विकास के नाम पर निरन्तर प्राकृतिक संसाधनो को दोहन व अमूल्य धरोहरो की विनाश की मार से पूरा इलाका झेल रहा है। इस गांव के प्रमुख आदिवासी नेता ‘‘गोखरू’’ जी ने अपने संघर्ष को बताते हुए कहा कि हम सब अपनी जमीन छोड़कर कही और जाना नही चाहते यद्यपि सरकार ये दावा करती है कि वो हमे दूसरे ग्रामीण इलाको में पुर्नवासित कर देगी परन्तु हम उन क्षेत्रों के लोगो के उनके प्राकृतिक संसाधनो पर अतिक्रमण क्यों करें ? हमें हमारा न्यायोचित अधिकार चाहिए अपनी बात बताते हुए गोखरू कहते है कि हमारे इस आंदोलन में हमारी महिला साथियों ने भी अमूल्य योगदान दिया है। अपने एक साथी का जिक्र करते हुए कहा कि अमुक महिला पेड़ कटने के वक्त उस पेड़ पर चढ़ जाया करती थी, और पेड़ कटने नही दिया करती थी। भादल गांव की आर्थिक स्थिति भी इस विकास की प्रक्रिया की भेट चढ़ी है, इस गांव में ही एक आवासीय स्कूल है जो आंदोलनकारियों के सहयोग से निर्मित है, व संचालित है। अगर विकास किसी से शिक्षा, जीवन, और खुश रहने का अधिकार छीन कर हो तो ये विकास तो नही?
नर्मदा नदी पर निर्मित हो रहा सरदार सरोवर बांध जिससे गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान को अत्यन्त लाभ मिलने की बात कही गयी थी पिछले ढ़ाई दशक से चर्चा में है इस बांध को आर्थिक एवं तकनीकी दृष्टिकोण से ही नही अपितु इससे होने वाली पर्यावरणीय, वित्तीय, सांस्कृतिक एवं मानवीय लागत को भी ध्यान में रखकर बनाना चाहिए।
इसी के साथ नर्मदा घाटी के किसानो, आदिवासियों, मछुआरों एवं अन्य प्रकृति निर्भर समुदायों द्वारा किए जा रहे अहिसंक, तर्क संगत, संघर्ष को भी ध्यान में रखना चाहिए।
इन 25 वर्षो की लड़ाई में हमारे कई संघर्षें शहीद हुए। नर्मदा घाटी के 25 वे साल में ऐसे ही एक समर्पित व्यक्तित्व को याद किया गया जिनका नाम था आशीष मंडलाई। जिन्होंने अपने जीवन का स्वर्णिम काल इस आंदोलन को सर्मपित किया।
-शशांक सिंह