पिछले हफ्ते प्रकाशित शोध से यह प्रमाणित हुआ है कि मधुमेह और तपेदिक (या टीबी) में सीधा सम्बन्ध है। टेक्सास विश्वविद्यालय के जन स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञों द्वारा किए हुए शोध से यह प्रमाणित हुआ है कि टाइप-२ वाला मधुमेह जिन लोगों को होता है, उनके शरीर की प्रतिरोधक छमता कम होती है, और इसीलिए इन लोगों में अनेकों अवसरवादी संक्रामक रोग होने का बहुत अधिक खतरा होता है, जिनमें श्वास सम्बन्धी रोग, विशेषकर कि तपेदिक या टीबी प्रमुख है।
शोध में यह भी पाया गया कि जिन मधुमेहियों में रक्त शकर्रा अधिक अवधि तक बढ़ा रहता है, उनमें तपेदिक या टीबी होने का खतरा भी बढ़ जाता है। जिन लोगों को टाइप-२ मधुमेह और टीबी दोनों हो, उनमें टीबी की दवाइयों का असर भी देर से आता है, और इन लोगों में मल्टी-ड्रग रेसिस्तंत टीबी या MDR-TB होने का खतरा भी बढ़ा हुआ होता है।
MDR-टीबी में टीबी के रोगियों के लिये सबसे-प्रभावकारी टीबी की दवाइयाँ - इसोनिअजिद और रिफम्पिसिं - कारगर नहीं रहती। MDR-टीबी का इलाज लंबा होता है, १००० गुणा अधिक व्यय है और अन्य इलाज- सम्बंधित जटिलताएं भी आती हैं।
टाइप-२ मधुमेह से ग्रसित लोगों में ६ प्रतिशत तक को MDR-टीबी हो सकता है और ३०% MDR-टीबी से ग्रसित लोग मधुमेही भी होते हैं।
मधुमेह में मानव शरीर इंसुलिन को समुचित ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पता है, और यदि मधुमेह नियंत्रित न किया जाए तो इसके भीषण परिणाम हो सकते हैं, जिनसे शरीर के विभिन्न भाग कुप्रभावित हो सकते हैं, और रक्त वाहिनियाँ, नसें और आँख की 'रेटिना' भी कुप्रभावित हो सकती है।
'स्कान्दिनावियन जर्नल ऑफ़ इन्फेक्शस डिसीजेस' में प्रकाशित शोध के अनुसार मधुमेह टाइप-२ से ग्रसित लोगों को, टीबी का, खासकर कि दवा-प्रतिरोधक छमता वाले टीबी बक्टेरिया का, खतरा बढ़ा हुआ होता है।
अनेकों विशेषज्ञों का कहना है कि तपेदिक या टीबी से मधुमेह के रिश्ते से पहले ही चिकित्सक वर्ग अवगत था परन्तु इस शोध ने न केवल इस ज्ञान की पुष्टि की है बल्कि टीबी-दवा प्रतिरोधक बक्टेरिया से सम्बंधित नए तथ्यों पर भी रौशनी डाली है।
शोधकर्ताओं के अनुसार मधुमेह विशेषज्ञों को टाइप-२ वाले मधुमेह के रोगियों के उपचार के दौरान
टीबी के लिये विशेष रूप से चेते रहना चाहिए और शंका होने पर टीबी का परीक्षण करना चाहिए। टीबी, और MDR-टीबी दोनों का ही इलाज सम्भव है यदि सही समय पर टीबी का परीक्षण हो जाए और उपयुक्त इलाज भी पूरी अवधि तक रोगी को मिल पाये।
शोधकर्ताओं के अनुसार कुछ लोगों में यह मान्यता है कि टीबी या तपेदिक उन लोगों में अधिक होता हैजो शराब और अन्य व्यसन का सेवन करते हों, या मादक पदार्थों का सेवन करते हों, या भीड़-भाड़ वालेछेत्रों में बिना साफ़-सफाई के रहते हों। इस शोध से यह भी पुन: स्थापित हुआ है कि टीबी या तपेदिक उनलोगों में भी पायी गई जो साफ़-सफाई का ध्यान रखते थे, भीड़-भाड़ वाली जगह पर नहीं रहते थे औरशराब और अन्य व्यसनों का भी सेवन नहीं करते थे - इनमें से अधिकाँश लोगों को टाइप-२ मधुमेह था।
अब देखना यह है कि मधुमेह चिकित्सक किस हद तक टाइप-२ डायबिटीज़ या मधुमेह के रोगियों कोटीबी या तपेदिक के परीक्षण के लिये प्रोत्साहित करते हैं, और टीबी या तपेदिक चिकित्सक किस हदतक टीबी के रोगियों को मधुमेह की जांच के लिये प्रेरित करते हैं।
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