टीबी या तपेदिक साप्ताहिक समाचार सारांश
१३-२५ अगस्त २००८
अंक ७४
पांच मुख्य समाचार:
१. बच्चों में टीबी शोध आखिर कब प्राथमिकता पायेगा?
२. फोटो के जरिये टीबी नियंत्रण: स्टाप टीबी पार्टनरशिप ने फोटो प्रतियोगिता घोषित की
३. लगभग १ प्रतिशत टीबी रोगी का ही होता है एच.आई.वी परीक्षण
४. शराब पीने से सक्रिय टीबी रोग होने का खतरा बढ़ता है
५. एच.डी.एन और अलैंस ने विलय होने की बात रखी
समाचार विस्तार से:
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पी.एल.ओ.एस शोध जर्नल में प्रकाशित हुए शोध (पढ़ने के लिये यहाँ पर क्लिक कीजिये) के अनुसार, टीबी नियंत्रण और इलाज के कार्यक्रमों के मूल्यांकन में बच्चों में टीबी की रोकधाम और इलाज को नज़रअंदाज़ नही करना चाहिए. टीबी या तपेदिक से ग्रसित लोगों में, अक्सर २० प्रतिशत तक बच्चे हो सकते हैं, खासकर कि उन समुदायों में जहाँ टीबी या एच.आई.वी संक्रमण महामारी का रूप ले चुका है. न केवल बच्चे, वरन युवा वर्ग को भी टीबी के प्रति सचेत होने की आवश्यकता है.
बच्चों में टीबी की रोकधाम और इलाज को अक्सर पर्याप्त ध्यान नही मिलता - उदाहरण के तौर पर, टीबी वैक्सीन (बी.सी.जी) एच.आई.वी से संक्रमित बच्चों में अत्यन्त खतरनाक हो सकती है - इसके बावजूद पर्याप्त शोध कार्य नहीं हो रहा है. टीबी की जाँच भी बच्चों में जटिल समस्या उत्पन्न करती है. इस शोध को पढ़ने के लिये, यहाँ पर क्लिक कीजिये
स्टाप टीबी पार्टनरशिप ने टीबी नियंत्रण पर फोटो प्रतियोगिता की घोषणा की है जिसमें छायाकार लोग ३० अक्टूबर २००८ तक फोटो भेज सकते हैं. अधिक जानकारी के लिये, यहाँ पर क्लिक कीजिये
उत्तरी थाईलैंड में भी टीबी या तपेदिक 'फोटो-वाइस' नामक कार्यक्रम काफी सराहनीय कार्य कर रहा है, जिसमें टीबी और एच.आई.वी से ग्रसित लोगों को फोटोग्राफी के माध्यम से अपनी बात कहने का मौका मिलता है, समुदाय में टीबी और एच.आई.वी से ग्रसित लोगों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने का मौका मिलता है और संवाद कायम रखने का भी सुनहरा अवसर प्राप्त होता है. इस टीबी या तपेदिक फोटो-वाइस के बारे में अधिक जानकारी के लिये, यहाँ पर क्लिक कीजिये
एच.डी.एन और अलैंस नामक टीबी/तपेदिक और एच.आई.वी पर कार्यरत दो विश्व स्तर की संस्थाओं ने विलय होने का संवाद प्रारम्भ किया है. यह घोषणा, विश्व की सबसे बड़ी एड्स कांफ्रेंस में (मेक्सिको, अगस्त २००८) घोषित की गई.
इस दौर में जहाँ असंख्य संस्थान अपने वजूद को संग्रक्षित रखने के लिये संघर्षरत हैं, वहीँ एच.डी.एन और अलैंस ने एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया है.
एच.आई.वी और टीबी/ तपेदिक के कार्यक्रमों को सशक्त करने के लिये और मौजूदा संसाधनों को पूरी तरह से इस्तेमाल करने के लिये, न केवल संस्थाओं का कम होना जरूरी है, बल्कि अपने स्वार्थ से ऊपर उठ कर, मुद्दों के प्रति अपने समर्पण का परिचय देना भी लाज़मी है.
संपादक: बाबी रमाकांत
ईमेल: bobbyramakant@yahoo.com