आंबेडकर जी की याद

भारत के महान अर्थशास्त्री, विधिशास्त्री, उत्पीड़ितों, वंचितो के मसीहा भारत रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के द्वारा दे के नव निर्माण में उनकी सर्वमुखी प्रतिमा के योगदान की याद आते ही उनके परिनिर्वाण दिवस 6 दिसम्बर की याद आती है। इस तारीख को आम्बेडकर के विचार, सिद्धांतों को मानने वाले उनके अनुयायी बड़े धूम-धाम से मनाते हैं। और उनके जीवन संघर्षों, सिद्धान्तों और भारतीय संविधान निर्माण के कार्यों की चर्चा करते हुए अगली पीढ़ी को भी अवगत कराने का प्रयास करते है। 6 दिसम्बर 1992 की याद आते ही मन विक्षोभ से भर जाता है। जब इस तारीख को सोची समझी और पूर्व निर्धारित तिथि के मुताबिक अयोध्या में स्थिति बाबरी मस्जिद को कानून, संविधान को अंगूठा दिखाते हुए ध्वस्त कर दिया गया। यह हिन्दूवादी लोगों द्वारा बाबा साहब के हिन्दू धर्म छोड़ने के अपमान के बदले उनका अपमान करने की और उनके द्वारा बनाये गये संविधान को न मानने की खुली घोषणा का प्रतीक है। दूसरे चरण में बाबरी मस्जिद की जमीन के मालिकाने हक के चल रहे मुकदमे में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्ड पीठ के फैसले ने एक बार फिर संकेत दिया कि इस संविधान की क्या बिसात ? दुनिया की नंगी, खुली आँखों के सामने जबरन रखी गई मूर्तियाँ मस्जिद में हिस्सेदार हो गई न्यायिक प्रक्रिया द्वारा और मूर्ति रखने व मस्जिद ध्वस्त करने वाले अपराधियों को इस न्यायिक व्यवस्था में कोई सजा नहीं यह बात किस बात का प्रतीक...है।