बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
देश में यौनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य से जुडी सामाजिक चुप्पी, भ्रम व मिथक की वजह से हर रोज किशोर व युवा महिलाओं से जुडे यौन उत्पीडन के कई मामले सामने आते है। यह वह मामले होते है जिसमें यौन उत्पीडन की शिकार महिला या तो पुलिस के पास शिकायत के रूप में लेकर जाती है, या अत्यन्त जघन्य होने की दशा में ही सामने आ पाते है। लेकिन ज्यादातर मामलों में यह देखा गया है कि यौनिक हिंसा की शिकार होने वाली महिला अपने ऊपर होने वाले यौनिक अत्याचार को या तो चुपचाप सहती रहती है या परिवार के लोगों द्वारा ऐसे मामलो को दबा दिया जाता है।
यौन हिंसा यौनिक व प्रजनन स्वास्थ्य के अधिकार से जुडा एक अहम मुद्दा है ऐसे में अगर किसी किशोर-किशोरी या युवा महिला को इस मुद्दे पर उचित जानकारी व सही सलाह न मिले तो यौन हिंसा के शिकार होने की प्रबल सम्भावना होती है।
भारत में अगर देखा जाये तो ज्यादातर मामलों में यौन हिंसा के मामलों को छुपा लेते हैं। इस चुप्पी का एक अहम कारण लोगों की यौनिक हिंसा के मामले को लेकर एक घृणित सोच है। लोगों का मानना है कि अगर कोई महिला बलात्कार का शिकार हो जाये तो वह जघन्य अपराध कर बैठी है जबकि इसमें पीडित महिला की कोई गलती नही होती है।
ऐसे में यौन हिंसा के मामलों के सामने आने से पीडिता के कैरियर, सामाजिक अस्तित्व, पढाई लिखाई , शादी विवाद जैसे अहम मुद्दे भी प्रभावित होते है। इसलिए यौन हिंसा की शिकार महिला अपना अस्तित्व बचाने के चक्कर में लम्बे समय तक चुपचाप अपने ऊपर होने वाले अत्याचार को सहती रहती है जिसकी वजह से सामूहिक दुराचार जैसे मामले सामने आते है या पीडित महिला आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर हो जाती है।
भारत में अगर यौन उत्पीडन मामलो पर गौर किया जाये तो ज्यादातर मामलो में यौन उत्पीडन की शिकार महिलायें 30 वर्ष से कम उम्र की होती है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार उत्तर प्रदेश में वर्ष 2014 में बलात्कार के जो मामले पुलिस में दर्ज हुए उसमें 18 से 30 वर्ष के बीच में 1397 बलात्कार हुए जबकि 16-18 वर्ष के बीच में 642 और 12-16 वर्ष के बीच 640 मामले दर्ज किये गये। जबकि 6-12 वर्ष के बीच 173 व 6 वर्ष के कम बलात्कार के 52 मामले दर्ज हुए।
यह वह आंकडे है जिसमें पीडित या पीडित के परिवार के लोगो द्वारा हिम्मत करके पुलिस में शिकायत दर्ज करायी गयी। अगर पुलिस विभाग के आंकडो पर गौर किया जाय तो यह बेहद चौंकाने वाले हैं क्योंकि जो किशोर या युवा महिला बलात्कार की शिकार हुई उसमें उसके साथ बलात्कार करने वाले ज्यादातर लोग उनके सगे सम्बन्धी, नजदीकी रिष्तेदार व जानने वाले लोग थे।
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आकंडो के अनुसार वर्ष 2014 में भारत में यौन शोषण की जो घटनाए हुई उसमें सगे सम्बन्धियों या जानने वाले लोगो द्वारा 32187 मामलों में महिलाओ के साथ रेप किया गया। इसमें अकेले उत्तर प्रदेष के आंकडे पर अगर गौर करे तो सगे सम्बन्धियों द्वारा बलात्कार किये जाने के 3467 मामले पुलिस में दर्ज किये गये, जिसमें भाई, बाप, या दादा द्वारा 51 रेप, परिवार के सदस्यो द्वारा 52, रिश्तेदारों द्वारा 206, पडोसियों द्वारा 1111, सहकर्मी द्वारा 94, व किसी न किसी रूप से जानने वाले लोगो द्वारा 1711 बलात्कार किये जाने के मामले सामने आये। सगे सम्बन्धियों द्वारा रेप किये जाने के सर्वाधिक मामले मध्य प्रदेश (5076) में दर्ज किये गये।
उपरोक्त आंकडो पर अगर गौर किया जाये तो यह बहुत ही कम है क्योंकि सगे सम्बन्धियों द्वारा किये गये ज्यादातर बलात्कार के मामलो को छिपा लिया जाता है। इसलिए यह आंकडे थानो पर दर्ज होने वाले मामलो से कई गुना ज्यादा हो सकते हैं। यौनिक व प्रजनन स्वास्थ्य के इस मुद्दे पर सन्तकबीरनगर जिले में प्रधानाध्यापिका अनुपमा शुक्ल का कहना है कि हम अक्सर लड़कियों के मन में बचपन से ही सेक्स को लेकर भय पैदा कर देते हैं। परिवार के लोग लडकियों को यह कहकर डराते रहते है कि उनकी अस्मत या इज्जत ही सब कुछ है। ऐसे में उनके साथ अगर कोई ऐसी-वैसी घटना घट जाये तो वह घर से बाहर न जाने पाये जिससे घटना को अंजाम देने वाले लोगो का हौसला बढता जाता है।
अनुपमा शुक्ल के अनुसार परिवार व अध्यापको की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने बच्चो को समय से शारीरिक बदलाव के बारे में जानकारी दें जिससे किशोर व युवा भटकने न पाये। साथ ही बच्चों को शरीर के गुड टच व बैडटच जैसे संवेदनशील मुद्दे पर जानकारी देनी जरूरी है। अगर बच्चा इन्टरनेट का इस्तेमाल कर रहा है तो परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी बनती है कि इन्टरनेट पर बच्चो द्वारा की जा रही क्रियाओं व प्रतिक्रियाओं पर नजर रखें इससे बच्चों को यौनिक व प्रजनन स्वास्थ्य से जुडी गलत जानकारियों की तरफ जाने से बचाया जा सकता है। वहीं पोर्न साइटो के इस्तेमाल पर भी रोक लगायी जा सकती है। सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि यौन हिंसा की घटनाओं में कमी लाने के लिए स्कूल व कालेज स्तर पर यौन शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाय इससे उम्र के साथ होने वाले शारीरिक बदलाव की दशा में बच्चों को उचित मार्ग दर्शन दिया जाना सम्भव होगा। यौन शिक्षा से छात्र छात्राओं में बनने वाले यौन सम्बन्धों पर भी रोक लगाया जा सकता है।
बस्ती जिले में शिक्षा विभाग से जुडे जिला स्काउट मास्टर कुलदीप सिंह का कहना है कि अगर हमें युवा, महिला व किशोरो के साथ होने वाली बलात्कार की घटनाओं पर रोक लगानी है तो हमें इस मुद्दे पर युवाओं की भागीदारी तय करनी होगी, जिसमें स्कूल कालेज महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्हें समय-समय पर यौनिक व प्रजनन स्वास्थ्य से जुडे मुद्दे पर जागरूक करना होगा साथ उन्हें बताना होगा कि अगर उनके साथ किसी तरह की छेड-छाड या यौन शोषण की घटना होती है तो वह परिवार के सदस्यों को बताये, इसका विरोध करें और दोषी को सजा दिलाने के लिए पुलिस में शिकायत जरूर दर्ज करायें, इससे दोषियों का मनोबल नही बढने पाता है इस प्रकार यौनिक शोषण के मामले में कमी लायी जा सकती है।
28 वर्षीय युवा पत्रकार भृगुनाथ त्रिपाठी का कहना है की हाल के दशकों में किशोर-किशोरियों के साथ यौन उत्पीडन की घटनाओं में इजाफा हुआ है इसका कारण अभिवावकों की तरफ से अपने बच्चों की गतिविधियों व पर ध्यान न देना रहा है ऐसे में कोई भी किशोर-किशोरी के साथ यौन उत्पीडन जैसे घटना को अंजाम दे सकता है। उनका कहना है कि एक अभिवावक के तौर पर बच्चे के हर गतिविधि पर ध्यान देना चाहिए कि वह कहाँ उठता बैठता है, किन-किन लोगों से मिलता है अगर इनमे किसी की गतिविधि संदिग्ध लगे तो उससे अपने बच्चे को सावधान रहने की हिदायत जरुर दें और स्वयं भी ध्यान रखें।
सिद्धार्थनगर जिले में पेशे से चिकित्सक डा0 मृत्युंजेश्वर मिश्र का कहना है कि ज्यादातर यौन शोषण के मामले कम उम्र के लडके-लडकियों व युवाओं के साथ घटित होते हैं, जिसमें मामले को छिपाने के चलते पीडित को तमाम तरह की परेशानियों से जूझना पडता है। इसमें कुंआरी मां बनना, कम उम्र में असुरक्षित गर्भपात, व यौन संक्रमण जैसे तमाम मामले सामने आते है। कभी-कभी यौन शोषण की शिकार किशोर-किशोरी या महिला घृणित समाज के सोच के चलते आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेते है, ऐसे में माता पिता या परिवार के सदस्यों को चाहिए कि सामाजिक मिथक व भ्रम से दूर होकर यौन शोषण की शिकार हुए बच्चों को भावात्मक सहारा दें। साथ ही समाज को अपने सोच में बदलाव लाने की जरूरत है। यौन शोषण की शिकार महिला के साथ समाज के लोगों को सामान्य व्यवहार कर उन्हें स्वीकार करना होगा और दोषी लोगों के खिलाफ कार्यवाही के लिए उन्हें आगे आना होगा।
यौनिक व प्रजनन स्वास्थ्य से जुडे उपरोक्त आंकडो व विशेषज्ञों के विचारों पर अगर गौर किया जाये तो उसका यह सार निकलता है कि किशोरों व युवाओं के साथ यौनिक शोषण के मामलों में कमी लाने के लिए समाज, परिवार के लोगों व सगे सम्बन्धियों को चुप्पी तोडनी होगी चाहे यौन शोषण का दोषी उसका अपना सगा ही क्यो न हो और उसे सजा दिलाने के लिए आगे भी आना होगा। साथ ही स्कूल, कालेज व अभिभावक के स्तर पर भावात्मक रिष्ते बनाकर उन्हें उचित मार्ग भी दिया जाना जरूरी है।
(यह लेख अनुराग लक्ष्य मासिक पत्रिका में पहले से ही प्रकाशित है)
बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
५ जनवरी २०१६
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फोटो क्रेडिट: सीएनएस |
यौन हिंसा यौनिक व प्रजनन स्वास्थ्य के अधिकार से जुडा एक अहम मुद्दा है ऐसे में अगर किसी किशोर-किशोरी या युवा महिला को इस मुद्दे पर उचित जानकारी व सही सलाह न मिले तो यौन हिंसा के शिकार होने की प्रबल सम्भावना होती है।
भारत में अगर देखा जाये तो ज्यादातर मामलों में यौन हिंसा के मामलों को छुपा लेते हैं। इस चुप्पी का एक अहम कारण लोगों की यौनिक हिंसा के मामले को लेकर एक घृणित सोच है। लोगों का मानना है कि अगर कोई महिला बलात्कार का शिकार हो जाये तो वह जघन्य अपराध कर बैठी है जबकि इसमें पीडित महिला की कोई गलती नही होती है।
ऐसे में यौन हिंसा के मामलों के सामने आने से पीडिता के कैरियर, सामाजिक अस्तित्व, पढाई लिखाई , शादी विवाद जैसे अहम मुद्दे भी प्रभावित होते है। इसलिए यौन हिंसा की शिकार महिला अपना अस्तित्व बचाने के चक्कर में लम्बे समय तक चुपचाप अपने ऊपर होने वाले अत्याचार को सहती रहती है जिसकी वजह से सामूहिक दुराचार जैसे मामले सामने आते है या पीडित महिला आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर हो जाती है।
भारत में अगर यौन उत्पीडन मामलो पर गौर किया जाये तो ज्यादातर मामलो में यौन उत्पीडन की शिकार महिलायें 30 वर्ष से कम उम्र की होती है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार उत्तर प्रदेश में वर्ष 2014 में बलात्कार के जो मामले पुलिस में दर्ज हुए उसमें 18 से 30 वर्ष के बीच में 1397 बलात्कार हुए जबकि 16-18 वर्ष के बीच में 642 और 12-16 वर्ष के बीच 640 मामले दर्ज किये गये। जबकि 6-12 वर्ष के बीच 173 व 6 वर्ष के कम बलात्कार के 52 मामले दर्ज हुए।
यह वह आंकडे है जिसमें पीडित या पीडित के परिवार के लोगो द्वारा हिम्मत करके पुलिस में शिकायत दर्ज करायी गयी। अगर पुलिस विभाग के आंकडो पर गौर किया जाय तो यह बेहद चौंकाने वाले हैं क्योंकि जो किशोर या युवा महिला बलात्कार की शिकार हुई उसमें उसके साथ बलात्कार करने वाले ज्यादातर लोग उनके सगे सम्बन्धी, नजदीकी रिष्तेदार व जानने वाले लोग थे।
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आकंडो के अनुसार वर्ष 2014 में भारत में यौन शोषण की जो घटनाए हुई उसमें सगे सम्बन्धियों या जानने वाले लोगो द्वारा 32187 मामलों में महिलाओ के साथ रेप किया गया। इसमें अकेले उत्तर प्रदेष के आंकडे पर अगर गौर करे तो सगे सम्बन्धियों द्वारा बलात्कार किये जाने के 3467 मामले पुलिस में दर्ज किये गये, जिसमें भाई, बाप, या दादा द्वारा 51 रेप, परिवार के सदस्यो द्वारा 52, रिश्तेदारों द्वारा 206, पडोसियों द्वारा 1111, सहकर्मी द्वारा 94, व किसी न किसी रूप से जानने वाले लोगो द्वारा 1711 बलात्कार किये जाने के मामले सामने आये। सगे सम्बन्धियों द्वारा रेप किये जाने के सर्वाधिक मामले मध्य प्रदेश (5076) में दर्ज किये गये।
उपरोक्त आंकडो पर अगर गौर किया जाये तो यह बहुत ही कम है क्योंकि सगे सम्बन्धियों द्वारा किये गये ज्यादातर बलात्कार के मामलो को छिपा लिया जाता है। इसलिए यह आंकडे थानो पर दर्ज होने वाले मामलो से कई गुना ज्यादा हो सकते हैं। यौनिक व प्रजनन स्वास्थ्य के इस मुद्दे पर सन्तकबीरनगर जिले में प्रधानाध्यापिका अनुपमा शुक्ल का कहना है कि हम अक्सर लड़कियों के मन में बचपन से ही सेक्स को लेकर भय पैदा कर देते हैं। परिवार के लोग लडकियों को यह कहकर डराते रहते है कि उनकी अस्मत या इज्जत ही सब कुछ है। ऐसे में उनके साथ अगर कोई ऐसी-वैसी घटना घट जाये तो वह घर से बाहर न जाने पाये जिससे घटना को अंजाम देने वाले लोगो का हौसला बढता जाता है।
अनुपमा शुक्ल के अनुसार परिवार व अध्यापको की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने बच्चो को समय से शारीरिक बदलाव के बारे में जानकारी दें जिससे किशोर व युवा भटकने न पाये। साथ ही बच्चों को शरीर के गुड टच व बैडटच जैसे संवेदनशील मुद्दे पर जानकारी देनी जरूरी है। अगर बच्चा इन्टरनेट का इस्तेमाल कर रहा है तो परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी बनती है कि इन्टरनेट पर बच्चो द्वारा की जा रही क्रियाओं व प्रतिक्रियाओं पर नजर रखें इससे बच्चों को यौनिक व प्रजनन स्वास्थ्य से जुडी गलत जानकारियों की तरफ जाने से बचाया जा सकता है। वहीं पोर्न साइटो के इस्तेमाल पर भी रोक लगायी जा सकती है। सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि यौन हिंसा की घटनाओं में कमी लाने के लिए स्कूल व कालेज स्तर पर यौन शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाय इससे उम्र के साथ होने वाले शारीरिक बदलाव की दशा में बच्चों को उचित मार्ग दर्शन दिया जाना सम्भव होगा। यौन शिक्षा से छात्र छात्राओं में बनने वाले यौन सम्बन्धों पर भी रोक लगाया जा सकता है।
बस्ती जिले में शिक्षा विभाग से जुडे जिला स्काउट मास्टर कुलदीप सिंह का कहना है कि अगर हमें युवा, महिला व किशोरो के साथ होने वाली बलात्कार की घटनाओं पर रोक लगानी है तो हमें इस मुद्दे पर युवाओं की भागीदारी तय करनी होगी, जिसमें स्कूल कालेज महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्हें समय-समय पर यौनिक व प्रजनन स्वास्थ्य से जुडे मुद्दे पर जागरूक करना होगा साथ उन्हें बताना होगा कि अगर उनके साथ किसी तरह की छेड-छाड या यौन शोषण की घटना होती है तो वह परिवार के सदस्यों को बताये, इसका विरोध करें और दोषी को सजा दिलाने के लिए पुलिस में शिकायत जरूर दर्ज करायें, इससे दोषियों का मनोबल नही बढने पाता है इस प्रकार यौनिक शोषण के मामले में कमी लायी जा सकती है।
28 वर्षीय युवा पत्रकार भृगुनाथ त्रिपाठी का कहना है की हाल के दशकों में किशोर-किशोरियों के साथ यौन उत्पीडन की घटनाओं में इजाफा हुआ है इसका कारण अभिवावकों की तरफ से अपने बच्चों की गतिविधियों व पर ध्यान न देना रहा है ऐसे में कोई भी किशोर-किशोरी के साथ यौन उत्पीडन जैसे घटना को अंजाम दे सकता है। उनका कहना है कि एक अभिवावक के तौर पर बच्चे के हर गतिविधि पर ध्यान देना चाहिए कि वह कहाँ उठता बैठता है, किन-किन लोगों से मिलता है अगर इनमे किसी की गतिविधि संदिग्ध लगे तो उससे अपने बच्चे को सावधान रहने की हिदायत जरुर दें और स्वयं भी ध्यान रखें।
सिद्धार्थनगर जिले में पेशे से चिकित्सक डा0 मृत्युंजेश्वर मिश्र का कहना है कि ज्यादातर यौन शोषण के मामले कम उम्र के लडके-लडकियों व युवाओं के साथ घटित होते हैं, जिसमें मामले को छिपाने के चलते पीडित को तमाम तरह की परेशानियों से जूझना पडता है। इसमें कुंआरी मां बनना, कम उम्र में असुरक्षित गर्भपात, व यौन संक्रमण जैसे तमाम मामले सामने आते है। कभी-कभी यौन शोषण की शिकार किशोर-किशोरी या महिला घृणित समाज के सोच के चलते आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेते है, ऐसे में माता पिता या परिवार के सदस्यों को चाहिए कि सामाजिक मिथक व भ्रम से दूर होकर यौन शोषण की शिकार हुए बच्चों को भावात्मक सहारा दें। साथ ही समाज को अपने सोच में बदलाव लाने की जरूरत है। यौन शोषण की शिकार महिला के साथ समाज के लोगों को सामान्य व्यवहार कर उन्हें स्वीकार करना होगा और दोषी लोगों के खिलाफ कार्यवाही के लिए उन्हें आगे आना होगा।
यौनिक व प्रजनन स्वास्थ्य से जुडे उपरोक्त आंकडो व विशेषज्ञों के विचारों पर अगर गौर किया जाये तो उसका यह सार निकलता है कि किशोरों व युवाओं के साथ यौनिक शोषण के मामलों में कमी लाने के लिए समाज, परिवार के लोगों व सगे सम्बन्धियों को चुप्पी तोडनी होगी चाहे यौन शोषण का दोषी उसका अपना सगा ही क्यो न हो और उसे सजा दिलाने के लिए आगे भी आना होगा। साथ ही स्कूल, कालेज व अभिभावक के स्तर पर भावात्मक रिष्ते बनाकर उन्हें उचित मार्ग भी दिया जाना जरूरी है।
(यह लेख अनुराग लक्ष्य मासिक पत्रिका में पहले से ही प्रकाशित है)
बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
५ जनवरी २०१६