२०१० का साल ख़त्म होने को है, देश और दुनिया नये साल का जश्न मनाने को बेताब है तो देश के बाहर यूरोप और अमेरिका में प्रकृति का कहर बर्फ और बरसात ग्लोब वार्मिंग के खतरे की प्रतिछाया बनकर आया हुआ है। अपने देश में घोटालों की अभूतपूर्व बाढ़ आई हुई है एक घोटाले २-जी स्पेक्ट्रम की राशि का आकलन है लगभग १,७६,००० करोड़ रूपये और यह राशि कितनी बड़ी है कि एक समय ४०० सांसदों के बहुमत वाली राजीव गांधी की सरकार को ध्वस्त करने वाले बोफोर्स टॉप घोटाले से लगभग २,७५० गुनी बड़ी है। लेकिन क्या राजीव गाँधी की विधवा पत्नी और देश की अघोषित महारानी यूपीए की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी और उनके प्यादे प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह की लगड़ी सरकार को यह घोटाला ट्स से मस कर पाया है ? पूरी मुख्यधारा की विपक्षी राजनीतिक ताकते नंपुसक विरोध के सिवाय कुछ कर सकी है ? और नहीं तो पार्टी महाधिवेशन के बहाने महारानी, युवराज, और प्यादे देश, समाज को आर्दश और नैतिकता का पाठ पढ़ा है।
ये बेईमान घोटालेबाज "शब्दों" का भी मखौल उड़ा रहे और गैर कानूनी हाऊसिन्ग सोसाइटी तक का नाम "आदर्श" रख कर अत्यंत अपराधिक कुकृत्य किया है। अब सवाल यह नहीं है कि २-जी स्पेक्ट्रम अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है। और घोटालो का जिक्र में नहीं कर रहा हूँ।
सवाल है लोकतंत्र में स्थापित और मर्यादित उन सारी संस्थाओं का इस बाढ़ में शामिल होना सेना, मुख्यमंत्री, मंत्री, शक की सुई प्रधानमन्त्री तक जा रही है उद्योगपति, मीडिया, खुद न्यायपालिका की ओर भी न्यायपालिका के अंदर से ही उंगुलिया उठ रही है। ये जो सारे स्तंभ है, देश समाज राज को चलाने वाली सारी मिशनरी में ही बाढ़ का पानी घुसा हुआ है। और अब सड़न के प्रभाव में सब आ गये है। पूरा का पूरा मामला सारी मुख्यधारा की राजनीति शक्तियों में नैतिक मूल्यों, आदर्शों के पूर्ण स्खलन को साफ़-साफ़ दिखाता है।
अब किया क्या जाए कुछ लोगों का मानना है कि धार्मिक शिक्षाओं और ईशभय से ही इसे रोका जा सकता है और कुछ धार्मिक वस्त्रधारी लोग इस प्रयास में लगे भी है। लेकिन मेरा मानना है कि धर्म और भगवान् में वो आग बची नहीं है जिसको लेकर भगवान् और धर्म को ईजाद किया गया आज उसके मूलतत्व और वास्तविक शिक्षाओं, नैतिकता, ईमानदारी, मानवीय मूल्य सिरे से गायब है। आज जो जितना अधार्मिक कुकृत्य करता है, उतना ही धार्मिक आचरण (कर्मकांड) का दिखावा करता है। बल्कि भ्रष्टाचार की मूल जड़ भगवान् है एक मिनट अगरबत्ती घुमाओ और तेईस घंटा उनसठ मिनट चोरी, मक्कारी करो, बस भगवान् को लडडू, पेठे, स्वर्ण मुकुट, यज्ञ, प्रवचन, मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुदारे में मंथा टेक लूट की कमाई में से कुछ दान (घुस) दे दो सब ठीक। भ्रष्टाचार को इससे बल मिलेगा, लौकिक जीवन और राजनीतिक व्यवस्था दृढ राजनीतिक इच्छा शक्ति के नैतिक मूल्यों से संचालित होगी इसके लिए समाज में वैज्ञानिक चेतना स्वस्थ राजनीतिक चेतना की जागरूकता के साथ प्रत्येक नागरिक को लोभ रहित लाभ से जीवन को चलाना होगा। उम्मीद है नये वर्ष में हम इस तरफ बढ़ेगें क्योंकि उम्मीद एक ज़िंदा शब्द है कवि सुरेश नारायण कुसून्बी वाल की कविता की इन पंक्तियों "उम्मीद है कि/कुछ भी हो जाए/न छूटे उम्मीद का दामन / हमारे हाथ से क्योंकि / उम्मीद पर ही टिकी है दुनिया" नये वर्ष की सभी को दिली मुबारकबाद ..................
अरविन्द मूर्ति