भारत में ऊर्जा परिदृश्य एवं बिजली परियोजनाएं अवधारणा एवं रणनीति

आज भारत को भावी सुपर पॉवर कहकर प्रचारित किया जा रहा है और इसके साथ ही ऊर्जा की आवश्यकता भी अभूतपूर्व स्तर पर बढ़ रही है। भारत विश्व का ६ वां सबसे बड़ा ऊर्जा का उपभोक्ता है, जो कि विश्व की कुल ऊर्जा उपभोग का ३.४ फीसदी खर्च करता है। भारत के आर्थिक विकास के कारण, ऊर्जा की मांग पिछले ३० सालों में ३.६ फीसदी सालाना दर से बढ़ी है। मार्च २००९ में, भारत की स्थापित क्षमता १,४७,००० मेगावाट थी, जबकि प्रति व्यक्ति बिजली का उपभोग ६१२ किलोवाट था। भारत का सालाना बिजली उत्पादन सन १९९१ में १९० अरब किलोवाट था, जो कि सन २००६ मे बढ़कर ६८० अरब किलोवाट हो गया। भारत सरकार ने अपनी क्षमता में सन २०१२ तक करीब ७८,००० मेगावाट अतिरिक्त बिजली जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना बनायी है। जबकि योजना आयोग का कहना है कि सन २०३२ तक यह मांग बढ़कर ३,००,००० मेगावाट हो जाएगी (यदि ९ फीसदी के दर से वृद्धि होती है तो, जबकि ८ फीसदी के दर से वृद्धि होती है तो २,००,००० मेगावाट होगी)।

भारत में स्थापित ऊर्जा के अंतर्गत ६४ फीसदी ताप बिजली संयंत्रों से, २३ फीसदी पनबिजली संयंत्रों से, ३ फीसदी परमाणु बिजली संयंत्रो से एवं १० फीसदी नवीनेय ऊर्जा स्त्रोतों से उत्पादित होता है। भारत के ५० फीसदी से ज्यादा व्यावसायिक ऊर्जा की मांग की पूर्ति देश के विशाल कोयला भंडार से होती है। भविष्य की आवश्यकताओं के संदर्भ में तो बहुत सारे अनुमान मौजूद है जबकि वही ऐसी बिजली आधारित अर्थव्यवस्था एवं विकास तय करने की जरूरत पर कोई सवाल नहीं उठाता है। नियोजक एवं नीति निर्धारक यह बेहतर जानते हैं कि ऐसे मॉडल को कायम रखना कठिन है लेकिन बड़े लीग में शामिल होने के अपने पागलपन में भारत ऐसी चेतावनी को नजरअंदाज कर रहा है। कागजों में भारत की ऊर्जा नीति चार प्रमुख निर्धारकों के बीच तालमेल से निर्धारित होती है :

. बिजली, गैस एवं पेट्रोलियम उत्पादों की विश्वसनीय एवं भरोसेमंद आपूर्ति की जरूरत सहित, तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था से,
. बिजली स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन की सस्ती एवं पर्याप्त आपूर्ति की जरूरत सहित, घरेलू आमदनियों को बढ़ाने से,
. जीवाश्म ईंधनों की सीमित घरेलू भंडारण, एवं गैस, कच्चे तेल एवं पेट्रोलियम उत्पादों की जरूरतों के विशाल हिस्से के आयात एवं हाल ही में कोयला आयात की जरूरत से,
. स्वच्छ ईंधन एवं स्वच्छ तकनीकों को अपनाने की जरूरत को लागू करतें हुए आंतरिक, शहरी एवं क्षेत्रीय पर्यावरणीय असरों से।

इन तालमेंलों को हासिल करना अक्सर मुश्किल होता है। उदाहरणतया, पर्याप्त एवं सस्ती बिजली का उत्पादन एवं उपयोग लगातार एक चुनौती है क्योंकि आपूर्ति का प्रसार, एवं स्वच्छ तकनीकों को अपनाना, खासकर नवीनेय ऊर्जा के मामलों में, यह अक्सर समझा जाता है कि ये बिजली खासकर ग्रामीण इलाकों सहित बहुत सारे भारतीयों के लिए काफी महंगी होती है। हाल के सालों में, इन चुनौतियों के फलस्वरूप लगातार तमाम सुधार एवं पुनर्गठन हुए है।

हालांकि, इन चुनौतियों को पूरा करने के लिये, भारत सरकार ने पूरे देश भर में काफी संख्या में ताप बिजली एवं पनबिजली संयन्त्र एवं कुछ परमाणु बिजली संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई है। हमने बड़े बांधों, ताप एवं परमाणु ऊर्जा संयंत्रो के लगातार विरोध एवं पिछले अनुभवों से जाना है कि यदि ये योजना पूरी होती हैं तो इसकी व्यापक सामाजिक एवं पर्यावरणीय लागत आएगी। जिन बांधों को वास्तव में पहले सिंचाई के उद्देश्य पूरा करने के लिए बनाया गया है, उनके पानी को अब नदी के किनारों पर प्रस्तावित ताप बिजली एवं परमाणु बिजली संयंत्रों के लिए मोड़ा जा रहा है।

हम महसूस करते हैं कि अपने पूर्व प्रयासों को जारी रखते हुए बढ़ा चढ़ाकर पेश की गई ऊर्जा की मांग, ऊर्जा खपत वाले औद्योगिकीकरण, शहरीकरण व समाज के निर्माण एवं नवीनेय ऊर्जा स्त्रोतों पर जोर न दिये जाने को चुनौती देना व उन पर सवाल उठाना जरूरी है। इसी उद्देश्य के लिये हम आज देश भर में जारी विभिन्न संघर्षें के समर्थन में, भारत में ऊर्जा परिदृश्य एवं बिजली परियोजनाएं : अवधारणा एवं रणनीति विषय पर एक निरंतर अभियान छेड़ने का प्रस्ताव कर रहे हैं इस सन्दर्भ में पहली गोष्ठी १ -२ अगस्त २०१० को भोपाल में आयोजित की जा रही है। हमने निम्न पांच मुद्दों पर चर्चा की योजना बनायी हैं :
1. आज की ऊर्जा परिस्थिति (ताप एवं पनबिजली) को समझना एवं समीक्षा करना।
2. असर एवं चुनौतियां
3. नवीनेय ऊर्जा स्त्रोतों की समझ
4. ऊर्जा का अर्थ शास्त्र
5. भावी रणनीति एवं संघर्ष।

इस गोष्ठी में हमारा मुख्य फोकस ताप एवं पनबिजली संयंत्रों पर रहेगा जबकि परमाणु ऊर्जा संयंत्रों पर थोड़ा कम होगा। इस गोष्ठी में आंदोलन समूह, सहयोगी शोधार्थी, और विभिन्न कार्यरत एवं प्रस्तावित बिजली संयंत्रों के खिलाफ संघर्ष में लगे लोग शामिल होंगे। कुल मिलाकर उद्देश्य यह है कि ऊर्जा की जरूरतों, उत्पादन एवं वितरण के बहस के संदर्भ को एक योजना इकाई के तौर पर ग्राम/ग्राम सभा सहित जन संदर्भ की ओर ले जाया जाए। जबकि आज पूरा बहस शहरीकरण एवं औद्यागिकीकरण के संदर्भ पर फोकस किया जाता है।

मधुरेश