दंत चिकित्सकों की बढती संख्या एवं सरकार का उदासीन रवैया

उ० प्र० डेन्टिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन
सरकार
का अंधाधुंध तरीके से निजी डेंटल कॉलेजों को खोलने की अनुमति प्रदान करने एवं डेंटल काउसिंल ऑफ़ इंडिया द्वारा इनका अनुमोदन / सत्यापन / मान्यता प्रदान के कारण हमारे देश में बी.डी.एस. डॉक्टरों की संख्या जरूरत से बहुत ज्यादा हो गयी है। जिससे नौकरी के साथ-साथ प्रैक्टिस के अवसर भी लगभग ख़त्म हो गये है।

पहले से ही जहां आम जनता दांतों की बीमारियों के प्रति ज्यादा जागरूक नहीं है, वही दूसरी ओर अन्य विधाओं (एलोपैथी, आयुर्वेद, होम्योपैथ एवं यूनानी) दस डॉक्टर भी लगभग ५० से ६० प्रतिशत दांतों की बीमारियों का असफल इलाज कर देते हैं। इसी लिये बड़ें शहरों को छोड़ कर डेंटिस्ट के लिये अन्य जगहों पर प्रैक्टिस के अवसर लगभग खत्म हो गये हैं।

हमारे देश में इस समय लगभग २९१ डेंटल कॉलेज है जिसमें से मात्र ३९ सरकारी डेंटल कॉलेज है, जबकि २५२ प्राइवेट डेंटल कॉलेज हैइन सभी कॉलेजों से लगभग २४ हजार बी.डी.एस. डॉक्टर प्रति वर्ष डिग्री लेकर निकलते हैं एवं लगभग २६०० एम.डी.एस. डॉक्टर (मोस्टर ऑफ़ डेंटल सर्जरी) प्रति वर्ष निकलते हैं।

इन २४ हजार बी.डी.एस. डॉक्टरों में से मात्र २३३० सीटें सरकारी डेंटल कॉलेजों में जबकि २१३६० सीटें प्राइवेट डेंटल कॉलेजों में हैं। एम.डी.एस. की २६०० सीटों में से मात्र २८० सीटें सरकारी डेंटल कॉलेजों में है जबकि शेष २३२० सीटें प्राइवेट डेंटल कॉलेजों में है।

इस प्रकार केवल उत्तर प्रदेश को ही लिया जाए तो लगभग ३००० दंत चिकित्सक प्रति वर्ष डिग्रियां लेकर निकल रहे है। जबकि पहले प्रदेश में केवल ५५ सीटें बी.डी.एस. के लिये केवल के.जी.एम.सी. लखनऊ में थी। वही अब उक्त सीटों में लगभग ५५ गुना इजाफा हुआ है। जबकि एम.डी.एस. की सीटें उ.प्र. में मात्र १२ हैं। प्राइवेट डेंटल कॉलेजों में फ़ीस के नाम पर बी०डी०एस० कोर्स के लिये १५ से २० लाख रु० तथा एम० डी० एस० कोर्स के लिये ३० से ४० लाख रु० तक वसूले जाते हैं। जिससे यह साफ़ पता चलता है कि हमारे देश में
डेन्टिस्टों की डिग्री रु० देकर खरीदी जा रही है, न की इसे छात्र अपनी योग्यता से हासिल कर रहे हैं।

पूरे देश में ३९ सरकारी डेंटल कॉलेजों की तुलना में २५२ प्राइवेट डेंटल कॉलेजों की संख्या से साफ़ पता चलता है कि हमारे देश
में डेन्टिस्टों की शिक्षा का पूर्ण रूप से व्यवसायीकरण हो चुका है। एक ओर ज्यादातर प्राइवेट डेंटल कॉलेज डी० सी० आई० द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करते हैं, इन कॉलेजों की ओ० पी० डी० में मरीजों की संख्या बहुत कम होती है, दूसरी ओर खराब गुणवत्ता होने के कारण इन कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र उपयोगी शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।

प्राइवेट डेंटल कॉलेजों के डिग्री धारक डॉक्टर भी खुद परेशान हतोत्साहित एवं दिग्भ्रमित और उनसे ज्यादा उनके अभिभावक परेशान हैं। क्योंकि पहले उन्होंने लाखों खर्च करके बी०डी०एस० डिग्री दिलाई और अब जॉब के लिए भी इधर-उधर भटक रहे हैं और भविष्य को लेकर परेशान हैं।

डेन्टिस्टों के प्रति सरकार की उदासीन सोच के कारण न तो डेन्टिस्ट के नये पदों का सृजन हो रहा है और न ही प्रतिवर्ष निकलने वाले डेन्टिस्टों की संख्या पर किसी प्रकार का नियन्त्रण है। जिसके कारण डेन्टिस्टों की बेरोजगारी लगातार बढ़ रही हैं इसका अन्दाजा विभिन्न साक्षात्कारों के लिये प्राप्त होने वाले आवेदनों की संख्या से लगाया जा
सकता है।

१- सरकारी संस्था यू.पी.पी.एस.सी. का पद ९० तथा आवेदकों की संख्या २७०० हैं।
२- सरकारी संस्था यू.के.पी.एस.सी. का पद २५ तथा आवेदकों की संख्या २५०० हैं
३- सरकारी संस्था एन.आर.एच.एम.लखनऊ का पद ०६ तथा आवेदकों की संख्या १७० हैं
४- सरकारी संस्था एन.आर.एच.एम. बाराबंकी का पद ०३ तथा आवेदकों की संख्या २९८ हैं
५- सरकारी संस्था एन.आर.एच.एम. सीतापुर का पद ०३ तथा आवेदकों की संख्या १६० हैं
६- सरकारी संस्था एन.आर.एच.एम. बलरामपुर का पद ०१ तथा आवेदकों की संख्या ८९ हैं
७- सरकारी संस्था एन.आर.एच.एम. श्रावस्ती का पद ०१ तथा आवेदकों की संख्या १०८ हैं
८- सरकारी संस्था आई.टी.बी.पी. दिल्ली का पद १८ तथा आवेदकों की संख्या १७९४ हैं।

इस तरह का अनुपात क्या एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नियुक्ति के लिये भी देखा गया है। इन सब कारणों से डॉक्टर जैसी विशिष्ट श्रेणी का व्यक्ति होने के बावजूद डेन्टिस्ट अब तृतीय श्रेणी की नौकरी करने के लिये तैयार है। प्राइवेट क्लीनिक एवं डेन्टल कालेजों में डेन्टिस्ट मात्र २००० से ५००० रूपये प्रतिमाह पर ही काम कर रहे हैं। जिन्हें किसी भी समय बिना पूर्व सूचना दिये निकाला जा सकता है। इतना ही नहीं प्राथमिक विद्यालयों के लिये होने वाली बी.टी.सी. ट्रेनिंग २०१० में भी डेन्टिस्ट आवेदन कर रहे है। ऐसी विषम परिस्थितियों में वे छात्र जिन्होंने ०६ वर्ष कठिन परिश्रम करके बी0डी0एस0 की डिग्री की है, हतोत्साहित हो रहे है, मानसिक रूप से अवसाद ग्रस्त हो रहे हैं और आत्म हत्या जैसे कदम भी उठाने के लिये मजबूर है।

एक ओर जहाँ सरकार के पास डेन्टिस्टों के समायोजन का कोई उचित प्रबन्ध नहीं है, वहीं दूसरी ओर सरकार बी0आर0एम0एस0 (बैचलर ऑफ़ रूरल मेडिसिन एण्ड सर्जरी) जैसे पाठयक्रम शुरू करके बेरोजगारी को और बढ़ावा देना चाहती है।

डॉक्टर जैसे विशिष्ट पद के लिये कम से कम 5 वर्षीय कोर्स की अपेक्षा मात्र साढ़े तीन वर्षीय कोर्स किस प्रकार उपयुक्त साबित होगा।

मांगे :-
1. सभी पी0एच0सी0 पर डेन्टिस्टों के पदों का सृजन किया जाय एवं सी0एच0सी0 एवं जिला अस्पतालों में खाली पड़े डेन्टिस्टों के पदों को भरा जाये एवं नये पदों का सृजन किया जाय।
2. डब्लू एच0 ओ0 के अनुसार डेन्टिस्ट व जनसंख्या का अनुपात 1:4000 है परन्तु इस मानक के आस पास भी डेंटिस्ट तैनात हैं।
3. डब्लू एच0 ओ0 के सुझाव के अनुसार प्रत्येक पी0एच0सी0 पर 02 एवं प्रत्येक सी0एच0ओ0 पर 03 डेन्टिस्टों की नियुक्ति की जाय।
4. यह नियुक्तिया पूरी तरह निष्पक्ष हों एवं लिखित परीक्षा तथा साक्षात्कार के माध्यम से उ0प्र0 संघ लोक सेवा आयोग के अन्तर्गत कराई जाये।
5. बी0आर0एम0 एस0 जैसे असंवैधानिक कोर्स शुरू करने से अच्छा है सरकार डेन्टिस्टों को ही जिनका पाठयक्रम एम0बी0बी0एस0 डॉक्टरों के समतुल्य है, उनको ग्रामीण क्षेत्र में नियुक्ति प्रदान करें। जिससे ग्रामीण क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवायें भी सुधरेंगी और डेन्टिस्टों की बेरोजगारी भी दूर होगी एवं सरकार एक नये पाठयक्रम के बोझ से भी बच जायेगी।
6. बी0डी0एस0 एवं एम0डी0एस0 का पाठयक्रम केवल उन्हीं डेन्टल कॉलेजों को चलाने दिया जाय जो डी0सी0आई द्वारा निर्धारित मानको को पूरा करते हैं, बाकी सभी डेन्टल कॉलेजों को बन्द किया जाय। डी0सी0आई0 जिस कालेज को बन्द करने का प्रस्ताव भेजती है उसे तत्काल बन्द किया जाय एवं राज्य सरकार इसमें पूरा सहयोग करे। अब किसी भी नये डेन्टल कॉलेज को अगले 10 साल तक खोलने की अनुमति न दी जाए।
7. निजी कॉलेजों के मानकों का वास्तविक औचक परीक्षण, विश्लेषण या निरीक्षण किया जाये, जैसे कि उनके विभागों में वास्तव में स्टाफ प्रतिदिन आते हैं या फिर केवल कागजों पर ही नाम दर्ज है। ओ0पी0डी0 में मरीज आते हैं या नहीं यदि आते हैं तो उनका इलाज होता है या केवल रजिस्टर के पन्ने ही भरे जाते हैं।
8. डी0सी0आई द्वारा निर्धारित मानकों कें अनुसार डेन्टल मैकेनिक एवं हाईजिनिस्ट को स्वतन्त्र रूप से प्रैक्टिस को कोई अधिकार नहीं है। अत: इनकी प्रैक्टिस को तत्काल बन्द किया जाय एवं इन्हें रजिस्टर्ड बी0डी0एस0 डॉक्टर के अधीन ही प्रैक्टिस की अनुमति दी जाये।
९- सरकार बी0डी0एस0 की सीटों की संख्या के अनुपात में एम0डी0एस0 की सीटों की संख्या में अतिशीघ्र पर्याप्त बढ़ोत्तरी की जाये।

संयोजक
डॉ० मुजीब आलम अंसारी
डॉ० विनोद कुमार शुक्ला
डॉ० अजय कुमार गुप्ता
डॉ० श्वेताभ त्रिपाठी