७०वें नैटकान में टीबी और श्वास रोगों के नियंत्रण का आह्वान

सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस [English]
२१ फरवरी २०१६ को ७०वें टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी रोगों के राष्ट्रीय अधिवेशन का समापन दिवस था.
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग, राष्ट्रीय टीबी संगठन, और उत्तर प्रदेश टीबी संगठन के संयुक्त तत्वाधान में लखनऊ में २०-२१ फरवरी २०१६ के दौरान आयोजित हो रहा है ७०वां टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी रोगों पर राष्ट्रीय अधिवेशन (नैटकान).

किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष और नैटकान के आयोजक-सचिव प्रोफेसर (डॉ) सूर्य कान्त ने बताया कि न सिर्फ टीबी बल्कि अन्य श्वास रोगों को भी ऐतिहासिक रूप से नज़रंदाज़ किया गया है. लगभग २५ प्रतिशत जनसँख्या एलर्जी से जूझ रही है और इनमें से ५ प्रतिशत दमा से. विकसित देशों जैसे कि अमरीका में भी दमा १० प्रतिशत प्रति वर्ष के दर से बढ़ रहा है. बाल निमोनिया आज भी ५ साल से कम आयु के बच्चों के लिये मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है. तम्बाकू सेवन जनित क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) भी लम्बे अरसे से नज़रंदाज़ किया गया है जबकि तम्बाकू सेवन विशेषकर कि सिगरेट और बीड़ी सेवन चिंताजनक दरों में व्याप्त है. भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के केंद्रीय टीबी डिवीज़न ने पुनरीक्षित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के बारे में अधिक जानकारी दी – भारत में वर्त्तमान में टीबी दर, दवा प्रतिरोधक टीबी, निजी स्वास्थ्य सेवाओं के साथ सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का समन्वयन, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की भूमिका आदि.

तमाम प्रकार के कैंसर का सबसे पड़ा कारण है (जिससे बचाव मुमकिन है): तम्बाकू सेवन. २० प्रतिशत कैंसर मृत्यु और ७०-८० प्रतिशत फेफड़े के कैंसर से मृत्यु का कारण है तम्बाकू. यदि तम्बाकू नशा उन्मूलन सेवाएँ प्रभावकारी ढंग से प्रदान की जाएँ तो न केवल फेफड़े के कैंसर के दर में गिरावट आएगी बल्कि अन्य प्रकार के कैंसर और तम्बाकू से होने वाली जानलेवा रोगों के दर में भी भरी कमी आएगी (जैसे कि ह्रदय रोग, पक्षघात आदि). नैटकान में पिके सेन टीबी एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया गोल्ड मैडल व्याखानमाला डॉ केबी गुप्ता को पुरुस्कृत की गयी. इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट टीबी एंड लंग डिजीज (द यूनियन) ने ‘टीबी मुक्त भारत के आह्वान’ जो अप्रैल २०१५ को जारी हुआ था उसके बारे में अवगत कराया.

इंडियन चेस्ट सोसाइटी के नव-निर्वाचित अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ) सूर्य कान्त ने बताया कि पुनरीक्षित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के लागू होने के बाद पिछले दशकों में भारत ने टीबी नियंत्रित करने में प्रशंसनीय बढ़ोतरी की है पर अभी भी चुनौतियाँ बरकरार हैं. दवा प्रतिरोधक टीबी और टीबी-एचआईवी की सेवाएँ पूरे देश में उपलब्ध करवा दी गयी हैं, ७०,००० एमडीआर-टीबी और २००० एक्सडीआर-टीबी के रोगियों को उपचार दिया गया है, टीबी उपचार और देखभाल के लिए मानक बनाये गए हैं (स्टैण्डर्ड ऑफ़ टीबी केयर इन इंडिया), इन्टरनेट-आधारित ‘निक्षे’ से देश भर से टीबी सम्बंधित आंकड़ें उसी समय प्राप्त होते हैं, सर्वप्रथम दवा प्रतिरोधक टीबी सर्वे को २०१४ में आरंभ किया गया था, आदि.


अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
प्रोफेसर (डॉ) सूर्य कान्त, ७०वें नैटकान के आयोजन-सचिव: 94150-16858

सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस 
फरवरी १६, २०१६