हुक्का पार्लर के विरुद्ध राष्ट्रपति का अभियान

हुक्का पार्लर के विरुद्ध राष्ट्रपति का अभियान

भारत की प्रथम नागरिक श्री मती प्रतिभा पाटिल ने मुंबई में हुक्का पार्लर को बंद कराने की सिफारिस करेंगी। श्री मती प्रतिभा पाटिल का कहना है कि अगले साल मार्च में होने वाली विश्व स्तरीय तम्बाकू नियंत्रण सम्मलेन के दौरान यह बात रखेंगी की मुंबई में हुक्का पार्लर को पूरी तरह से बंद किया जाए। श्री मती पाटिल द्वारा उठाया गया यह कदम काफी सराहनिए है जो न केवल युवाओं को तम्बाकू का व्यसनी होने से बचायेगा बल्कि तम्बाकू नियंत्रण अभियानों को भी बल प्रदान करेगा।

तम्बाकू किसानों को ५००० करोड़ रूपये का अनुदान

तम्बाकू किसानों को ५००० करोड़ रूपये का अनुदान

भारत सरकार ने तम्बाकू किसानों को ५००० करोड़ रूपये का अनुदान देने की घोषना की है और कहा है कि किसानों को तम्बाकू की फसल के पैदावार को कम करना चाहिए और अन्य फसलों की तरफ़ ध्यान देना चाहिए । इसके पीछे भारत सरकार का मकसद वर्ष २०१५ तक तम्बाकू के फसल की पैदावार को कम से कम करना है। तम्बाकू की खेती में लगे लोगों को सरकार ५ लाख रूपये का अनुदान उनके पुनर्विस्थापन के लिए देगी।

तम्बाकू कंपनियों में करीब १० लाख मजदूर काम कर रहे हैं और भारत दुनिया में तम्बाकू के उत्पादन और उपभोग में ५ वे स्थान पर है। वर्ष २००२-२००३ में भारत में ३०,८०० करोड़ रूपये तम्बाकू द्वारा होने वाले रोगों पर खर्च किया था.

जापान ने परमाणु निशस्त्रीकरण किनारे कर भारत-अम्रीका का पक्ष लिया

जापान ने परमाणु निशस्त्रीकरण

किनारे कर

भारत-अम्रीका का पक्ष लिया
शोभा शुक्ला

अभी तक जापान, आड़विक न्रिशंसता का एकमात्र भुक्त भोगी राष्ट्र होने के कारण, सभी ऐसे हथियारों और नीतियों का विरोधी रहा है जो मनुष्य के लिए विनाशकारी हैं। अमरीका के परमाणु कार्यक्रमों में जापान ने कभी सहयोग नहीं दिया। वह सदा परमाणु निशस्त्रीकरण एवं शस्त्र नियंत्रण का समर्थक रहा है। और यह सर्वथा उचित भी है।

परन्तु,यह कैसी विडम्बना है कि इस वर्ष ६ अगस्त को हिरोशिमा दिवस के अवसर पर,जापान ने अमरीका और भारत के बीच होने वाले परमाणु समझौते के समर्थन में आवाज़ बुलंद करी है। यह तो उसके अपने ही देश वासियों के प्रति विश्वासघात है। जिस आतंरिक सहस और आत्मबल से जापान वासियों ने हिरोशिमा को एक बार फिर से एक स्वच्छ , शांतिप्रिय और अपराध मुक्त नगर के रूप में विकसित किया, उस पर जापान की इस नयी घोषणा ने कुठाराघात किया है।

जनता एक शान्त एवं सम्मानित जीवन जीना चाहती है न कि हिंसा और नफरत के डर से दबी हुए ज़िंदगी। आम जनता को परमाणु अस्त्रों का विध्वंस नहीं वरन एक स्वच्छ और हराभरा वातावरण चाहिए। फिर यह परमाणु संधि क्यों?

प्रत्येक वर्ष, ६ अगस्त को विश्व (विशेषकर जापान) के समस्त शांतिप्रिय नागरिक हिरोशिमा दिवस मनाते हुए उन लाखों लोगों को श्रधांजलि अर्पित करते हैं जो ६३ वर्ष पूर्व अमरीकी न्रशंसता के शिकार हो गए थे। अमेरिका द्वारा सन १९४५ में हिरोशिमा एवं नागासाकी पर ऐटम बम गिराए जाने के फलस्वरूप २४२,४३७ व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी थी और आज भी लगभग २७०,००० ऐसे व्यक्ति हिरोशिमा में रह रहे हैं जो उस आड़विक विस्फोट के कुप्रभावों से ग्रस्त हैं। इस न्रिशन्स हादसे ने अमरीकी साम्राज्यवाद की घोषणा करी।

तब से लेकर आज तक अमरीका स्वयं को विश्व सम्राट स्थापित करने के प्रयत्न में अपनी सामरिक नीतियों में कुटिल फेरबदल करने में सतत प्रयत्नशील है। आड़विक हथियारों का स्थान परमाणु अस्त्रों ने ले लिया है, जो कहीं अधिक घातक हैं।

आज जब विश्व परमाणु युद्ध के कगार पर खड़ा है, तब हमारा, आपका और प्रत्येक समझदार नागरिक का कर्तव्य है कि अपनी प्रिय वसुंधरा को नष्ट होने से बचाए। हमें प्रत्येक स्तर पर युद्ध और हिंसा का विरोध करना होगा - चाहे वो जिहादियों द्वारा किए जा रहे आतंकवादी हमले हों, धर्म के नाम पर हो रहे सांप्रदायिक दंगे हों, आर्थिक/राजनैतिक रूप से संपन्न राष्ट्रों की सामंतवादी नीतियाँ हों, या महिलाओं के प्रति हो रहे क्रूर एवं अमानवीय अपराध हों। हमें इन सभी का विरोध करते हुए, एक शांतिप्रिय सहजीवन में विश्वास रखना होगा ताकि कोई दूसरा हिरोशिमा दिवस न आए।

हमें स्वयं को, तथा अपने बच्चों को भी ,यह समझाना होगा कि युद्ध से किसी भी समस्या का हल नही हो सकता है। युद्ध जीतना कोई यशस्वी कार्य नहीं है। दूसरों के प्रति हमारी संवेदनशीलता ख़त्म होती जा रही है। उसे फिर से जागृत करना होगा. सभी धर्मों का आधार शान्ति, प्रेम, एवं भाईचारा है। फिर भी अधिकतर जघन्य अपराध धर्म के नाम पर ही हो रहे हैं। किसी का भी खुदा, पैगम्बर, भगवन या इश्वर यह नहीं कहता कि किसी व्यक्ति की जान लो। पर हम सभी मदांध हो रहे हैं.

आज हम सभी को मन, वचन और कर्म से मनुष्य जीवन का सम्मान करना होगा, न कि मृत्यु का यशगान। ‘जियो और जीने दो’ का नारा बुलंद करना होगा। संहार के आतंक में जीने के बजाये आतंक का संहार करना होगा। हमें आने वाली पीढ़ी को परमाणु अस्त्रों और सांप्रदायिक घ्रिणा से रहित एक शांतिप्रिय और संवेदनशील समाज देना होगा जहाँ सभी खुल कर साँस ले सकें।

शोभा शुक्ला

लेखिका लखनऊ के प्रसिद्ध लोरेटो कॉन्वेंट में वरिष्ठ अध्यापक हैं और सिटिज़न न्यूज़ सर्विस की संपादिका भी। ईमेल: shobha@citizen-news.org, वेबसाइट: www.citizen-news.org

तम्बाकू के वैकल्पिक फसल की तैयारी में स्वास्थ्य मंत्रालय

तम्बाकू के वैकल्पिक फसल की तैयारी में स्वास्थ्य मंत्रालय

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और केन्द्रीय तम्बाकू शोध संस्थान तम्बाकू के वैकल्पिक फसल को प्रोत्साहित करने के योजना बना रहा है। सरकार का कहना है कि तम्बाकू की फसल और बीड़ी बनाने के काम में लगे लोगों के स्वास्थ्य को इससे काफी खतरा है और इसमें कार्यरत मजदूरों को कई तरह के रोगों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार का कहना है की तम्बाकू उद्योग में लगे लोगों को इसको छोड़कर अन्य फसलों जैसे चना, हल्दी, मिर्च आदि पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। किन्तु इसके विपरीत तम्बाकू उद्योग में लगे लोगों का कहना है की वह लोग तम्बाकू की खेती लगातार जारी रखेंगे।

भारत सरकार के आंकडे के मुताबिक करीब १,५०,००० टन तम्बाकू और ३०,००० टन तेंदू के पत्ते हर साल बीडी बनाने के काम में लगते हैं। खाद्य और कृषि मंत्रालय के मुताबिक भारत में करीब २.९ लाख लोग तम्बाकू का उत्पादन करते हैं। तम्बाकू नियंत्रण पर बनी विश्वव्यापी संधि 'फ्रेमवर्क कंवेंशन आन टोबैको कंट्रोल' भी इस बात की वकालत करती है की तम्बाकू का उत्पादन कम से कम हो। ज्ञात हो की भारत इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुका है।

आइये, मृत्यु को छोड़ कर जीवन का अभिषेक करें

आइये, मृत्यु को छोड़ कर

जीवन का अभिषेक करें
शोभा शुक्ला

अभी कुछ दिन पहले, ६ अगस्त को हिरोशिमा दिवस की याद में लखनऊ शहर के शांतिप्रिय नागरिकों ने ‘ मोमबत्ती मार्च’ और पोस्टर प्रदर्शन द्वारा परमाणु शस्त्र एवं परमाणु संधि का विरोध किया। इस प्रदर्शन में विद्यार्थी, अध्यापक आम नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे। प्रसिद्द समाज सेवी एवं मग्सय्सय पुरुस्कार से सम्मानित डॉ संदीप पाण्डेय के सहयोग से हुए इस प्रदर्शन ने सिद्ध कर दिया कि साधारण जनता एक शान्त एवं सम्मानित जीवन जीना चाहती है न कि हिंसा और नफरत के डर से दबी हुए ज़िंदगी। आम जनता को परमाणु अस्त्रों का विध्वंस नहीं वरन एक स्वच्छ और हराभरा वातावरण चाहिए। फिर यह परमाणु संधि क्यों?

प्रत्येक वर्ष, ६ अगस्त को विश्व (विशेषकर जापान) के समस्त शांतिप्रिय नागरिक हिरोशिमा दिवस मनाते हुए उन लाखों लोगों को श्रधांजलि अर्पित करते हैं जो ६३ वर्ष पूर्व अमरीकी न्रशंसता के शिकार हो गए थे। अमेरिका द्वारा सन १९४५ में हिरोशिमा एवं नागासाकी पर ऐटम बम गिराए जाने के फलस्वरूप २४२,४३७ व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी थी और आज भी लगभग २७०,००० ऐसे व्यक्ति हिरोशिमा में रह रहे हैं जो उस आड़विक विस्फोट के कुप्रभावों से ग्रस्त हैं। इस न्रिशन्स हादसे ने अमरीकी साम्राज्यवाद की घोषणा करी।

तब से लेकर आज तक अमरीका स्वयं को विश्व सम्राट स्थापित करने के प्रयत्न में अपनी सामरिक नीतियों में कुटिल फेरबदल करने में सतत प्रयत्नशील है। आड़विक हथियारों का स्थान परमाणु अस्त्रों ने ले लिया है, जो कहीं अधिक घातक हैं।

अभी तक जापान, आड़विक न्रिशंसता का एकमात्र भुक्त भोगी राष्ट्र होने के कारण, सभी ऐसे हथियारों और नीतियों का विरोधी रहा है जो मनुष्य के लिए विनाशकारी हैं। अमरीका के परमाणु कार्यक्रमों में जापान ने कभी सहयोग नहीं दिया। वह सदा परमाणु निशस्त्रीकरण एवं शस्त्र नियंत्रण का समर्थक रहा है। और यह सर्वथा उचित भी है।

परन्तु,यह कैसी विडम्बना है कि इस वर्ष ६ अगस्त को हिरोशिमा दिवस के अवसर पर,जापान ने अमरीका और भारत के बीच होने वाले परमाणु समझौते के समर्थन में आवाज़ बुलंद करी है। यह तो उसके अपने ही देश वासियों के प्रति विश्वासघात है। जिस आतंरिक सहस और आत्मबल से जापान वासियों ने हिरोशिमा को एक बार फिर से एक स्वच्छ , शांतिप्रिय और अपराध मुक्त नगर के रूप में विकसित किया, उस पर जापान की इस नयी घोषणा ने कुठाराघात किया है।

आज जब विश्व परमाणु युद्ध के कगार पर खड़ा है, तब हमारा, आपका और प्रत्येक समझदार नागरिक का कर्तव्य है कि अपनी प्रिय वसुंधरा को नष्ट होने से बचाए। हमें प्रत्येक स्तर पर युद्ध और हिंसा का विरोध करना होगा - चाहे वो जिहादियों द्वारा किए जा रहे आतंकवादी हमले हों, धर्म के नाम पर हो रहे सांप्रदायिक दंगे हों, आर्थिक/राजनैतिक रूप से संपन्न राष्ट्रों की सामंतवादी नीतियाँ हों, या महिलाओं के प्रति हो रहे क्रूर एवं अमानवीय अपराध हों। हमें इन सभी का विरोध करते हुए, एक शांतिप्रिय सहजीवन में विश्वास रखना होगा ताकि कोई दूसरा हिरोशिमा दिवस न आए।

हमें स्वयं को, तथा अपने बच्चों को भी ,यह समझाना होगा कि युद्ध से किसी भी समस्या का हल नही हो सकता है। युद्ध जीतना कोई यशस्वी कार्य नहीं है। दूसरों के प्रति हमारी संवेदनशीलता ख़त्म होती जा रही है। उसे फिर से जागृत करना होगा. सभी धर्मों का आधार शान्ति, प्रेम, एवं भाईचारा है। फिर भी अधिकतर जघन्य अपराध धर्म के नाम पर ही हो रहे हैं। किसी का भी खुदा, पैगम्बर, भगवन या इश्वर यह नहीं कहता कि किसी व्यक्ति की जान लो। पर हम सभी मदांध हो रहे हैं.

आज हम सभी को मन, वचन और कर्म से मनुष्य जीवन का सम्मान करना होगा, न कि मृत्यु का यशगान। ‘जियो और जीने दो’ का नारा बुलंद करना होगा। संहार के आतंक में जीने के बजाये आतंक का संहार करना होगा। हमें आने वाली पीढ़ी को परमाणु अस्त्रों और सांप्रदायिक घ्रिणा से रहित एक शांतिप्रिय और संवेदनशील समाज देना होगा जहाँ सभी खुल कर साँस ले सकें।

शोभा शुक्ला

लेखिका लखनऊ के प्रसिद्ध लोरेटो कॉन्वेंट में वरिष्ठ अध्यापक हैं और सिटिज़न न्यूज़ सर्विस की संपादिका भी। ईमेल: shobha@citizen-news.org, वेबसाइट: www.citizen-news.org

झारखण्ड के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर तम्बाकू उत्पाद अधिनियम का खुलेआम उल्लंघन

झारखण्ड के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर तम्बाकू उत्पाद अधिनियम का खुलेआम उल्लंघन

झारखण्ड के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर सिगरेट और तम्बाकू उत्पाद सरे आम प्रशासन की नजरों के सामने बिक रहें हैं, यहाँ तक कि तम्बाकू उत्पादों को बेचने वाले कम उम्र के बच्चे गाड़ियों के अन्दर भी घुस कर इसकी बिक्री करते हैं. कई बार उन यात्रियों को जो इसका सेवन नहीं करते हैं काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. तम्बाकू बेचने वाले एक व्यक्ति का कहना है की ट्रेनों के अन्दर गुटखा बेचने से उनको दोगुनी अधिक कमाई हो जाती है।

डॉक्टरों ने मरीज को रिश्वत वापस की, माफ़ी माँगी

डॉक्टरों ने मरीज को रिश्वत वापस की, माफ़ी माँगी
मनीष कुमार
आशा स्वास्थ्य सेवा

मैं जरूरतमंद लोगों की सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने में हर सम्भव मदद करता आया हूँ। इस लेख के जरिये में ऐसी घटना आप सब पाठकों से बाटना चाहता हूँ जहाँ डॉक्टरों ने ली हुई रिश्वत मरीज को न केवल वापस की बल्कि माफ़ी भी माँगी।

यह एक आम बात है कि सरकारी अस्पतालों में मेडिकल सर्टिफिकेट बनाने के लिए घूस मांगी जाती है, खास कर कि ऐसे सर्टिफिकेट जो पुलिस स्टेशन में कितनी चोट लगी है इसके लिए अफ.ई.आर लिखाने के लिए जरुरी हैं, घूस माँगना एक आम बात हो गई है। यहाँ तक कि यदि घूस पर्याप्त दी जाए तो सर्टिफिकेट में अधिक गंभीर चोट दिखा के कोर्ट में केस को अधिक मजबूत किया जा सकता है।

इसके विपरीत यदि घूस नही दी गई हो तो सर्टिफिकेट में चोट की गंभीरता को कम दिखाते हुए कोर्ट में केस को कमजोर भी किया जा सकता है। कोर्ट के केस की बात दूर है, घूस न मिलने पर इतना कमजोर सर्टिफिकेट बनाया जाता है कि एफ.ई.आर तक नही लिखी जायेगी।

२५ अप्रैल २००८ को राम नरेश नामक व्यक्ति जो श्री जगन्नाथ का पुत्र है और गावं अमृत खेदा, पुलिस स्टेशन माल, तहसील मलिहाबाद, जिला लखनऊ का रहने वाला है, उसकी उसी गावँ के निवासी से मुत्भेड हो गई जिसमें उसे गंभीर रूप से चोट आई। चोट आने के बाद लखनऊ स्थित बलरामपुर अस्पताल में उसको भरती कराया गया।

राम नरेश से तुरंत रुपया ३०० जमा करने को बोला गया। जब उसने घटना का विवरण किया तब उससे रुपया ५०० अधिक मांगे गए जिससे उपरान्त उसको वाजिब मेडिकल सर्टिफिकेट जारी किया जा सके। राम नरेश ने रुपया १०० ज़ख्म पर टांके लगाने के लिए और रुपया २० दवाओं के लिए दे दिए, जबकि उसको दवाएँ नि:शुल्क मिलनी चाहिए थी क्योकि वो गरीब है और सरकारी अस्पतालों में गरीब लोगों को नि:शुक्ल दवाएँ मिलती हैं। यह एक शरम की बात है कि एक गरीब व्यक्ति से अस्पताल के कर्मचारी वाजिब और सही काम करने के लिए भी पैसे माँगे।

राम नरेश ने अस्पताल के अधिकारियों के कार्यालय में इसकी शिकायत दर्ज कर दी। यह शिकायत दर्ज करने के उपरान्त इस अस्पताल का एक वार्ड बॉय राम नरेश के पास आया और बोला कि 'चौरसिया' नाम के व्यक्ति से जो 'इमर्जेंसी' वार्ड में कार्यरत है, अपना पैसा वापस ले ले। इसके उपरान्त राम नरेश को उसका पैसा वापस कर दिया गया जो उसने अस्पताल के स्वास्थ्यकर्मियों को रिश्वत में दिया था। अस्पताल के स्वास्थ्यकर्मियों ने इस घटना के लिए राम नरेश और अन्य लोगों से माफ़ी भी माँगी।

स्वास्थ्यसेवा के निजीकरण से और सरकारी स्वास्थ्यसेवा में भी रिश्वत और कानूनन रूप से जायज़ सेवा शुल्क के कारण हमारे समुदाय का एक बहुत विशाल हिस्सा अब स्वास्थ्यसेवा का लाभ उठाने से वंचित रह गया गया है। उम्मीद है कि आने वाले समय में, हर व्यक्ति को पर्याप्त स्वास्थ्यसेवा उपलब्ध होगी।

मनीष कुमार
आशा स्वास्थ्य सेवा

लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा किया गया तम्बाकू नियंत्रण से सम्बंधित सर्वे

लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा किया गया तम्बाकू नियंत्रण से सम्बंधित सर्वे

आभार
:- इस सर्वेक्षण में अपना बहुमूल्य योगदान देने के लिए छत्रपति शाहू जी महराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के शल्य चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्षा, विश्व स्वस्थ्य संगठन के अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से वर्ष २००५ में सम्मानित तथा विश्व स्वस्थ्य संगठन द्वारा संचालित तम्बाकू नशा उन्मूलन केन्द्र के प्रमुख, प्रोफ़ेसर (डॉ.) रमाकांत के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं. श्री अभिषेक मिश्रा और श्री रितेश आर्य के भी आभारी हैं जिन्होंने आंकड़ों के एकत्रीकरण में अपना बहुमूल्य समय दिया और अमित द्विवेदी जिन्होंने इस पूरे सर्वेक्षण में अपना सहयोग प्रदान किया। हम इस सर्वेक्षण के सभी उत्तरदाताओं के आभारी हैं जिन्होंने प्रश्नों का उत्तर देने के लिए अपना बहुमूल्य समय और सहयोग देकर इस प्रयास को सफल बनाया.

पृष्ठभूमि:-तम्बाकू विश्व में रोकी जा सकने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण बन रहा है. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है की तम्बाकू से इस वर्ष पचास लाख से ज्यादा लोगों की मौत होगी जो टीबी, ऐड्स तथा मलेरिया को मिलाकर होने वाली कुल मौतों की संख्या से भी अधिक है. यदि कठोर कदम नहीं उठाये गए तो तम्बाकू से इस शताब्दी में दस खराब लोगों की मृत्यु का अनुमान लगाया गया है. यद्यपि तम्बाकू से होने वाली मौतें कम ही शीर्षक समाचार बन पाती हैं, परन्तु तम्बाकू के कारण हर सेकंड में एक मौत होती है.

नीतियां:- भारत में तम्बाकू से प्रतिवर्ष दस लाख से भी ज्यादा लोगों की मृत्यु होती हैं. तम्बाकू सेवन की रोकथाम तथा तम्बाकू जनित रोगों, अक्षमताओं तथा मृत्यु को कम करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने तम्बाकू की रोकथाम के लिए एक विस्तृत नीति को लागू किया हैसिगरेट तथा अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम -२००३. तब से विभिन्न नियम एवं कानून द्वारा इस अधिनियम के अलग-अलग प्रावधानों को प्रभावकारी रूप से लागू किया जा रहा है. इसके अलावा विश्व की पहली जन स्वास्थ्य एवं उद्योगों की जवाबदेही के लिए बनी संधि – फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन तोबक्को कंट्रोल पर फरवरी, २००५ को भारत ने भी हस्ताक्षर किया है तथा भारतीय संसद ने इस संधि का समर्थन किया है. मौजूदा तम्बाकू नियंत्रण नीतियों के बावजूद सिर्फ़ तम्बाकू का सेवन करने वाले बच्चों और युवाओं की संख्या बढ़ी है बल्कि तम्बाकू जनित रोगों, अक्षमताओं तथा मृत्यु की संख्या में भी महत्वपूर्ण बढ़त देखी गई है.जन स्वास्थ्य नीतियों को प्रभावकारी ढंग से लागू करना भारत एवं विश्व के अन्य राष्ट्रों के समक्ष एक बहुत बड़ी चुनौती है. मुद्दे:- विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक तम्बाकू एकमात्र ऐसा उत्पाद है जो वैध रूप से बेचा जा सकता है और इसका उपयोग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को हानि पहुँचाता है- तम्बाकू का प्रयोग करने वाले सौ में से पचास की मौत तम्बाकू जनित कारणों से होनी निश्चित है. कम दाम, प्रभावकारी तथा भ्रामक बाजारीकरण, तम्बाकू से हानि के विषय में जागरूकता की कमी, इसके प्रयोग के विरुद्ध असंगत जन योजनाओं के कारण तम्बाकू का प्रयोग विश्व में सामान्य रूप से किया जाता है. तम्बाकू से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुप्रभाव वर्षों और दशकों तक स्पष्ट रूप से पता नहीं चलते. इसलिए एक तरफ़ जब तम्बाकू का सेवन विश्व में बढ़ रहा है तभी दूसरी तरफ़ तम्बाकू जनित रोग तथा मृत्यु की अभी शुरुआत हुई है.

आगे की रणनीति:-परन्तु हम भविष्य परिवर्तित कर सकते हैं. यह तम्बाकू महामारी विनाशकारी है लेकिन इसकी रोकथाम संभव है, इसके लिए हमें तम्बाकू के खिलाफ तुंरत सशक्त प्रयास करने चाहिए.हम इस तम्बाकू महामारी को रोक सकते हैं तथा तम्बाकू मुक्त विश्व की और अग्रसर हो सकते हैं लेकिन इसके लिए हमें अभी से ही प्रयास करने होंगे.


सर्वेक्षण :

उद्देश्य:-

भारत की राष्ट्रीय तम्बाकू उपयोग सांख्यिकी को लखनऊ शहर स्तर पर प्रमाणित करना।

भारत में मौजूदा तम्बाकू नियंत्रण नीतियों के विषय में जागरूकता के स्तर का पता लगाना

तम्बाकू नियंत्रण अभियान, जो कम खर्चे पर काफी प्रभावकारी रहे हैं, इस पर समुदाय के लोगों का नजरिया जानना।

सर्वेक्षण के नतीजों को मीडिया के विभिन्न माध्यमों द्वारा प्रचारित करना तथा राष्ट्रीय स्तर के सभी सरकारी और गैर सरकारी संगठनों को तम्बाकू के विषय में जागरूक करना।

विधि:-

प्रश्नावली की रचना

प्रश्नावली की रचना के लिए हम लोगों ने विभिन्न छेत्र के लोगों की सहायता ली जैसे- शोधार्थी, सांख्यिकी के विशेषज्ञ,तम्बाकू नियंत्रण अभियान में लगे विशेषज्ञ जिससे कि प्रश्नों को आसान और लोगों द्वारा आसानी से समझ में सकने वाला बनाया जा सके।
१५ प्रश्नों को चार भागो में बांटा गया था.(विस्तृत जानकारी के लिए प्रश्नोतरी देखें)
उत्तरदाता के विषय में व्यक्तिगत जानकारी।
एक खंड उन उत्तरदाताओं के लिए था जो तम्बाकू का प्रयोग करते हैं, जिस से उनके तम्बाकू प्रयोग के इतिहास के बारे में जाना जा सके।
भारत में तम्बाकू नियंत्रण अधिनियम और उस से सम्बंधित नीतियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन

आंकडों का अंकन:-

प्रत्येक प्रश्न के निर्धारित कोडेड बहुविकल्प थे. डाटा शीट हमने माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल शीट तथा उसके सूत्र की सहायता से आंकड़ों को अंकित किया और उसका मूल्यांकन किया.

आंकड़ों का एकत्रीकरण:-

आंकड़ों को एकत्र करने के लिए हमने सर्वेक्षणकर्ताओं की एक टीम बनाई जिसमें महिला और पुरूष दोनों सम्मिलित थे।

सर्वेक्षणकर्ताओं के नाम:
. आलोक कुमार द्विवेदी
2. सारिका त्रिपाठी

दिनों (२८ जुलाई- अगस्त, २००८) में ७६३ उत्तरदाताओं से आंकड़े एकत्र किए गए

सर्वेक्षण स्थान: इस सर्वेक्षण में हर तरह के लोगों को सम्मिलित करने के उद्देश्य से हमने ऐसे स्थानों को चुना जहाँ हर तरह के लोग आते हो जैसे रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन और बाज़ार।

सर्वेक्षणकर्ताओं को इस सर्वेक्षण की विधि और प्रत्येक प्रश्न की संवेदनशीलता के विषय में पूरी जानकारी दी गई जिस से उत्तरदाताओं को किसी प्रकार की हिचकिचाहट हो.

सर्वेक्षणकर्ताओं को निर्देश:-

उत्तरदाताओं को अपना परिचय देना तथा इस सर्वेक्षण के विषय में उन्हें जानकारी देना।

कोई भी प्रश्न पूछने से पहले उत्तरदाताओं की आज्ञा लेना।

उत्तरदाताओं से प्रत्येक प्रश्न विनम्रतापूर्वक पूछना जिस से की वे बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दे सकें.


सर्वेक्षण के परिणाम:-

कुल ७६३ उत्तरदाताओं में ७० प्रतिशत पुरूष तथा ३० प्रतिशत महिलाएँ थी।विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ष २००८ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के युवाओं में तम्बाकू का प्रयोग १४. प्रतिशत है, जिसमें से पुरुषों में १७. प्रतिशत और महिलाओं में . प्रतिशत है.


भारत के वयस्कों में तम्बाकू उपयोग पुरुषों तथा महिलाओं में क्रमशः ५७ प्रतिशत और . प्रतिशत है.राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की २००६ कि रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर तम्बाकू उपयोग १८ से २४ वर्ष के आयु वर्ग के लोगों में पाया गया है.

हमारे सर्वेक्षण में ज्यादातर उत्तरदाता ३० से ५० वर्ष की आयु वर्ग में थे, इसके बाद १८-३० वर्ष(३९%) ११ प्रतिशत उत्तरदाता ५० वर्ष या इससे ज्यादा आयु के थे और मात्र प्रतिशत उत्तरदाता -१८ वर्ष की वर्ग में थे.


कई आंकड़े इस और इंगित करते हैं कि तम्बाकू प्रयोग सभी प्रकार के शैक्षणिक पृष्ठभूमि के लोगों में प्रचलित है, इसमें वे लोग भी सम्मिलित हैं जिनके पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं है. इस सर्वेक्षण में ज्यादातर उत्तरदाता स्नातक थे(४१%),इसके बाद अन्य तीन वर्गों में कोई महत्वपूर्ण अन्तर नहीं था- परास्नातक(२९%), बारहवीं पास (२८.१०%)तथा वे जिनके पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी (३१%)

सर्वेक्षण के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि ५७ प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कभी भी किसी भी प्रकार के तम्बाकू का सेवन नहीं किया और ४३ प्रतिशत उत्तरदाता तम्बाकू का सेवन करते थे.

सर्वेक्षण के तथ्य यह दर्शाते हैं कि ४४ प्रतिशत उत्तरदाता पिछले - वर्ष से तम्बाकू का सेवन करते रहे हैं, ४३ प्रतिशत उत्तरदाता पिछले -१० वर्षों से तम्बाकू का सेवन कर रहे हैं, १२ प्रतिशत उत्तरदाता पिछले १५-२० वर्षों से तम्बाकू का सेवन कर रहे हैं, जबकि प्रतिशत उत्तरदाता २० वर्षों से अधिक से तम्बाकू का सेवन कर रहे हैं
तम्बाकू के परंपरागत प्रकार (जैसे कि पान) अब पुरानी पीढ़ी का शौक है, नई पीढ़ी अब तम्बाकू के नए प्रकार जैसे- तम्बाकू टूथपेस्ट, गुटखा और सिगरेट का सेवन करती है. तम्बाकू प्रयोग में गुटखा सबसे ज्यादा प्रचलित है. हमारे सर्वेक्षण के अनुसार, ३९ प्रतिशत उत्तरदाता गुटखे का सेवन करते हैं,३२ प्रतिशत सिगरेट पीते हैं,१० प्रतिशत बीड़ी पीते हैं, जबकि १९ प्रतिशत इनमें से सभी प्रकार के तम्बाकू का सेवन करते हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्धयन के अनुसार वर्ष १९९१ से २००२ के बीच प्रर्दशित ४४० बॉलीवुड फिल्मों में तम्बाकू सेवन दिखाया गया था, इनमें चार में से तीन फिल्मों में सिगरेट के माध्यम से तम्बाकू सेवन दिखाया गया है. फिल्मों में हीरो द्वारा तम्बाकू सेवन अक्सर युवाओं को सिगरेट पीने कि तरफ़ आकर्षित करता हैं क्यूँकि वे इसे फैशन और स्टाइल का प्रतीक मानने लगते हैं. ३६ प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने सभी तीन कारणों सेव्यावसायिक या निजी तनाव, अपने से बड़ों को सेवन करते हुए देखने से, फिल्मी कलाकारों को या फैशन से प्रभावित होकर तम्बाकू का सेवन शुरू किया . ३० प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने तनाव कि वजह से तम्बाकू का सेवन शुरू किया.

विश्व स्वस्थ्य संगठन तथा रोग नियंत्रण केंद्र के समर्थन से भारत में वर्ष २०००-२००४ के बीच वैश्विक युवा तम्बाकू सर्वेक्षण किया गया जिस के अनुसार करीब ६८. प्रतिशत छात्र जो सिगरेट पीते थे, वे इसे छोड़ना चाहते थे जबकि ७१. प्रतिशत पिछले वर्षों में इसे छोड़ने का प्रयास कर चुके हैं. पुरे भारत में, ८४. प्रतिशत सिगरेट पीने वाले छात्रों को परिवार के सदस्यों, समुदाय के लोगों, डॉक्टर और मित्रो द्वारा इसे छोड़ने के विषय में सलाह एवं सहायता मिली है.लखनऊ में किए गए हमारे सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार ६९ प्रतिशत सर्वेक्षण उत्तरदाताओं ने तम्बाकू सेवन कि आदत को छोड़ने कि कोशिश की है, ३१ प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने तम्बाकू सेवन छोड़ने कि कभी कोई कोशिश नहीं की।

लिखित चेतावनी, टैक्स तथा अन्य प्रतिबन्ध जो सिगरेट के पैकेट पर दिखाई देती हैं वे अन्य तम्बाकू उत्पादों पर अक्सर नही होते. गुटखा, बीड़ी और अन्य तम्बाकू उत्पादों का उत्पादन तथा मार्केटिंग कुछ हद तक असंगठित सेक्टर द्वारा किया जाता है, जिस कारण इन पर नियम तथा कानून लागु करने में परेशानी आती है. परन्तु जब यह सवाल पूछा गया कि बीड़ी और सिगरेट में से कौन ज्यादा नुकसानदायक है तो ४९ प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि दोनों ही बराबर नुकसानदायक है, ३० प्रतिशत ने कहा कि बीड़ी ज्यादा नुकसानदायक है .


मई २००८ में भारत के स्वस्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जरी किए गयी बीड़ी मोनोग्राफ के अनुसार बीड़ी कम से कम सिगरेट के बराबर नुकसानदायक है ही. भारत के समतुल्य देश जैसे ब्राजील, थाईलैंड, सिंगापुर, होन्ग कोंग, उरुगुए, वेनेज़ुएला तथा अन्य विकसित देशो ने तम्बाकू के पैकेट का ५० प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा फोटो वाली चेतावनी को दिया है।


सर्वेक्षण के अनुसार ५२ प्रतिशत उत्तरदाताओं ने माना कि पैकेट पर फोटो वाली चेतावनी से जागरूकता बढ़ेगी जबकि ४५ प्रतिशत लोगों का यह मानना था कि इससे जागरूकता पर कोई प्रभाव नही पड़ेगा.

फोटो वाली चेतावनी का अभी भारत में लागु होना बाकि है इस लिए यह उत्तर लोगों के अनुमानों पर आधारित हैं. पुरे विश्व में फोटो वाली चेतावनी से जागरूकता बढ़ी है, तम्बाकू का सेवन करने वाली संख्या में कमी आई है और इसने तम्बाकू का सेवन छोड़ने के लिए लोगों को प्ररित किया है। थाईलैंड, ब्राजील और एउरोपेये संघ, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, और बेल्जियम जैसे देशों में फोटो वाली चेतावनी द्वारा तम्बाकू सेवन करनेवालों के प्रतिशत में भरी कमी आयी है. इन सभी देशों में इस चेतावनी के लागु होने के बाद % प्रतिशत प्रतिवर्ष कि गिरावट आई है

लखनऊ में किए गए सर्वेक्षण में ३७ प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना था कि फोटो वाली चेतावनी से लोग तम्बाकू छोड़ने के लिए प्रेरित होंगे जबकि ५६ प्रतिशत लोगों का मानना था कि फोटो वाली चेतावनी से लोग तम्बाकू छोड़ने के लिए प्रेरित नहीं होंगे।

विश्व स्वस्थ्य संगठन के एक अध्यन के अनुसार इस्चेमिक हार्ट रोग (आई.एच.डी) और अप्रत्यक्ष धूम्रपान का आपस में सम्बन्ध होता है, जिन महिलाओं या पुरूष के पति अथवा पत्नी सिगरेट पीते हैं उनमे आई.एच.डी होने की सम्भावना सामान्य से ३० प्रतिशत अधिक होती है. भारत में अप्रत्यक्ष धूम्रपान के शिकार लोगों में कोरोनरी हार्ट रोग की सम्भावना सिगरेट के धुँए से दूर रहने वालो से २५ प्रतिशत ज्यादा होती है. हमारे सर्वेक्षण के अनुसार ७३ प्रतिशत उत्तरदाताओं ने यह कहा कि अप्रत्यक्ष धूम्रपान की रोकथाम के लिए सार्वजनिक तथा निजी स्थानों पर धूम्रपान पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगना चाहिए।

केरल कि हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कि गयी थी जिसमें एक महिला ने यह शिकायत दर्ज कि थी कि अक्सर बस से यात्रा करते हुए अपने सह-यात्रिओं के सिगरेट पीने के कारण उसे स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियाँ होती हैं. इस अर्जी पर हाई कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि अप्रत्यक्ष धूम्रपान पर बने जन स्वास्थ्य नियम को सरकार को जल्द से जल्द प्रभावकारी ढंग से लागु करना चाहिएइसी विषय पर सुप्रीम कोर्ट ने नवम्बर २००१ में पुरे देश में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबन्ध लगा दिया जैसे स्कूल, लाइब्रेरी, रेलवे वेटिंग रूम तथा बस और ट्रेन.

भारत के स्वस्थ्य मंत्री, डॉ. अम्बुमणि रामदोस ने यह कहा है कि अक्टूबर २००८ से सभी सार्वजनिक तथा निजी स्थानों पर धूम्रपान पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया जाएगा.

सर्वेक्षण में इस सवाल के जवाब में ७१ प्रतिशत लोगों का कहना था कि इसे प्रभावकारी ढंग से लागु नहीं किया जा सकेगा जबकि १९ प्रतिशत लोगों का मत था कि सरकार इसे प्रभावकारी ढंग से लागु कर पायेगी.

लोगों को तम्बाकू के नशे से मुक्त कराने के लिए तम्बाकू नशा उन्मूलन केन्द्रों को बढ़ावा देने कि जरूरत है. इसका उल्लेख फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबक्को कंट्रोल (ऍफ़.सी.टी.सी) में किया गया है. भारत सरकार और विश्व स्वस्थ्य संगठन के प्रयासों से भारत में राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण प्रकोष्ठ कि स्थापना की गई है. लखनऊ में किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक मात्र १३ प्रतिशत लोगों को यह पता है कि तम्बाकू नशा उन्मूलन सेवाएँ उपलब्ध हैं जबकि ५७ प्रतिशत उत्तरदाताओं को इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं थी.


भारत में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर १३ केन्द्रों पर तम्बाकू उन्मूलन केंद्र स्थापित किए हैं। वर्ष २००२ में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तम्बाकू नशा उन्मूलन केंद्र (टी.सी.सी) कि विभिन्न स्थानों (हॉस्पिटल, मेडिकल कॉलेज, कैंसर हॉस्पिटल) पर स्थापना की जिससे लोगों को तम्बाकू छोड़ने में मदद दी जा सके. लखनऊ में भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से ऐसे ही केंद्र को स्थापित किया गया है. सर्वेक्षण में जब यह सवाल किया गया कि क्या प्रदेश के हर जिला अस्पताल तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर ऐसी सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए तो ९६ प्रतिशत लोगों का यह कहना था कि 'हाँ ऐसी सुविधाएँ हर जिला अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर होनी चाहिए'.

लोगों को तम्बाकू के नशे से मुक्त कराने के लिए तम्बाकू नशा उन्मूलन केन्द्रों को बढ़ावा देने कि जरूरत है. इसका उल्लेख फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबक्को कंट्रोल (ऍफ़.सी.टी.सी) में किया गया है. भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रयासों से भारत में राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण प्रकोष्ठ कि स्थापना कि गई है.

तम्बाकू नियंत्रण अधिनियम को पारित कराने में असफल है चंडीगढ़ प्रशासन

चंडीगढ़ को देश का एक मात्र धूम्रपान शहर घोषित होने को एक साल से ज्यादा हो गए हैं किन्तु हम चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा तम्बाकू नियंत्रण अधिनियम का खुलेआम उल्लंघन होते हुए देख सकतें हैं. चंडीगढ़ राज्य प्रशासन इस अधिनियम के प्रभावकारी रूप से लागू करने में असफल रहा है. कई सारे शैक्षिक संस्थानों के पास आप को तम्बाकू और शराब की दुकानें खुली हुई मिल जाएँगी. इस सम्बन्ध में चंडीगढ़ के आबकारी आयुक्त श्री एम० एस० बरार का कहना है कि यह दुकानें विद्यालयों के परिसर से काफी दूर हैं. प्रसासन का कुछ भी कहना हो लेकिन यह सारी नशे से सम्बंधित वस्तुएं छात्रों के पहुँच में आसानी से उपलब्ध हैं।

टीबी या तपेदिक साप्ताहिक समाचार सारांश (१३-२५ अगस्त २००८): अंक ७४

टीबी या तपेदिक साप्ताहिक समाचार सारांश
१३-२५ अगस्त २००८
अंक ७४

पांच मुख्य समाचार:
१. बच्चों में टीबी शोध आखिर कब प्राथमिकता पायेगा?

२. फोटो के जरिये टीबी नियंत्रण: स्टाप टीबी पार्टनरशिप ने फोटो प्रतियोगिता घोषित की

३. लगभग १ प्रतिशत टीबी रोगी का ही होता है एच.आई.वी परीक्षण

४. शराब पीने से सक्रिय टीबी रोग होने का खतरा बढ़ता है

५. एच.डी.एन और अलैंस ने विलय होने की बात रखी

समाचार विस्तार से:
--------------------
पी.एल.ओ.एस शोध जर्नल में प्रकाशित हुए शोध (पढ़ने के लिये यहाँ पर क्लिक कीजिये) के अनुसार, टीबी नियंत्रण और इलाज के कार्यक्रमों के मूल्यांकन में बच्चों में टीबी की रोकधाम और इलाज को नज़रअंदाज़ नही करना चाहिए. टीबी या तपेदिक से ग्रसित लोगों में, अक्सर २० प्रतिशत तक बच्चे हो सकते हैं, खासकर कि उन समुदायों में जहाँ टीबी या एच.आई.वी संक्रमण महामारी का रूप ले चुका है. न केवल बच्चे, वरन युवा वर्ग को भी टीबी के प्रति सचेत होने की आवश्यकता है.

बच्चों में टीबी की रोकधाम और इलाज को अक्सर पर्याप्त ध्यान नही मिलता - उदाहरण के तौर पर, टीबी वैक्सीन (बी.सी.जी) एच.आई.वी से संक्रमित बच्चों में अत्यन्त खतरनाक हो सकती है - इसके बावजूद पर्याप्त शोध कार्य नहीं हो रहा है. टीबी की जाँच भी बच्चों में जटिल समस्या उत्पन्न करती है. इस शोध को पढ़ने के लिये, यहाँ पर क्लिक कीजिये

स्टाप टीबी पार्टनरशिप ने टीबी नियंत्रण पर फोटो प्रतियोगिता की घोषणा की है जिसमें छायाकार लोग ३० अक्टूबर २००८ तक फोटो भेज सकते हैं. अधिक जानकारी के लिये, यहाँ पर क्लिक कीजिये

उत्तरी थाईलैंड में भी टीबी या तपेदिक 'फोटो-वाइस' नामक कार्यक्रम काफी सराहनीय कार्य कर रहा है, जिसमें टीबी और एच.आई.वी से ग्रसित लोगों को फोटोग्राफी के माध्यम से अपनी बात कहने का मौका मिलता है, समुदाय में टीबी और एच.आई.वी से ग्रसित लोगों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने का मौका मिलता है और संवाद कायम रखने का भी सुनहरा अवसर प्राप्त होता है. इस टीबी या तपेदिक फोटो-वाइस के बारे में अधिक जानकारी के लिये, यहाँ पर क्लिक कीजिये

एच.डी.एन और अलैंस नामक टीबी/तपेदिक और एच.आई.वी पर कार्यरत दो विश्व स्तर की संस्थाओं ने विलय होने का संवाद प्रारम्भ किया है. यह घोषणा, विश्व की सबसे बड़ी एड्स कांफ्रेंस में (मेक्सिको, अगस्त २००८) घोषित की गई.

इस दौर में जहाँ असंख्य संस्थान अपने वजूद को संग्रक्षित रखने के लिये संघर्षरत हैं, वहीँ एच.डी.एन और अलैंस ने एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया है.

एच.आई.वी और टीबी/ तपेदिक के कार्यक्रमों को सशक्त करने के लिये और मौजूदा संसाधनों को पूरी तरह से इस्तेमाल करने के लिये, न केवल संस्थाओं का कम होना जरूरी है, बल्कि अपने स्वार्थ से ऊपर उठ कर, मुद्दों के प्रति अपने समर्पण का परिचय देना भी लाज़मी है.


संपादक: बाबी रमाकांत
ईमेल: bobbyramakant@yahoo.com

धूम्रपान रहित सार्वजनिक स्थान स्वास्थ्य के लिए लाभदायक


धूम्रपान रहित सार्वजनिक स्थान स्वास्थ्य के लिए लाभदायक

विभिन्न प्रकार के तम्बाकू नियंत्रण अभियानों के बावजूद भी भारत में तम्बाकू के प्रयोग को प्रभावकारी तरीके से रोकनें में सफलता नही मिली है. किंतु हाल ही में पारित धूम्रपान विरोधी अधिनियम जो कि २ अक्टूबर २००८ से सम्पूर्ण भारत में प्रभावकारी होने जा रहा है निश्चय ही सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान में प्रतिबन्ध लायेगी और अप्रत्यक्ष धुम्रपान के द्वारा प्रभावित लोगों में कमी होगी।

इंग्लैंड मेडिकल जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक यदि हम धूम्रपान विरोधी अधिनियम को प्रभावकारी तरीके से लागू कर लें तो तम्बाकू द्वारा प्रभावित लोगों में करीब १७ प्रतिशत की कमी लाई जा सकती है. इसके अतिरिक्त अप्रत्यक्ष धूम्रपान का शिकार हो रहे लोगों में भी करीब ६७ प्रतिशत की गिरावट होगी. इसमें कोई दो राय नहीं कि अप्रत्यक्ष धूम्रपान अत्यन्त ही घातक है। इस सम्बन्ध में वरिष्ट चिकित्सक श्री नीरज मिश्रा का कहना है कि अप्रत्यक्ष धूम्रपान से न केवल ह्रदय से संबधित रोग हो जाते हैं बल्कि कई तरह के अन्य असाध्य रोग भी हो जातें हैं।

मिज़ोरम में 'तुइबुर' तम्बाकू उत्पादन पर प्रतिबन्ध लगने को है

मिज़ोरम में 'तुइबुर' तम्बाकू उत्पादन पर प्रतिबन्ध लगने को है

मिज़ोरम के प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ११ अगस्त २००८ को कहा कि मिजोरम में प्रचलित देसी तम्बाकू उत्पादन जिसको तुइबुर कहते हैं, उसके उत्पादन पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए.

तुइबुर तम्बाकू उत्पादन, तम्बाकू के पत्ते से निकलने वाले निकोटीन द्रव्य से बनता है, और इस प्रक्रिया में झरनों या नदी का पानी भी प्रदूषित होता है.

इन्ही झरनों और नदियों से मिज़ोरम की जनता पीने के लिए और अन्य जरूरतों के लिए पानी लेती है.

इसके अलावा इस पानी से बदबू भी फैलती है, जो वहाँ पर रहने वालों के लिए हितकारी नहीं है.

तुइबुर, मिज़ोरम में रहने वाले जन-जातियों का एक पारम्परिक तम्बाकू उत्पादन है, जो पहले के ज़माने में बुजुर्ग महिलाओं द्वारा बनाया जाता था और हुक्काह की तरह की तकनीक से उसका सेवन किया जाता था।
बाबी रमाकांत

दिल्ली विश्वविद्यालय धूम्रपान करने वाले छात्रों के लिए पुनर्वास केंद्र बनाएगा

दिल्ली विश्वविद्यालय धूम्रपान करने वाले छात्रों के लिए पुनर्वास केंद्र बनाएगा

हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने विश्वविद्यालय के उत्तरी कैम्पस को धुम्रपान मुक्त घोषित कर दिया था. विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा एक और सराहनिए कदम उठाया गया है, इन छात्रों द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय में धूम्रपान करने वाले छात्रों के लिए पुनर्वास केंद्र की स्थापना कि जायेगी।

इस बात कि घोषना करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष अमृता बहारी का कहना था कि दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी कैम्पस को धुम्रपान मुक्त करने के घोषना का स्वागत भारत के स्वस्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉक्टर अम्बुमणि रामदोस ने अत्यन्त सराहना की थी और उन्होंने अन्य विश्वविद्यालयों से भी अनुरोध किया था कि वह लोग भी इस तरह कि पहल शिक्षा संस्थानों को धूम्रपान मुक्त करने के लिए करें।

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के इस निर्णय से विश्वविद्यालय में पढने वाले छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय में पुनर्वास केंद्र बन जाने से धुम्रपान करने वाले छात्रों में कोई ज्यादा असर नहीं आएगा और वैसे भी कोई छात्र इतना ज्यादा धुम्रपान नहीं करता कि उसको पुनर्वास केंद्र में भर्ती करना पड़े।

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों का जो भी सोचना हो पर निश्चय ही यह एक सराहनिए कदम है।

शिया महिला ने सुन्नि जोड़े का निकाह सम्पन्न करवाया

शिया महिला ने सुन्नि जोड़े का निकाह सम्पन्न करवाया

लखनऊ में सुन्नि महिला एवं पुरूष का निकाह एक शिया महिला काज़ी ने सम्पन्न करवाया।

प्रदेश की प्लानिंग कमीशन की सदस्य, डॉ सईदा हमीद, जो एक शिया महिला हैं, उन्होंने महिला काज़ी के रूप में, लखनऊ स्थित सुप्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता
नईश हसन का निकाह अलीगढ़ से पी.एच.डी प्राप्त इमरान के साथ सम्पन्न करवाया।

इस निकाह का निकाहनामा भी भारतीय मुस्लिम महिला आन्दोलन ने लिखा था जिसको महिला और पुरूष दोनों के लिए बराबर संवेदनशील तरीके से लिखा गया था।

लखनऊ विश्वविद्यालय की आचार्य डॉ.सबरा हबीब इस निकाह में 'विटनेस' या गवाह थीं।

अवैधानिक स्थानों पर तम्बाकू की खेती प्रतिबंधित

अवैधानिक स्थानों पर तम्बाकू की खेती प्रतिबंधित

तम्बाकू नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन, जे० सुरेश बाबू ने तम्बाकू के किसानों से कहा है कि वह किसी भी तरह के अवैधानिक स्थानों पर तम्बाकू की खेती न करें, यदि किसी भी किसान को ऐसा करते हुए पाया गया तो उसकी फसल नस्ट कर दी जायेगी।

तम्बाकू की फसल में मुनाफा अत्यधिक बढ़ जाने के कारण किसानों ने एस बार तम्बाकू की फसल में वृद्धि कर दी थी. तम्बाकू की खेती करने वाले सारे किसान तम्बाकू नियंत्रण बोर्ड में पंजीकृत हैं और बिना इस बोर्ड की अनुमति के वह तम्बाकू की खेती नहीं कर सकते हैं. ऐसे समय में जब तम्बाकू के फसल की कीमत इतनी बढ़ गई है बोर्ड का इस तरह का निर्णय निश्चय ही तम्बाकू किसानों की चिंता बढ़ा सकता है।

कर्नाटक में पिछले साल के मुकाबले इस बार करीब ५००० हेक्टेयर तम्बाकू के फसल की बुवाई बढ़ गई है. वहीँ आंध्र प्रदेश में अब तम्बाकू के फसल की बुवाई शुरु होने वाली है. वैश्विक बाज़ार में इस साल तम्बाकू उत्पाद की कीमत पिछले साल के मुकाबले इस साल करीब $ २-६ डालर बढ़ गई है. भारत में, आंध्र प्रदेश के किसानों के तम्बाकू की कीमत वैश्विक बाज़ार में सबसे ज्यादा आंकी गई है जो पिछले साल ६५ रूपये प्रति किलो से बढ़कर १४१ रूपये प्रति किलो हो गई है। तम्बाकू नियंत्रण बोर्ड का इस वक्त पुरा धयन तम्बाकू कि खेती पर है, क्योंकि बोर्ड किसानों का ध्यान सिर्फ़ तम्बाकू कि फसल से हटाकर और फसलों कि तरफ़ ले जाना चाहता है।

भारतीय कोर्ट ने खदानों के प्रोजेक्ट को स्वीकृति दी

भारतीय कोर्ट ने खदानों के प्रोजेक्ट को स्वीकृति दी

डोंगरिया कोंध जनजाति के लोगों का कहना है कि उनके रोज़गार के माध्यम सब नष्ट हो जायेंगे।

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा प्रदेश के दो विवादास्पद खदानों के प्रोजेक्टों को मंजूरी दे दी है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले अनेकों किसानों और कार्यकर्ताओं ने इन खदानों के प्रोजेक्ट का भरसक विरोध किया था।

इंग्लैंड की खदानों की बहुराष्ट्रीय कंपनी वेदान्ता अब बौक्सईट मिनेरल को उड़ीसा के एक पहाड़ से निकाल सकेगी, जिसको अभी तक वहाँ पर रहने वाली जनजाति पवित्र मानती आई है.

इक और सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने दक्षिण कोरिया की लोहा कंपनी, 'पोस्को', को मंजूरी दे दी है कि वो उड़ीसा प्रदेश में १२ बिलिओन अमरीकी डालर का प्लांट लगाये.

वेदान्ता कंपनी का उड़ीसा सरकार के साथ समझौता हुआ है कि नियमगिरि पहाड़ों में वोह
बौक्सईट की खदान का कार्य करेगी. नियमगिरि पहाड़ में काफी अधिक मात्रा में बौक्सईट है, जिससे एल्यूमिनियम भी बनता है.

शाहरुख़ खान के बाद सलमान खान ने लिया सिगरेट न पीने का संकल्प

शाहरुख़ खान के बाद सलमान खान ने लिया सिगरेट न पीने का संकल्प

बॉलीवुड के 'चेन स्मोकर्स' की सूची में सलमान खान का नाम भी ऊपर आता है, लेकिन अब उन्होंने सिगरेट छोड़ने का फैसला किया है। बीते जमाने के अभिनेता जीतेंद्र की सिगरेट छोड़ने की सलाह मानते हुए सलमान ने शादी के बाद सिगरेट छोड़ने की बात कही है। हालाँकि लाख टके का सवाल तो यही है कि सलमान शादी कब करेंगे! तुषार की नई फिल्म ‘सी कंपनी’ जल्द ही प्रदर्शित होने जा रही है। इस फिल्म के प्रमोशन के दौरान जीतेंद्र ने देखा कि सलमान लगातार सिगरेट पी रहे हैं। उन्होंने सलमान को सिगरेट छोड़ने की सलाह देते हुए कहा, ‘कभी मैं भी बहुत सिगरेट पीता था।

सिगरेट छोड़ने की मेरी काफी इच्छा थी, लेकिन छोड़ नहीं पाता था। एकता का जन्म होने के बाद मैंने सिगरेट छोड़ने की बात तय की और सिगरेट पीना पूरी तरह छोड़ दिया।’ जीतेंद्र की बातें सुनने के बाद सलमान ने उनसे कहा, ‘मैं भी सिगरेट छोड़ना चाहता हूं और अब आपकी बात सुनकर मैंने भी ठान लिया है कि सिगरेट छोड़ दूंगा। आपने एकता के जन्म पर सिगरेट छोड़ी थी और मैंने तय किया है कि मैं शादी के बाद सिगरेट छोड़ दूंगा।’

'मैंने सिगरेट पीना छोड़ दिया है……वाकई' कहना है शाहरुख़ खान का

पता नहीं इस बार शाहरुख़ खान अपना सिगरेट छोड़ने का वायदा निभा पायेंगे या नहीं. पर उनके इस प्रण का आमजनता पर मिला जुला असर हुआ है.
एक आई. टी. मैनेजर के अनुसार धूम्रपान की लत तो आसानी से पड़ जाती है पर उसे छोड़ना कठिन होता है.
टेलिकॉम कंपनी में काम करने वाले एक उच्च पदाधिकारी के अनुसार (जो अमित एक धूम्रपानी हैं) इस ल़त कोछोड़ देना वास्तव में एक अच्छी बात है। पर उनके अनुसार जहाँ तक शाहरुख खान की बात है, उनकी प्रतिज्ञाकेवल तोड़ने के लिए ही करी जाती हैं। अभी यह कहना मुश्किल होगा कि वो वास्तव में इस बुरी आदत पर काबू पासकेंगे या नहीं।
एक व्यवसाई के अनुसार धूम्रपान छोड़ने में केवल पक्के इरादे की ही आवश्यकता नहीं होती, वरन उसे छोड़ने परजिन शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है वो भी विचारणीय है। शाहरुख़ खान के पास तो इससे निपटने केलिए डाक्टरों की पूरी टीम है, पर आम जनता के लिए यह सुविधा उपलब्ध नहीं है. फिर भी धूम्रपान छोड़ने काइरादा एक सराहनीय प्रयास है, विशेष कर जब यह प्रतिज्ञा एक फ़िल्म स्टार के द्वारा की गई हो तो उसका असरउनके प्रशंसको पर अवश्य पड़ेगा.
अप्रत्यक्ष धूम्रपान करने वाले भी शाहरुख़ केधूम्रपान छोड़ो' प्रतिज्ञा से प्रसन्न हैं.
एक धूम्रपान निषेध केन्द्र के संस्थापक के अनुसार, शाहरुख़ खान के प्रशंसक उनके इस प्रयास से अवश्य लाभउठाएंगे , यदि शाहरुख़ अपनी प्रतिज्ञा पर अटल रहे. पर यदि वे आम जनता की कसौटी पर खरे नही उतरते, औरसिगरेट पीना नहीं छोड़ते तो समाज के युवा वर्ग के लिए यह एक गलत संकेत होगा।

अमित द्विवेदी
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस के विशेष संवाददाता

सरकार का ध्यान सिर्फ़ सिगरेट राजस्व पर

सरकार का ध्यान सिर्फ़ सिगरेट राजस्व पर

“सरकार द्वारा तम्बाकू पर कर बढ़ाए जाने के बावजूद भी तम्बाकू का प्रयोग किसी भी तरह से कम नही हुआ है, यह बात और है कि अब लोगों ने इसका प्रयोग अन्य रूपों में करना शुरु कर दिया है,” यह कहना है भारतीय तम्बाकू कम्पनी के चेयरमैन ऐ के देवेश्वर का। उनका आगे कहना है कि तम्बाकू की बिक्री इतने सालों से कई प्रकार से हो रही है जो की अत्यन्त ही खतरनाक है, किंतु सरकार का ध्यान सिर्फ़ सिगरेट पर नियंत्रण लगाने हेतु रहा है जो कि अन्य तम्बाकू उत्पाद के मुकाबले कम घातक है।

ऐ के देवेश्वर ने आगे बताया कि सरकार सिगरेटों पर ज्यादा से ज्यादा कर लगाकर तम्बाकू द्वारा प्राप्त राजस्व में कमी कर रही है क्योंकि आई० टी ० सी० कम्पनी ने अपना बिज़नस सिगरेट उद्योग में कम कर दिया है। उन्होंने चीन का उदाहरण देते हुए बताया कि वहाँ की सरकार ने तम्बाकू उत्पाद पर कर न बढाकर ज्यादा से ज्यादा राजस्व प्राप्त किया है। आने वाले सालों में आई० टी ० सी० कम्पनी करीब ४००० करोड़ रूपये सिर्फ़ होटल उद्योग में लगाने जा रही है. आई० टी ० सी० कम्पनी के होटल इस साल चेन्नई, कोलकत्ता और बंगलोर में खुलने वाले हैं।

जहाँ पर भी जमीने उपलब्ध होंगी हम अपने होटल बनायेंगे, किंतु जमीन की उपलब्धता हमारे लिए एक समस्या है, कहना है देवेश्वर का.