष्परिणामों का आभास ही नहीं है। संकोच और शर्म इस मामले में इतनी है कि महिलायें खुलकर व समय रहते अपनी समस्या खुलकर डॉक्टरों को बता ही नहीं पाती हैं।
महिलाओं को स्वास्थ्य से सम्बंधित जानकारियाँ देने में सभी को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए चाहे वो डॉक्टर हों, नर्स हों, आशा बहुएं हों या फिर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हों। महिलाएं स्वस्थ होंगी तभी बच्चे स्वस्थ होंगे और तभी स्वस्थ समाज का सपना साकार हो पायेगा।
मधुमिता वर्मा, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
६ जनवरी, २०१६
यदि हम उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो कुपोषण, साफ़-सफाई का न होना, अस्वच्छता, वायु एवं धुएं का प्रदूषण, खुले में शौच, अज्ञानता, उचित स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव, आदि अनेक ऐसे कारण हैं जिनके चलते ग्रामीण वासियों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को अनेक प्रकार की बीमारियों को झेलना पड़ता है।
स्वयं को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए लोगों में जहाँ अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और उचित जानकारी का होना आवश्यक है वहीँ आशा, आँगनवाड़ी कार्यकर्ता तथा डॉक्टरों का सहयोग भी ज़रूरी है। नीलम मौर्या, आई.आई.एस.डी संस्था के साथ जुड़कर किशोरियों के साथ काम करती हैं। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि, “महिलाओं और बच्चों का स्वास्थ्य अच्छा रखने के लिए सबसे पहले महिलाओं का शिक्षित होना आवश्यक है। पुरुषों की भागीदारी होना भी आवश्यक है क्योंकि तभी वे अपनी पत्नी और बच्चों का ध्यान रख सकते हैं। जब पुरुष और महिला शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्वों के बारे में जानकारी रखेंगे तभी उचित खाद्य पदार्थ को अपने परिवार के भोजन में शामिल करेंगे।
अच्छे स्वास्थ्य के लिए साफ़ सफाई का भी महत्वपूर्ण योगदान है। यदि महिलाओं को जानकारी होगी तो वो जागरूक होंगी और जागरूक होंगी तो अपना और अपने परिवार के स्वास्थ्य का पूर्णतया ध्यान रख पाएंगी।" सरिता देवी, जो एक अनुभवी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं, ने बताया कि महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति सचेत किये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि, "कुछ ग्रामीण महिलाओं में यह गलत धारणा होती है कि गर्भावस्था के दौरान ज्यादा पौष्टिक खाना खाने से गर्भस्त शिशु ज्यादा तंदुरुस्त हो जाता है जिसके कारण प्रसव में परेशानी हो सकती है. यह नितांत गलत है।
गर्भवती होने की स्थिति में उन्हें अपने खान-पान व साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए अन्यथा माँ के साथ-साथ बच्चे को भी अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। गर्भवती महिला को आयरनयुक्त चीजें व हरी सब्जियाँ, फल, दूध आदि अपने भोजन में शामिल करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को समय-समय पर निर्धारित स्वास्थ्य टीके भी लगाने चाहिए।
बच्चे के पैदा होने के बाद भी टीके लगाना आवश्यक है क्योंकि ये टीके बीमारियों से लड़ने की क्षमता रखते हैं जिससे बच्चा हमेशा स्वस्थ रह सकता है। आंगनवाड़ी केंद्र पर प्रत्येक गर्भवती महिला का वजन किया जाता है जिससे उनके साथ-साथ बच्चे के वजन का भी अनुमान हो जाता है। यदि महिला कमजोर है तो उसे तुरंत खान-पान से सम्बंधित जानकारी देना चाहिए।"
बाराबंकी जिले के देवा ब्लॉक की पूर्व माध्यमिक विद्यालय की एक सहायक अध्यापिका कनकजी का भी मानना है कि गाँव की महिलाओं में अशिक्षा के कारण उचित जानकारी का अभाव है, जिसके चलते उन्हें यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक बीमारियों को झेलना पड़ता है। गाँव के परिवेश में गन्दगी भी बहुत होती है। उन्हें सेनेटरी पैड के प्रयोग की सही जानकारी नहीं है। उन्हें माहवारी के समय अस्वच्छता रखने के कारण होने वाले दुष्परिणामों का आभास ही नहीं है। संकोच और शर्म इस मामले में इतनी है कि महिलायें खुलकर व समय रहते अपनी समस्या खुलकर डॉक्टरों को बता ही नहीं पाती हैं।
महिलाओं को स्वास्थ्य से सम्बंधित जानकारियाँ देने में सभी को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए चाहे वो डॉक्टर हों, नर्स हों, आशा बहुएं हों या फिर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हों। महिलाएं स्वस्थ होंगी तभी बच्चे स्वस्थ होंगे और तभी स्वस्थ समाज का सपना साकार हो पायेगा।
मधुमिता वर्मा, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
६ जनवरी, २०१६