उडीसा में ईसाईयों पर हुई हिंसा
नोट: यह पत्र डॉ जॉन दयाल ने अंग्रेजी में लिखा है जिसका हिन्दी अनुवाद करने का प्रयास किया गया है। त्रुटियों के लिए छमा कीजिए। मौलिक पत्र पढ़ने के लिए यह क्लिक्क करें
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पांच दिन उडीसा के कान्धामल जिले में बिताने के बाद मैं अभी २.२० बजे देर रात को ४ जनवरी २००८ को लौटा हूँ। यहाँ २४ दिसम्बर २००७ की शाम से २७ दिसम्बर २००७ तक ऐसी ईसाईयों के खिलाफ हिंसा हुई है जो मैंने कभी नहीं देखी थी।
मैं एक Fact finding प्रारम्भिक रपट तैयार कर कर ५ जनवरी २००८ को जमा करूँगा, जिसमे कुछ जरुरी जानकारी, पुलिस की भूमिका, जिला प्रशासन की भूमिका, संघ परिवार की हिंसा को बढावा देने में भूमिका, और कुछ सुझाव एवं चुनौतियों को भी लिखूंगा।
इस रपट को भुभ्नेश्वर में ५ जनवरी २००८ को प्रेस वार्ता में पेश किया जाएगा। पूरी रपट संभवत: दो हफ्तों में तैयार हो सके।
उडीसा के कान्धामल जिले में एवं पहाडियों में ईसाईयों के खिलाफ हिंसा जो एक भायावाही हादसा है, होने को पनप रही थी। यह एक पूर्ण नियोजित शंन्यंत्र था और जो इसके लिए जिम्मेदार हैं, वह चिन्हित हो चुके हैं। ऐसे हादसे फिर से हो जायेंगे यदि हम लोगों ने सुधार करने के लिए कदम नहीं उठाए।
यह भी पहली बार था कि हिन्दू गावं वासियों पर भी आक्रमण किया गया। ऐसा दुबारा फिर कभी नही होना चाहिऐ, चाहे जैसी भी स्थिति हो। शुक्र की बात है कि किसी को भी चोट नहीं लगी पर खेद की बात है कि गावं के घर जल गए है। यह भी पहली बार huaa है कि गावं के ईसाईयों क घर भी जल गए हैं और विस्थापित होने कि वजह से उनको कैंप की शरण लेनी पड़ी है।
जिस Fact finding टीम का में सदस्य जाने, रौर्केला के वकील फादर जाने पहले और भुभ्नेश्वर के सामाजिक कार्यकर्ता और कुई संस्कृति विशेषज्ञ श्री हेमंत नायक भी शामिल थे। हम लोग कान्धामल जिले के हर एक नगर के, कसबे में गए जहाँ हिंसा या लूट पात हुई थी। हम लोग शरण लेने वालों के लिए दो कैंप में भी गए। एक कैंप में सिर्फ ईसाईयों को रखा गया था और दुसरे कैंप में अलग अलग जाती के लोग थे।
वहाँ जाने के पहले हम लोग भारत सरकार के गृह मंत्री से, उड़ीसा के राज्यपाल एवं मुख्य मंत्री से, और दिल्ली एवं उड़ीसा के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से मिले थे।
अन्य ईसैयी नेतागण जैसे कि कार्डिनल तेलेस्फोने तोपों, भुभ्नेश्वर के अर्च्बिशोप राफेल चीनाथ, और दिल्ली के अर्च्बिशोप विंसेंट कांसस्साओ, भारत के राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से और प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह से, गृह मंत्री पाटिल से, उड़ीसा राज्यपाल श्री मुरली धर चंद्रकांत भंडारे, और मुख्य मंत्री नवीन पत्त्नैक से, और राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग एवं राष्ट्रीय मिनोरिटी आयोग से मिलते रहे हैं।
भारत के गृह मंत्री पाटिल हैलिकॉप्टर से बरखामा कसबे में गए थे और शरणार्थियों से मिले थे। वें CNI चर्च भी गए थे जो खासकर जल गया था। पाटिल के साथ उड़ीसा के मुख्य मंत्री, उड़ीसा के कांग्रेस नेता जयंती बल्लभ पत्नैक, और अन्य स्थानिये राजनेता भी थे। प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक महेश भट्ट, महाराष्ट्रा के मिनोतिरी आयोग के उपाध्यक्ष अब्राहम माथे, भी भुभ्नेश्वर आये और मुख्य मंत्री से मिले।
कार्डिनल तोपों भी भुभ्नेश्वर में हैं और मुख्य मंत्री से मिले।
Fact Finding रपट की कॉपियाँ राष्ट्रपति एवं प्रधान मंत्री को, उड़ीसा के राज्यपाल को, मुख्य मंत्री को, राष्ट्रीय मनाव्धिकार आयोग के अध्यक्ष को, और राष्ट्रीय मिनोरिटी आयोग के अध्यक्ष को दी जाएँगी। इस रपट की कॉपियाँ कैथोलिक बिशोप कांफेरेंस, नेशनल काउंसिल ऑफ़ चुर्चेस ऑफ़ इंडिया, अल इंडिया कैथोलिक संघ, एवं अन्य मनाव्धिकार संगठनों को भी दी जाएँगी।
उड़ीसा एक शांति प्रिय राज्य रहा है जहाँ सम्राट अशोका ने जंग आदि त्याग के शांति का रास्ता अपनाया था। उड़ीसा एक समय में, पर आज नही, बुद्धिस्म आदि का भी स्थान रह है। खेद होती है ये कहते हुए कि दुर्भाग्य से उड़ीसा में ही ग्राहम स्टुअर्ट स्तैनेस एवं उनके बेटों टिमोथी एवं फिल्लिप को जनवरी १९९८ में जिंदा जला दिया गया था। फास्टर दोस को भी मौत के घाट उतार दिया गया था।
इस तरह की भयानक हिंसा जो ईसाईयों पर हो रही है, ने ईसाईयों में एक भय उत्पान् कर दिया है।
हमें उम्मीद है कि इस प्रारम्भिक रपट को नज़रंदाज़ नहीं किया जाएगा और समयोचित करवाई की जायेगी।
डॉ जॉन दयाल
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नोट: यह पत्र डॉ जॉन दयाल ने अंग्रेजी में लिखा है जिसका हिन्दी अनुवाद करने का प्रयास किया गया है। त्रुटियों के लिए छमा कीजिए। मौलिक पत्र पढ़ने के लिए यह क्लिक्क करें
नोट: यह पत्र डॉ जॉन दयाल ने अंग्रेजी में लिखा है जिसका हिन्दी अनुवाद करने का प्रयास किया गया है। त्रुटियों के लिए छमा कीजिए। मौलिक पत्र पढ़ने के लिए यह क्लिक्क करें
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पांच दिन उडीसा के कान्धामल जिले में बिताने के बाद मैं अभी २.२० बजे देर रात को ४ जनवरी २००८ को लौटा हूँ। यहाँ २४ दिसम्बर २००७ की शाम से २७ दिसम्बर २००७ तक ऐसी ईसाईयों के खिलाफ हिंसा हुई है जो मैंने कभी नहीं देखी थी।
मैं एक Fact finding प्रारम्भिक रपट तैयार कर कर ५ जनवरी २००८ को जमा करूँगा, जिसमे कुछ जरुरी जानकारी, पुलिस की भूमिका, जिला प्रशासन की भूमिका, संघ परिवार की हिंसा को बढावा देने में भूमिका, और कुछ सुझाव एवं चुनौतियों को भी लिखूंगा।
इस रपट को भुभ्नेश्वर में ५ जनवरी २००८ को प्रेस वार्ता में पेश किया जाएगा। पूरी रपट संभवत: दो हफ्तों में तैयार हो सके।
उडीसा के कान्धामल जिले में एवं पहाडियों में ईसाईयों के खिलाफ हिंसा जो एक भायावाही हादसा है, होने को पनप रही थी। यह एक पूर्ण नियोजित शंन्यंत्र था और जो इसके लिए जिम्मेदार हैं, वह चिन्हित हो चुके हैं। ऐसे हादसे फिर से हो जायेंगे यदि हम लोगों ने सुधार करने के लिए कदम नहीं उठाए।
यह भी पहली बार था कि हिन्दू गावं वासियों पर भी आक्रमण किया गया। ऐसा दुबारा फिर कभी नही होना चाहिऐ, चाहे जैसी भी स्थिति हो। शुक्र की बात है कि किसी को भी चोट नहीं लगी पर खेद की बात है कि गावं के घर जल गए है। यह भी पहली बार huaa है कि गावं के ईसाईयों क घर भी जल गए हैं और विस्थापित होने कि वजह से उनको कैंप की शरण लेनी पड़ी है।
जिस Fact finding टीम का में सदस्य जाने, रौर्केला के वकील फादर जाने पहले और भुभ्नेश्वर के सामाजिक कार्यकर्ता और कुई संस्कृति विशेषज्ञ श्री हेमंत नायक भी शामिल थे। हम लोग कान्धामल जिले के हर एक नगर के, कसबे में गए जहाँ हिंसा या लूट पात हुई थी। हम लोग शरण लेने वालों के लिए दो कैंप में भी गए। एक कैंप में सिर्फ ईसाईयों को रखा गया था और दुसरे कैंप में अलग अलग जाती के लोग थे।
वहाँ जाने के पहले हम लोग भारत सरकार के गृह मंत्री से, उड़ीसा के राज्यपाल एवं मुख्य मंत्री से, और दिल्ली एवं उड़ीसा के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से मिले थे।
अन्य ईसैयी नेतागण जैसे कि कार्डिनल तेलेस्फोने तोपों, भुभ्नेश्वर के अर्च्बिशोप राफेल चीनाथ, और दिल्ली के अर्च्बिशोप विंसेंट कांसस्साओ, भारत के राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से और प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह से, गृह मंत्री पाटिल से, उड़ीसा राज्यपाल श्री मुरली धर चंद्रकांत भंडारे, और मुख्य मंत्री नवीन पत्त्नैक से, और राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग एवं राष्ट्रीय मिनोरिटी आयोग से मिलते रहे हैं।
भारत के गृह मंत्री पाटिल हैलिकॉप्टर से बरखामा कसबे में गए थे और शरणार्थियों से मिले थे। वें CNI चर्च भी गए थे जो खासकर जल गया था। पाटिल के साथ उड़ीसा के मुख्य मंत्री, उड़ीसा के कांग्रेस नेता जयंती बल्लभ पत्नैक, और अन्य स्थानिये राजनेता भी थे। प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक महेश भट्ट, महाराष्ट्रा के मिनोतिरी आयोग के उपाध्यक्ष अब्राहम माथे, भी भुभ्नेश्वर आये और मुख्य मंत्री से मिले।
कार्डिनल तोपों भी भुभ्नेश्वर में हैं और मुख्य मंत्री से मिले।
Fact Finding रपट की कॉपियाँ राष्ट्रपति एवं प्रधान मंत्री को, उड़ीसा के राज्यपाल को, मुख्य मंत्री को, राष्ट्रीय मनाव्धिकार आयोग के अध्यक्ष को, और राष्ट्रीय मिनोरिटी आयोग के अध्यक्ष को दी जाएँगी। इस रपट की कॉपियाँ कैथोलिक बिशोप कांफेरेंस, नेशनल काउंसिल ऑफ़ चुर्चेस ऑफ़ इंडिया, अल इंडिया कैथोलिक संघ, एवं अन्य मनाव्धिकार संगठनों को भी दी जाएँगी।
उड़ीसा एक शांति प्रिय राज्य रहा है जहाँ सम्राट अशोका ने जंग आदि त्याग के शांति का रास्ता अपनाया था। उड़ीसा एक समय में, पर आज नही, बुद्धिस्म आदि का भी स्थान रह है। खेद होती है ये कहते हुए कि दुर्भाग्य से उड़ीसा में ही ग्राहम स्टुअर्ट स्तैनेस एवं उनके बेटों टिमोथी एवं फिल्लिप को जनवरी १९९८ में जिंदा जला दिया गया था। फास्टर दोस को भी मौत के घाट उतार दिया गया था।
इस तरह की भयानक हिंसा जो ईसाईयों पर हो रही है, ने ईसाईयों में एक भय उत्पान् कर दिया है।
हमें उम्मीद है कि इस प्रारम्भिक रपट को नज़रंदाज़ नहीं किया जाएगा और समयोचित करवाई की जायेगी।
डॉ जॉन दयाल
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नोट: यह पत्र डॉ जॉन दयाल ने अंग्रेजी में लिखा है जिसका हिन्दी अनुवाद करने का प्रयास किया गया है। त्रुटियों के लिए छमा कीजिए। मौलिक पत्र पढ़ने के लिए यह क्लिक्क करें