आधुनिकता ने हमारे समाज को अच्छी तरह जकड़ लिया है। जैसे-जैसे क्षेत्रीय विकास बढ़ा है वैसे-वैसे लोगों की हर क्षेत्र में दिलचस्पी भी जागी है। पहले के मुकाबले कई नये क्षेत्र, पाठ्यक्रम व विषय आ गये हैं। लोगों में नयी चीजों को जानने की जिज्ञासा बढ़ी तो साथ में जानकारी पाने के नये यन्त्र भी उजागर हो गये हैं। विभिन्न तरह की रिसर्च, संवाद, वाद विवाद, फोरम्स, आर0टी0आई0 से लोग नये मुद्दों के साथ जुड़ने लगे तथा समाज के प्रति और जिम्मेदार हुए।
समाज में कई ऐसे मिथ्य हैं जो महिला हिंसा को बढ़ावा देते हैं। मीडिया भी इसमें अहम भूमिका निभाता है। टी0वी0 पर दिखाये जाने वाले सीरियल्स में अक्सर यह दिखाया जाता है कि किस तरह से एक महिला दूसरी महिला के खिलाफ साजिश करती है। इससे समाज में बहुत ही गलत सन्देश जाता है कि महिलाएं खुद अपनी दुश्मन होती हैं। हमसफर संस्था की अध्यक्ष प्रो0 इलिना सेन का कहना है कि ‘‘बाजारवार लगा हुआ है, लगन का मौसम आते ही आप ढेरों ऐसे विज्ञापन देखेगें जिनसे दहेज प्रथा को बढ़ावा मिल रहा है जैसे कि 'अपनी बेटी को दें उसके सुखद संसार के लिए यही कार'। समाज में इससे यही सन्देश जायेगा कि अपनी बेटी को खुश देखना है तो उसे दहेज में कार दें।
मीडिया भी समाज का हिस्सा है और हर तरह से हमें प्रभावित करता है। समाज में अगर सही सन्देश जायेगा तभी बदलाव आयेगा।
निधी शाह
(लेखिका सिम्बोयोसिस इंस्टिट्यूट ऑफ़ मीडिया एंड कम्युनिकेशन की छात्रा है )