17 सितम्बर को अयोध्या विवाद पर सम्भावित फैसले के मद्देनजर हिन्दुत्व साम्प्रदायिक ताकतों ने पुन: अयोध्या में राम मन्दिर का राग अलापना शुरू कर दिया है। 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस व राम मंदिर निर्माण के मुद्दे ने देश की राजनीति को बहुत नुकसान पहुंचाया है। आम जनता के मुद्दों, जैसे गरीबी, बेरोजगारी, किसानों की समस्या, संसाधनों की कमी, भ्रष्टाचार आदि को काफी पीछे ढकेल दिया। इस भावनात्मक मुद्दे में लोगों को उलझा कर जन विरोधी आर्थिक नीतियां लागू कीं गईं जिसका फायदा पूंजीपति वर्ग व देशी-विदेशी कम्पनियों को हो रहा है किन्तु आम जनता परेशान है। यह तो गनीमत है कि 2004 में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन चुनाव हार गया व संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार बनी, नहीं तो हालत और भी खस्ता होती। कम से कम सूचना के अधिकार, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी, वन अधिकार व आने वाले खाद्य सुरक्षा अधिनियमों से ऐसा प्रतीत तो होता है कि सरकार आम जनता के मुद्दों के प्रति भी थोड़ा-बहुत सोचती है। वर्ना राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन की सरकार तो शायद हमें राम मंदिर व राम सेतु के अलावा कुछ सोचने ही नहीं देती।
दूसरी तरफ बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद ही इस देश में श्रृंखलाबद्ध बम धमाके व आतंकवादी कार्यवाईयों को अंजाम दिया जाने लगा। इस लिहाज से बाबरी मस्जिद ध्वंस भारत में आतंकवादी घटनाओं की जननी है। वैसे भी संविधान की रक्षा की शपथ खा कर तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने लोकतंत्र की खुले आम धज्जियां उड़ाईं। हालाँकि बीच में ऐसा भ्रम फैलाया गया था कि इस्लामिक संगठन भारत में आतंकवादी कार्यवाइयों को अंजाम दे रहे थे किन्तु अब जब कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बन्धित अभिनव भारत का नाम मालेगांव, हैदराबाद की मक्का मस्जिद, अजमेर व समझौता एक्सप्रेस जैसे बम कांडों में आ रहा है तो ऐसा प्रतीत होता है कि भारत को इस्लामिक से ज्यादा हिन्दुत्व आतंकवाद ने क्षति पहुंचाई है। शक की बुनियाद पर तमाम मुस्लिम नवजवान जेलों में कैद हैं किन्तु दिन दहाड़े बाबरी मस्जिद गिराने वाला एक भी व्यक्ति जेल में नहीं है। यह विभिन्न सरकारों व शासन-प्रशासन के साम्प्रदायिक चरित्र का भी द्योतक है।
असल में साम्प्रदायिक विचारधारा का लोकतंत्र से कोई तालमेल हो ही नहीं सकता चूंकि यह विचारधारा संकीर्णता की परिचायक है। बल्कि साम्प्रदायिकता की परिणति सिर्फ फासीवादी सोच में ही हो सकती है। यह खुशी की बात है कि जनता ने साम्प्रदायिक विचारधारा को उ.प्र. में नहीं बल्कि पूरे देश में नकारा है। हम उम्मीद करते हैं कि जनता दोबारा साम्प्रदायिक शक्तियों के झांसे में नहीं आएगी। राजनीतिक उद्देश की पूर्ति के लिए धार्मिक भावनाओं का दोहन पूर्णतया अनैतिक है।
देश के नागरिकों को अयोध्या विवाद पर न्यायालय का जो भी फसला आए उसका सम्मान करना चाहिए। जो पक्ष फैसले से संतुष्ट नहीं है वह सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है। किन्तु सड़क पर उतर कर किसी भी किस्म का शक्ति प्रदर्शन या लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने की कोशिश असंवैधानिक कार्यवाही होगी। मंदिर निर्माण को लेकर संघ परिवार से जुड़े संगठनों ने तमाम किस्म की कवायदें शुरु कर दी हैं। अयोध्या के मंदिरों में हनुमान चालीसा के पाठ हो रहे हैं। मोबाइल फोन पर एस. एम. एस. भेजे जा रहे हैं। हिन्दुत्ववादी संगठनों के नेताओं के बयान आ रहे हैं। विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष अशोंक सिंघल का कहना है कि अयोध्या स्थित कारसेवकपुरम में मंदिर निर्माण हेतु पत्थर तराशे जा रहे हैं। कायदे से अभी जबकि न्यायालय का फैसला भी नहीं आया है और यह तय नहीं है कि मंदिर बनेगा भी अथवा नहीं इस किस्म की कार्यवाईयां व बयान तो न्यायालय की अवमानना माने जाने चाहिए व न्यायालय को इनका संज्ञान लेना चाहिए।
देश व अयोध्या की आम जनता के लिए बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि कोई मुद्दा ही नहीं है। यह संघ परिवार ने जबरदस्ती देश के ऊपर थोपा है। अयोध्या के आम लोगों से बातचीत कर पता चलता है कि यहां लोग इस मुद्दे से कितने परेशान हैं। अयोध्या का आम जन-जीवन प्रभावित हुआ है। लगातार सुरक्षा बलों की उपस्थिति से यहां तनाव बना रहता है। जब-तब कर्फयू लगने की आशंका अलग रहती है। विवादित स्थल के राम लला को छोड़ अन्य मंदिरों में दर्शन हेतु आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में गिरावट आई है जिससे अयोध्या की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। अयोध्या में बड़ी संख्या में लोगों की आजीविका मंदिरों पर निर्भर है। इनमें चढ़ने वाले फूलों की खेती से लेकर पूजा-पाठ की सामग्री के निमार्ण के काम में लगे तमाम लोग शामिल हैं जिनमें कुछ मुसलमान परिवार भी हैं।
हम उ.प्र. सरकार से उम्मीद करते हैं कि जो भी इस मुद्दे का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करे उसके साथ सख्ती से पेश आएगी। हम यह खतरा नहीं मोल उठा सकते कि संघ परिवार के लोगों को देश में दंगे भड़काने की छूट दी जाए। देश में धर्मनिर्पेक्ष लोग व मुसलमान, जो भी फैसला आएगा उसे मानने को तैयार बैठे हैं। किन्तु संघ परिवार के अचानक सक्रिय होने से ऐसा मालूम पड़ता है कि यदि फैसला इनके अनुकूल न गया तो वे उसे नहीं मानेंगे। यदि केंद्र व राज्य सरकार इनके साथ सख्ती से निपटती है और आम हिन्दू इन्हें अपनी धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं करने देता है तो देश का महौल शांत बना रहेगा व साम्प्रदायिक सदभावना सुरक्षित रहेगी।
असल में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा संघ परिवार के गले की हड्डी बन गया है। इस मद्दे का इस्तेमाल भारतीय जनता पार्टी की राजनीति को बढ़ाने के लिए ही किया गया। यदि संघ परिवार का उद्देश्य वाकई में मंदिर निर्माण होता तो वह उस किस्म की राजनीतिक दृढ़ता दिखा सकता था जैसी मायावती ने दिखाई है, जिन्होंने राज्य की राजधानी में सरकारी जमीन पर, पेड़ काटकर, जनता के धन से, कानून बन कर दलित स्मारकों का निर्माण करा दिया है। परंतु संघ परिवार का उद्देश्य कभी मंदिर निर्माण रहा ही नहीं है। उन्हें तो सिर्फ इस मुद्दे का राजनीतिक दोहन करना है, जो मंदिर बन जाने पर संभव न होगा। यदि संघ परिवार वाकई में अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण चाहता है तो वह इसे कारसेवकपुरम की भूमि पर क्यों नहीं बना लेता ? क्या जरुरी है कि मंदिर विवादित स्थल पर ही बने ? विश्व हिन्दू परिषद के स्वामित्व वाली जमीन पर राम मंदिर बना कर इस विवाद को भी हमेशा -हमेशा के लिए विराम दिया जा समता है।
लेखक : संदीप, पता: ए-893, इन्दिरा नगर, लखनऊ -226016, उ.प्र., फोन: 0522 2347365, मोबाइल: 9415022772, ई-मेल: ashaashram@yahoo.com