भारत में कैंसर दर (और मृत्युदर) १०% बढ़ा (२०११-२०१४): तंबाकू नियंत्रण एक बड़ी प्राथमिकता

[English] [Webinar recording] भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कैंसर के रोगियों की संख्या में और मृत्यु दर में लगभग १०% की बढ़ोतरी हुई है (२०११ और २०१४ के बीच). २०१४ में भारत में कैंसर के लगभग 44% रोगी मृत हुए. सीएनएस की निदेशक शोभा शुक्ला ने बताया कि "भारत में कैंसर रोगियों की संख्या २०११ में १०२८५०३ से बढ़कर 201४ में १११७२६९ हो गयी है. भारत में कैंसर द्वारा मृत्यु की संख्या भी २०११ में ४५२५४१ से बढ़कर २०१४ तक ४९१५९७ हो गयी है. कैंसर दर बढ़ने के अनेक कारण हैं जिनमें प्रमुख है तम्बाकू सेवन, असंतुलित आहार, जनसँख्या की आयुवृद्धि, और हानिकारक जीवनशैली."

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार प्राप्त प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने बताया कि "तम्बाकू सेवन, कैंसर का सबसे बड़ा एक ऐसा कारण है जिससे बचाव मुमकिन है: सभी कैंसर से होने वाली २०% मृत्यु और फेफड़े के कैंसर से होने वाली ७०% मृत्यु का कारण तम्बाकू है. कैंसर के अलावा तम्बाकू सेवन से अनेक जानलेवा गैर-संक्रामक रोग होने का खतरा भी बढ़ जाता है जैसे कि ह्रदय रोग, पक्षाघात, मधुमेह आदि."

केजीएमयू के ह्रदय रोग विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर (डॉ) ऋषि सेठी ने बताया कि तम्बाकू सेवन ह्रदय रोग का एक बड़ा जनक है जिससे बचाव मुमकिन है.

किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ) सूर्य कान्त के अनुसार "फेफड़े के कैंसर का सबसे खतरनाक कारण है तम्बाकू सेवन खासकर सिगरेट और बीड़ी सेवन. जो लोग तम्बाकू धूम्रपान करते हैं उनमें फेफड़े के कैंसर होने की सम्भावना १० से २० गुणा अधिक बढ़ जाती है. फेफड़े के कैंसर के रोगियों में से ८७% पुरुष और ८५% महिलाएं तम्बाकू धूम्रपान करती थीं." प्रोफेसर (डॉ) सूर्य कान्त, लखनऊ में २०-२१ फरवरी २०१६ को होने वाली ७०वां टीबी और अन्य सीने की बीमारियों पर राष्ट्रीय अधिवेशन (नाटकॉन) के आयोजक सचिव भी हैं.

हुक्का पीना स्वास्थ्य के लिए खतरनाक

इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट टीबी एंड लंग डीजीस के डॉ एलिफ दगली ने बताया कि "लोगों में ये भ्रामक धारणा है कि हुक्का पीना सिगरेट पीने के मुकाबले कम खतरनाक है, जबकि सत्य तो यह है कि एक घंटे हुक्का पीना लगभग १०० सिगरेट पीने के बराबर हो सकता है. हुक्के के धुंए में कैंसर-जनक अनेक हानिकारक पदार्थ होते हैं. इसके उपयोग से संक्रमण भी फ़ैल सकते हैं."

जब २ अक्टूबर २००८ से भारत में सार्वजनिक स्थानों पर तम्बाकू धूम्रपान करना प्रतिबंधित है तो फिर यह कानून हुक्का पीने पर क्यों नहीं लागू होता है? तम्बाकू के धुंए में जो धूम्रपान न करने वाले लोग सांस ले रहे हैं उनमें भी फेफड़े के कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. हुक्का आदि पर भी अन्य तम्बाकू उत्पादनों की तरह चित्रमय चेतावनी लगी होनी चाहिए और तम्बाकू कर भी लगने चाहिए.

'द यूनियन' के क्षेत्रीय सलाहकार (तम्बाकू नियंत्रण) डॉ तारा सिंह बाम ने बताया कि तम्बाकू सेवन, जो कैंसर का एक बड़ा कारण है, उसका नशा भारत में 17 साल की उम्र में लग जाता है. यदि बच्चों और युवाओं को तम्बाकू सेवन शुरू करने से रोका जा सके तो भविष्य में इसका जन-स्वास्थ्य पर लाभकारी प्रभाव पड़ेगा.

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा संशोधित किशोर न्याय अधिनियम को १५ जनवरी २०१६ से लागू किया गया है. यह अधिनियम अब तम्बाकू उद्योग द्वारा बच्चों में बढ़ते तम्बाकू सेवन को संज्ञान में लेते हुए, सख्त कानूनी प्रावधान लागू करता है जिससे कि तम्बाकू उद्योग बच्चों और युवाओं को अपना 'नया ग्राहक' न बना सके. इस अधिनियम के सेक्शन ७७ में यह संशोधन है और अब यदि किसी बच्चे को तम्बाकू, शराब, आदि देता कोई पकड़ा गया तो उसको ७ साल की सख्त कारावास और १ लाख रूपये तक का जुरमाना हो सकता है.

विश्व कैंसर दिवस
विश्व कैंसर दिवस के उपलक्ष्य में हम सरकार से अपील करते हैं कि किशोर न्याय अधिनियम, सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम २००३, और अन्य जन-स्वास्थ्य हितैषी कानूनों को इमानदारी और पूर्ण निष्ठां से लागू करने के अलावा यह भी सुनिश्चित करे कि जानलेवा रोग पैदा करने वाले प्रमुख कारण जैसे कि तम्बाकू सेवन पर भी अंकुश लगे, ताकि कैंसर आदि रोगों के दरों में गिरावट आये और असमय होने वाली मृत्यु से जनता को बचाया जा सके.

राहुल कुमार द्विवेदी, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
४ फरवरी २०१६