लखनऊ से 'हम भारत-अमरीका
परमाणु करार को अस्वीकार
करते हैं’ अभियान आरम्भ
लखनऊ से ‘हम भारत-अमरीका परमाणु करार को अस्वीकार करते हैं’ अभियान आज फैजाबाद मार्ग पर स्थित 'राव कोचिंग' से मग्सय्सय पुरुस्कार से सम्मानित और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय की उपस्थिति में आरंभ हुआ.
‘यह मिथ्य है कि परमाणु करार से घर-घर को बिजली मिलेगी' कहना है डॉ पाण्डेय का. परमाणु, उर्जा का, कोई सस्ता, सुरक्षित और पर्यावरण की दृष्टि से लाभदायक विकल्प नहीं है. परमाणु उर्जा एक खतरनाक विकल्प है, डॉ पाण्डेय ने कहा. भारत-अमरीका परमाणु करार तो एक राजनीतिक और सैन्य करार है.
परमाणु उर्जा कारखाने को लगाने के लिए कम-से-कम १० साल का समय लगता है, जो कई बातों पर निर्भर है जैसे कि इंधन की नियमत उपलब्धता पर इत्यादि. अमरीका में जो आखरी परमाणु उर्जा कारखाना लगा था, उसको बनाने में २३ साल लग गए थे. इसलिए यदि लोगों को हमारे राजनेता यह बता रहे हैं कि भारत-अमरीका परमाणु करार पर हस्ताक्षर करने से बिजली की समस्या का तुंरत समाधान हो जाएगा, तो यह साफ़ झूठ है और सम्भव है ही नहीं.
भारत-अमरीका परमाणु करार बिजली के लिए नहीं इतने महत्व का मुद्दा बना हुआ है. उर्जा की सुरक्षा, तो कोयले, लघु और सूक्ष्म पानी से बिजली बनाने के कारखाने, वायु से उर्जा बनाने के तरीके (पवन उर्जा), इरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइपलाइन आदि से प्राप्त हो सकती है. यदि हम लोग बिजली को व्यर्थ नहीं व्यय करें तो भी जितनी उर्जा परमाणु कारखानों से १०-२० साल बाद मिलेगी, उतनी तो आज-जो-व्यर्थ-हो-रही-है उस उर्जा को बचाया जा सकता है.
भारत-अमरीका परमाणु करार, भारत की संप्रभुता को खतरे में डाल कर अम्रीका के लिए एक सैन्य आधार बनाने की साजिश है.
परमाणु कारखाने से निकलने वाली रेडियोधर्मिता से जो आस-पास रहने वाली आबादी पर जानलेवा कु-प्रभाव होते हैं, जैसे कि खून का कैंसर आदि, वोह भी एक गंभीर विषय है जिसके कारणवश लोगों को भारत-अमरीका परमाणु करार को अस्वीकार करना चाहिए.