प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त के अनुसार “मधुमेह के रोगी के शरीर के स्नायुओं के क्षतिग्रस्त होने की भी सम्भावना होती है। कुछ रोगियों मे इस क्षति के कोई बाह्य लक्षण नहीं दिखाई देते, परन्तु कुछ रोगियों को हाथ-पैरों में दर्द, झंझनाहट या संज्ञा शून्यता महसूस होती है। मधुमेही के गुर्दों पर भी इस रोग का बुरा प्रभाव पड़ सकता है। गुर्दे शरीर को साफ़ रखने मे असमर्थ होते जाते हैं और अंतत: कार्य करना बंद कर देते हैं। इस स्थिति को ‘क्रोनिक किडनी फेलियर' कहते हैं।”
प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त का कहना है कि मधुमेह का एक सबसे भयानक प्रभाव है ‘डायबेटिक फुट’ अथवा ‘मधुमेही पाँव'। अधिक समय तक मधुमेह रोग होने से पांवों की धमनियों और स्नायुओं मे विकार हो जाता है, जिसके चलते न केवल रोगी के पैर को, वरन उसके जीवन को भी खतरा हो सकता है। ‘ मधुमेही पाँव’ से पीड़ित होने पर रोगी को लंबे समय तक अस्पताल मे रहना पड़ सकता है तथा उसके परिचार मे भी बहुत सजगता बरतनी पड़ती है।
मधुमेही के पाँव काटने की स्थिति आने के दो मुख्य कारण हैं---लंबे समय तक चलने वाले अनियंत्रित मधुमेह की वजह से पैर के स्नायुओं का संज्ञाशून्य हो जाना अथवा पाँव के तलवों मे ‘हाई प्रेशर पॉइंट' बन जाने से वहां घाव हो जाना। और यदि रोगी धूम्रपान भी करता हो तो स्नायु क्षतिग्रस्त होने से पैरों मे रक्त संचार कम हो जाता है। बढ़ती उम्र के साथ साथ रोगी के पैरों मे रक्तसंचार बाधित होने से और संज्ञाहीनता बढ़ने से पाँव मे संक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है।
प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त जिनको विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने २००५ के अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार से नवाजा, उनके अनुसार मधुमेह के रोगियों को अपने पाँव की रक्षा हेतु निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये —
(१) पैरों को नियमित रूप से धो कर साफ़ रखें।
(२) केवल गुनगुने पानी का प्रयोग करें---गर्म पानी,आयोडीन, अल्कहौल या गर्म पानी की बोतल का प्रयोग न करें।
(३) पैरों को सूखा रखें---विशेषकर उँगलियों के बीच के स्थान को. सुगंधहीन क्रीम /लोशन के प्रयोग से त्वचा को मुलायम रखें।
(4) पैरों के नाखून उचित प्रकार से काटें---किनारों पर गहरा न काटें।
(५) गुख्रू को हटाने के लिए ब्लेड, चाकू , ‘कॉर्न कैप' का प्रयोग न करें।
(६) नंगे पाँव कभी न चलें, घर के अन्दर भी नहीं. हमेशा जूता/चप्पल पहन कर ही चलें।
(७) कसे हुए या फटे पुराने जूते/चप्पल न पहनें. आरामदेह जूते/चप्पल ही पहनें।
(८) स्वयं ही अपने पाँव की जांच नियमित रूप से करें और कोई भी परेशानी होने पर तुंरत अपने चिकित्सक से संपर्क करें।
(९) केवल चिकित्सक द्वारा बताई गयी औषधि का ही प्रयोग करें —घरेलू इलाज न करें।
‘मधुमेह का रोग केवल धन ही नहीं, और भी बहुत कुछ गंवाता है।’