२४ दिसम्बर २०१० को बिनायक सेन को छत्तीसगढ़ कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई. बिनायक सेन ने काले कानूनों के खिलाफ न्याय मांगने की हिम्मत जताई थी. हमारे कानून के मुताबिक राजद्रोह का मतलब है देश व सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काना एवं अनचाही हिंसा जागरूक करना. तो अगर सेन राजद्रोही हुए तो उन विरोधी पार्टियों को हम क्या कहेंगे जो हमेशा सरकार की खिल्ली उड़ाती रहती हैं? वहीं दूसरी ओर उन भ्रष्टाचारियों को भी राजद्रोही करार देना चाहिए जिन्होनें सरकार का इतना नुक्सान कराया है. बिनायक सेन जैसे कार्यकर्ता तो समाज के उस वर्ग की आवाज़ बनना चाहते थे, जो वर्ग हमारे समाज में अल्पसंख्य है. सेन ने छत्तीसगढ़ के उन आदिवासियों के विकास में मदद की जिनकी कोई पहचान भी नही थी. पर ऐसी जगहों पर संघर्ष करने वाले लोगों को माओवादी करार कर दिया जाता है.
बिनायक सेन के साथ भी यही हुआ. उन्हें माओवादी, आतंकवादी व राजद्रोही जैसे अपमानजनक संबोधन सहने पड़े. उनकी कोशिश बस इतनी थी कि सरकार द्वारा शुरू किये गए बाज़ार वार में वे इन छोटी जातियों को जिंदा रखना चाहते थे. सरकार और मल्टीनेशनल कम्पनियों की साझेदारी ने आदिवासियों से उनकी ज़मीन व उनके हक तक छीन लिए थे. जब बिनायक ने इसके खिलाफ आवाज़ ऊँची करी तो उन्हें राज्यद्रोह के मामले में उम्रकैद की सजा सुना दी गई.
उन पर यह भारी इलज़ाम लगाते समय उनके द्वारा किये गए अनेकों सामाजिक कार्य भुला दिए गए. बिनायक सेन ने १९८१ में छत्तीसगढ़ में शहीद अस्पताल बनवाया था. यह इस राज्य का पहला ऐसा अस्पताल है जहाँ सही इलाज़ के साथ साथ स्वास्थ्य सम्बंधित शिक्षा भी दी जाती है. इसकी एक और खासियत यह है कि यहाँ काम करने वाले सभी कर्मचारियों को कम्युनिटी ट्रेनिंग द्वारा तैयार किया गया है. यानी स्वास्थ्य के साथ साथ रोजगार का जरिया भी बनाया गया. बिनायक ने मलेरिया और टी. बी. के क्षेत्र में भी कई योगदान दिए है. पर सरकार को यह मंजूर नहीं हुआ कि कोई उसकी गलत कार्यप्रणाली के खिलाफ आवाज़ उठा कर जवाब मांगे.
बिनायक सेन की पत्नी इलिना सेन,बताती हैं कि "कोर्ट कहता है कि बिनायक बहुत असहज प्रश्न उठाते हैं इसलिए उन्हें रोकना चाहिए." कोर्ट की माने तो बिनायक के खिलाफ कई सबूत हासिल हुए है जिससे वो दोषी पाए गए हैं , पर बिनायक के सहयोगी इन सभी सबूतों को फर्जी बताते है. इलिना सेन ने बताया कि पुलिस उनके घर छानबीन करने पहुँची और बहुत सा सामान जब्त कर लिया. बिनायक के कंप्यूटर में मिले हर एक मुस्लिम के नाम को आतंकवाद के साथ जोड़ा गया और बिनायक को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी करार ठहराया गया. बिनायक की कोर्ट में पेशी के दौरान दो विधवा महिलायें बिनायक को फाँसी देने की मांग करने लगीं. बाद में यह पता चला क़ि उनके पति माओवादी हमले में मारे गए थे और पुलिस ने उन ममहिलाओं को सेन के खिलाफ भड़काया था . सवाल ये है क़ि राज्य का इस तरह से लोगो की भावनाओं का इस्तेमाल करना कितना उचित है? यह तो हमारे जीवन एवं स्वतंत्रता पर राज्य का हमला हुआ. ऐसे कई और उदाहरण है जिसमें अपने अधिकार के लिए उठाई गयी आवाज़े दबा दी गयी हैं .
२६ जनवरी २०१० को , सामाजिक कार्यकर्ता पियूष को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया था क्यूंकि उन्होंने दंतेवाडा में हुए बलात्कार के आरोपियों को गिरफ्तार करने की मांग की थी. वहीं कर्नाटक की पी . यु. सी.एल. की अध्यक्ष रति राव को भी गिरफ्तारी दी गयी जब उन्होंने सरकार द्वारा की गए फर्जी मुठभेड़ों का खुलासा किया . डाक्टर रूपरेखा वर्मा कहती है "अगर सरकार एक बिनायक सेन को मारेगी तो १००० और पैदा होंगे." डाक्टर कविता श्रीवास्तव का कहना है : 'नरेगा , आर.टी.आई., महिला उत्पीड़न, आदि क्षेत्रों में यदि आप काम करेंगे तो जवाबदेही तो मांगेगे ही; आप आन्दोलन करेंगे और सरकार बोलेगी क़ि आप आतंकवादी है ”
पर इन सब के बावजूद सरकार की जवाबदेही कम नहीं हुई है . ऐसे बहुत सारे मुद्दे हैं जिन पर जवाब मिलना बाकी है और सामूहिक मांग से हम जवाब पा कर रहेंगे .
निधि शाह
(लेखिका सिम्बोयोसिस इंस्टिट्यूट ऑफ़ मीडिया एंड कम्युनिकेशन की छात्रा है )