यूपी में गैर-संक्रामक रोग कम होने के बजाय बढ़ोतरी पर

शोभा शुक्ला, सीएनएस निदेशक
[English] [सीएनएस फोटो] भारत ने विश्व के अन्य देशों के साथ, सितम्बर २०१५ में सतत विकास लक्ष्य २०३० को पारित किया था, जिनमें से एक लक्ष्य ३.४ है: रोकथाम, नियंत्रण और उपचार के द्वारा, गैर-संक्रामक रोगों से होने वाली मृत्यु दर को २०३० तक १/३ कम करना. परन्तु यदि हम उत्तर प्रदेश के आंकड़ों के देखें तो प्रमुख गैर-संक्रामक रोगों की दर में कमी होने के बजाय बढ़ोतरी हो रही है. सीएनएस की निदेशक शोभा शुक्ला ने कहा कि "उत्तर प्रदेश को २०३० या उससे पहले सभी सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने चाहिए."

लखनऊ विश्वविद्यालय और डॉ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों को संबोधित करते हुए, किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने जानलेवा गैर-संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ाने वाले प्रमुख कारण, तम्बाकू, पर विस्तार से चर्चा करी.
प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त

उत्तर प्रदेश में पिछले सालों से न केवल तंबाकू सेवन एवं उससे प्राप्त राजस्व बढ़ रहा है बल्कि ह्रदय रोग दर भी बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश सरकार के कमर्शियल कर विभाग ने 2012-2013 में रुपए 50 करोड़ प्राप्त किए और 2013-2014 में रुपए 255 करोड़ प्राप्त किए – यानि कि 415 प्रतिशत की कर वृद्धि! इसी तरह हृदय रोग स्तर में भी बढ़ोतरी हुई। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के ह्रदय रोग विभाग के प्रोफेसर (डॉ) ऋषि सेठी के शोध के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 2011-2012 में 4500 जीवन रक्षक अंजियो-प्लास्टी हुईं और 2000 पेसमेकर लगाए गए। पिछले साल की तुलना में इन हृदय रोग उपचार विधियों में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गयी है।

प्रदेश में  मधुमेह भी बढ़ रहा है, और मोटापा भी जो अत्यंत चिंताजनक है. कैंसर, मधुमेह, ह्रदय रोग, पक्षाघात के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश की ४.३२% जनता में मधुमेह होने की सम्भावना है.

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् के आंकड़ों के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश में न केवल सबसे अधिक कैंसर के रोगी हैं बल्कि कैंसर मृत्यु दर भी सर्वाधिक है. २०११ और २०१४ के बीच में कैंसर दर प्रदेश में लगभग १० प्रतिशत से बढ़ी है. २०१४ में प्रदेश में कैंसर के 44% रोगी मृत हुए.

वैश्विक युवा तम्बाकू सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में तम्बाकू सेवन आरंभ करने की औसत आयु 17.३ वर्ष है. यदि युवा तम्बाकू सेवन आरंभ ही न करें तो इसका जन स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और गैर संक्रामक रोगों की दर में भी अपेक्षित गिरावट आएगी.

हुक्का पीना स्वास्थ्य के लिए खतरनाक 
इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट टीबी एंड लंग डीजीस के डॉ एलिफ दगली ने बताया कि "लोगों में ये भ्रामक धारणा है कि हुक्का पीना सिगरेट पीने के मुकाबले कम खतरनाक है, जबकि सत्य तो यह है कि एक घंटे हुक्का पीना लगभग १०० सिगरेट पीने के बराबर हो सकता है. हुक्के के धुंए में कैंसर-जनक अनेक हानिकारक पदार्थ होते हैं. इसके उपयोग से संक्रमण भी फ़ैल सकते हैं."

जब २ अक्टूबर २००८ से भारत में सार्वजनिक स्थानों पर तम्बाकू धूम्रपान करना प्रतिबंधित है तो फिर यह कानून हुक्का पीने पर क्यों नहीं लागू होता है? तम्बाकू के धुंए में जो धूम्रपान न करने वाले लोग सांस ले रहे हैं उनमें भी फेफड़े के कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. हुक्का आदि पर भी अन्य तम्बाकू उत्पादनों की तरह चित्रमय चेतावनी लगी होनी चाहिए और तम्बाकू कर भी लगने चाहिए.

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने बताया कि “लगभग ५०% तम्बाकू जनित मृत्यु 35-69 वर्ष के दौरान होती है। धूम्रपान से मरने वाले अधिकांश लोगों ने तम्बाकू सेवन युवावस्था में आरम्भ किया था। तम्बाकू व्यसनियों को नशा मुक्ति के लिये विशेषज्ञों से मदद लेनी चाहिए. शोध के अनुसार अक्सर तम्बाकू सेवन करने वाले लोग तम्बाकू-जनित रोगों, विकृतियों और मृत्यु से अनभिज्ञ होते हैं. जो तम्बाकू व्यसनी इन खतरों को संजीदगी से समझते हैं, उनकी नशा-मुक्त होने की सम्भावना अधिक होती है."

उत्तर प्रदेश में जन स्वास्थ्य सेवाओं पर पहले से ही अत्यधिक भार है. यदि जिन गैर-संक्रामक रोगों से बचाव मुमकिन है उनसे जनता को बचाया जाए तो स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ने वाले बोझ में तो गिरावट आएगी ही, साथ ही जानलेवा गैर संक्रामक रोगों से असामयिक मृत्यु दर में भी कमी आएगी.

राहुल कुमार द्विवेदी, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
१२ फरवरी २०१६