सिटीजन न्यूज सर्विस [English]
भारत सरकार एवं दुनिया की अन्य सरकारों ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पिछले वर्ष सतत विकास लक्ष्य २०३० को पारित किया है, जिनका लक्ष्य ३.३ है २०३० तक टीबी समाप्त करना. टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी रोगों के विशेषज्ञों ने ७०वें टीबी और श्वास रोगों पर राष्ट्रीय अधिवेशन (नैटकान), जिसका उद्घाटन उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाएक ने किया, यह अपील की कि टीबी दरों में गिरावट तेज़ी से आये जिससे कि २०३० के लक्ष्य समय से या समय से पूर्व ही पूरे हो सकें. किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग, राष्ट्रीय टीबी संगठन, और उत्तर प्रदेश टीबी टीबी के रोगियों की जांच जितनी शीघ्र हो सके उतनी जल्दी होनी चाहिए, समुदाय से जुड़ कर साथ में कार्यरत रहना चाहिए जिससे कि रोगी को अपना उपचार सफलतापूर्वक समाप्त करने में मदद मिले.
हर टीबी रोगी को न केवल सही जांच की आवश्यकता है बल्कि इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि उस व्यक्ति पर कौन सी दवाएं कारगर है, और कौन से दवाओं से उसे दवा प्रतिरोधकता हो गयी है. प्रभावकारी दवाओं से उपचार के बाद ही टीबी का सफलतापूर्वक उपचार संभव है. अब भारत में ६२ बड़ी प्रयोगशालाएं हैं जहाँ अत्याधुनिक जांचें उपलब्ध हैं जैसे कि सॉलिड और लिक्विड कल्चर, लाइन प्रोब एससे (एलपीए) आदि.
संगठन के संयुक्त तत्वाधान में लखनऊ में २०-२१ फरवरी २०१६ के दौरान आयोजित हो रहा है ७०वां टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी रोगों पर राष्ट्रीय अधिवेशन (नैटकान). किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष और नैटकान के आयोजक-सचिव प्रोफेसर (डॉ) सूर्य कान्त ने बताया कि भारत ने २ करोड़ रोगियों को सफलता पूर्वक टीबी प्रदान किया है और ३२ लाख जानों को बचाया का सका है – यह भारत सरकार की बड़ी उपलब्धि है. पर अभी भी बहुत कार्य शेष है. औसतन १० लाख रोगी प्रति वर्ष हमारे सरकारी कार्यक्रम पुनरीक्षित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम की पहुँच से बाहर हैं. सरकारी और निजी स्वास्थ्य सेवाओं में टीबी की जांच और उपचार दोनों पर सख्त निगरानी रखनी जरुरी है कि जांच सही हो और उपचार भी कारगर दवाओं से हो रहा हो.
२०१९ तक इन प्रयोगशालाओं की संख्या १२० हो जाएगी. इसके साथ साथ ही भारत ने दवाओं आदि की सप्लाई में कोई कमी न आये इसपर भी कार्य किया है. टीबी और एच-आई-वी सह-संक्रमण पर तो पिछले दस सालों में बहुत कार्य आगे बढ़ा है जिससे कि टीबी सेवाएँ जो लोग एचआईवी के साथ जीवित हैं उनको मिले, और जो टीबी रोगी एचआईवी सह-संक्रमण के साथ जीवित हैं उन्हें एचआईवी दवाएं भी मिलें. पिछले २-३ साल से टीबी और मधुमेह पर भी कार्य आगे बढ़ा है और टीबी रोगियों को तम्बाकू नशा मुक्ति की सेवाएँ भी मिले इसपर भी कार्य हुआ है.
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
प्रोफेसर (डॉ) सूर्य कान्त, ७०वें नैटकान के आयोजन-सचिव: 94150-16858
सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
फरवरी १६, २०१६
२०१९ तक इन प्रयोगशालाओं की संख्या १२० हो जाएगी. इसके साथ साथ ही भारत ने दवाओं आदि की सप्लाई में कोई कमी न आये इसपर भी कार्य किया है. टीबी और एच-आई-वी सह-संक्रमण पर तो पिछले दस सालों में बहुत कार्य आगे बढ़ा है जिससे कि टीबी सेवाएँ जो लोग एचआईवी के साथ जीवित हैं उनको मिले, और जो टीबी रोगी एचआईवी सह-संक्रमण के साथ जीवित हैं उन्हें एचआईवी दवाएं भी मिलें. पिछले २-३ साल से टीबी और मधुमेह पर भी कार्य आगे बढ़ा है और टीबी रोगियों को तम्बाकू नशा मुक्ति की सेवाएँ भी मिले इसपर भी कार्य हुआ है.
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प्रोफेसर (डॉ) सूर्य कान्त, ७०वें नैटकान के आयोजन-सचिव: 94150-16858
सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
फरवरी १६, २०१६