आइये, मृत्यु को छोड़ कर
जीवन का अभिषेक करें
शोभा शुक्ला
अभी कुछ दिन पहले, ६ अगस्त को हिरोशिमा दिवस की याद में लखनऊ शहर के शांतिप्रिय नागरिकों ने ‘ मोमबत्ती मार्च’ और पोस्टर प्रदर्शन द्वारा परमाणु शस्त्र एवं परमाणु संधि का विरोध किया। इस प्रदर्शन में विद्यार्थी, अध्यापक आम नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे। प्रसिद्द समाज सेवी एवं मग्सय्सय पुरुस्कार से सम्मानित डॉ संदीप पाण्डेय के सहयोग से हुए इस प्रदर्शन ने सिद्ध कर दिया कि साधारण जनता एक शान्त एवं सम्मानित जीवन जीना चाहती है न कि हिंसा और नफरत के डर से दबी हुए ज़िंदगी। आम जनता को परमाणु अस्त्रों का विध्वंस नहीं वरन एक स्वच्छ और हराभरा वातावरण चाहिए। फिर यह परमाणु संधि क्यों?
प्रत्येक वर्ष, ६ अगस्त को विश्व (विशेषकर जापान) के समस्त शांतिप्रिय नागरिक हिरोशिमा दिवस मनाते हुए उन लाखों लोगों को श्रधांजलि अर्पित करते हैं जो ६३ वर्ष पूर्व अमरीकी न्रशंसता के शिकार हो गए थे। अमेरिका द्वारा सन १९४५ में हिरोशिमा एवं नागासाकी पर ऐटम बम गिराए जाने के फलस्वरूप २४२,४३७ व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी थी और आज भी लगभग २७०,००० ऐसे व्यक्ति हिरोशिमा में रह रहे हैं जो उस आड़विक विस्फोट के कुप्रभावों से ग्रस्त हैं। इस न्रिशन्स हादसे ने अमरीकी साम्राज्यवाद की घोषणा करी।
तब से लेकर आज तक अमरीका स्वयं को विश्व सम्राट स्थापित करने के प्रयत्न में अपनी सामरिक नीतियों में कुटिल फेरबदल करने में सतत प्रयत्नशील है। आड़विक हथियारों का स्थान परमाणु अस्त्रों ने ले लिया है, जो कहीं अधिक घातक हैं।
अभी तक जापान, आड़विक न्रिशंसता का एकमात्र भुक्त भोगी राष्ट्र होने के कारण, सभी ऐसे हथियारों और नीतियों का विरोधी रहा है जो मनुष्य के लिए विनाशकारी हैं। अमरीका के परमाणु कार्यक्रमों में जापान ने कभी सहयोग नहीं दिया। वह सदा परमाणु निशस्त्रीकरण एवं शस्त्र नियंत्रण का समर्थक रहा है। और यह सर्वथा उचित भी है।
परन्तु,यह कैसी विडम्बना है कि इस वर्ष ६ अगस्त को हिरोशिमा दिवस के अवसर पर,जापान ने अमरीका और भारत के बीच होने वाले परमाणु समझौते के समर्थन में आवाज़ बुलंद करी है। यह तो उसके अपने ही देश वासियों के प्रति विश्वासघात है। जिस आतंरिक सहस और आत्मबल से जापान वासियों ने हिरोशिमा को एक बार फिर से एक स्वच्छ , शांतिप्रिय और अपराध मुक्त नगर के रूप में विकसित किया, उस पर जापान की इस नयी घोषणा ने कुठाराघात किया है।
आज जब विश्व परमाणु युद्ध के कगार पर खड़ा है, तब हमारा, आपका और प्रत्येक समझदार नागरिक का कर्तव्य है कि अपनी प्रिय वसुंधरा को नष्ट होने से बचाए। हमें प्रत्येक स्तर पर युद्ध और हिंसा का विरोध करना होगा - चाहे वो जिहादियों द्वारा किए जा रहे आतंकवादी हमले हों, धर्म के नाम पर हो रहे सांप्रदायिक दंगे हों, आर्थिक/राजनैतिक रूप से संपन्न राष्ट्रों की सामंतवादी नीतियाँ हों, या महिलाओं के प्रति हो रहे क्रूर एवं अमानवीय अपराध हों। हमें इन सभी का विरोध करते हुए, एक शांतिप्रिय सहजीवन में विश्वास रखना होगा ताकि कोई दूसरा हिरोशिमा दिवस न आए।
हमें स्वयं को, तथा अपने बच्चों को भी ,यह समझाना होगा कि युद्ध से किसी भी समस्या का हल नही हो सकता है। युद्ध जीतना कोई यशस्वी कार्य नहीं है। दूसरों के प्रति हमारी संवेदनशीलता ख़त्म होती जा रही है। उसे फिर से जागृत करना होगा. सभी धर्मों का आधार शान्ति, प्रेम, एवं भाईचारा है। फिर भी अधिकतर जघन्य अपराध धर्म के नाम पर ही हो रहे हैं। किसी का भी खुदा, पैगम्बर, भगवन या इश्वर यह नहीं कहता कि किसी व्यक्ति की जान लो। पर हम सभी मदांध हो रहे हैं.
आज हम सभी को मन, वचन और कर्म से मनुष्य जीवन का सम्मान करना होगा, न कि मृत्यु का यशगान। ‘जियो और जीने दो’ का नारा बुलंद करना होगा। संहार के आतंक में जीने के बजाये आतंक का संहार करना होगा। हमें आने वाली पीढ़ी को परमाणु अस्त्रों और सांप्रदायिक घ्रिणा से रहित एक शांतिप्रिय और संवेदनशील समाज देना होगा जहाँ सभी खुल कर साँस ले सकें।
शोभा शुक्ला
लेखिका लखनऊ के प्रसिद्ध लोरेटो कॉन्वेंट में वरिष्ठ अध्यापक हैं और सिटिज़न न्यूज़ सर्विस की संपादिका भी। ईमेल: shobha@citizen-news.org, वेबसाइट: www.citizen-news.org