महिला स्वास्थ्य में प्रौद्योगिकी का योगदान

  महिला स्वास्थ्य में प्रौद्योगिकी का योगदान

हाल ही में वाशिंगटन में, मात्र एवम् शिशु कल्याण से सम्बंधित, 'वूमेन डेलिवर २०१०' नमक एक विशाल सम्मलेन का आयोजन किया गया. इसमें १४६ देशों से आये ३००० से भी अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया. सम्मलेन की मुख्य विषय वस्तु थी 'वैश्विक स्तर पर माता और शिशु को मूलभूत स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध करा कर उनकी मृत्यु दर को कम करना'. अन्य परिणामों के अलावा सम्मलेन में यह निष्कर्ष भी निकला कि इस प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी हमारी सहायक हो सकती है.  आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से जहां हमें महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य सूचनाये तुरंत उपलब्ध हो जाती हैं, वहीं नवीन चिकित्सा पद्धतियों के द्वारा विश्व के सबसे निर्धन देशों/व्यक्तियों को भी स्वास्थ्य सेवा संबंधी उच्चतम लाभ प्रदान किये जा सकते हैं.


आधुनिक गर्भ निरोधक उपायों के द्वारा एक तिहाई मातृक मृत्युओं को बचाया जा सकता है. सुरक्षित गर्भपात भी उन ७०,००० महिलाओं की जान बचा सकता है जो प्रति वर्ष असुरक्षित गर्भपात का शिकार होती हैं. इसके अलावा, गर्भावस्था के दौरान और शिशु जन्म के बाद प्रशिक्षित सेवा एवम् आपातकालीन प्रसव सेवा की उपलबध्ता भी अनिवार्य है.

गर्भ निरोधक गोली
९ मई, १९६० को अमेरिका में किये गए इस गोली के आविष्कार ने महिलाओं के जीवन में क्रांति ला दी. आज, पचास वर्ष बाद भी वह क्रांति जारी है. गर्भ निरोधक गोली  (एवम् गर्भ निरोध के अन्य उपाय) एक ऐसी  प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी टेक्नौलोजी है जिसके द्वारा वैश्विक स्तर पर महिलाओं को अनेक  सामाजिक, आर्थिक एवम् स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त हुई हैं. परन्तु, जहाँ एक ओर अभी तक २० करोड़ महिलायें इस गोली का लाभ उठा चुकी हैं, वहीं दूसरी ओर २१.५ करोड़ से भी अधिक महिलायें चाहते हुए भी इसके प्रयोग से वंचित हैं.

लखनऊ शहर की जानी मानी स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. अमिता पाण्डेय के अनुसार, "अधिकतर भारतीय महिलाओं को अपनी लैंगिकता के ऊपर कोई अधिकार नहीं है. समाज के विभिन्न वर्गों की अधिकाँश महिलाओं को (भले ही वे पढ़ी लिखी एवम् आर्थिक रूप से संपन्न हो) यौन सम्बन्धी कोई भी निर्णय लेने का अधिकार नहीं है - फिर चाहे वो गर्भ निरोधक साधनों का इस्तेमाल करना हो अथवा गर्भ धारण करने का निर्णय हो. ये सारे निर्णय पुरुष ही लेता है. परिणाम होता है अनचाहा गर्भाधान, जिसकी परिणिति या तो एक दु:खी मातृत्व में होती है या चिकत्सीय गर्भपात में, जो उनके जीवन को जोखिम में डाल देता है. केवल ४०% महिलायें ही गर्भ निरोधकों का प्रयोग करती हैं. इनमें से केवल १५-२०% गर्भनिरोधक गोली का प्रयोग करती हैं. इसके मुख्य कारण हैं अशिक्षा, उचित जानकारी का आभाव, तथा प्रतिदिन गोली खाना भूल जाना. गोली के मुकाबले डी.एम.पी.ए. और आई.यू.सी.डी. तकनीक अधिक प्रचलित है, क्योंकि यह एक बार ही लगाया जाता है, इसलिए इसका बेहतर अनुपालन होता है."

मोबाइल फोन
पिछले कुछ ही वर्षों में भारत और अफ्रीका के कई विकासशील देशों में इस उपकरण का प्रयोग बहुत बढ़ा है. इस सर्व व्यापी संचार माध्यम ने स्वास्थ्य सेवा सूचनाएं महिलाओं तक पहुँचाने में क्रांतिकारी योगदान दिया है. मोबाइल फ़ोन के द्वारा सुदूर क्षेत्रों में स्थित रोगियों को चिकित्सीय परामर्श देना, आपातकालीन स्थिति में परिवहन उपलब्ध कराना, एवम् स्वास्थ्य सम्बन्धी सूचना एकत्र करना, सरलता से संभव हो गया है. इसके द्वारा दूर दराज़ के इलाकों में प्रसव सम्बन्धी जटिलताओं से जूझते हुए स्वास्थ्य कर्मी अस्पतालों से बराबर संपर्क बनाए रख सकते हैं, जो वास्तव में लाभप्रद सिद्ध हुआ है.

गर्भाशय के कैंसर की जांच/निवारण हेतु  उच्च तकनीकी उपकरण
विश्व भर में प्रति वर्ष २५०,००० महिलायें गर्भाशय के कैंसर के कारण मृत्यु का शिकार होती है. इनमें से अधिकाँश विकासशील देशों की हैं. यदि समय रहते इस कैंसर का निदान हो सके तो इसका पूर्ण इलाज संभव है. इस दिशा में नित नवीन प्रयास किये जा रहे हैं. इस कैंसर के वायरस के उपचार के लिए जो टीके बनाए गए हैं, उन्हें विकासशील देशों की महिलाओं को उपलब्ध कराने के प्रयास किये जा रहे हैं. एक नया डी.एन.ए. टैस्ट भी ईजाद किया गया है, जिसके द्वारा कैंसर की बहुत ही प्रारम्भिक अवस्था में इस वायरस का पता चल जाता है, और समय रहते इलाज हो जाता है. एक और उच्च तकनीकी डी.एन.ए. परीक्षण भी संभावित है, जिसका प्रयोग बहुत ही कम खर्चे में, बगैर बिजली-पानी के, निम्न संसाधनों वाले क्षेत्रों में किया जा सकता है. इसके द्वारा विकासशील देशों की महिलाओं में गर्भाशय के कैंसर की बीमारी आश्चर्यजनक रूप से कम होने की  संभावना है.

वजाइनल रिंग: एच.आई.वी. रोकथाम का नवीन उपकरण
प्रति दिन विश्व की ३००० महिलाए, एच.आई.वी.वायरस से संक्रमित होती हैं. एच.आई.वी/एड्स जननीय आयु की महिलाओं की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है. अफ्रीका में तो स्थिति और भी गंभीर है जहां एच.आई.वी. से संक्रमित रोगियों में दो तिहाई महिलायें हैं. कतिपय सांस्कृतिक एवम् जैविक कारणों से महिलाओं एवम् किशोरियों की एच.आई.वी/एड्स संक्रमण से ग्रसित होने की संभावना पुरुषों की अपेक्षा अधिक होती है. तिस पर महिलायें स्वयं को इस संक्रमण से बचा पाने में सर्वथा असमर्थ ही  हैं. इस रोग की रोकथाम के वर्त्तमान विकल्प महिलाओं के लिए अव्यवहारिक सिद्ध हुए हैं. वे न तो यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि उनका संगी कॉन्डोम इस्तेमाल या फिर उनके प्रति निष्ठावान रहे, न ही उन्हें यह तय करने का अधिकार है कि वे गर्भ धारण करना चाहती हैं अथवा नहीं.
इस दिशा में एंटी रेट्रो वायरल ड्रग्स पर आधारित माइक्रोबिसाइड्स  आशा कि एक नई किरण लेकर आई हैं. 'वूमेन डेलिवर' कॉन्फरेंस के दौरान, आई.पी.एम. नामक संस्था ने एंटी रेट्रो वायरल ड्रग्स से युक्त एक नई वजाइनल रिंग के नैदानिक परिक्षण (क्लिनिकल ट्रायल) के आरम्भ की घोषणा की है. ये ट्रायल इस नवीन पद्यति की सुरक्षा एवम् ग्राह्यता की परख करने हेतु, अफ्रीकी राष्ट्रों में किये जायेंगे. यदि ये परीक्षण सफल होते हैं, तो महिलाओं को एक ऐसा उपकरण मिल जाएगा जिसके द्वारा वे न केवल गर्भधारण करने अथवा न करने का  फैसला अपने हाथों में ले पायेंगी, वरन एच.आई.वी. संक्रमण से बचने के लिए स्वयं स्वंतत्र होकर अपने पार्टनर पर आश्रित नहीं होंगी. जॉन्सन एंड जॉन्सन कंपनी द्वारा निर्मित यह रिंग लचीले सिलिकॉन की बनी है तथा सरलता से वितरित की जा सकती है. इसलिए इसका प्रयोग विकासशील देशों के लिए उपयुक्त है.
 स्त्री जननांग में लगाने पर यह रिंग २८ दिनों की अवधि में २५ मिलीग्राम एंटी रेट्रो वायरल ड्रग (डापिविरिन) शरीर में धीरे धीरे स्त्रावित करती है.
यह वास्तव में एक क्रांतिकारी आविष्कार है, जिसमें गर्भनिरोधक रिंग का प्रयोग  एच.आई.वी. जैसी घातक बीमारी के संक्रमण से बचने के लिए भी किया जा सकता है. इस नवीन प्रयोग की सफलता, महिलाओं के जीवन में एक नाटकीय मोड़ लाएगी, क्योंकि यह उन्हें सहवास के समय एच.आई.वी. संक्रमण से बचने की दीर्घकालिक एवम् प्रभावकारी सुरक्षा प्रदान करेगी, जिसके लिए उन्हें अपने पार्टनर की मर्ज़ी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा.

यह एक कटु विडम्बना है कि जीवन की सृष्टि करने वाली नारी को रोग एवम् मृत्यु का सबसे अधिक खतरा है, विशेषकर विकासशील देशों में. उन्हें अपने लैंगिक स्वास्थ्य को नियंत्रित करने तथा स्वयं को एच.आई.वी. संक्रमण से बचाने का भी अधिकार प्राप्त नहीं है. अपने जीवन तथा मृत्यु के लिए वे पुरुष की कृपा पर ही निर्भर हैं. अत: मौलिक एवम् प्रगतिशील तकनीकी उपायों के द्वारा असंख्य  महिलाओं के जीवन में आशातीत बदलाव लाया जा सकता है. इन नवीन विधियों से स्त्रियों के स्वास्थ्य एवम् सामाजिक स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन किये जा सकते हैं.
हम सभी महिलाओं (एवम् विवेकशील पुरुषों) को इस दिशा में एकजुट होकर कार्य करना होगा.

शोभा शुक्ला
एडिटर
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस