माहवारी सम्बन्धी स्वछता के विषय पर खुलकर संवाद ज़रूरी है

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अभिनव त्रिपाठी, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
एक कथन है कि यदि गर्भाशय नहीं होता तो इस पृथ्वी पर संवेदनाएं भी नहीं होतीं और न ही सृष्टि का विकास हो पाता। गर्भाशय का विकास स्त्री के पहले मासिक धर्म से प्रारंभ होने लगता है और समूची मानवजाति का विकास भी। मगर आजादी के लगभग सात दशक बीत जाने के बावजूद भारत में माहवारी स्वच्छता आज भी समाज के हाशिये पर है।

आलम यह है कि आधी आबादी के स्वास्थ से जुड़े इस गंभीर विषय पर न तो सरकार  का ध्यान गया न ही खुद महिलाओं का, हालांकि गाहे बगाहे इस समाज में अंशू गुप्ता जिन्हें हाल ही में समाज सेवा के लिए मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त हुआ है जैसे लोग भी हैं, जो इस मुद्दे पर लंबी लड़ाई लड़ते हैं फिर भी इस क्षेत्र में अभी एक लंबी लड़ाई लड़ी जाना बाकी है और सरकार के तौर पर उत्तर प्रदेष के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए इसको मुख्यधारा में लाने के लिये किशोरी सुरक्षा योजना लागू की है। अगर सरकार की मानें तो उत्तर प्रदेश 2017 तक १०० प्रतिशत  माहवारी स्वच्छता के लक्ष्य को पा लेगा।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया समाचार पत्र में छपी एक खबर के अनुसार वर्तमान समय में मासिक धर्म से जुड़ी हुई परेशानियों के चलते उत्तर प्रदेश में हर महीने २८ लाख किशोरियां माहवारी के दिनों में स्कूल में अनुपस्थित रहती हैं तथा १९ लाख किशोरियां तो इस वजह से अपनी पढ़ाई तक छोड़ देती हैं और ८५ प्रतिशत लड़कियां  पुराने व गंदे कपड़े का इस्तेमाल कर अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करती हैं। साफ़ कपडे के बजाय राख या घास की पोटली का भी इस्तेमाल किया जाता है।

उत्तर प्रदेश  सरकार ने अपनी इस योजना के लिये सस्ती दरों पर सैनेटरी पैड बनाने वाली सस्ती मशीन के अविष्कार करने वाले अरुणाचलम मुरुगनाथम को आंमत्रित किया है। 2014 में टाइम पत्रिका की विश्व के 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में जगह बना चुके मुरुगनाथम जब अपने आंकड़े पेश करते हैं तो बताते हैं कि आजादी के बाद भी भारत में इस विषय को गंभीरता से नहीं लिया गया।

यही कारण है कि महानगरीय क्षेत्रों में केवल 12 प्रतिशत महिलाएं स्वच्छ एवं सुरक्षित सैनेटरी पैड इस्तेमाल करती हैं जबकि उत्तर प्रदेश में  यह दर घटकर केवल 5 प्रतिशत रह जाती है। मुरुगनाथम जी का कहना है कि बड़ी कंपनियां मासिक धर्म का डर दिखाकर अपने उत्पाद बेचती हैं जबकि यह मुद्दा महिलाओं के स्वास्थ से लेकर उनके सामाजिक जीवन को प्रभावित करता है। इसलिये इसकी सही जानकारी के साथ-साथ पैड के सस्ते उत्पाद और उनकी सुलभ उपलब्धता जरुरी हो जाती है। भारत के विभिन्न राज्यों में अपनी सैनेटरी पैड बनाने की मशीन से माहवारी स्वच्छता के आंकड़ों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले मुरुगनाथम अपनी मशीन के जरिये इस मुद्दे को महिला रोजगार से भी जोड़ते हैं।

उत्तर प्रदेश  के महोबा जिले में पायलेट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद मुरुगनाथम अपने तरीके को पूरे उत्तर प्रदेश  में  लागू करेंगे। ब्लाक स्तर पर सेनेटरी पैड बनाने वाली यूनिट लगा कर और गांव की महिलाओं को सैनेटरी पैड के निर्माण की ट्रेनिंग देकर वह इस योजना को सीधा रोजगार से जोड़  देंगे। वहीं प्रदेश  सरकार की किशोरी सुरक्षा योजना के तहत 6 से 1२ कक्षा तक की छात्राओं को यह पैड फ्री बांटे जायेँगे ताकि जनता इस मामले को गंभीरता से ले। मुरुगनाथम जी का मानना है कि जब ग्रामीण महिलाओं को सस्ते दामों पर और आसानी से पैड मिलने लगेंगे तब वे भी उनका प्रयोग करने लगेंगी।

केजीएमयू की प्रोफेसर डाक्टर अमिता पाण्डेय मानती हैं कि महिलाओं के स्वास्थ को माहवारी बहुत प्रभावित करती है। कई बार गंदे कपड़े के इस्तेमाल से और माहवारी के दिनों में शारीरिक स्वच्छ्ता न बनाये रखने के कारण गंभीर परिणामों का समाना करना पड़ता है जैसे बांझपन एवं जननेन्द्रियों की अन्य बीमारियाँ। कई मामलों में तो संक्रमण इतना फैल जाता है कि गर्भाशय तक निकालना पड़ता है मगर समुचित जानकारी के अभाव में और समाज में प्रचलित माहवारी सम्बन्धी अनेक भ्रांतियों के चलते ज्यादातर औरतें इतनी सजग नहीं हैं कि वे यह समझ सकें कि एक खराब या गन्दा कपड़ा कैसे उनकी जिन्दगी बरबाद कर सकता है।

माहवारी के मुद्दे पर लखनऊ की तेईस वर्षीय समाजसेवी प्रभजोत कौर अपने अनुभव साझा करते हुए बताती हैं कि इस समस्या का मूल कारण है माहवारी के विषय पर संवाद की कमी। उन्होंने बताया कि जब मुझे पहली बार माहवारी हुई तब तक न तो मेरे शिक्षकों ने मुझे कुछ बताया था न ही मेरी माँ या परिवार के किसी अन्य सदस्य ने। जब मैं बहुत डर गई तब मेरी मां ने मुझे समझाया कि यह तो एक सामान्य प्रक्रिया है। मगर अक्सर माताएं  भी ऐसे संवाद से बचती हैं। जब लड़कियां घर में अपने परिवार से इस पर बात नहीं कर पाती तो सोचिये पुरुष की दुकान पर वह कैसे सैनेटरी पैड मांग सकती हैं।

प्रभजोत की चिंता सम्पूर्ण माहवारी सुरक्षा योजना के 2017 तक पूरे होने में एक बड़ी रुकावट बन सकती है। लेकिन अगर सरकार का यह सपना पूरा हो गया तो स्त्रियों के लिये असुरक्षित होते जा रहे उत्तर प्रदेश की महिलाओं के लिए महीने के कुछ दिन ही नहीं पूरी जिंदगी ही बदल सकती है।

अभिनव त्रिपाठी, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
१ सितंबर २०१५