१ लाख से अधिक भूटानी जो नेपाल में शरण लिए हैं, वें भूटान के पहले लोकतांत्रिक चुनाव में हिस्सा नही ले पाए
नव ठाकुरिया
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नोट: यह लेख असम के पत्रकार नव ठाकुरिया की मूल रचना है, जो अंग्रेजी में लिखी गयी थी। नीचे उसका हिन्दी अनुवाद है जो हमने करने का प्रयास किया है। त्रुटियों के लिए छमा कीजिए। मौलिक अंग्रेजी की रचना पढ़ने के लिए, यह क्लिक्क करें
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१ जनवरी २००८ को भूटान राष्ट्र के लगभग ७ लाख नागरिकों को पहली लोकतांत्रिक चुनाव द्वारा चुनी गयी राष्ट्रिये काउंसिल या संसद मिली। भूटान के इतिहास में ये पहला लोकतांत्रिक चुनाव था।
दाख्स्हीं एशिया के अन्य राज्य जैसे कि पाकिस्तान, बर्मा, नेपाल आदि वर्त्तमान में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने के लिए संघर्षरत हैं, और छोटे से राज्ये भूटान नी कमाल कर दिखाया। सबसे प्रशास्निये बात यह है कि भूटान में लोकतंत्र कायम करने के लिए नेतृत्व दिखाया वहीं के तानाशाह ने। भूटान में १०० सालों से तानाशाही रही है और मजुदा राजा का लोकतंत्र स्थापित करने का कदम नि:संदेह प्रशास्निये है।
परन्तु भूटान की नयी सरकार के लिए लोकतंत्र कि नयी व्यवस्था में पहले से ही चुनौती भरे सवाल ललकार रहे हैं। भूटान के पहले चुनाव में १ लाख से अधिक ऐसे देश से निकाले हुए लोग हैं जो मजबूरन १७ सालों से नेपाल में शरणार्थी के तरह जीवन-यापन कर रहे हैं। भूटान की कुल जन-संख्या लगभग ७ लाख की है और इस पहले लोकतांत्रिक चुनाव में ये १ लाख लोग या १/६ जनता भाग नही ले पायी।
ये १ लाख भूटान के देश से निकाले हुए लोग पश्चिम नेपाल में १७ सालों से शरणार्थियों की तरह कैंप में जी रहे हैं और वापस अपने देश जाने के लिए लालायित हैं। १९८० के दशक में भूटान में एक ऐसा कानून बना जिसके आधार पर एन १ लाख लोगों की नागरिकता खतम हो गयी। इन लोगों को मजबूरन १९९० में अपना देश भूटान छोड़ कर नेपाल में शरण लेनी पड़ी।
नेपाल सरकार ने भूटान के राजा से १५ बार उच्च स्तारिये वार्ता की परन्तु कोई नतीजा नही निकला। १७ सालों से आज तक एक भी भूटानी शरण-यात्री जो नेपाल के कैंप में रह रह है, वापस नही जा पाया है।
भारत, भूटान का सबसे अच्छा दोस्त पडोसी राज्य है और भूटान का सबसे बड़ा आर्थिक सहायता देने वाला डाटा देश भी। परन्तु १ लाख नेपाल में शरण प्राप्त किये भूटान के लोगों के विषय पर भारत ने कहा कि ये नेपाल और भूटान का आपसी मामला है और इसलिए भारत बीच में नही पड़ेगा।
भूटान देश हर तरफ से देशों से घिरा हुआ है, जैसे कि तिबेत जो अब चीन के अधीन है, भारत के राज्यों से जैसे कि पश्चिम बंगाल, सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश।
भूटान में ३१ दिसम्बर २००७ को चुनाव हुए थे। भूटान के मुख्य चुनाव आयुक्त दशो कुंज़ंग वांगदी ने इसे लोकतंत्र की और एक सफल प्रयास कहा। ये चुनाव भारत के चुनाव से काफी भिंह था क्योकि एक भी पोस्टर या चुनाव रैली का इस्तेमाल नहीं हुआ।
चुनाव के दौरान सुरक्षा व्यवस्था पुष्ट रखना एक बड़ी चुनौती थी। भूटान ने भारत से मिली सरहद को सुरक्षा की दृष्टि से ३६ घंटों के लिए बंद कर दिया था। इस चुनाव में जो एलेत्रोनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग हुआ, वह भारत के सहयोग से आई थीं। इस चुनाव में कई ओब्सेर्वेर भी शामिल थे जो भारत, अमरीका, और संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं से थे।
भूटान में दो राजनितिक दल हैं। पीपुल'एस डेमोक्रेटिक पार्टी या जनता लोकतांत्रिक पार्टी है जिसके अध्यक्ष हैं कृषि मंत्री संगे न्गेदुप, और दृक फुन्सुम त्शोग्पा पार्टी है जिसके अध्यक्ष हैं भूतपूर्व गृह मंत्री जिग्मी थिनले।
ये गौर करने की बात है कि तानाशाही छोड़ कर लोकतंत्र की तरफ परिवर्तन की पहल भूटान के तानाशाह राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने की। भूटान में कोई भी जबरदस्त आक्रोश नहीं पनप पा रहा था इसलिए ये कहना कि किसी दबाव में वहा के राजा ने ऐसा किया सही नही होगा।
इस चुनाव से जो सरकार बनेगी उसके अध्यक्ष एक प्रधान मंत्री होगा जो लोकतांत्रिक तरीके से चुना जाएगा और भूटान नरेश मात्र कहने के लिए राजा रह जायेंगे। यह तक कि संसद के पास ये भी अधिकार होगा कि २/३ संसद सदस्य की सहमति से राजा के खिलाफ भी कारवाई हो सकती है।
(नव ठाकुरिया वरिष्ट पत्रकार हैं और असम के निवासी हैं)
नव ठाकुरिया
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नोट: यह लेख असम के पत्रकार नव ठाकुरिया की मूल रचना है, जो अंग्रेजी में लिखी गयी थी। नीचे उसका हिन्दी अनुवाद है जो हमने करने का प्रयास किया है। त्रुटियों के लिए छमा कीजिए। मौलिक अंग्रेजी की रचना पढ़ने के लिए, यह क्लिक्क करें
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१ जनवरी २००८ को भूटान राष्ट्र के लगभग ७ लाख नागरिकों को पहली लोकतांत्रिक चुनाव द्वारा चुनी गयी राष्ट्रिये काउंसिल या संसद मिली। भूटान के इतिहास में ये पहला लोकतांत्रिक चुनाव था।
दाख्स्हीं एशिया के अन्य राज्य जैसे कि पाकिस्तान, बर्मा, नेपाल आदि वर्त्तमान में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने के लिए संघर्षरत हैं, और छोटे से राज्ये भूटान नी कमाल कर दिखाया। सबसे प्रशास्निये बात यह है कि भूटान में लोकतंत्र कायम करने के लिए नेतृत्व दिखाया वहीं के तानाशाह ने। भूटान में १०० सालों से तानाशाही रही है और मजुदा राजा का लोकतंत्र स्थापित करने का कदम नि:संदेह प्रशास्निये है।
परन्तु भूटान की नयी सरकार के लिए लोकतंत्र कि नयी व्यवस्था में पहले से ही चुनौती भरे सवाल ललकार रहे हैं। भूटान के पहले चुनाव में १ लाख से अधिक ऐसे देश से निकाले हुए लोग हैं जो मजबूरन १७ सालों से नेपाल में शरणार्थी के तरह जीवन-यापन कर रहे हैं। भूटान की कुल जन-संख्या लगभग ७ लाख की है और इस पहले लोकतांत्रिक चुनाव में ये १ लाख लोग या १/६ जनता भाग नही ले पायी।
ये १ लाख भूटान के देश से निकाले हुए लोग पश्चिम नेपाल में १७ सालों से शरणार्थियों की तरह कैंप में जी रहे हैं और वापस अपने देश जाने के लिए लालायित हैं। १९८० के दशक में भूटान में एक ऐसा कानून बना जिसके आधार पर एन १ लाख लोगों की नागरिकता खतम हो गयी। इन लोगों को मजबूरन १९९० में अपना देश भूटान छोड़ कर नेपाल में शरण लेनी पड़ी।
नेपाल सरकार ने भूटान के राजा से १५ बार उच्च स्तारिये वार्ता की परन्तु कोई नतीजा नही निकला। १७ सालों से आज तक एक भी भूटानी शरण-यात्री जो नेपाल के कैंप में रह रह है, वापस नही जा पाया है।
भारत, भूटान का सबसे अच्छा दोस्त पडोसी राज्य है और भूटान का सबसे बड़ा आर्थिक सहायता देने वाला डाटा देश भी। परन्तु १ लाख नेपाल में शरण प्राप्त किये भूटान के लोगों के विषय पर भारत ने कहा कि ये नेपाल और भूटान का आपसी मामला है और इसलिए भारत बीच में नही पड़ेगा।
भूटान देश हर तरफ से देशों से घिरा हुआ है, जैसे कि तिबेत जो अब चीन के अधीन है, भारत के राज्यों से जैसे कि पश्चिम बंगाल, सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश।
भूटान में ३१ दिसम्बर २००७ को चुनाव हुए थे। भूटान के मुख्य चुनाव आयुक्त दशो कुंज़ंग वांगदी ने इसे लोकतंत्र की और एक सफल प्रयास कहा। ये चुनाव भारत के चुनाव से काफी भिंह था क्योकि एक भी पोस्टर या चुनाव रैली का इस्तेमाल नहीं हुआ।
चुनाव के दौरान सुरक्षा व्यवस्था पुष्ट रखना एक बड़ी चुनौती थी। भूटान ने भारत से मिली सरहद को सुरक्षा की दृष्टि से ३६ घंटों के लिए बंद कर दिया था। इस चुनाव में जो एलेत्रोनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग हुआ, वह भारत के सहयोग से आई थीं। इस चुनाव में कई ओब्सेर्वेर भी शामिल थे जो भारत, अमरीका, और संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं से थे।
भूटान में दो राजनितिक दल हैं। पीपुल'एस डेमोक्रेटिक पार्टी या जनता लोकतांत्रिक पार्टी है जिसके अध्यक्ष हैं कृषि मंत्री संगे न्गेदुप, और दृक फुन्सुम त्शोग्पा पार्टी है जिसके अध्यक्ष हैं भूतपूर्व गृह मंत्री जिग्मी थिनले।
ये गौर करने की बात है कि तानाशाही छोड़ कर लोकतंत्र की तरफ परिवर्तन की पहल भूटान के तानाशाह राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने की। भूटान में कोई भी जबरदस्त आक्रोश नहीं पनप पा रहा था इसलिए ये कहना कि किसी दबाव में वहा के राजा ने ऐसा किया सही नही होगा।
इस चुनाव से जो सरकार बनेगी उसके अध्यक्ष एक प्रधान मंत्री होगा जो लोकतांत्रिक तरीके से चुना जाएगा और भूटान नरेश मात्र कहने के लिए राजा रह जायेंगे। यह तक कि संसद के पास ये भी अधिकार होगा कि २/३ संसद सदस्य की सहमति से राजा के खिलाफ भी कारवाई हो सकती है।
(नव ठाकुरिया वरिष्ट पत्रकार हैं और असम के निवासी हैं)