मुख्य सचिव उ० प्र० का आदेश नहीं मानता ग्राम सचिव

देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उ०प्र० में जहाँ नौकरशाही की भी सबसे भारी भरकम फ़ौज है। जो बुरी तरह से प्रशासनिक व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने में नकारा साबित हो रही है। इसका ज्वंलत उदाहरण है। मुख्य सचिव उ०प्र० के आदेश को ग्राम पंचायत अधिकारी / सचिव द्वारा न मानना यूँ तो सूचना अधिकार अधिनियम २००५ को भी लागू हुए पांच वर्ष पूरे हो गये और ठीक उ०प्र० की भारी भरकम नौकरशाही की तरह ही यहाँ भी देश के किसी भी राज्य से सबसे ज्यादा ११ मा० सूचना आयुक्त पदासीन है। और ये भी नौकरशाही की तरह अधिनियम को कारगर तरीके से अनुपालन कराने में पूरी तरह से विफल हुए है पिछले पांच वर्षों में बल्कि उ०प्र० देश का पहला ऐसा राज्य होने का गौरव भी प्राप्त किया है जहां के मुख्य सूचना आयुक्त को कदाचार के आरोप में निलम्बित किया गया है। इसी से आयोग की कार्य प्रणाली व साख का अंदाज लगाया जा सकता है।

फिर भी दायित्वशील नागरिकों द्वारा रस्सी की तरह पत्थर पर निशान डाल देने की कर्मठ जिजविषा के साथ सूचना अधिकार को मजबूती देने के लिए राज्य के जिले के विकास खंड रतनपुरा के ग्राम पंचायत साहूपुर के अरविन्द मूर्ति जिले के विकास खंड-फतेहपुर मड़ाव की आंबेडकर ग्राम सभा-कटघरा शंकर के निवासी कृष्ण मोहन मल्ल द्वारा अपनी-अपनी ग्राम पंचायतो से सम्बन्धित सूचना जन सूचना अधिकारी / ग्राम पंचायत अधिकारी से सूचना मांगते-मांगते प्रथम अपील करते आयोग आते और सूचना नहीं पाते हुए भी निराश होकर बल्कि अधिनियम की धारा ६(३) का उपयोग करते हुए अपनी-अपनी ग्राम पंचायत से सम्बन्धित सूचना मुख्य सचिव उ०प्र० शासन से दिनांक १३-०३-१० को रजिस्ट्रर्ड डाक द्वारा भेज कर मांगी गई तद्क्रम में मुख्य सचिव कार्यालय उ०प्र० द्वारा अपने पत्र दिनांक १८ मार्च १० पंत्राक सं० ८९०/मु.स./सू.का.अ.अ./०९ के द्वारा आवेदक को कहा गया कि आपका पत्र कार्यालय को १६.०३.१० को प्राप्त हुआ और आपका आवेदन धारा ६(३) के तहत ग्राम पंचायत सचिव को अंतरिम कर दिया गया आप उन्ही से सम्पर्क कर सूचना प्राप्त करे, इस पत्र प्राप्ति के पश्चात इसकी छायाप्रति के साथ ग्राम पंचायत अधिकारी क्रमश: साहुपुर के श्री कृष्ण कुमार राम व कटघरा शंकर के ग्राम पंचायत अधिकारी श्री सुरेश यादव से आवेदन कर्ता मिले परन्तु उक्त ग्रा०प०अ० / सचिवों ने पत्र लेने से स्पष्ट इनकार कर दिए तब दिनांक ११.५.१० को सहायक खंड विकास अधिकारी के यहाँ प्रथम अपील गई, प्रथम अपील के समय सीमा पूरी होने के बाद राज्य सूचना आयोग में अपील हुई आयोग में मा० आयुक्त ज्ञान प्रकाश मौर्य के यहाँ अपील संख्या एस-११-११५१/सी/१० व एस-११-११५२/सी०/१० में दिनांक २.११.१० को प्रथम सुनवाई हुई शासन का कोइ भी प्रतिनिधि नहीं उपस्थित हुआ वादी अरविन्द मूर्ति उपस्थित हुई मा० आयुक्त ने मऊ जिले के जिला पंचायत राज अधिकारी को नोटिस भेजने के आदेश के साथ अगली तिथि २१.१२.१० निर्धारित की २१.१२.१० की तिथि पर सुनवाई के दौरान पंचायत राज विभाग के प्रमुख सचिव कार्यालय से प्रतिनिधि सुनवाई पर उपस्थित हुआ और शासन को मुख्य सचिव कार्यालय को सुनवाई से हटाने की सिफारिश की जिसे मा. आयुक्त ने तुरन्त स्वीकार कर ली इस पर सुनवाई के समय उपस्थितवादी अरविन्द मूर्ति ने आपत्ति करते हुए सवाल उठाया कि जब मुख्य सचिव का आदेश ग्राम सचिव नहीं मानता है तो मुख्य सचिव कार्यालय को कैसे प्रतिवादी से हटाया जाएगा परन्तु मा० आयुक्त ने इनका पक्ष न सुनते हुए प्रशासन से आये प्रतिनिधि के सुझाव पर जिलाधिकारी मऊ को नोटिस भेजने के आदेश के साथ अगली तिथि १ मार्च ११ निर्धारित की मा. आयुक्त अधिनियम के प्राविधानों के तहत अपने कर्त्तव्यों और अधिकार का उपयोग न करके बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों के सुझावों के तहत कभी डी.पी.आर.ओ. को तो कभी डी. एम. को पिछली दो सुनवाईयों में सिर्फ नोटिस भेजने की खाना पूर्ति का रहे। जिससे सूचना अधिकार अधिनियम की मूल भावना समयबद्ध सूचना मिलने की धोर उपेक्षा मा० आयुक्तगणों के उदासीन व प्रशासनिक अधिकारियों / जनसूचना अधिकारियों के पक्ष में तटस्था के कारण हो रही है। जिससे एक अति प्रभावशाली कानून की साख पर बट्टा लग रहा है। और अगर आयुक्त गणों ने अपने रवैये में बदलाव नहीं लाया तो वह दिन दूर नहीं जब लोकायुक्त जैसे शक्तिशाली संवैधानिक संस्था के कार्यालय पर धुल जमी पड़ी रहती है । और आम नागरिक उसे सिर्फ भ्रष्टाचार रोकने की सफ़ेद हाथी समझते हुए नकारा मान चुका है। वही हश्र सूचना आयोग का भी न हो।

अरविन्द मूर्ति