पंचायतो की लूट छिपाती सरकार

उ.प्र. राज्य के बहुप्रतीक्षित बहु प्रचारित 2010 के पंचायत चुनाव अब तक हुए चुनावो के सबसे भव्यतम स्तर के साथ सम्पन्न हो गये। जिसने विधान सभा व लोकसभा के चुनावों को हर आयाम में पीछे छोड़ दिया है। इस चुनाव में लगभग दस करोड़ मतदाताओं ने अपने मताधिकार प्रयोग किया। पंचायत चुनाव में पैसे और शराब की दख़ल को देख कर भ्रष्ट्राचार मुक्त पारदर्शी पंचायतों के संचालन की कल्पना करने वालो की रूह काँप गई है।

इस पूरी भव्यता के पीछे सिर्फ एक कारक है। पंचायतों में विकास के नाम पर आने वाली अथाह धनराशि यू तो यह पैसा लगभग बीस वर्षों पूर्व से ही आना शुरू हो गया भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के समय से और सीधे भ्रष्ट्राचार की भेंट भी चढना शुरू हो गया था इसकी भनक भी राजीव गाँधी को लग गई थी और उनकी बहुत ही प्रसिद्ध टिप्पणी की "दिल्ली से भेजे गये एक रूपये का सिर्फ पन्द्रह पैसा ही गांवों को पहुंचता है" इस लुट की पुष्टि के लिए काफी हैं। फिर भी यह बात समझ से परे है कि उनकी पत्नी के नेतृत्व में चलने वाली केन्द्रीय सरकार ने इस लूट की बिना रोकथाम और कारगर निगरानी तंत्र के बनाये बिना (सूचना अधिकार अधिनियम २००५ के झुनझुना के सिवाय) नरेगा/मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना और इसके क्रियान्यवन के लिये पुन: अथाह धनराशि देना उनकी सरकार की नीति नियत में गहरी साजिश का हिस्सा जान पड़ता है।

अरविन्द मूर्ति